Saturday, 30 May 2009

शेयर बाजार में पैसा लगाएं मगर सावधानी से

आजकल मध्यम वर्ग और अल्प आय वाले लोगों में भी शेयर बाजार में पैसा लगाने का चलन बढ़ा है। पर शेयर बाजार में हो रहे लगातार उतार चढ़ाव के बीच वैसे लोगों को सावधान रहना चाहिए जो शेयर बाजार के लिए छोटे निवेशक हैं। वैसे लोग जिनके लिए शेयर बाजार में पैसा लगाना प्राथमिक व्यवसाय नहीं है वे उतार चढ़ाव को आसानी से झेल जाते हैं। पर मान लिजिए आपके पास कौड़ी कौड़ी जोड़कर कमाया हुआ एक लाख रुपया है। आपने उसे उसे शेयर बाजार में लगा दिया है। वह पैसा अचानक आधा रह जाता है तो आपके लिए यह दुख की घड़ी हो सकती है।

वैसे लोग जो अपने रुपये को भावनात्मक ढंग से लेते हैं उन्हे शेयर बाजार से सावधान रहना चाहिए। अच्छा तो यही होगा कि आप अपने पैसे को लेकर ज्यादा रिस्क नहीं लेना चाहते को रुपए को किसी बैंक के फिक्सड डिपोजिट में ही रखें। अगर आप थोड़ा रिस्क लेना चाहते हैं तो म्युच्युअल फंड और इक्विटी के बारे में सोचें। अगर ज्यादा जोखिम उठाना चाहते हैं तो शेयर बाजार के बारे में सोचें। शेयर बाजार के भी दो तरह के निवेशक होते हैं। एक तो वैसे लोग जो लंबी अवधि के लिए निवेश करते हैं दूसरे वे जो थोड़े समय के लिए निवेश करते हैं। अगर आप शेयर बाजार में थोड़े समय के लिए निवेश करते हैं तो आपको हर रोज अपने शेयरों के उतार चढ़ाव के बारे में नजर रखनी चाहिए।
जो लोग बैंक ब्याज दर की तुलना में रुपए को थोड़ा तेज गति से बढ़ता हुआ देखना चाहते हैं उन्हें अपने रुपए को म्युचुअल फंड में ही लगना चाहिए। आमतौर पर ऐसे में फंड में आपका रुपया 10 से 25 फीसदी तक ब्याज की रिटर्न दिलवा सकता है। आप फिक्स ब्याज दर वाले बांड भी खरीद सकते हैं। वैसे अगर आपके पास 4-5 लाख रुपए निवेश करने को हैं तो आपको अलग अलग तरह के फंडों में पैसा लगना चाहिए। कुछ राशि बैंक में रखें। कुछ म्युचुअल फंड में तो कुछ राशि शेयर बाजार में लगाएं।
अगर आप शेयर बाजार में पैसा लगाकर कम जोखिम कमाना चाहते हैं तो नामचीन कंपनियों के शेयर खरीदकर लंबी अवधि के लिए निवेश करें। वैसे शेयर बाजार में पैसा लगाने में वे लोग ज्यादा लाभ में रहते हैं जो लगातार बाजार पर नजर रखते हुए शेयरों की खरीद बेच करते रहते हैं। इसका मतलब हुआ कि शेयर बाजार में निवेश आपसे रोज का एक तरह का अटेंशन मांगता है। अगर आप इस तरह का समय नहीं दे सकते हैं तो किसी अच्छे निवेश सलाहकार की संपर्क में रहें जो आपको हमेशा सलाह देता रहे। पर कोई जरूरी नहीं है कि उसकी सलाह हमेशा सही साबित हो। क्योंकि शेयर बाजार में निवेश में जोखिम हमेशा बना रहता है। पिछले दिनों शेयर बाजार में आए अचानक उचार चढ़ाव में कई चतुर निवेशकों को भी करोड़ों का घाटा उठाना पड़ा है।
शेयर बाजार के कुछ दिनों के उचार चढ़ाव का म्युच्युल फंडों पर कोई खास असर नहीं पड़ता है। इसलिए जिन लोगों ने पैसा काफी मेहनत से कमाया और उन्हें अपने पैसे से भावनात्मक लगाव है उन्हें निवेश करने मे भी सावधानी बरतनी चाहिए। कभी अपने अड़ोस पड़ोस के लोगों का अनुकरण करते हुए भेड़ चाल में न चलें। अगर आपने कोई बीमा पालिसी नहीं ले रखी हैतो शेयर बाजार में जाने से पहले अच्छा होगा कि बीमा में निवेश करें। यह पैसा बढ़ने के साथ जीवन की सुरक्षा भी प्रदान करता है।
- vidyutp@gmail.com

