Wednesday, 29 April 2009

टीवी पर मध्यम वर्ग

टीवी धारावाहिक बुनियाद में लाजो जी।
क्योंकि सास भी कभी बहु थी, जैसे तमाम धारावाहिकों में उच्चवर्गीय परिवारों का ग्लैमर और उनके अहंकारों की टकराहट दिखाकर टीवी ने बड़ी संख्या में भले ही दर्शक बटोर लिए हों पर उसमें भारत का मध्यम वर्ग कहीं भी अपनी छवि नहीं देख पा रहा था। पर टीवी पर एक बार फिर से उस मध्यम वर्ग की वापसी होने लगी है। स्टार वन के दो धारावाहिक इंडिया कालिंग और ये दिल चाहे मोर जैसे धारावाहिक एक बार फिर लेकर आए हैं मध्यम वर्ग को। इंडिया कालिंग की चांदनी उसी मध्यम वर्ग की प्रतिनिधि है। चांदनी परिस्थितिवश जालंधर से मुंबई जाती है। वहां वह काल सेंटर में काम करती है। वह भले ही आधुनिक वातावरण में काम करती है, फराटे के साथ अंग्रेजी बोलना जानती है, पर वह अपने परंपरागत संस्कारों को भी नहीं भूली है। वह आगे बढ़ने के अपनी पुरानी रिवायतों को नहीं भूलना चाहती है। उसे हर रोज अपना जालंधर याद आता है। वह मुंबई में अपने बी जी बनाई सरसों की साग अपने साथिनों को भेंट करती है। वह काल सेंटर में भी पटियालवी सलवार सूट पहनती है। पर साथ ही अपनी सहकर्मी से कोंकणी सीखने की भी कोशिश करती है। दरअसल बहुत दिनों बाद टीवी पर एक अच्छा धारावाहिक देखने को मिला है जिसमें परंपरागत भारतीय मूल्यों की खुशबू है। 

कई साल पहले हम जाएं तो दूरदर्शन पर बुनियाद और हमलोग जैसे धारावाहिकों ने धूम मचाई थी। इन धारावाहिकों में भारतीय मूल्यों की बात रिफ्लेक्ट होती थी। बुनियाद का मास्टर हवेलीराम ऐसा चरित्र था जो अपने नैतिक मूल्यों की रक्षा की कोशिश में लगा हुआ था। उस चरित्र ने टीवी के तत्कालीन दर्शकों में अच्छी छाप छोड़ी। उसके बाद टीवी धारावाहिको में मुंबई के फिल्मों के अनुकरण की होड़ सी लग गई। कई धारावाहिकों ने कास्ट्यूम, सेटों की भव्यता में तो फिल्मों को भी पीछे छोड़ दिया। एकता कपूर ने जिस तरह के धारावाहिकों का ट्रेंड शुरू किया उनमें से अधिकांश में मध्यम वर्ग गायब था। अगर कोई मध्यम वर्ग का चरित्र आ भी गया तो वह उच्च वर्ग के लोगों के बीच जाकर उनके साथ संवाद स्थापित करने में ही व्यस्त हो जाता था। सोनी के धारावाहिक कुसुम को आम लड़की की कहानी कह कर प्रचारित किया गया था पर कुसुम की कहानी भी बाद में भटक कर रह गई। अब स्टार वन ने दो ऐसे धारावाहिक आरंभ किए हैं जिसके चरित्र भी हालांकि मुंबई भागते हैं। पर वहां मध्यम वर्ग मौजूद रहता है।

