Monday, 23 February 2009

सोना कितना सोना है

सोना खरीदना और पहनना है भारत के लोगों का प्रिय शगल है। सदियों से सोना खरीदने पहनने और उसे बुरे दिनों के लिए संभालकर रखने की भारत के लोगों की मानसिकता है। पर क्या आपको मालूम है कि आपके पास जो सोना है वास्तव में वह कितना खरा है। क्या आपके खानदानी सुनार ने आपको अगर कोई सोने का गहना 22 कैरेट का कहकर दिया है तो वास्तव में वह 22 कैरेट ही है। आप अपनी कमाई का बहुच बड़ा हिस्सा सोना खरीदने पर लगाते हैं तो आपको इसकी शुद्धता को लेकर जागरुक होना ही चाहिए।


नब्बे फीसदी तक अशुद्ध- आपको यह जानकर अचरज होगा कि सरकार की जांच में पाया गया है कि जो सोना आप खरीदते हैं वह 90 फीसदी तक अशुद्ध हो सकता है। भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा किए गए एक सर्वे में पाया गया है कि देश के अधिकांश हिस्सो में ज्वेलरों द्वारा बेचा जाने वाला सोना शुद्धता के पैमाने पर खरा नहीं उतरता है। कई शहरों में 20 से 30 फीसदी तो कई शहरों में 90 फीसदी तक सोना अशुद्ध पाया गया है। अगर आप किसी सुनार से कोई गहना बनवाते हैं तो वह आपको 22 कैरेट कहकर कोई स्वर्ण आभूषण देता है तो वह कुछ सालों बाद उतनी मात्रा में सोना वापस लेने की गारंटी देता है। यह गारंटी कोई वास्तविक गारंटी नहीं है। अगर एक सुनार का बेचा हुआ सोना किसी दूसरे शहर का भी सुनार उतनी ही शुद्धता बताकर खरीद ले तब उसे ईमानदार सौदा माना जा सकता है। पर अधिकांश सुनार बेइमान का कारोबार सदियों से करते आ रहे हैं।
कैसी हो सोने की शुद्धता - सोना 24 कैरेट में अपने शुद्ध फार्म में माना जाता है। पर बिल्कुल शुद्ध सोना में कोई गहना नहीं बनाया जा सकता है। इसलिए उसमें कुछ फीसदी चांदी, तांबा या जिंक मिलाया जाता है। इस मिलावट के स्तर को कैरेट में मापते हैं। इसको आम भाषा में यूं समझा जाए कि किसी चीज को 24 हिस्से में बांट दिया गया तो अगर इसमें एक हिस्सा मिलावट है तो वह 23 कैरेट का सोना होगा। अगर इसे फीसदी में देखें तो 95.80 फीसदी शुद्धता होनी चाहिए। इसी तरह 22 कैरेट की शुद्धता 91.60 फीसदी होनी चाहिए।
21 कैरेट मे 87.50 फीसदी शुद्धता होनी चाहिए। इसी तरह 18 कैरेट में 75.00 फीसदी शुद्धता यानी इतना हिस्सा सोना होना चाहिए। 14 कैरेट के आभूषण में सोना 58.50 फीसदी और 9 कैरेट मे 37.50 फीसदी सोने का हिस्सा होना चाहिए। इसलिए जब कभी आप सोना खरीदें तो उसकी शुद्धता के प्रति जरूर आश्वस्त हो लें। नहीं तो आप 22 कैरेट के नाम पर 16 से 17 कैरेट के आभूषण खरीदकर कर बेवकूफ बन सकते हैं।

कैसे मापी जाए शुद्धता- परंपरागत तौर पर सुनार कसौटी पर सोना को मापते हैं। यह तरीका पूरी तरह मानक नहीं है और इसमें ठगे जाने की भी संभावना ज्यादा है। अब सोने की जांच के लिए कई नए तरीके आ गए हैं। सबसे लोकप्रिय तरीका कैरेटोमीटर का है। पर अधिकांश सुनार कैरेटो मीटर नहीं लगाते हैं क्योंकि वे आपको शुद्ध सोना नहीं बेचना चाहते। अधिकांश सोना खरीदने वाले उपभोक्ताओं को कैरट के बारे में भी सही जानकारी नहीं होती।

