Saturday, 13 February 2021

साल 2021 में आई अर्थपूर्ण फिल्म है आखेट


साल 2021 में आई अर्थपूर्ण फिल्म है आखेट। फिल्म की कहानी बाघ संरक्षण जैसे संवेदनशील विषय को छूती है। फिल्म की कहानी का प्रवाह और निर्देशन का कमाल कुछ इस तरह का है कि कुल एक घंटे 20 मिनट की फिल्म को देखते हुए आपकी रोचकता बनी रहती है। तो कहानी शुरू होती है झारखंड के पलामू जिले के एक डाकघर से। नेपाल सिंह इस बार अपनी दशहरे छुट्टियां यादगार बनाना चाहते हैं। वे अपने पुरखों की बंदूक उठाकर जंगल में शिकार के लिए निकल पड़ते हैं। आगे की कहानी बेतला के जंगलों में बाघ के शिकार के इर्द गिर्द घूमती है। नेपाल सिहं की बंदूक किसी बाघ को तो नहीं मार पाती पर जंगल के इस प्रसंग में उनकी सोच में बहुत बड़ा बदलाव आता है।


जंगल में शिकार के इस प्रसंग को निर्देशक रवि बुले के बेहतरीन निर्देशन और नेपाल सिंह के रूप में आशुतोष पाठक के अभिनय ने काफी जीवंत बनाया है।

इस फिल्म में दो यादगार चरित्र हैं  मुर्शीद मियां और जुल्फिया।  मुर्शिद मिंया लोकल गाइड हैं तो जुल्फिया उनकी पत्नी.  फिल्म का अंत का संदेश अत्यंत सार्थक है जो देश के जंगलों खत्म हो रहे बाघ के बारे में गंभीर संदेश देता है।  जो आपको भावुक भी कर देता है। पर इतने गंभीर विषय पर बनी फिल्म आपको कहानी के साथ लगातार बांधे रखती है। पात्र कहीं भी बोर नहीं करते.  कहानी तेज गति से आगे बढ़ती है। रवि बुले की निर्देशन पक पकड़ लगातार बनी हुई दिखाई देती है। वैसे तो डेढ़ घंटे के फिल्म में गाने की ज्यादा गुंजाइश नहीं रहती.  पर अनुपम ओझा की लिखी ठुमरी.. सैंया शिकारी शिकार पर गए.... अदभुत बन पड़ी है।


आखेट एक अंतर राष्ट्रीय स्तर की फिल्म है जो आपको कुरेदती है,  झकझोरती है और सोचने को भी मजबूर करती है।  फिल्म को ओटीटी प्लेटफॉर्म पर देखा जा सकता है ।  यह हंगामा,  वोडाफोन,  एयरटेल आदि पर उपलब्ध है। 

- विद्युत प्रकाश मौर्य vidyutp@gmail.com

 


Monday, 8 February 2021

हमें कम्युनिकेशन वायलेंस से भी बचना होगा

प्रख्यात गांधीवादी और सर्वोदयी कार्यकर्ता एसएन सुब्बाराव ने 7 फरवरी 2021 को अपना 93वां जन्मदिन मनाया। जीवन में संयम की वजह से इस उम्र में भी वे काफी स्वस्थ हैं। उनके जन्मदिन पर गांधी भवन बेंगलुरू में एक छोटा सा आयोजन हुआ। इसमें देश भर से कुछ गांधीवादी और सर्वोदय से जुड़े कार्यकर्ता पहुंचे। इस मौके पर सुब्बराव जी के सबसे योग्य शिष्य पीवी राजगोपाल ने अपने संबोधन में बहुत बड़ी बात कही। उन्होंने कहा, अहिंसा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमें आज कम्युनिकेशन वायलेंस से भी बचने की जरूरत है। 

दरअसल हम आक्रोश में, गुस्से में,  चिल्लाकर शोर मचाकर और ऊंची आवाज में जब अपनी बात रखते हैं तो यह भी एक तरह की हिंसा है जो सुनने वालों को परेशान और विचलित करती है। हम चाहें तो हर हालात में अपनी बातों को विनम्रता से बिना शोर के कह सकते हैं। बापू के अहिंसा का ये मर्म है। इसे सुब्बराव जी ने जीवन भर अपनाया है। वे कभी ऊंची आवाज में नहीं बोलते। मुश्किल हालात में भी बड़े सहज ढंग से संवाद करते हैं। चिल्लाना और सामने वाले को अपनी वाणी से परेशान कर देना ही कम्युनिकेशन वायलेंस है। हमारी वाणी में विनम्रता हो इसका मतलब कायरता या कमजोरी तो कतई नहीं है। 
आप विनम्र रहकर भी अपने निश्यच पर दृढ रह सकते हैं। आपने तय कर लिया है कि आपको कोई आपके निश्चय से डिगा नहीं सकता है तो आप लगातार अपनी बातों विनम्र रहकर भी कायम रह सकते हैं। विनम्र रहने के कई फायदे भी हैं।  इससे आप आवेश में आकर कोई गलती नहीं करते। होश में जोश नहीं खोते। हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां अपनी बातों को रखने के लिए लोग समझते हैं कि चिल्लाना जरूरी है। पर ये सत्य नहीं है। किसी शायर ने कहा है - 
कैसे कैसे मंजर सामने आने लगे हैं
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं।
बापू पूरे जीवन अपने संभाषण में अपनी वाणी की विनम्रता पर कायम रहे, पर उनके विरोधी कभी उनको उनके निश्चय से डिगा नहीं सके। तो हमें सच्चे अर्थों में अहिंसा को जीवन में अपनाना होगा। 

सुब्बाराव जी के 93वें जन्मदिन समारोह में मैं शामिल नहीं हो सका। पर कार्यक्रम का लाइव वीडियो मधुभाई ( मधुसूदन दास, ओडिशा ) के सौजन्य से सुनने को मिल पाया। उनका आभार। देश भर से 17 राज्यों के युवा इस समारोह में बेंगलुरू पहुंच गए थे। हमारा सुब्बराव जी से मिलना दिसंबर 2019 में हुआ था। कोराना काल में साल 2020 में सुब्बराव जी लगातार बेंगुलुरू में ही रहे। उम्मीद है हालात और बेहतर होने पर फिर वे शिविरों में शिरकत कर पाएंगे। 
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com