Friday, 25 September 2009

आपकी भाषा में बात करेगा कंप्यूटर

जी हां अब आपका कंप्यूटर आपकी भाषा में ही आपसे बात करेगा। यानी आप चाहें तो उसमें आप हिंदी उर्दू किसी भी भाषा में काम कर सकते हैं।विंडो एक्सपी के नए संस्करणों आपको अपनी भाषा के चयन की आजादी मिलती है।

 अगर आपने एक्सपी का कोई भी नया संस्करण लगाया है तो आप उसमें आप अपने देश की भाषा को एक्टिवेट कर सकते हैं। इसमें रिजनल सेटिंग में जाकर आपको अपने देश का नाम अपनी भाषा और की बोर्ड को सक्रिय भर करना है। जैसे आप अपने कंप्यूटर में हिंदी भाषा को सक्रिय कर सकते हैं। ऐसा करने के दौरान आपका कंप्यूटर एक्सपी की सीडी को मांगेगा। सीडी से वह आपकी भाषा के फाइलों को कापी कर लेगा। अगर आपको ऐसा करने में किसी तरह की परेशानी आ रही हो तो अपने साफ्टवेयर या हार्डवेयर इंजीनियर की मदद लें। अपनी भाषा को सक्रिय करने के बाद आपके कंप्यूटर स्क्रीन पर आपकी भाषा के सिंबल कंप्यूटर के नीचे वाले स्टार्ट बार में आएंगे। आप आल्ट और शिफ्ट कमांड एक साथ दबाकर भाषा परिवर्तन कर सकते हैं। 
अगर आपने हिंदी भाषा को सक्रिय कर लिया है तो आप वर्ड पैड साफ्टवेयर खोलकर उसमें हिंदी में कोई भी पत्र या अपने काम की कोई भी चीज टाइप कर सकते है। विंडो एक्सपी में फोनेटिक की बोर्ड की सुविधा हिंदी में उपलब्ध है जिसे याद करना बहुत आसान भी है। आप अपने कंप्यूटर में हिंदी के ट्रू टाइप के सैकड़ो पसंदीदा फांट भी लोड कर सकते है। ज्यादा फांट्स प्राप्त करने के लिए आप भारत सरकार द्वारा विकसित की गई वेबसाइट डब्लूडब्लूडब्लू . आईएलडीसी. ईन पर जा सकते हैं। यहां भारती ओपन के वर्ड प्रोसेसर के अलावा जिस्ट के सैकड़ो फांट्स उपलब्ध है।

हिंदी भाषा को विंडो एक्सपी में एक्टिवेट करने के बाद न सिर्फ इससे वर्डपैड पर बल्कि आप एमएस आफिस जैसे साफ्टवेयर में भी हिंदी में काम कर सकते हैं। साथ ही इन फाइलों को किसी के पास भी ई मेल कर सकते हैं। ये फाइलें आरटीएफ (रिच टेक्स फाइल) फारमेट में जाती हैं इसलिए इनको किसी भी साफ्टवेयर में खोला जा सकता है। अगर आपकी तरह ही जहां फाइल जा रही है वहां भी हिंदी भाषा एक्टिवेट किया हुआ हो तब और भी अच्छा। अगर आप हिंदी का कंप्यूटर पर तेजी से विकास चाहते हैं तो यह जानकारी अपने मित्रों को बांटे। इतना ही नहीं अगर आपके कंप्यूटर पर हिंदी भाषा एक्टिवेट है आपका जीमेल का एकाउंट भी हिंदी में खुलेगा और उसपर आप सीधे हिंदी भाषा में पत्र लिख कर किसी को भी भेज सकते हैं।

-विद्युत प्रकाश मौर्य



Sunday, 20 September 2009

70 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार

कहते हैं औरत वो आटे का दीया है, जिसे घर के अन्दर रखो तो घर के चूहे खा जाते हैं। घर से बाहर रखो तो कौए नहीं छोड़ते। यानी कि औरत चाहे घरेलू हो या काम-काजी वह हर जगह शोषित होती है, प्रताड़ित की जाती है। हर स्थान पर उसकी इज्‍़ज़त और अस्तित्त्व पर ख़तरा ही मंडराता रहता है।