सोने का कारोबार करने वाली टाटा समूह की कंपनी तानिष्क ने अपने देश भर के शो रूम में कैरेटो मीटर लगा रखा है। वहां आप कहीं और से भी खरीदे गए सोने की जांच करवा सकते हैं। वहीं आप तानिष्क से खरीदे जाने वाले सोने की शुद्धता की भी जांच कर सकते हैं। कैरेटो मीटर एक्सरे सिद्धांत पर काम करता है। यह सोने में मिलावट के स्तर को काफी शुद्धता से पकड़ लेता है।


आप खरा सोना ही खरीदें इसके लिए भारतीय मानक ब्यूरो ने शुद्ध सोने के ऊपर हालमार्क की व्यवस्था बनाई है। यह व्यवस्था सोने के खरीद फरोख्त में उपभोक्ता के साथ हो रही ठगी से निजात दिलाने के लिए की गई है। जैसे खाने पीने की वस्तुओं में एग मार्क की व्यवस्था है उसी तरह सोने की खरीद मे हालमार्क की व्यवस्था की जा रही है। सोने की हालमार्किंग के लिए देश भर मे लैब की स्थापना की गई है। वहीं आने वाले समय में तेजी से और भी लैब की स्थापना की जा रही है। सरकार चाहती है कि देश में 2008 के बाद सिर्फ हालमार्क किया हुआ सोना ही बेचा जाए। लगभग सभी प्रमुख शहरों में इस तरह की व्यवस्था आने वाले समय में लागू कर दी जाएगी। इसके लिए सरकार उपभोक्ताओं को बीच जागरुकता अभियान भी चला रही है। उपभोक्ताओं में जागरुकता को देखते हुए कई बड़े शहरों के ज्वेलरों ने हालमार्क किया हुआ सोना बेचना आरंभ भी कर दिया है। हालमार्क किया हुआ सोना थोड़ा महंगा हो सकता है पर सस्ते के चक्कर में अशुद्ध सोना खरीदना समझदारी नहीं है। अगर आप कम कीमत में ही गहने बनवाना चाहते हैं तो 18 कैरेट या 14 कैरेट में बने गहने खरीद सकते हैं। यहां तक की आप 9 कैरेट के गहने भी खऱीद सकते हैं। पर सोना जांच करवाकर ही खऱीदे हैं।
एमएमटीसी लि. - भारत सरकार की संस्था एमएमटीसी लि. सोने का कारोबार करती है। आमतौर पर विदेशी बाजार से सारा सोना एमएमटीसी के द्वारा ही भारत में आता है। एमएमटीसी खुद भी हालमार्क ज्वेलरी अपने शो रूम अथवा फ्रेंजाइजी के द्वारा बेचती है। एमएमटीसी ने सांची नाम से देश के प्रमुख शहरों में अपने शो रूम खोले हैं जहां सोने व चांदी के आभूषण खरीदे जा सकते हैं। एमएमटीसी के जिम्मे ही देश भर में सोने की शुद्धता के जांच के लिए हालमार्किंग लैब बनवाने की भी जिम्मेवारी है। इसलिए जब कभी आप सोना खरीदने की बात करें तो अपने ज्वेलर के हालमार्क की मांग जरूर करें। अगर वह कहता है कि हालमार्क किया हुआ आभूषण समान्य आभूषण से महंगा आ रहा है तो भी आप हां कहें। जिस गहने पर हालमार्क लगा हो उस पर हालमार्क का निशान उसकी शुद्धता का प्रतिशत और निर्माण का साल और निर्माता का कोड नंबर हैंड लेंस की सहायता से देखा जा सकता है। इसलिए इसको लेकर हमेशा जागरुक रहें।
कितने कैरेट का सोना खरीदें- कोई जरूरी नहीं है कि 23 या 24 कैरेट का सोना ही खरीदा जाए। आप कम मात्रा वाला भी ले सकते हैं। 23 कैरेट के आभूषण में लगभग 4 फीसदी मिलावट होती है। 24 कैरेट में डिजाइनर आभूषणों का निर्माण संभव नहीं है। भारत में लोगों में 22 कैरेट का सोना खरीदने की सर्वाधिक परंपरा है। 22 कैरेट यानी 91.60 फीसदी शुद्धता। पर कोई भी परंपरागत सुनार इतनी शुद्धता नहीं देता। आप 22 कैरेट के नाम पर 18 से 21 कैरेट का सोना खरीदें इससे तो अच्छा है कि आप सोचसमझकर 18 कैरेट ही खरीदें। इसकी कीमत 22 कैरेट से 15 फीसदी तक कम हो सकती है। वैसे दुनिया के कुछ प्रमुख सोना विशेषज्ञों का मानना है कि गहने हमेशा 18 कैरेट में ही बनवाना चाहिए। 18 कैरेट में गहने बनवाना सुविधाजनक है साथ ही 18 कैरेट का गहना 22 कैरेट की तुलना में मजबूत होता है। इससे टूटने की संभावना कम रहती है यानी यह लंबे समय तक चलेगा। अगर आप सिर्फ संभालकर रखने के लिए सोना खरीदना चाहते हैं 24 कैरेट का सोने का सिक्का खरीद सकते हैं। आजकल कई बैंक भी गारंटी के साथ ऐसा सोना बेच रहे हैं। यह 5 10 ग्राम में उपलब्ध है।
- vidyutp@gmail.com

