भारत पाकिस्तान के बीच
हालांकि सिंधु जल समझौता है, फिर भी सिंधु नदी घाटी के नदियों के पानी को लेकर
भारत और पाकिस्तान के बीच खींचतान चलता रहता है। कश्मीर के उरी में 2016 में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने संकेत दिए
थे कि पाकिस्तान पर आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाने का दबाव बनाने के लिए वह
सिंधु जल समझौते का इस्तेमाल कर सकता है।
पाकिस्तान भारत की बड़ी
जलविद्युत परियोजनाएं जिनमें पाकल (1,000 मेगावाट), रातले (850 मेगावाट), किशनगंगा (330 मेगावाट), मियार (120 मेगावाट) और
लोअर कलनाई (48 मेगावाट) पर कई बार आपत्ति उठाता रहा है।
पाकिस्तान ने अपनी
आपत्तियां अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाई। 2017 में वाशिंगटन में हुई वार्ता में विश्व
बैंक की मध्यस्थता में संधि के तहत भारत को दो सहायक नदियों के जल का इस्तेमाल
करने का अधिकार दिया गया, जबकि अन्य तीन नदियों के जल का उपयोग करने का अधिकार
पाकिस्तान को दिया गया। भारत ने कहा कि उसे संधि के तहत अपने क्षेत्र में प्रवाहित
नदियों की सहायक नदियों पर जलविद्युत संयंत्र लगाने का अधिकार है जबकि पाकिस्तान
को आशंका थी कि इससे उसके क्षेत्र में पानी का प्रवाह कम हो जाएगा।
सिंधु नदी का जल पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए रीढ़ की हड्डी है। पाकिस्तान
कृषि प्रधान देश है और इसकी खेती का 80
फीसदी हिस्सा सिंचाई के लिए
सिंधु के पानी पर निर्भर है।
भारत पहले भी दिखा चुका है कड़ा रुख
दिसंबर 2016
में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस संबंध में पंजाब के
बठिंडा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि एक-एक
बूंद पानी रोककर भारत के किसानों तक पहुंचाया जाएगा। 2016
में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंधु जल संधि पर हुई
बैठक के दौरान कहा कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते। इस बयान को पाकिस्तान के
लिए कड़ा संदेश समझा गया था।
1948 में रोका
था पानी
भारत पाक बंटवारे के साथ
ही सिंधु नदी के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद शुरू हो गया था। 1948 में भारत ने सिंधु नदी से निकली नहरों का पानी रोक दिया था
जिससे पाकिस्तान के पंजाब में सूखा
पड़ गया था।
1960 में हुआ सिंधु जल करार
सिंधु जल संधि को दो
देशों के बीच जल विवाद पर एक सफल अंतरराष्ट्रीय उदाहरण बताया जाता है। साल 1960 में हुआ था भारत पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता,
19 सितंबर को कराची में दोनों देशों के बीच करार हुआ। इस संधि पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री
जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने दस्तखत किए थे।
- समझौते
के मुताबिक पूर्वी नदियों (सतलज, व्यास और रावी) का
पानी,
कुछ अपवादों को छोड़ भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता
है।
पश्चिमी नदियों झेलम, चेनाब और सिंधु का 80 फीसदी पानी पाकिस्तान के लिए होगा। पर
इन नदियों के 20 फीसदी पानी का इस्तेमाल का अधिकार भारत को दिया गया। जैसे बिजली
बनाना,
कृषि के लिए सीमित पानी का इस्तेमाल ।
भारत को
करोड़ों का नुकसान
भारत में एक वर्ग का
मानना रहा है कि इस समझौते से भारत को आर्थिक नुकसान हो रहा है। जम्मू कश्मीर
सरकार के मुताबिक इस संधि के कारण राज्य को हर साल करोड़ों का आर्थिक नुकसान होता
है। संधि पर पुनर्विचार के लिए विधानसभा में 2003 में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था।
संधि तोड़ना
आसान नहीं
जब जब भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है तब सिंधु जल समझौते को
तोड़ने की बात उठती है। पर यह इतना आसान नहीं है।
भारत के पूर्व विदेश
सचिव मुचकुंद दूबे कहते हैं- संधि
को रद्द करके पाकिस्तान को मिले उसके अधिकार से वंचित करने से बहुत बड़ा मतभेद हो सकता है, बहुत बड़ी घटनाएं हो सकती हैं।
संधि टूटने के
खतरे
-
अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर निंदा
-
बाढ़
की आशंका
-
दूसरे
देशों के साथ जल समझौते में दिक्कत
सिंधु घाटी का
दायरा
11.2 लाख
किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है सिंधु नदी घाटी का इलाका
47 फीसदी
पाकिस्तान में 39 फीसदी भारत में 8 फीसदी चीन और 6 फीसदी अफगानिस्तान
सिंधु नदी से प्रभावित इलाका।
30 करोड़ लोग सिंधु नदी
के आसपास के इलाकों में रहते हैं।
2880 किलोमीटर है तिब्बत
से निकलने वाली सिंधु नदी की लंबाई।