 एक सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत में लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी ढंग से घरेलू हिंसा से पीड़ित हैं। यह हिंसा ग़रीब, मध्यम वर्ग से लेकर आर्थिक और सामाजिक स्तर पर सम्पन्न परिवारों की महिलाओं तक में देखने को मिली है।
लड़की को पराया धन समझना, न पिता के यहां न पति के घर सुरक्षा, आर्थिक विपन्नता, बढ़ते तलाक, दहेज़ की समस्या, मादाभ्रूण हत्या के लिए मजबूर करना, प्रतिभा को दबाना, मानसिक तौर पर छोटी-छोटी बात के लिए प्रताड़ित करना ऐसी स्थिति चारों ओर देखने को मिलती है। ऐसे माहौल के निरन्तर बढ़ रहे ग्राफ़ के कारण एक ऐसे कानून की आवश्यकता महसूस की जा रही थी, जो पीड़ित महिलाओं को सहायता प्रदान कर सके, उन्हें ऐसी विषम परिस्थतियों से निजात दिला सके।

एक विरोधाभासी परिदृश्य में भारतीय संसद ने अक्‍तूबर 2006 में महिला घरेलू हिंसा निवारण कानून पारित किया है। इस कानून के पारित होते ही सामाजिक क्षेत्रों में नए सिरे से एक बहस छिड़ गई। इस के पक्ष एवं विपक्ष में आवाज़ें उठनी शुरू हो गई।

क्या है महिला घरेलू हिंसा निवारण कानून 2006:- इस कानून के अंतर्गत पत्‍नियां, मां, सास, बहनें, बेटियां यहां तक कि गोद ली हुई महिला भी अपने साथ हो रही हिंसा के खिलाफ़ कानूनी गुहार लगा सकती हैं। यह कानून उन्हें शारीरिक, बोल-चाल और यौन उत्पीड़न से तो बचाएगा ही साथ ही उन्हें निवास और आर्थिक स्वतन्त्रता का अधिकार दिलाने में भी सहायक सिद्घ हो सकता है। यह कानून उन 70 प्रतिशत महिलाओं की पहचान करने और उनकी मदद करने में सहायक सिद्घ हो सकता है। यह कानून कितना प्रभावशाली होगा, आने वाला समय ही बताएगा।

14 वर्ष लगे इस कानून को पारित होने में:- सर्वप्रथम 1992 को भारत के चुनिंदा अधिवक्‍ताओं ने घरेलू हिंसा निवारण का एक मसौदा तैयार करके महिला संगठनों तक पहुंचाया था। फिर महिला आयोग ने 1994 में इसे सदन में पेश कराने की पहल की। सदन में इस बिल के खिलाफ़ तीखी अलोचना हुई, परिणाम वश इसके पक्ष में राष्‍ट्र के सभी महिला संगठनों ने एक मंच पर एकत्रित हो कर, इसके हक़ में आवाज़ बुलन्द की। यह भी चर्चा हुई कि यह कानून अापराधिक (क्राईम) न होकर दीवानी में शामिल किया जाना चाहिए। 

इसके उपरान्त 1999 में इस निवारण कानून को नए ढंग से तैयार करके पुन: सदन में लाया गया। फिर इस पर राष्‍ट्र स्तरीय बहस हुई। इसे तैयार करने में संयुक्‍त राष्‍ट्र के घरेलू हिंसा कानून से भी प्रेरणा ली गई। 2001 में जब केन्द्र सरकार ने इस घरेलू हिंसा निवारण बिल को सदन पटल पर रखा तो इसके खिलाफ़ ज़ोरदार आंदोलन हुआ। इस पर टिप्पणियां की गईं कि इस बिल में यह स्पष्‍ट नहीं था कि घरेलू हिंसा किसे माना जाए और भारतीय दण्ड सहिता के अनुसार किसी कानून के अन्तर्गत कौन-सी सज़ा निर्धारित की जाए। पुरुष प्रधान समाज में भारी विरोध के बावजूद 14 वर्ष के लम्बे संघर्ष के बाद आख़िर इस महिला घरेलू हिंसा निवारण कानून को अक्‍तूबर 2006 को पारित कराने में सफलता प्राप्‍त हुई है।