Monday, 16 February 2009

फ्लाई ओवर का शहर दिल्ली

कुछ दिन में दिल्ली को फ्लाई ओवरों के शहर के रुप में याद किया जाएगा। अगर आपने दससाल पहले दिल्ली की यात्रा की हो, और अब जाएं तो दिल्ली आपको काफी बदली हुई नजर आएगी। दो दशक पहले की दिल्ली का मतलब यह होता था कि लाल बत्ती और हरी बत्ती का शहर। अगर लाल बत्ती हो तो जिंदगी ठहरी हुई है। अगर हरी बत्ती हो तो जिंदगी चल पड़ी। कितनी कहानियां और व्यंग्य रचनाएं इस लाल बत्ती और हरी बत्ती पर लिखी गई हैं। रफ्तार चाहने वाले लोगों के लिए लाल बत्ती बहुत बड़ा संकट थी। अगर आप दिल्ली में किसी से मिलने जाते हों तो न जाने कितने चौराहों पर आपको यह इंतजार करना पड़ता था कि कब हरी बत्ती होगी और आप चल पाएंगे।
दिन लदे गोल चक्कर के - इस लाल बत्ती खत्म करने के लिए बड़े चौराहों पर राउंड एबाउट की परिकल्पना को स्वरुप प्रदान किया गया। इसमें गर चौक पर एक गोल चक्कर होता है। इस गोल चक्कर में घूमते हुए आप अपने लेन का चयन कर लेते हैं। इसमें लाल बत्ती तो नहीं मिलती। पर इस राउंड एबाउट का लोगों को सही तरीक से इस्तेमाल करना नहीं आया। इसका परिणाम हुआ कि गोल चक्कर पर काफी एक्सीडेंट की घटनाएं सुनने को मिलने लगीं।
फ्लाईओवर या भूल भुलैय्या - अब बढ़ते ट्रैफिक के दबाव के कारण दिल्ली में फ्लाई ओवर बनाए जाने का सिलसिला जारी है। दिल्ली में 50 किलोमीटर के रिंग रोड पर लगभग हर चौराहे पर फ्लाई ओवर बनाए जा रहे हैं जिससे वहां कभी रेडलाइट की स्थिति न हो और ट्रैफिक निर्बाध गति से चलता रहे। अगर आप रिंग रोड पर चलें तो आजादपुर, वजीरपुर डिपो, पीतमपुरा, ब्रिटानिया, पंजाबी बाग, राजा गार्डन, राजौरी गार्डन, नारायणा, धौलाकुआं, मोतीबाग, सफदरजंग, मेडिकल, आश्रम आदि में सब जगह आपको फ्लाई ओवर मिलेंगे। दिल्ली में धौला कुआं और मेडिकल के फ्लाई ओवर तो काफी कलात्मक ढंग से बनाए गए हैं। ये इतने घुमावदार हैं कि किसी नए व्यक्ति के लिए यह समझना बहुत मुश्किल होगा कि उसे किधर जाने के लिए कौन सा लेन चयन करना चाहिए। यहां तक सालों से दिल्ली में ही रहने वालों के लिए ये फ्लाई ओवर भूलभूलैया जैसे साबित हो रहे हैं।