Saturday, 23 May 2009

सस्ते होते इंट्री लेवल मोबाइल

अब अगर आप पहली बार मोबाइल खरीदने की बात सोच रहे हैं तो आपको महज एक हजार रुपए जैसी छोटी सी रकम से शुरूआत करनी है। इतने रुपए में आपको बिल्कुल नया मोबाइल फोन एक्टिवेट किया हुआ प्राप्त हो सकता है। टाटा इंडीकाम महज एक हजार रुपए में रंगीन हैंडसेट वाला मोबाइल फोन दे रही है। वहीं एक हजार रुपए में ही एलजी का हैंडसेट भी उपलब्ध है। दूसरी तरफ सीडीएमए में दूसरी प्रमुख कंपनी रिलायंस 1400 रुपए में इंट्री लेवेल पर मोबाइल फोन प्रदान कर रही है जिसमें 600 रुपए का टाक टाइन भी दिया जा रहा है। यानी मोबाइल फोन की कीमत महज 800 रुपए। रिलायंस में और कई आफर हैं। जैसे 166 और 2100 के मोबाइल फोनों में इतने ही रुपए के टाकटाइम दिए जा रहे हैं। यानी की मोबाइल फोन लगभग मुफ्त में।


सेकेंड हैंड से नया बेहतर - कुछ साल पहले जब आदमी मोबाइल फोन खरीदने की बात सोचता था तो उसे महंगे एयर टाइम और साथ ही महंगे हैंडसेट खरीदने के लिए भी सोचना पड़ता था। पर अब एयरटाइम दरों में गिरावट के साथ ही हैंडसेट की कीमतें भी गिरने लगी हैं। अब कम दाम में हैंडसेट उपलब्ध होने के कारण कोई भी आदमी सेकेंड हैंड सेट खरीदने के बजाए नया हैंडसेट खरीदने की बात ही सोचता है। जब आप कोई सेकेंड हैंड सेट खरीदते हैं तो उसमें इस बात की गारंटी नहीं होती कि आगे वह कितना चलेगा। साथ ही उसके बैटरी और चार्जर के बारे में भी कुछ तय नहीं होता कि वह कितना चलेगा। इसलिए हर आदमी को अब पुराने के बजाय नया हैंडसेट खरीदने की बात ही सोचनी चाहिए।
जीएसएम तकनीक वाले हैंडसेट भी कम से कम 1300 रुपए में बाजार में उपलब्ध हैं। मोटोरोला और सेजम के हैंडसेट कई कंपनियों के साथ एक्टिवेटेड भी मिल रहे हैं। वहीं नोकिया का हैंडसेट कम से कम 2100 रुपए में खरीदा जा सकता है। कुछ और कंपनियों के हैंडसेट 1600 रुपए और उससे ज्यादा में उपलब्ध हैं। अगर आप रंगीन हैंडसेट खरीदना चाहते हैं तो यह 3000 रुपए के रेंज से अब शुरू हो रहा है। अगर आप मोबाइल फोन सिर्फ बातें करने के लिए लेना चाहते हैं तो आप सबसे सस्ता हैंडसेट भी खरीद सकते हैं।
मोबाइल खरीदते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए-
1. आप किसी भी कंपनी का मोबाइल खरीदें उसकी वारंटी की शर्तें जरूर जान लें। साथ उसका पक्का बिल जरूर लें।
2.  बेहतर होगा आप मोबाइल फोन अधिकृत विक्रेता से ही खरीदें। वहां आपको असली एसोसरीज मिलने की उम्मीद रहेगी।
3.  कोशिश करें कि आप ब्रांडेड कंपनी का ही हैंडसेट खरीदें। इससे आपको सर्विस सेंटर में उसकी बाद में सर्विसिंग कराने में सुविधा रहेगी।
4.  एक ही रेंज में कई कंपनियों के हैंडसेट मौजूद हों तो सबमें मिल रही सुविधाओं का तुलनात्मक अध्ययन जरूर कर लें। फिर आप अपनी जरूरत के हिसाब से हैंड सेट खरीदें।
5.  हैंडसेट के रिंगटोन उसकी आवाज की स्पष्टता और बैटरी बैकअप आदि बिंदुओं की जांच पड़ताल जरूर कर लें। अगर आपके आसपास पुराने उपयोक्ता हों तो उनसे सलाह मशविरा कर लें।

