Thursday, 1 October 2020

लालकृष्ण आडवाणी की हाजीपुर शहर में वह आखिरी सभा

वह 22 अक्तूबर 1990 की रात थी। हाजीपुर शहर का कलेक्ट्रेयेट मैदान। हजारों लोग जमा थे। इंतजार था भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का। वे सोमनाथ से अय़ोध्या की यात्रा लेकर चल रहे थे। उनके पहुंचने का समय रात के नौ बजे का था। एक घंटे देर से उनका रथ पहुंचा। साथ में उनके सारथि प्रमोद महाजन भी थे। लाल कुरता पहने हुए। भीड़ आडवाणी को सुनने के लिए बेताब थी। जैेसे ही आडवाणी जी मंच पर चढ़े भीड़ ने नारा लगाया - सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे... आडवाणी जी ने बोलना शुरू किया - बिल्कुल सही नारा है ये। मुझे सुनकर अच्छा लगता है जब लोग ये नारा लगाते हैं। मुझे अच्छा नही लगता है जब कुछ नौजवान मोटर बाइक पर चलते हुए कंधे उचकाकर नारा लगाते हैं - एक धक्का और दो...बाबरी मसजिद तोड़ दो... 

आडवाणी जी बोले, भला तोड़ने की क्या जरूरत है। वहां तो कोई मस्जिद है ही नहीं। वहां कभी नमाज नहीं पढी जाती। वहां राम लला विराजमान हैं। हमें अयोध्या में मंदिर बनाना है। प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बनाना है। पर यह हाजीपुर शहर में आडवाणी जी का रथयात्रा के दौरान आखिरी भाषण साबित हुआ। अगले दिन सुबह रेडियो पर हमने समाचार सुना। 23 अक्तूबर 1990 की सुबह आडवाणी जो समस्तीपुर शहर में गेस्ट हाउस में सुबह सुबह सोते हुए ही  गिरफ्तार कर लिया गया। तब बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार थी। लालू प्रसाद ने आडवाणी की अयोध्या तक रथयात्रा पूरी नहीं होने दी। रथ रुक गया। यात्रा अधूरी रही। आडवाणी को गिरफ्तार करने वाले समस्तीपुर के कलेक्टर थे राज कुमार सिंह। जो बाद में भाजपा से सांसद और केंद्र सरकार में मंत्री बने। ईश्वर ने आडवाणी जो अच्छी सेहत लंबी जिंदगी दी है। नब्बे के पार में भी वे दमखम रखते हैं। पर आडवाणी अयोध्या के हीरो नहीं बन पाए। देश के प्रधानमंत्री भी नहीं बन पाए। राष्ट्रपति भी नहीं बन पाए। समस्तीपुर में आडवाणी जो गिरफ्तार करने के बाद दुमका ले जाकर सरकारी गेस्ट हाउस में रखा गया। तब झारखंड नहीं बना था। दुमका बिहार का हिस्सा था। 

राम मंदिर आंदोलन समय ये नारे देश भर में खूब लगते थे। एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो। छह दिसंबर 1992 को जो हुआ उसे पूरे देश ने देखा। 


30 सितंबर 2020 को लखनऊ में सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, कल्याण सिंह, विनय कटियार जैसे तमाम नेता मस्जिद गिराए जाने के आरोप से बरी कर दिए गए। सीबीआई अदालत में इन नेताओं के खिलाफ मजबूत सबूत नहीं पेश कर पाई। 

पर आखिर बाबरी मसजिद गिराई किसने। देश भर से हजारों कारसेवक जमा थे। जो लोग मसजिद की छत पर चढ़ गए थे, जाहिर है कि वे लोग भी कारसेवक ही थे। दुनिया ने इबादत घर को गिरते हुए देखा। पर अदालत में किसी पर दोष साबित नहीं हो सका। 6 दिसंबर 1992 को मसजिद गिराए जाने के बाद संघ भाजपा के बड़े नेता गिरफ्तार किए गए। लालकृष्ण आडवाणी एक बार फिर गिरफ्तार हुए। इस बार उन्हें ललितपुर जिले के तालबेहट के पास माताटीला गेस्ट हाउस में नजरबंद करके रखा गया। यह संयोग ही रहा कि मुझे कई साल बाद उस शानदार गेस्ट हाउस में भी एक दिन रहने का मौका मिला। 

कहा जाता है कि राम मंदिर आंदोलन के सबसे बड़े नेता अशोक सिंघल भी मस्जिद की इमारत गिराने के पक्ष में नहीं थे। पर देश भर में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के आम कार्यकर्ताओं में ये विचार प्रमुखता से भर दिया गया था  कि अयोध्या में बाबर के नाम पर कही जाने वाली किसी इमारत का अस्तित्व नहीं रहना चाहिए। इस इबादत घर के गिराए जाने के बाद देश भर में गर्व से नारे लगते थे - जय श्रीराम...हो गया काम...। पर क्या सचमुच काम हो गया। 

हम एक भव्य राम मंदिर अयोध्या में बना रहे हैं। यह देश का दूसरा सबसे विशाल मंदिर होगा। पर यह राम मंदिर हिंदू आस्था का एक प्रतीक मात्र ही होगा। जरूरत है तो है पूरे देश में राम राज्य लाने की। एक ऐसे न्यायप्रिय देश की जहां बाघ और बकरी एक घाट पर पानी पी सकें। एक ऐसे समाज के निर्माण की जहां कोई खुद को दलित, शोषित या पिछड़ा न समझ सके, तभी सच्चे अर्थों में राम राज्य आ सकेगा। 

रथयात्रा की कुछ और बातें यहां पढ़ें -  https://www.news18.com/news/politics/wont-spare-you-when-lalu-got-advani-arrested-in-1990-for-taking-out-rath-yatra-in-bihar-2092239.html

- विद्युत प्रकाश मौर्य vidyutp@gmail.com - ( 30 सितंबर 2020 )