दिल्ली को 2010 में होने वाले राष्ट्र मंडल खेलों के लिए तैयार करने के लिए शहर के ट्रैफिक को बेहतर बनाने की कवायद की जा रही है। इसी के तहत फ्लाईओवर और अंडर पास बनाए जा रहे हैं। इससे पूर्व भारत में बेंगलूर शहर की सड़कों को बेहतर बनाया गया है। वहां पर चौक पर फ्लाईओवर और अंडरपास बनाए गए हैं। निश्चय ही फ्लाईओवर से समय की बचत होती है। साथ ही घंटो प्रदूषित वातावरण में रहने से छुट्टी मिल जाती है।
पदयात्रियों का भी रखे ख्याल - हां इन फ्लाईओवरों ने पैदल चलने वालों के लिए मुश्किल खड़ी जरूर की है। कई जगह सड़क पार करने के लिए आधे किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। इससे सड़क पार करना मुश्किल हो गया है। रेडलाइट नहीं होने के कारण सड़कों पर अब हमेशा तेज गति से वाहन चलते रहते हैं। इसलिए जितनी बड़ी संख्या में फ्लाई ओवर बन रहे हैं उसी अनुपात में पैदल पार पथ भी बनाए जाने चाहिएं। इससे सड़क पार करने वालों को सुविधा हो सकेगी। साथ ही हर फ्लाईओवर के आसपास कौन सी लेन किसमें जाकर मिल रही है इसकी सूचना सही ढंग से लिखी होनी चाहिए। ऐसा नहीं होने से कई लोगों को भ्रमित होना पड़ता है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य




Monday, 9 February 2009

कैसा हो बॉस का व्यवहार

दफ्तर में बॉस का व्यवहार कैसा हो इस पर ही काफी हद तक दफ्तर के कर्मचारियों की कार्यक्षमा निर्भऱ करती है। इसलिए आजकल मानव संसाधन के तहत बास को भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है कि वे दफ्तर में अपने मातहत काम करने वाले लोगों के साथ कैसा व्यवहार करें। अगर बास हर बात पर गुस्सा करता हो आंखे चढ़ाता हो तो इसका बुरा प्रभाव उसके अधीन काम करने वाले लोगों पर पड़ता है। इसलिए अब इस बात की जरूरत बड़ी शिद्दत से महसूस की जा रही है कि बास का व्यवहार थोड़ा सा विनोदी होना चाहिए। साथ ही उसे अपने जूनियर लोगों के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए।


