यह सही है कि
प्रजातंत्र में सार्थक विपक्ष होना
चाहिए। पर विपक्ष बहुत
कमजोर हो तो प्रजातंत्र में भी
शासक निरंकुश होकर फैसले करने
लगता है। जैसे 1984 के चुनावों में
कांग्रेस ज्यादा सीटें जीत कर आई
थीं और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सामने विपक्ष बड़ा कमजोर था। ऐसी स्थिति में सरकार के किसी निरंकुश कदम का विरोध नहीं हो पाता। जबसे केंद्र में मिली जुली सरकारों का दौरा शुरू हुआ है स्थितियां बदली हैं। अब सरकार को अपने कई फैसले विपक्ष के या अपनी ही सरकार
के घटक दलों के विरोध के कारण
बदलने पड़ते हैं। जैसे अभी
केंद्र सरकार को आयकर रिटर्न का
सरल फार्म की जगह चार पन्ने
का फार्म लाने का निर्णय
वापस लेना पड़ा है।
पर हम उससे भी आगे
बढ़कर देखें तो अब कई बार एक ही
पार्टी में रहकर भी नेता एक
दूसरे का विरोध करते नजर आते हैं।
हरियाणा में पिछले विधान
सभा चुनाव के परिणाम आने पर
यहां सत्तासीन पार्टी इनेलो का
पूरी तरह सफाया हो गया।
कांग्रेस पूर्ण बहुमत में आ गई।
इनेलो के इतने कम उम्मीदवार जीते
की कि विपक्ष के रुप में उनकी
संख्या विधान सभा में नगण्य ही
नजर आने वाली थी। इस दौरान किसी
टीवी चैनल पर एक चुनाव
विश्लेषक ने कहा कि आने वाली सरकार
चैन की वंशी बजाएगी क्योंकि
विरोध करने के लिए यहां मजबूत
विपक्ष नहीं है। इस पर सामने
वाले ने जवाब दिया था कि नहीं हरियाणा कांग्रेस में इतने
गुट हैं कि चाहे कोई भी
मुख्यमंत्री बने बाकी गुट पांच
साल तक विपक्ष की भूमिका
निभाएंगे। उसके बाद का परिदृश्य
वाकई ऐसा ही है। जबसे हरियाणा
में भूपेंद्र सिंह हुड्डा
मुख्यमंत्री बने उन्हें भजनलाल गुट
के विरोध का सामना करना पड़
रहा है। हालांकि भजनलाल के
एक बेटे चंद्रमोहन इस सरकार
में उपमुख्यमंत्री हैं।
पर उनके दूसरे सांसद बेटे
कुलदीप बिश्नोई ने आजकल
अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा
खोल रखा है। खासकर रिलायंस को
स्पेशल इकोनोमिक जोन के
लिए सस्ते में जमीन दिए जाने
के मामले पर उन्होंने सरकार
के से जवाब मांगा है साथ ही
आंदोलन की भी धमकी दे डाली है।
भजनलाल का कुनबा जहां मुखर
रुप से विरोध करता है वहीं सरकार
कई अन्य गुटों का विरोध भी
झेलना पड़ता है। मुख्यमंत्री के
दो दावेदार तो सरकार में साथ आ
गए हैं इसलिए वे विरोध नहीं कर
पाते। पर वह टिप्पणी बहुत ही
सटीक होकर उभरी है कि अपनी
पार्टी में विधायक विपक्ष की
भूमिका निभाते नजर आएंगे।
इसके अलावा भी कुछ विधायकों ने
अपने हल्के में विकास नहीं
होने पर सरकार के खिलाफ प्रेस
कान्फ्रेंस करके आग उगली है।
निरंकुश न हो मुख्यमंत्री- वास्तव में इसे लोकतंत्र
में सकरात्मक रुप में देखा जाना
चाहिए। यह लोकतंत्र अंदर चल
रहे अधिनायकवाद के खात्मे का
प्रतीक है। यह इस बात को संकेत
करता है कि प्रजातंत्र में कोई
मुख्यमंत्री निरंकुश होकर शासन
नहीं कर सकता है। उसे अपनी
सरकार के विभिन्न गुटों को
साथ लेकर चलना ही पड़ेगा।
उनकी बातें सुननी पड़ेगी। उनकी
समस्याओं का निदान करना
पड़ेगा। सरकार की योजनाओं और
कारगुजारी पर सबको विश्वास में
लेकर चलना पड़ेगा।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह अच्छी बात है। हालांकि इसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। कई मामले में
निर्णय लेने में देरी होती है। पर
अच्छी बात है कि सरकारी काम
में पारदर्शिता बनी रहती है। सरकार
में अलग अलग गुट मीडिया कोई
भी कुछ जानकारियां देते
रहते हैं जिससे जनता भी आगाह
रहती है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य ( मई 2006)
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