महान कलाकार
जोहरा सहगल ने 102 साल के जीवन के बाद 10 जुलाई 2014
को इस दुनिया को अलविदा कहा। मंदाकिनी एनक्लेव स्थित उसी घर में
उन्होंने अंतिम सांस ली जहां कभी मेरी उनसे लंबी वार्ता हुई थी। वास्तव में जोहरा
जैसी कलाकार कभी मरती नहीं।
याद किजिए 2007 में बनी चीनी कम में अमिताभ बच्चन की मां को। रणवीर कपूर के साथसांवरिया में, शाहरूख प्रीति जिंटा के साथ वीर-जारा में, सलमान ऐश्वर्या के साथ हम दिल दे चुके सनम में उन्होंने नई पीढ़ी के कलाकारों के साथ यादगार अभिनय किया। तमन्ना के बाद दिल्लगी, दिल से , मिस्ट्रेस ऑफ स्पाइसेज, बैंड इट लाइक बेखम जैसी कई फिल्मों में जोहरा को नई पीढ़ी के लोगों ने भी खूब देखा। उनकी आखिरी फिल्म चीनी कम 2007 में आई।
प्रस्तुत है
जोहरा सहगल से 1996-97 के दौरान की गई लंबी बातचीत....
भला सौ साल जीने की तमन्ना किसकी नहीं होती लेकिन कितने लोग देख पाते हैं सौ वसंत। फिल्मों और थियेटर में अपने अभिनय की कई पीढ़ियों पर छाप छोड़ने वाली जोहरा सहगल ने 27 अप्रैल 2012 को सौ वसंत पूरे कर लिए हैं।
जोहरा सहगल के साथ 1998 में दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में। |
जोहरा सहगल एक ऐसा नाम है जिनके अभिनय के प्रशंसक चार पीढ़ियों के लोग हैं। 1912 में 27 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में एक नवाब परिवार में जन्मी जोहरा 18 साल की उम्र में परिवार से विद्रोह कर डांस सीखने जर्मनी पहुंच गईं। उदय शंकर के डांस ट्रूप में और पृथ्वी थियेटर में अभिनय कर चुकीं जोहरा सहगल 25 सालों तक विदेशों में रहीं दुनिया के अलग अलग भाषाओं के फिल्मों में काम कर अपने अभिनय का लोहा मनवाया। वे भारतीय अभिनेताओं की फेहिरस्त में ऐसा पहला नाम है जिसने अंतराष्ट्रीय स्तर पर अभिनय जगत में अपनी पहचान बनाई। तो बालीवुड में पृथ्वी राज कपूर से लेकर रणबीर कपूर तक के साथ अभिनय की पारी खेली। जोहरा 80 साल के उम्र के बाद भी फिल्मों में छोटे परदे पर कई यादगार किरदारों को जीवंत किया।
सितंबर 1996
की दोपहर में जोहरा सहगल के साथ एक लंबी मुलाकात। दिल्ली में ग्रेटर कैलाश के एक
हिस्से मंदाकिनी एनक्लेव में उनका घर। मैं तय समय पर पहुंचता हूं। अपने कमरे का
दरवाजा जोहरा खुद खोलती हैं। बड़े स्नेह से कहती हैं आओ बैठो। चुस्त स्वस्थ शरीर, उन्नत ललाट। वाणी में ओज। देखकर नहीं लगता कि 85 साल
की एक महिला से मुखातिब हूं। बैठते ही अपना एक तीन पेज का बायोडाटा पकड़ा देती
हैं।
पता नहीं तुम मेरे बारे में
पहले से कितना जानते हो। इसलिए इसे पढ़ लो बात करने में सुविधा होगी। मैं उनका
बायोडाटा पढ़ता हूं, तब तक वे
बैठी रहती हैं फिर बातचीतशुरू हो जाती है । हालांकि मैं तो होमवर्क करके पहुंचा
था। मैं पहला सवाल पूछता हूं...
आजकल आपका एक दिन कैसे गुजरता है..