इंडिया कालिंग के बहाने जहां पंजाबी सभ्यता और संस्कृति को बड़ी मजबूती से इंट्रोड्यूस किया गया वहीं इसमें काल सेंटर का भी कल्चर है। किसी काल सेंटर के वातावरण पर बना यह पहला धारावाहिक है। इसमे काल सेंटर के अंदर के वातावरण को गंभीर लहजे में पेश किया जा रहा है। कहा नहीं जा सकता कि आने वाले दिनों में यह धारावाहिक क्या रुप लेगा पर फिलहाल टीवी पर ऐसे धारावाहिक की जरूरत महसूस की जा रही थी। वहीं स्टार वन के दूसरे धारावाहिक में एक लड़का और एक लड़की मुंबई भागते हैं दोनों की संयोगवश मुलाकात हो जाती है। उसके बाद कहानी में नाटकीय सिचुएशन बनते हैं। भारत में सपने लेकर मुंबई भागने का सिलसिला बहुत ही पुराना है। यही ट्रेंड इस धारावाहिक में नाटकीय ढंग से आरंभ हुए हैं। टीवी दर्शकों में सबसे बड़ा वर्ग मध्यम वर्ग ही है। पर टीवी के तमाम चैनलों के बीच इस तरह के धारावाहिकों का अभाव सा है जिसमें आम आदमी अपना शहर और अपना चेहरा कहीं देख सके। इसी कमी को ये धारावाहिक कहीं न कहीं पूरा करते हुए नजर आ रहे हैं।

विद्युत प्रकाश मौर्य  ( TV, MIDDLE CLASS ) 

Wednesday, 22 April 2009

गांव में बनाएं आशियाना

मुंबई के एक अखबार ने एक विज्ञापन छापा है। सिर्फ आठ लाख रुपए में गांव में खरीदें अपना घर। उसके साथ पाएं खेती करने के लिए थोड़ी सी जमीन भी। यानी अब कई बिल्डर आपको गांव में मकान बना कर दे रहे हैं। यह इस बात का सूचक है कि काफी लोग अपने सूकून भरे दिन अब गांव में गुजारना चाहते हैं। इनमे वैसे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने कभी गांव नहीं देखा हो। ऐसे तमाम लोगों को मिलाकर एक नए गांव का निर्माण हो रहा है। यह आपके सपनों का गांव भी हो सकता है।
शहर के अपार्टमेंट में बालकोनी पर लटके हुए वक्त गुजारने के अच्छा है कि गांव में आपका घर हो और उसमें एक छोटी सी फुलवारी भी हो। अगर यह गांव शहर के पास ही हो तो क्या कहना। जब आपके पास अपनी कार हो तो जब चाहे आधे घंटे में शहर की ओर पहुंच जाइए। जब चाहे फिर गांव की ओर वापस। इसलिए कई लोगों के जेहन में अब यह ख्याल आ रहा है कि गांव में रहे तो अच्छा हो। अगर गांवों को योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया हो तो बात ही क्या है।