-    विद्युत प्रकाश मौर्य


Sunday, 17 May 2009

म्युचुअल फंड में निवेश कर करें कर बचत


अगर आप आयकर में राहत चाहते हैं तो पीपीएफ या एनएससी जैसे परंपरागत साधनों के बजाय म्युचुअल फंड के इएलएसएस ( इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम)के बारे में भी सोच सकते हैं। ये आकर्षक रिटर्न देते हैं। जब आप डाकघर या बैंक की बचत योजना में निवेश करते हैं तो आपका रुपया आठ साल के लिए ब्लाक हो जाता है जबकि इक्वीटी में आपका रुपया तीन साल बाद निकाला जा सकता हैयानी यहां तीन साल का लाक इन पीरियड होता है।


डाकघर से बेहतर निवेश- मान लिजिए आप पीपीएफ खाते में निवेश करते हैं तो आपको आठ फीसदी सालाना की दर से ब्याज मिलता है। वहीं राष्ट्रीय बचत पत्र में अधिकतम ब्याज की राशि 8.14 फीसदी तक होती है। साथ ही इसमें निवेश के तरीके भी सीमित ही हैं। पर आपको म्युचुअल फंड के इक्विटी में निवेश के लिए तमाम विकल्प मौजूद हैं। अधिकांश म्युचुअल फंड कंपनियों के पास कई टैक्स सेविंग प्लान मौजूद हैं। आप किसी पुराने प्लान में निवेश कर सकते हैं वहीं आप किसी नए फंड आफर (एनएफओमें भी निवेश कर सकते हैं। एनएफओ में आपको 10 रुपए का यूनिट सम मूल्य पर ही प्राप्त होता है जबकि पुराने फंडों में आपको यूनिट बाजार मूल्य यानी नव (नेट एसेट वैल्यूपर खरीदना होगा। अक्सर एनएफओ में निवेश फायदे का सौदा साबित होता है। आमतौर पर कोई भी एनएफओ तीन साल की अवधि में दुगुना या अधिक जरूर हो जाता है। अगर हम इस साल देंखे तो अगस्त में खुला रिलायंस का टैक्स सेवर फंड अभी 14 रुपए से अधिक का हो गया है। यानी चार महीने में 40 फीसदी की वृद्धि। यहां हम आपको दो लोकप्रिय इएलएसएस का उदाहरण देना चाहेंगे। फ्रैंकलिन टैक्सशील्ड प्लान जो 1999 में खुला था आज 122रुपए यूनिट के आसपास है। यानी 90 फीसदी से भी ज्यादा ग्रोथ। इसी तरह बिड़ला का 96 प्लान आज 200 रुपएके करीब पहुंच गया है।
अब इन प्लान की तुलना आप पीपीएफ या एनएससी से करें। किसी व्यक्ति ने बिड़ला के टैक्स सेवर प्लान में 1996 से लगातार 1000 रुपए मासिक निवेश आरंभ किया होगा तो अभी तक वह 1.30 लाख रुपए निवेश कर चुका होगा। 8 फीसदी ग्रोथ से यह राशि 3 लाख रुपए के आसपास घूम रही होगी। जबकि यही राशि बिड़ला सनलाइफ के प्लान में 14 लाख रुपए से ज्यादा हो चुकी होगी।