विनोदी चरित्र - चाहे कितना गंभीर मामला हो उसे बड़े ही आत्मीय और हल्के-फुल्के वातावरण में कहा सुना जा सकता है। इसका सामने वाले पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। एक दार्शनिक ने कहा है कि मनुष्य के लिए विपत्ति का सामना करने के लिए मुस्कान से बढ़कर कोई अस्त्र नहीं है। ऐसे में गंभीर बातों के बीच भी थोड़ी विनोद की फुलझड़ी छोड़ना जरूरी होता है। इससे आपके साथ बैठे लोगों का तनाव कम होता है। लोग ऐसे में अपनी बातें खुलकर रख पाते हैं। इसलिए हमेशा कड़क व्यवहार छोड़कर बॉस को कभी कभी विनोद भी करना चाहिए।
बॉस को भी ट्रेनिंग- अब कई दफ्तरों में बास को भी ट्रेनिंग दी जा रही है। ट्रेनिंग इस बात की कि वे अपने मुलाजिमों से कैसा व्यवहार करें। आज प्रतिस्पर्धा का दौर है। ऐसे में हर काबिल कर्मचारी के पास कई विकल्प होते हैं। अगर बास का व्यवहार लगातार परेशान करने वाला हो तो कई कर्मचारी नौकरी छोड़कर दूसरी नौकरी ढूंढने में लगे रहते हैं। अगर कई लोग किसी दफ्तर से नौकरी छोड़कर चले जाएं तो इससे उस बास की बदनामी होती है। प्रबंधन की नजर में बास का रिपुटेशन खराब होता है। इसलिए अब हर बास को चिंता करनी चाहिए कि उसका व्यवहार अपने जूनियरों के प्रति अच्छा हो।
छुट्टी देने में आनाकानी- अक्सर बास अपने मुलाजिमों को छुट्टी देने में आनाकानी करते हैं। अगर कोई वाजिब कारण हो तो भी जल्दी छुट्टी पास नहीं करते। इससे कई घाटा होता है। कई बार कर्मचारी झूठ बोलकर छुट्टी लेना चाहता है। कई बार वाजिब काम के लिए छुट्टी नहीं मिलने पर कर्माचारियों में तनाव बढ़ता है। हमने सेना की कई ऐसी खबरें पढ़ी हैं जिसमें सैनिक छुट्टी नहीं मिलने पर अपने साथियों की या अधिकारी ही हत्या कर देता है। इसलिए बास को हमेशा वाजिब कारण होने पर अपने मुलाजिम को छुट्टी दे देनी चाहिए। हां बास को चाहिए कि वह अपने कर्माचारियों को इस बात के लिए जिम्मेवार बनाए कि उसके नहीं रहने पर दफ्तर में कैसे काम चलेगा इसके लिए अपने साथियों को प्रशिक्षित करें।
इंटरैक्टिव प्रोग्राम करें- कई दफ्तरों में सभी कर्मचारियों और बास के बीच अच्छा तालमेल बनाए रखने के लिए इंटरैक्टिव कार्यक्रम कराए जाते हैं। इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है। इसके तहत पिकनिक पर ले जाना, अंत्याक्षरी जैसे प्रोग्राम आयोजित करना। बास की ओर से अपने कर्मचारियों के लिए लंच देना और लंच के दौरान ही दफ्तर की बैठक कर लेना। कर्मचारियों से उनके निजी और परिवार के बारे में जानकारी लेना आदि अच्छे बॉस के लक्षण हैं। कभी कभी हर बॉस को अपने आप से पूछना चाहिए कि क्या वह अपने कर्मचारियों से अच्छा व्यवहार करता है।
-    विद्युत प्रकाश मौर्य



Monday, 2 February 2009

ओरकुट बनाम लोकप्रियता और प्रतिबंध

दिल्ली के प्रमुख विश्वविद्यालय जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय और दिल्ली विवि ने गूगल के लोकप्रिय साइट ओरकुट पर प्रतिबंध लगा दिया है। इन यूनिवर्सिटियों में ओरकुट की वेबसाइट चलाने से काफी परेशानी आ रही थी। इससे नेटवर्क से जुड़े सारे कंप्यूटर धीमी गति से चलने लगते थे। ओरकुट कंप्यूटर पर चलने के दौरान ज्यादा स्पेश लेता है। यानी वह कंप्यूटर के रैम में ज्यादा जगह एक्वाएर करता है।