फिलहाल गांवों में खुली हवा होती है घर भी होते हैं पर आम तौर घर बनाते वक्त शहरों जैसी प्लानिंग नहीं की जाती है। पंजाब के कई गांवों आर्किटेक्ट की मदद से योजना बनाकर घर बनाते देखा जा सकता है। आमतौर पर यह देखा गया है कि गांवों में लोगों के पास जमीन की कोई कमी नहीं होती इसलिए लोग अपनी जरुरत के हिसाब से घर में विस्तार करते जाते हैं। अगर यही घर योजनाबद्ध तरीके से बनाए जाएं तो इसके कई फायदे हो सकते हैं। इसलिए अब अगर आप आप अपने गांव के घर को भी नया रूप देने के मूड में हैं तो उसका नक्सा किसी वास्तुकार से बनवा लें तो अच्छा रहेगा। गांव के घर में रेनवाटर हार्वेस्ट सिस्टम लगवाया जा सकता है। इसके साथ ही सोलर लाइटिंग सिस्टम लगवाने पर भी विचार किया जा सकता है। मोटर गैराज और गोबर गैस प्लांट पर भी विचार कर सकते हैं।
बैंक लोन भी - अगर आप गांव में घर बनवाने के लिए कर्ज लेना चाहते हैं तो उसके लिए भी कई बैंक हाउसिंग लोन देने को तैयार बैठे हैं। इसमें आईसीआईसीआई बैंक से बात करते हैं वह गांवों के घर के निर्माण के लिए खास तौर पर कर्ज दे रहा है। इसके अलावा जिस बैंक के आप पुराने ग्राहक हैं वहां भी कर्ज लेने के लिए बातचीत कर सकते हैं।
रूरल हाउसिंग प्रोजेक्ट - कई राज्यो में गांवों में योजना बद्ध तरीके से सेक्टरों का विकास किया जा रहा है। हरियाणा में 10 हजार से अधिक आबादी वाले गांवों में हाउसिंग डेवलपमेंट आथरिटी सेक्टरों का निर्माण करने जा रही है। इसमें लोग अपने घर नियोजित तरीके से बना सकेंगे।
अब अगर को ई यह दंभ भरता है कि वह शहर में रहता है तो यह कहीं से भी कोई गौरव की बात नहीं है। लोगों को यह पता चल गया है कि शहरी जीवन के क्या क्या नुकसान है। सबसे बड़ा नुकसान तो यही है कि वहां शुद्ध हवा तक नहीं मिलती। ऐसे में गांव में रहने के अपने फायदे हैं। दिल्ली व मुंबई में हजारों ऐसे लोग हैं जो अपने ही शहर में रहते हुए रोज दफ्तर आने जाने में 2+2 चार घंटे गुजार देते हैं। आप दिल्ली मुंबई के कई कोने से आसपास के किसी गांव में भी एक या दो घंटे में जा सकते हैं। यहां गांव में रहकर आप जो सुकुन और आराम महसूस कर सकते हैं वह शहरों में नहीं मिल सकता है। आजकल कई ऐसी बीमारियां भी हैं जो शहरों को लोगों को ही ज्यादा होती हैं। इसलिए आप बेहतर जीवन के लिए किसी गांव में जाने के बारे में सोच सकते हैं।