- सुबह उठती हूं। नास्ता करती हूं। डाक्टर ने कह रखा है कि इस उम्र में इतना
काम करती हैं तो खाना भी खूब चाहिए। सुबह दो घंटे मैं व्यायाम करती हूं। उसमें
पहले योग करती हूं। उदय शंकर के नृत्य का अभ्यास करती हूं। इसमें शरीर के प्रत्येक
अंग का व्यायाम हो जाता है। इसके बाद जो नज्में मुझे याद हैं उन्हें दुहराती हूं।
ये सबसे अच्छी तरकीब है, याद्दाश्त, एक्सप्रेशन
तथा आवाज के लिए। अभिनय में इमोशन कैसे पैदा हो, आवाज कैसे
दूर तक फेंकनी चाहिए इसका अभ्यास हो जाता है। मेरे इस प्रोग्राम में तीन बच्चों की
कविताएं, अंग्रेजी पोयम, इकबाल और फैज
अहमद फैज की शायरी है। आजकल मैं देखती हूं कि नई पीढ़ी के अभिनेता ऊंचाई पर पहुंचने की तमन्ना रखते हैं
लेकिन वे आवाज का रियाज बिल्कुल नहीं करते। इसके बाद मैं पुस्तकें पढ़ती हूं। आने
वाले खतों का जवाब देती हूं। आजकल मैं अपनी पुस्तक स्टेजेज का प्रूफ ठीक करने में
लगी हूं। एक बजे दोपहर में मैं लंच करती हूं। मुझे अखबारों के क्रासवर्ड साल्व
करना भी पसंद है। दिन में एक घंटे सोती हूं। जगने के बाद एक घंटे पैदल चलती हूं।
कभी कभी शाम को डिनर के लिए रेस्टोरेंट भी जाना होता है। रात को कुछ टीवी सीरियल
देखने के बाद सो जाती हूं।
फिल्म सांविरया में रणबीर कपूर के साथ जोहरा ( 2007) |
- कौन से टीवी सीरियल देखती हैं...
- रात को खाने के बाद सांता
बारबरा और बोल्ड एंड द ब्यूटीफुल जैसे धारावाहिक जरूर देखती हूं। दिन भर की थकान
के बाद इन्हें देखने पर काफी रिलैक्सेसन मिलता है। हालांकि इनमें कहानी तो कुछ भी
नहीं होती। परंतु फोटोग्राफी और डाइरेक्शन उम्दा किस्म का है। चेहरे काफी बोल्ड और
खूबसूरत होते हैं। इन्हें देखने के बाद नींद अच्छी आती है। वैसे आजकल टीवी पर सोप
ओपेरा की भीड़ आ गई है। हर हिंदी चैनल पर थोड़ी देर में एक नया धारावाहिक शुरू हो जाता
है। क्रिकेट मैं जरूर देखती हूं। अगर भारत पाकिस्तान और इंग्लैंड जैसे देशों का
मैच हो तो और भी ज्यादा।
- आपको खाने में
क्या पसंद है...
- आजकल पूरी दुनिया में
शाकाहारी बनने पर जोर दिया जा रहा है। मुझे भी आमतौर पर वेजेटेरियन खाना पसंद है।
परंतु सप्ताह में एक दो दिन चिकेन और मछलियां जरूर खा लेती हूं।
- अपने बचपन की कुछ यादें
बताएं...