क्या लाभ हो सकता है इस कानून से:- यह कानून जहां घरेलू हिंसा की परिभाषा स्पष्‍ट करता है वहीं शोषित महिला को बराबरी की नज़र से देखता है। यह कानून निवास, मेंटिनेंस और सुरक्षा के अधिकार भी प्रदान करता है। दोषियों के लिए सज़ा का स्पष्‍ट प्रावधान भी करता है। महिलाओं द्वारा इस कानून के दुरूपयोग का नकारात्मक पहलू भी इसमें छिपा हुआ है।

सबसे पहले महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कानून के बारे में ग़रीब से ग़रीब महिला तक को समझाना होगा। भारतीय समाज में प्रचलित सामुदायिक रीति-रिवाज़ों पर आधारित संस्थाएं तथा पंचायतें, धार्मिक संस्थाएं, इस कानून को सरलता और सहजता से लागू होने देने में रुकावट बन सकती हैं। सदियों से महिलाएं इन पर आश्रित रही हैं और इन पुरुषों द्वारा स्थापित पुरुष प्रधान सोच से ग्रस्ति संस्थाओं द्वारा हमेशा महिला को निम्न दर्जे का नागरिक मान कर उसके ख़िलाफ़ ही फैसले दिए हैं। प्रताड़ित महिला को ही दोषी करार देने में कसर नहीं छोड़ी है। संवैधानिक कानूनों और धार्मिक कानूनों के बीच टकराव जारी है। संवैधानिक कानून महिला के पक्ष की बात करता है, तो धार्मिक उसके विपरीत। ऐसे में घरेलू हिंसा कानून को कारगर ढंग से लागू कर पाना भी एक चुनौती से कम नहीं है। इमरानाबलात्कार कांड का हश्र सभी के सामने है। चाहे मीडिया ने इसमें कुछ सकारात्मक भूमिका निभाते हुए इमराना के हक़ में आवाज़ उठाई थी।

इस कानून के पारित होते ही घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के कई मामले मीडिया द्वारा सुर्खियों में लाए गए हैं जो हमारे समाज में 70 प्रतिशत पीड़ित महिलाओं की दुर्दशा को ब्यान करते हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि जो काम स्वस्थ सामाजिक माहौल और मानवीय गुण पैदा कर सकते हैं। स्त्री और पुरुष को बराबर समझने की सोच हमारी मानव मूल्य आधारित शिक्षा पैदा कर सकती है। यह वातावरण कोई कानून पैदा नहीं कर सकता। कानून का डर कितना और कितने लोग महसूस करते हैं यह किसी से छिपा नहीं हैं। कानून के निर्माता, संरक्षक खुद ही इन कानूनों की परवाह नहीं करेंगे तो आम लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है। महिलाओं के हक़ में कानून तो पहले भी कई बनाए गए हैं, उनका कितना लाभ वे प्राप्‍त कर सकी हैं या इन कानूनों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जो होलरह गए, उनका लाभ शोषण करने वालों ने उठाया है। इस नए घरेलू हिंसा निवारण कानून का हश्र भी वैसा ही न हो, इस के बारे में भी महिला संगठनों और भारतीय अधिवक्‍ताओं को चिंतन करना होगा।

यदि समाज में सभी वर्ग मिल कर ऐसे वातावरण का सृजन कर दें जिस में कोई न अपना, न पराया हो, समानता का भाव हो। दयालुता, परोपकार, सहृदयता हो तो ऐसे कानूनों को बनाने की ज़रूरत ही नहीं होगी।