Wednesday, 15 April 2009

अब आ रहा है वीडियो फोन का जमाना...

फोन बहुत ही लो प्रोफाइल चीज हो गई। अब इसका अगला विस्तार वीडियो फोन है। कई प्रमुख इलेक्ट्रानिक कंपनियां अब नए नए तरह के वीडियो फोन बनाने में जुटी हुई हैं। सभी प्रमुख दफ्तरों में अब मीटिंगे वीडियो कान्फ्रेंसिंग से हुआ करेंगी। कई जगह इसकी शुरूआत हो भी चुकी है। वहीं परंपरागत पीसीओ की जगह अब वीडियो कान्फ्रेंसिंग पीसीओ का जमाना आ रहा है। इसमें आप सामने वाले से आमने सामने बात कर सकेंगे। कई प्रयोगों के बाद अब इसके जगह जगह इंस्टालेशन प्रक्रिया चल रही है।

दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रानिक उपकरणों की निर्माता जापान की कंपनी सोनी ने कई तरह के वीडियो कान्फ्रेंसिंग उपकरण पेश कर दिए हैं। आमतौर पर परंपरागत फोन कनेक्शन, कंप्यूटर और वेब कैमरा होने पर वीडियो कान्फ्रेंसिंग के तहत बात की जा सकती है। पर कंपनियों ने अब ऐसे उपकरण बनाने आरंभ कर दिए हैं। जिसमें फोन में ही एक एलसीडी स्क्रीन हो उसके साथ ही कैमरा लगा हो और आप डायल करने के साथ ही वार्ता शुरू कर दें। इसमें दूसरी पार्टी के पास भी अगर आपकी तरह ही फीचर फोन है तो आप उसकी बातें करते हुए उसे देख भी सकेंगे। ये मशीनें अपने घर में या पीसीओ में इस्तेमाल की जा सकती हैं। यहां तक ही टाटा इंडीकाम सीडीएमए टेक्नोलाजी पर ऐसी फोन सेवा आरंभ करने वाली है जिसमें फोन के साथ ही आप सामने वाले को देख भी सकेंगे। इसे तकनीकी तौर पर सफल बनाने के लिए मोबाइल सेवाओं के स्पेक्ट्रम में विस्तार करना होगा। इसलिए अब लगभग सभी मोबाइल सेवा कंपनियां अपनी सेवाओं को भविष्य की जरूरतों के अनुकूल बनाने के लिए स्पेक्ट्रम में विस्तार चाहती हैं।
फिलहाल सोनी ने चार से अधिक वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माडल पेश किए हैं जिन्हें वर्तमान फोन से साथ जोड़कर इस सुविधा का लाभ उठाया जा सकता है। आमतौर पर इनमें 17 इंच का एलसीडी मानीटल लगा हुआ है। जिसमें सामने वाली तस्वीर बड़ी और सुस्पष्ट दिखाई देती है। इनकी कीमतें भी एक हाई परफारमेंस वाले लैपटाप के बराबर आ गई हैं। इसके साथ ही ऐसे उपकरणों के इस्तेमाल से दफ्तरों का समय भी बचता है। इसके उपयोक्ता कान्फ्रेंसिंग के दौरान पीसी के डाटा का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। इसमें डाटा शेयरिंग माड्यूल का विकल्प मौजूद है। यहां तक की वीडियो कान्फ्रेंसिंग की मदद से कोई अधिकारी या नेता अपने लोगों को संबोधित कर सकता है। इसके लिए वीडियो आउटपुट को बड़े सफेद स्क्रीन पर प्रोजेक्ट करने की भी सुविधा मौजूद है। इसमें कार्यक्रम में बैठे लोग सवाल भी कर सकते हैं। यानी किसी व्यक्ति की आबासी पहुंच कहीं भी हो सकती है।
हालांकि अच्छी वीडियो कान्फ्रेंसिंग के लिए फोन की डाटा ट्रांसफर रेट अच्छी होनी चाहिए। कम से कम 256 केबीपीएस। यानी ब्राड बैंड कनेक्शन के साथ वीडियो कान्फ्रेंसिंग बेहतर ढंग से संभव है। सोनी के ये वीडियो कान्फ्रेंसिंग माडल उन कंपनियों के लिए आदर्श हैं जिनके दफ्तर देश के अलग अलग शहरों में फैले हुए हैं। इससे विभिन्न शहरों में बैठे अधिकारी एक साथ बैठकें कर सकते हैं। आपको कोई अचरज नहीं होना चाहिए जब आपको जगह जगह वीडियो कान्फ्रेंसिंग पार्लर भी खुलते हुए मिलें। अभी रिलायंस के वेब वर्ल्ड में वीडियो कान्फ्रेंसिंकी सुविधा उपलब्ध है। धीरे-धीरे ऐसी सुविधा जगह जगह उपलब्ध हो सकेगी।

माधवी रंजना madhavi.ranjana@gmail.com




Saturday, 11 April 2009

तेल नहीं तेल की धार देखो...

कहते हैं तेल देखा है अब तेल की धार भी देखो। फिलहाल सरकार तेल की धार दिखा रही है। इसमें जनता बेचारी उलझी हुई है वह किसको असली दोषी माने। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को तेल बड़ी गहराई से प्रभावित करता है। तेल के भाव बढ़ने के साथ कमोबेश हर चीज पर प्रभाव पड़ता है। चूंकि सारी परिवहन व्यवस्था चाहे वह बस ट्रक हो या रेल तेल पर आधारित है इसलिए तेल के दाम बढ़ने के साथ ही माल भाड़ा और यात्री भाड़ा बढ़ने की पूरी संभावना रहती है। माल भाड़ा बढ़ने के साथ ही बाजार में बिकने वाले सभी उत्पाद भी महंगे होने लगते हैं। किसी वस्तु की कीमत में 10 से 15 फीसदी तक प्रभाव ट्रांसपोर्ट डालते हैं।