योजना बद्ध तरीके से करें टैक्स बचत- आप किसी भी वित्तीय वर्ष में टैक्स के लिए सेविंग की योजना बनाएं मान लिजिए आपको साल में 60 हजार रुपए बचत के लिए निवेश करने की जरूरत है तो आप पांच हजार रुपए मासिक की दर से हर माह निवेश किया करें। इससे आपको वित्तीय वर्ष के आखिरी महीनों यानी फरवरी और मार्च में परेशान नहीं होना पड़ेगा जो लोग प्लानिंग नहीं करते उन्हें अक्सर मार्च महीने का वेतन टैक्स सेविंग और कटौती के बाद शून्य ही प्राप्त होता है। जब इएलएसएस में बचत की योजना बनाएं तो फंड का चयन सोच समझ कर करें। पुरानी कहावत है कि सभी अंडों को एक ही टोकरी में नहीं रखना चाहिए ठीक उसी तरह अपने रुपए को अलग फंडों में लगाएं। मान लिजिए आपके 30 हजार रुपए हैं तो उन्हे 10 हजार के अलग अलग तीन फंडों में निवेश करें।
यह मान कर चलें कि म्युचुअल फंड और शेयर बाजार में निवेश जोखिम भरा होता है। इसलिए यहां गारंटिड रिटर्न की उम्मीद नहीं है। प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर भी हो सकता है तो खराब भी। इसलिए आप जोखिम सोच समझ कर ही उठाएं। 


- vidyutp@gmail.com
  (MONEY, MUTUAL FUNDS ) 

Sunday, 10 May 2009

आम आदमी के लिए घर है अभी सपना

भारत में अभी मध्यम वर्ग के लिए एक घर या कार एक सपना ही है। इधर प्रोपर्टी और हाउसिंग के सेक्टर में देश में उफान आया है। दिल्ली व मुंबई जैसे शहरों में अपार्टमेंटों को निर्माण बड़ी तेजी से हो रहा है पर इनमें से अधिकतर अपार्टमेंट महंगे हैं। ये मध्यम वर्ग की पहुंच से बाहर हैं। अगर आप दिल्ली के बाहरी इलाके में एक एमआईजी फ्लैट खरीदना चाहें तो उसकी कीमत 15 लाख से आरंभ होती हैं। वहीं देश के नामी आर्किटेक्टों द्वरा डिजाइन किए गए फ्लैटों की कीमतें 40 लाख से लेकर करोड़ तक जा रही है।