 - vidyutp@gmail.com

Sunday, 13 September 2009

हिंदी अब विश्व भाषा बनेगी

संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने अपने देश के लोगों से अपील की है कि वे हिंदी जैसी भाषा सीखें। यूएसए के सैनिक, गुप्तचर अधिकारी और राजनेता भी अब हिंदी के जानकार मिलेंगे। यानी अमेरिका ने हिंदी को एक मजबूत भाषा के रुप में स्वीकार कर लिया है। पहले माइक्रोसाफ्ट और अब अमेरिका जैसा देश। यानी हमारी भाषा विश्व पटल पर मजबूत हो रही है। यह दूसरा पहलू हो सकता है कि अमेरिका में हिंदी सीखने का जो अभियान चलाया जा रहा है उसके मूल कारण रणनीतिक है। पर इतना तय है कि उन्हें इस भाषा के पीछे एक ताकत नजर आती है। पहली ताकत जो एनआरआई लाखों की संख्या में अमेरिका में रहते हैं और अमेरिका की सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण दखल देने लगे हैं। भारतीय टीवी चैनल और और भारतीय में बनने वाले हिंदी सिनेमा की ग्लोबल मार्केट में उपस्थिति। हिंदी के साथ एक बहुत बड़ा बाजार है। हमें अगर कुछ पुरी दुनिया में बेचना है, पूरी दुनियाको समझाना है तो हिंदी में उतरना ही पड़ेगा। 


अमेरिका ने इस सच को समझ लिया है कि दुनिया की जो मजबूत भाषाएं हैं उनका सम्मान करना ही पड़ेगा। इसके लिए इस भाषा को लिखना पढ़ना आना ही चाहिए।
अगर हिंदी के लोगों ने कंप्यूटर को और पहले अपना लिया होता तो हिंदी का विकास और भी तेज हो सकता था। हिंदी ऐसी भाषा है जो कुछ सौ वर्षों में ही करोड़ों लोगों की जुबान बनी है। खड़ी बोली का जो स्वरूप हम आज अपनाए हुए हैं वह अंग्रेजों के भारत में आगमन के बाद ही विकसित हुआ है। भारतेंदु हरिश्चंद्र के बाद से पल्लवित होने वाली हिंदी अब देश की सीमाएं लांघ चुकी है। माक्रोसाफ्ट के एक्सपी संस्करणों में रीजनल भाषा विकल्प में हिंदी को किसी भी कंप्यूटर में सक्रिय किया जा सकता है। दुनिया के किसी भी कंप्यूटर में कुछ मिनटों के प्रयास के बाद आप हिंदी में टाइपिंग शुरू कर सकते हैं। हो सकता है आने वाले दिनों में आप अमेरिका जाएं तो आपको होटलों में हिंदी समझने वाले लोग मिल जाएं। पर्यटक स्थानों पर हिंदी में बातें करने वाले गाइड मिल जाएं। हिंदी के विकास में इसका लचीलापन और इसकी सारग्राहिणी प्रवृति का बहुत बड़ा योगदान है। हालांकि कि तत्सम हिंदी के पुरोधा इन चीजों से विरोध रखते हैं। पर हमें हिंदी को और उदार बनाना होगा। दूसरी भाषा के शब्दों के प्रयोग में उदारता बरतनी होगी। जो लोग खिचड़ी भाषा को हिंग्लिश कहकर धिक्कारते हैं उन्हें यह समझना होगा इसी तरह के लोग हिंदी की वैश्विक पहचान बना रहे हैं। टीवी के समाचार चैनल, मनोरंजन चैनल और हिंदी फिल्में हिंदी को ग्लोबल बना रही हैं। आज अमेरिका ने स्वीकारा कल दुनिया के कुछ और देश स्वीकारेंगे। इस परिपेक्ष्य में अब भारत के कुछ राज्यों में हिंदी विरोध की बात बेमानी लगती है। हमें अब इस तरह की बातों से उपर उठना होगा। आने वाले सौ सालों हिंदी और ऊपर जाएगी। बहुत ऊपर।

-विद्युत प्रकाश,   मेल vidyutp@gmail.com


Thursday, 10 September 2009

बादल आया ( नन्ही कविता )


बादल आया
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बादल आया
बादल आया
बारिश हुई
बारिश हुई
कपड़ा भी गिला हुआ
घर भी गिला हुआ
घड़ी भी गिली हुई
और गिला हुआ पेड़....।


- अनादि अनत ( चार साल )