अगर डीजल के दाम बढ़ेंगे तो खेतों में ट्रैक्टर चलाना और पंपिंग सेट से सिंचाई भी मंहगी हो जाती है। जाहिर है इसका असर किसानों पर पड़ता है और खेती में उत्पादन लागात बढ़ जाती है। इसलिए तेल का दाम बढ़ते ही राजनैतिक पार्टियां और जनता के हर वर्ग में खलबली मच जाती है।
सरकार इस बात की दुहाई देकर तेल के दाम बढ़ाती कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम बड़ रहे हैं इसलिए यहां भी दाम बढ़ाने के सिवा कोई विकल्प नहीं है। सभी सरकारी और निजी क्षेत्र की तेल कंपनियां सरकार पर लगातार दबाव बनाती हैं पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाए जाएं क्योंकि उन्हें घाटा उठाना पड़ रहा है। सरकार एलपीजी और किरासन तेल पर सब्सिडी देती है इसलिए वे हमें सस्ते में मिल रहे हैं। पर पेट्रोल और डीजल पर टैक्स लगाना सरकार की आमदनी का प्रमुख साधन है इसलिए देश में पेट्रोल और डीजल पर सर्वाधिक टैक्स है। अगर पेट्रोल 50 रुपए लीटर के करीब है तो उसकी वास्तविक कीमत 20 से 22 रुपए लीटर तक ही है बाकि सब उस पर विभिन्न चरणों में लगने वाला टैक्स है। सरकार हवाई जहाज के लिए दिए जाने वाले तेल जिए एटीएफ (एयर टरबाइन फ्यूल) कहते हैं कि कीमत को हमेशा पेट्रोल से काफी कम रखा जाता है। कारण इस पर टैक्स कम लगाया गया है। वहीं दुनिया के कई देशों में डीजल व पेट्रोल दोनों की कीमतें लगभग बराबर है।
इस बार जब तेल की बढ़ी कीमतों को लेकर विरोध हुआ तो केंद्र सरकार ने सुझाव दिया कि राज्य सरकारें अपने हिस्से से बिक्री कर में कमी करें। कई राज्यों ने बिक्री कर में थोड़ी कमी की भी जिससे लोगों ने कीमतों को लेकर थोड़ी राहत महसूस की।
तेल कंपनियों को मिलेगी आजादी - पर अब सरकार तेल के दाम को लेकर इंडियन आयल सहित सभी सरकारी व निजी कंपनियों को यह छूट देने पर विचार कर रही है कि वे अपनी इच्छा से तेल की कीमतें कम अधिक कर सकें। एक नियामक के तहत उन्हें आजादी दे दी जाएगी कि जैसे इंटरनेशनल मार्केट में रेट 70 डालर प्रति बैरल या उससे अधिक हो जाए उसके अनुसार ही वे कीमत को बढ़ा सकेंगे साथ ही रेट कम होने पर भारत में भी रेट कम कर सकेंगे। इससे विभिन्न तेल कंपनियों के रेट अलग अलग भी हो सकते हैं। निजी कंपनियों के रेट पर तो सरकार का अब भी नियंत्रण नहीं है सरकारी कंपनियों को भी कीमते बढ़ाने घटाने की छूट मिल जाएगी। जाहिर है इसका असर बाजार पर पड़ेगा। फिर कीमतें बढ़ने या घटने के लिए लोग सरकार को कोसते हुए नजर नहीं आएंगे। तब तेल कंपनियां ही बाजार के हालात को देखते हुए तेल की धार तय करेंगी।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com



Tuesday, 7 April 2009

सार्थक विपक्ष की जरूरत

यह सही है कि प्रजातंत्र में सार्थक विपक्ष होना चाहिए। पर विपक्ष बहुत कमजोर हो तो प्रजातंत्र में भी शासक निरंकुश होकर फैसले करने लगता है। जैसे 1984 के चुनावों में कांग्रेस ज्यादा सीटें जीत कर आई थीं और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सामने विपक्ष बड़ा कमजोर था। ऐसी स्थिति में सरकार के किसी निरंकुश कदम का विरोध नहीं हो पाता। जबसे केंद्र में मिली जुली सरकारों का दौरा शुरू हुआ है स्थितियां बदली हैं। अब सरकार को अपने कई फैसले विपक्ष के या अपनी ही सरकार के घटक दलों के विरोध के कारण बदलने पड़ते हैं। जैसे अभी केंद्र सरकार को आयकर रिटर्न का सरल फार्म की जगह चार पन्ने का फार्म लाने का निर्णय वापस लेना पड़ा है।