मुंबई में लोढा बेल्लीसीमो नामक 55 माले की इमारत का निर्माण हो रहा है। वर्ली में ओबराय कंस्ट्रक्सन 65 माले की बिल्डिंग बना रही है। यह बिल्डिंग भारत में सबसे ऊंची होगी। इसी तरह सेठ डेवलपर्स 33 माले की बिल्डिंग बना रहे हैं। बस इन सबमें एक फ्लैट लेने के लिए आपके पास बस कुछ करोड़ रुपए होने चाहिए। हालांकि मुंबई के सब अर्बन इलाके में वन रुम वाले सस्ते फ्लैट भी देखे जा सकते हैं। पर दिल्ली में ऐसी बात बिल्कुल नहीं है। यहां दिल्ली डेवलपमेंट आथरिटी सस्ते घर बनाती है पर उसमें घर पाने के लिए आपको 10 से 15 साल तक इंतजार करना पड़ सकता है। वहीं प्राइवेट बिल्डर दिल्ली और आसपास के शहरों में जो परियोजनाएं लेकर आ रहे हैं उनमें एक निम्न मध्यम वर्ग के आदमी के लिए घर खरीदना आसान नहीं है। लिहाजा इस वर्ग के लोग मजबूरी में अवैध कालोनियों का निर्माण करते हैं। दिल्ली की सुंदरता पर ऐसी अवैध कालोनियों बहुत बड़ा धब्बा हैं। जब कोई विदेशी आदमी दिल्ली आता है तो उसे चाणक्यापुरी, संसद मार्ग देखकर दिल्ली खूबसूरत लगती है। पर अगर आप सीलमपुर, त्रिलोकपुरी जैसे इलाके देख लें तो आपको दिल्ली की असली तस्वीर का पता लगेगा। कुछ नहीं तो आप दिल्ली में रेल गुजरते हुए पटरियों के किनारों भारत की गरीबी के दर्शन कर सकते हैं। लिहाजा सरकार को ऐसे ऐसे उपाय करने चाहिए कि मध्यम वर्ग के लोगों के लिए छोटे-छोटे बहुमंजिलें आवासों का निर्माण किया जाए।
केंद्रीय शहरी विकास मंत्री अजय माकन ने हालांकि इस बात का विश्वास दिलाया है कि दिल्ली के नए मास्टर प्लान में गरीब व मध्य वर्ग के लोगों के लिए छोटे-छोटे घरों का ख्याल रखा जाएगा। पर अब देखने वाली बात होगी कि इस पर कितना अमल हो पाता है। किसी भी शहर का सुव्वयस्थित ढंग से विकास हो इसके लिए जरूरी है कि वहां अवैध कालोनियों के विकास को रोका जाए। इसके लिए सख्त कानून बनाया जाए। पर दिल्ली में ऐसा नहीं हुआ। आधी दिल्ली का विकास अवैध कालोनियों के रुप में ही हुआ है। बाद में वही कालोनियों का नियमित कर दी गईं। इसका परिणाम यह हुआ कि यहां संकरी गलियां और बदबूदार नालियां हैं। मुंबई में धारावी एक बहुत बड़ा स्लम इलाका है तो दिल्ली में इस तरह के इलाके जगह जगह बने हुए हैं। दोष इन कालानियों में रहने वाले लोगों का नहीं है। उनका शहर के विकास में बहुत बड़ा योगदान है। शहर मे महंगी कालोनियों में सफाई करने वाले, फैक्टरियों में काम करने वाले मजदूर, चौकीदार, रेहड़ी पटरी वाले तमाम लोग, यहां तक की सरकारी नौकरी करने वाले तृतीय और चतुर्थ वर्ग के कर्माचारी भी इसी तरह की कालोनी में ही रहते हैं। पर जरूरत इस बात की है कि एक महानगर में हर आय वर्ग के लोगों के रहने के लिए समुचित इंतजाम किए जाएं। ऐसे इंतजाम जिससे उनके रहने वाले इलाके भी सुंदर लग सकें। उनके घरों में भी पर्याप्त हवा और धूप आती हो। अभी आधी दिल्ली में ऐसे घर हैं जहां हवा और धूप ठीक से नहीं आती।
-vidyutp@gmail.com



Tuesday, 5 May 2009

उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती है बुद्धि


आदमी के बुद्धिमान होने में उसके उम्र का भी संबंध है। जैसे जैसे उम्र बढ़ती है उसके साथ ही आदमी की बुद्धि भी बढ़ती जाती है। इस तरह के कुछ नए शोध आए हैं। वैसे बहुत से लोगों को हमेशा यह खुशफहमी रहती है कि वह बड़ा बुद्धिमान है। पर कई साल बाद जाने के बाद कोई आदमी जब खुद के जीवन में पीछे मुड़कर देखता है तो वह यह पाता है कि मैं पांच साल पहले अमुक बिंदु पर गलत सोचता था। भारतीय संस्कृति में जब किसी व्यक्ति को 29वें से 32 दांत निकलने आरंभ होते हैं तो उसे अक्ल की दाढ़ कहते हैं। यानी 32 दांत निकल जाने के बाद ही पूरी तरह बुद्धिमान माना जाता है।