दि्ल्ली की बारिश देखकर हमारे नन्हें बेटे ने ये कविता रच डाली। वे अभी लिखना सीख रहे हैं। इसलिए हमने इसे लिपिबद्ध कर लिया। ये एक नन्हें बच्चे का पहला सृजन है। 

Saturday, 5 September 2009

दुनिया का सबसे छोटा वेब डिजाइनर

कई कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं। सो नन्हें अजय पुरी ने नौ महीने की उम्र से ही कंप्यूटर के की बोर्ड से खेलना शुरू कर दिया था। दो साल की उम्र में प्रेजेंटेशन देने लगे। तीन साल की उम्र में उन्होंने अपनी वेबसाइट www.microsftkid.com बना डाली। उन्हें विश्व के सबसे कम उम्र के वेब डिजाइनर होने का गौरव प्राप्त है। नौ साल के मास्टर अजय पुरी को जनवरी 2006 में हैदराबाद में मनाए गए प्रवासी भारतीय दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह द्वारा सम्मानित किया गया। वे अपने पिता के साथ थाइलैंड में रहते हैं। वर्ष 2001 में अजय पुरी जब चार साल के थे तब एडमिंस्ट्रेटिव स्टाफ कालेज हैदराबाद खुद का डिजाइन किया हुआ प्रेजेंटेशन पेश किया था तो देखने वालों ने दांतों तले उंगलियां दबा ली थीं। अजय की प्रस्तुति तीन पन्ने की वेबसाइट थी जो उन्होंने फ्रंट पेज 2000 की मदद से बनाई थी। इसमें उन्होंने तस्वीरों, ग्राफ, डाटा लिस्ट, मेल मर्ज व एनीमेडेट साउंड आदि का इस्तेमाल किया था।


बिल गेट्स ने दी बधाई
अजय पुरी को अपनी वेबसाइट बनाने के लिए माइक्रोसाफ्ट के चेयरमैन बिल गेट्स ने बधाई दी। वे 14 नवंबर 2002 को बिल गेट्स से मिले तब गेट्स ने उन्हें कहा कि तुम भारत के बिल गेट्स बनोगे। तब अजय ने गेट्स को याद दिलाया-आपके दादा एक बैंक के वाइस प्रेसिडेंट थे तो मेरे दादा एक कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट। आपके परदादा राजनीति में थे तो मेरे परदादा भी राजनेता थे। यहां यह बताते चलें कि अजय भारतीय राजनीति के देदीप्यमान नक्षत्र आचार्य नरेंद्र देव के परपोते हैं। उनके दादा जी विष्णु नारायण पुरी ने उन्हें होश संभालने के साथ कंप्यूटर सीखाना आरंभ कर दिया था। अजय के पिता रवि पुरी बैंकांक की एक कंपनी सेंचुरियन टेक्सटाइल्स में मार्केटिंग मैनेजर हैं।
अजय बताते हैं कि उनकी वेबसाइट पूरी तरह के उनके बारे में वे क्या सोचते हैं। मैं क्या जानता हूं। मैं किन लोगो से मिल चुका हूं। उनकी वेबसाइट पर आप उनकी बिल गेट्स, अटल बिहारी बाजपेयी, के आर नारायणन, एनआर नारायण मूर्ति, कई फिल्म स्टार सहित दुनिया की प्रमुख हस्तियों के साथ उनकी तस्वीर भी देख सकते हैं। अजय पुरी अपनी वेबसाइट पर हर किसी को अपने साथ संवाद स्थापित करने का भी मौका भी देते हैं। आप उन्हें ई मेल कर सकते हैं। वे उसका जवाब भी दे सकते हैं। नौ साल की उम्र में उनका कंप्यूटर ज्ञान काफी बढ़ चुका है। वे कंप्यूटर पर वीडियो कान्फ्रेंसिंग करना जानते हैं। अब वे डिजिटल मूवी बनाने की तैयारी में हैं। अब उनका लक्ष्य गिनिज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्डस में अपना नाम दर्ज कराने का है। वे सबसे कम उम्र के एनीमेटर के रुप में वहां अपना नाम देखना चाहते हैं। खैर अजय को हमारी शुभकामनाएं।
-माधवी रंजना