वास्तव में इंटरनेट पर सोशल नेटवर्किंग एक बड़े लोकप्रिय समाधान के रुप में उभर कर आया है। यह एक आभासी दुनिया का सृजन करता है जहां जाकर आप अपने लिए दोस्तों की तलाश कर सकते हैं। किसी जमाने में ऐसे दोस्त ढूंढना दुस्कर कार्य था। लोग पत्रमित्रता किया करते थे। अब दोस्ती करने का इंस्टेट तरीका बनकर उभरा है इंटरनेट। यहां आकर आप अपने विचारों से मिलते जुलते या जाति समाज से जुड़े हुए लोगों का समूह बना सकते हैं। यह पत्रमित्रता की तुलना में ज्यादा फास्ट तरीका है। इसमें आपका दोस्त दुनिया के किसी भी कोने में बैठा हुआ हो सकता है। इंटरनेट पर इस दोस्ती से काफी फायदे हो रहे हैं। कई लोग दोस्ती और बाद में शादी कर रहे हैं तो कई लोग अपने प्रोफेशन के लोगों से दोस्ती करके अपने कैरियर को भी संवार रहे हैं।
इंटरनेट पर ऐसे समूह के रुप में याहू ग्रूप काफी लोकप्रिय है। याहू के इमेल यूजर अपने विचारों से जु़ड़े हुए समूह का निर्माण कर सकते हैं। जैसे लाइब्रेरी साइंस पढ़ने वालों का समूह, पत्रकारों का समूह, किसी खास जाति बिरादरी के लोगों को समूह या फिर किसी खास विचार धारा के लोगों का समूह बनाया जा सकता है। हो सकता है आपकी विचार धारा के लोग दुनिया भर में कुछ सौ ही हों तो भी ऐसे लोग एक खास मंच पर एकत्र हो सकते हैं। आप अपने विचारों से जुड़े हुए समूह को इंटरनेट पर जाकर ढूंढ भी सकते हैं। याहू के ग्रुप के बाद गूगल ने इसी तरह के समूह ओरकुट को कुछ साल पहले ही लांच किया है। यह समूह दुनिया भर में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। छात्र और शिक्षक भी बड़ी संख्या में इस समूह के सदस्य हैं।
डीयू और जेएनयू में इस समूह के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगने से वहां के छात्रों और शिक्षकों को परेशानी भी है। उनकी सोशल नेटवर्किंग को लगाम लग गई है। कोई भी संस्थान जब अपने सदस्यों को इंटरनेट के उपयोग करने की छूट देता है तो वह टर्मिनल पर कुछ भी करने की इजाजत नहीं दे सकता है। अगर सारे लोगों को ओरकुट खोलने से सिस्टम बाधित होता है तो ऐसे में संस्थान को कोई न कोई एहितयाती कदम तो उठाने ही पड़ेंगें। आजकल कई ऐसी वेबसाइट आ रही हैं जो उपयोग करने के दौरान ज्यादा जगह लेती हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के कंप्यूटर सेंटर ने कई और वेबसाइटों को भी ब्लाक किया है। इसमें लोकप्रिय साइट यूट्यूब भी शामिल है। यू ट्यूब पर लोग अपने वीडियो जारी कर देते हैं। इन वीडियो को देखने में भी इंटरनेट कनेक्शन के ज्यादा बैंडविड्थ का इस्तेमाल होता है।
जेएनयू प्रशासन के अनुसार ओरकुट के इस्तेमाल से उन लोगों को परेशानी हो रही थी जो अपने शोध प्रबंधों पर काम कर रहे हैं। उनकी स्पीड कम हो जाती थी। हालांकि ओरकुट के इस्तेमाल करने वालों का दावा है कि यह साइट उनके अध्ययन में भी उपयोगी है क्योंकि इससे वे लोग अपने समान विचारधारा और पढ़ाई करने वालों के साथ विचारों का आदान प्रदान करते हैं।
-vidyutp@gmail.com