पर हम उससे भी आगे बढ़कर देखें तो अब कई बार एक ही पार्टी में रहकर भी नेता एक दूसरे का विरोध करते नजर आते हैं। हरियाणा में पिछले विधान सभा चुनाव के परिणाम आने पर यहां सत्तासीन पार्टी इनेलो का पूरी तरह सफाया हो गया। कांग्रेस पूर्ण बहुमत में आ गई। इनेलो के इतने कम उम्मीदवार जीते की कि विपक्ष के रुप में उनकी संख्या विधान सभा में नगण्य ही नजर आने वाली थी। इस दौरान किसी टीवी चैनल पर एक चुनाव विश्लेषक ने कहा कि आने वाली सरकार चैन की वंशी बजाएगी क्योंकि विरोध करने के लिए यहां मजबूत विपक्ष नहीं है। इस पर सामने वाले ने जवाब दिया था कि नहीं हरियाणा कांग्रेस में इतने गुट हैं कि चाहे कोई भी मुख्यमंत्री बने बाकी गुट पांच साल तक विपक्ष की भूमिका निभाएंगे। उसके बाद का परिदृश्य वाकई ऐसा ही है। जबसे हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री बने उन्हें भजनलाल गुट के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि भजनलाल के एक बेटे चंद्रमोहन इस सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं। पर उनके दूसरे सांसद बेटे कुलदीप बिश्नोई ने आजकल अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। खासकर रिलायंस को स्पेशल इकोनोमिक जोन के लिए सस्ते में जमीन दिए जाने के मामले पर उन्होंने सरकार के से जवाब मांगा है साथ ही आंदोलन की भी धमकी दे डाली है। भजनलाल का कुनबा जहां मुखर रुप से विरोध करता है वहीं सरकार कई अन्य गुटों का विरोध भी झेलना पड़ता है। मुख्यमंत्री के दो दावेदार तो सरकार में साथ आ गए हैं इसलिए वे विरोध नहीं कर पाते। पर वह टिप्पणी बहुत ही सटीक होकर उभरी है कि अपनी पार्टी में विधायक विपक्ष की भूमिका निभाते नजर आएंगे। इसके अलावा भी कुछ विधायकों ने अपने हल्के में विकास नहीं होने पर सरकार के खिलाफ प्रेस कान्फ्रेंस करके आग उगली है।

निरंकुश न हो मुख्यमंत्री-  वास्तव में इसे लोकतंत्र में सकरात्मक रुप में देखा जाना चाहिए। यह लोकतंत्र अंदर चल रहे अधिनायकवाद के खात्मे का प्रतीक है। यह इस बात को संकेत करता है कि प्रजातंत्र में कोई मुख्यमंत्री निरंकुश होकर शासन नहीं कर सकता है। उसे अपनी सरकार के विभिन्न गुटों को साथ लेकर चलना ही पड़ेगा। उनकी बातें सुननी पड़ेगी। उनकी समस्याओं का निदान करना पड़ेगा। सरकार की योजनाओं और कारगुजारी पर सबको विश्वास में लेकर चलना पड़ेगा। लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह अच्छी बात है। हालांकि इसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। कई मामले में निर्णय लेने में देरी होती है। पर अच्छी बात है कि सरकारी काम में पारदर्शिता बनी रहती है। सरकार में अलग अलग गुट मीडिया कोई भी कुछ जानकारियां देते रहते हैं जिससे जनता भी आगाह रहती है।

- विद्युत प्रकाश मौर्य  (  मई 2006) 



Wednesday, 1 April 2009

मेरी पसंद की कुछ शायरी...

कुछ मेरी पसंद के पंक्तियां हैं आप भी पढ़िए... 

