जगजीत सिंह नहीं रहे। पूरा देश उन्हें याद कर रहा है लेकिन जगजीत ने ज्यादातर जो गजलें गाईं उनमें कई उनके दोस्त सुदर्शन फाकिर की रचनाएं थी। अस्सी के दशक में जगजीत-चित्रा की जोड़ी को जो सफलता मिली उसमें सुदर्शन फा़किर की लिखी नायाब ग़ज़लों का एक अहम हिस्सा था। कुछ बानगी देखिए...
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी ।
मगर मुझको लौटा दो वो बचपन का सावन
वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी...
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अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें
हम उनके लिए जवानी लूटा दें...
ये सब उस दौर की गजलें थी जिसमें जगजीत सिंह, चित्रा सिंह की मखमली आवाज का जादू दिखता है। कई पीढियां इस आवाज के जादू की फैन रहीं। बाद में जगजीत सिंह के सुर कुछ संजीदा हो गए...तब भी सुदर्शन फाकिर के शब्दों ने उनका साथ दिया...
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उस मोड़ से शुरू करें हम ये जिंदगी
हर शय जहां हसीन थी...
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आदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा वही खुदा देगा
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शायद मैं ज़िन्दगी की सहर ले के आ गया
क़ातिल को आज अपने ही घर लेके आ गया
क़ातिल को आज अपने ही घर लेके आ गया
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इश्क़ ने गैरते जज़्बात ने रोने न दिया....
वर्ना क्या बात थी, किस बात ने रोने न दिया।
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चराग़-ओ-आफ़्ताब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
शबाब की नक़ाब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
मुझे पिला रहे थे वो कि ख़ुद ही शम्मा बुझ गयी
गिलास ग़ुम शराब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
शबाब की नक़ाब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
मुझे पिला रहे थे वो कि ख़ुद ही शम्मा बुझ गयी
गिलास ग़ुम शराब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी ( चित्रा सिंह की आवाज में)
मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी ( चित्रा सिंह की आवाज में)
और
पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसां पाए हैं
तुम शहरे मुहब्बत कहते हो, हम जान बचाकर आए हैं
सुदर्शन फाकिर जालंधर के रहने वाले थे जबकि जगजीत सिंह ने लंबे समय तक जालंधर के डीएवी कालेज में पढ़ाई की। 10 अक्टूबर 2011 की मनहूस सुबह को जगजीत सिंह हमें छोड़कर चले गए। देश और दुनिया में उनके प्रशंसकों में निराशा है। उनका प्यारा सुरों का चितेरा उनके बीच नहीं है। लेकिन साल 2008 की एक सुबह जब जालंधर में सुदर्शन फाकिर ने इस दुनिया को अलविदा कहा तो शहर के बहुत कम लोगों ने नोटिस लिया। सुदर्शन फाकिर और जगजीत सिंह के कालेज के जमाने के दोस्त गुलशन कुंदरा सुदर्शन फाकिर को याद करके भावुक हो जाते हैं। आज जगजीत सिंह भी इस दुनिया में नहीं लेकिन जगजीत को जब भी याद किया जाएगा उनके साथ सुदर्शन फाकिर की चर्चा भी बड़ी सिद्दत से होगी...क्योंकि शायर ही तो शब्द देता है जिसे गायक सुरों में पिरोता है।
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