हालांकि पूरी दुनिया में इस बात पर विरोधाभास है कि आदमी उम्र से बुद्धिमान होता है या कि ज्यादा अध्ययन कर लेने से। पर कुछ ऐसे विंदु हैं जो हमें सोचने को मजबूर करते हैं कि बुद्धिमान होने में उम्र की भी अपनी भूमिका है। जैसे आजकल कई सेक्टर में दफ्तरों का सारा कामकाज कम उम्र के लोग निपटा रहे हैं। खासकर निजी क्षेत्र में युवा सीईओ की संख्या तेजी से बढ़ रही है। पर अनुभव जन्य ज्ञान रखने वालों की उपयोगिता अभी खत्म नहीं हुई है। जाहिर है कि अनुभव तो उम्र के बढ़ने के साथ ही बढ़ता है। कई संस्थानों में अनुभवी लोग उसके एसेट की तरह होते हैं। उन्हे बड़े सम्मान के साथ रखा जाता है। भले ही नेतृत्व की कमान युवा लोगों के हाथ में दे दी जाती है पर उम्रदराज रोगों लोगों के अनुभव का लाभ लेने की हमेशा कोशिश की जाती है।

कहा जाता है इतिहास अपने को दुहराता है। कुछ घटनाएं तो नई घटती हैं। वहीं बहुत सी घटनाओं की आवृति होती रहती है। किसी नई समस्या के आने पर या पुरानी जैसी समस्या के दुबारा आने पर अनुभवी लोगों को उससे लड़ने में सुविधा मिलती है। इसलिए उम्र का बुद्धिमता से सीधा संबध होता है। यह इस बात पर भी निर्भऱ करता है कि हर आदमी अपने आसपास होने वाली घटना से कितना अधिक प्रेरणा ले पाता है और उसके अनुरूप कदम उठाता है।

जैसे शादी-शुदा लोग कुआंरों की तुलना में ज्यादा अनुभवी होते हैं। शादी के बाद हर आदमी को परिवार चलाने और विभिन्न तरह के रिश्तों के साथ सामंजस्य बिठाने का अनुभव हो जाता है। खास तौर पर बीमार होने पर या किसी एक्सीडेंट जैसी घटनाओं के समय हमें अनुभवी लोगों की जरूरत पड़ती है। इसलिए आप कभी किसी उम्रदराज आदमी की उपेक्षा न करें बल्कि उसकी उम्र के साथ अर्जित की गई बुद्धिमता के कुछ सीखने की कोशिश करें। 

वो कहावत है न कि ये बाल हमने धूप में नहीं सफेद किए हैं। कोई आदमी जब जवान होता है तो जवानी के जोश में कुछ गलतियां करता पर जैसे-जैसे उसका अनुभव बढ़ता है वह ऐसी गलतियां दुहराने के बजाए परिपक्वता से निर्णय लेने लगता है। वह किसी को जवाब देने के बजाय कूटनीतिक बुद्धि से काम लेने लगता है। यानी हम देख सकते हैं किसी व्यक्ति के काम काज आचार व्यवहार में उसके उम्र का असर दिखाई देता है। अक्सर जब कोई अनुभवी सलाह देता है तो युवा वर्ग उसे समझता है कि सामने वाला तो सठिया गया है। पर हो सकता है वह सठिया हुआ आदमी आपको किसी विषय पर अति गूढ़ सलाह दे रहा हो इसलिए आप उसके कदापि हल्के में न लें।

-माधवी रंजना