पुण्य हूं न पाप हूं
जो भी हूं
अपने आप हूं
अंतर देता दाह
जलने लगता हूं
अंतर देता राह
चलने लगता हूं
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ये माना की गुलशन लूटा
और नशेमन जला
फिर भी कुछ तो बाकी
निशां रह गया
तिनके तिनके चुनकर
फिर बना लेंगे आशियां
हौशला गर जो हमारा जवां रह गया
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काम कुछ अच्छे कर लो अच्छी जिंदगानी आपकी
लोग भी कुछ कहें , लोग भी कुछ सुनें कहानी आपकी

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मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की
बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार

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ए मेरे दोस्त जब घर जाना अपने याद दिलाना मेरी करना एक निवेदन
उनके कल के लिए हमने अपना आज किया समर्पण।
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गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है, चलना हमारा काम है ।

(( - डा. शिवमंगल सिंह सुमन))
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हुआ सवेरा ज़मीन पर फिर अदब से आकाश अपने सर को झुका रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
नदी में स्नान करने सूरजसुनारी मलमल की पगड़ी बाँधे
सड़क किनारे खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
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कालरात्रि के महापर्व पर अँधकार के दीप जल रहे
भग्न हृदय के दु:खित नयन मेंआँसू बनकर स्वप्न ढल रहे
मानवता के शांति दूत तुम
प्रीति निभाना छोड़ न देना
दीप जलाना छोड़ न देना
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आसमां आस लिए है कि ये जादू टूटे
चुप की जंजीर कटे वक्त का दामन छूटे
दे कोई शंख दुहाई कोई पायल बोले
कोई बुत जागे कोई सांवली घूंघट खोले ( फैज अहमद फैज )

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सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर
अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप
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यूं तो हर दिल किसी दिल पर फिदा होता है
प्यार करने का मगर तौर जुदा होता है
आदमी लाख संभले गिरता है मगर
झुककर जो उसे उठा ले खुदा होता है...
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जब अंधेरा घना छाने लगा
तब प्रकाश की चिंता सताने लगी
तब एक छोटा सा नन्हा सा दीपक आगे आया
और बोला मैं लडूंगा प्रकाश से...
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महफिल में हंसना मेरा मिजाज़ बन गया
तन्हाई में रोना राज़ बन गया
दर्द को चेहरे से ज़ाहिर ना होने दिया
यही मेरे जीने का अंदाज़ बन गया ...
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यह न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो
रोओ मत न रोने दो
ऐसा भी जल थल क्या हो
बहती नदी की बांधे बांधे
चुल्लू में हलचल क्या हो
रात ही गर चुपचाप मिले
फिर सुबह चंचल क्या हो
आज ही आज की कहें सुने
क्यों सोचें कल क्या हो। ( मीना कुमारी )
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मुस्कुराके जिनको गम का जहर पीना आ गया
ये हकीकत है जहां में उनको जीना आ गया
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आहों के नगमें अश्कों के तारे
कितने हसीं हैं ये गम हमारे
एक छोटा सा दिल
और उल्फत की ये दौलत
क्या कोई जीते
क्या कोई हारे..
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जिंदगी है बहार फूलों की
दासंता बेशुमार फूलों की
तुम क्या आए तसव्वुर में
आई खुशबू हजार फूलों की

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हरेएक खुशी हजार गम के बाद मिलती है
दीए की रोशनी जलाने के बाद मिलती है
मुश्किलों में घबराके सिसकने वालों
चांदनी रात अंधेरे के बाद मिलती है।
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सृष्टि बीज का नाश न हो
हर मौसम की तैयारी है
कल का गीत लिए होठों पर
आज लड़ाई जारी है
(( महेश्वर ))

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अजनबी शहर के अजनबी रास्ते
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
मैं बहुत दूर यूं ही चलता रहा
तुम बहुत दूर यूं ही याद आते रहे...
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राहों पे नजर रखना
होठों पर दुआ रखना
आ जाए शायग कोई
दरवाजा खुला रखना

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समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ।
जो तटस्थ है, समय लिखेगा उनका भी अपराध।।
( रामधारी सिंह दिनकर )