- मैं बहुत छोटी थी तभी मां
गुजर गई थीं। पिता जी ने मुझे बोर्डिंग हाउस में पढ़ने के लिए भेज दिया था। मेरे
पिताजी प्रोविंसियल सर्विस में थे इसलिए उनका तबादला होता रहता था। दस साल तक मैं
क्वीन मेरी स्कूल लाहौर की छात्रा रही। उस स्कूल में तब सिर्फ राजाओं और नवाबों के
बच्चे पढ़ते थे। एक बार मैं जब लाहौर से लौटकर अपने घर साहरनपुर आई तब मुझे कहा
गया कि अब तुम परदे में हो। मेरे लिए बुरके सिले गए। अब हम बचपन में अपने साथ खेल
नौकरों से बातें नहीं कर सकते थे। बुरके में घुटन होती थी। आप महसूस करेंगे- यो
फ्रीडम हैज बीन क्रसड। मैं तो बचपन से ही टॉमबॉय किस्म की लड़की थी। पेड़ पर चढ़
जाना, खूब घुमना फिरना, उधर उधर की
बातें करना खूब पसंद था। इसलिए घर के वातावरण में दम घुटता था। शादी जैसी चीज से
नफरत थी। खाना बनाना पसंद नहीं था। मैंने अपने अब्बाजान को खत लिखा कि मैं शादी
नहीं करना चाहती। मैं तो कैरियर बनाना चाहती हूं।
- अभिनय के क्षेत्र में कैसे आना
हुआ।
- अठारह साल की उम्र में 1931 में जर्मनी चली गई। वहां तीन साल तक रही।
मैंने डांस का विधिवत प्रशिक्षण लिया। इरदमिक्स में मैंने मेरी विगमन्स डांस स्कूल
ड्रेसडन से डिप्लोमा लिया। जर्मनी जाने में मेरे मामाजी ने काफी मदद की थी। मामा
जी भारत के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने घर वालों की मर्जी के खिलाफ जाकर विदेश
में जाकर डाक्टरी की पढ़ाई थी। वे लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कालेज के पहले भारतीय
प्रिंसिपल बने थे। जर्मनी से लाहौर लौटकर मैं क्वीन मेरी स्कूल लाहौर में बच्चों
को डांस सीखाने लगी। एक बार उदय शंकर जब लाहौर आए तब मैं उनके बैले ट्रूप में शामिल हो
गई। उदय शंकर के बैले में मैं आठ साल रही। दुनिया के बहुत से देशों में मंच पर
डांस परफारमेंस दिया।
- - आपकी शादी कब और कैसे हुई..
- 1942 में मैंने कामेश्वर नाथ
सहगल से शादी की। कामेश्वर बहुत ही ब्रिलिएंट और जीनियस आदमी थे। बहुत गजब के
डांसर,पेंटर और साइंटिस्ट थे। मकबूल फिदा हुसैन भी उनकी काफी
तारीफ करते हैं। पति चाहते थे कि मैं अपना अलग डांस स्कूल खोलूं। लाहौर में 1943
में हमने अपना डांस स्कूल खोला।
- जब आपने एक हिंदू से शादी की
तो कोई विरोध नहीं हुआ..
- मेरे पति मेरे काफी अच्छे
दोस्त थे। हमारे घर में हर व्यक्ति उन्हें प्रेम करता था। परंतु शादी की बात पर
विरोध था। पिताजी नहीं चाहते थे कि जोहरा किसी हिंदू से शादी करे। परंतु मेरे मामा
ने एक बार फिर काफी मदद की। कामेश्वर ने कहा कि जोहरा से शादी के लिए मैं मुसलमान
बनने को भी तैयार हूं। परंतु अब्बा ने कहा कि नहीं इसकी जरूरत नहीं। अगर जोहरा
हिंदू बन जाए तो मुझे कैसा लगेगा। इसलिए किसी भी को धर्म परिवर्तन की जरूरत नहीं
है। पिता जी ने भरे मन से शादी की इजाजत दे दी।
- पृथ्वी थियेटर में कैसे आना
हुआ।
- लाहौर में हमारा डांस स्कूल
सफलतापूर्वक चल रहा था। परंतु जब भारत पाकिस्तान विभाजन की बात आई तब वहां के लोग
हमारी आलोचना करने लगे।जो लोग हमारी शादी को हिंदू मुस्लिम एकता का नमूना बताते थे
उन्ही लोगों से परेशानी पेश आने लगी। तब मेरी बहन अजरा जो पृथ्वी थियेटर में थीं
उन्होने कहा कि तुम लोग मुंबई आ जाओ यहां थियेटर में डांस की बहुत संभावनाएं हैं।
मुंबई आने पर मुझे जो फिल्मों में डांस के रोल आफर हुए वे बहुत ही वाहियात थे। मैं
नाटकों के शो देखने जाया करती थी। मैंने पृथ्वी थियेटर के नाटक दीवार में पहली बार
काम किया। इस नाटक की कहानी भारत पाकिस्तान विभाजन को लेकर बनी थी। इसमें दो
भाइयों की कहानी थी। छोटा भाई अपने घर में विदेशी स्त्री ले आता है। जब छोटे और
बड़े भाई के बीच विवाद बढ़ता है तो छोटा भाई कहता है कि घर में एक दीवार होनी
चाहिए। मैं इस नाटक में वैम्प बनती थी। पापा जी ( पृथ्वी राज कपूर ) बड़े भाई का
रोल करते थे। हमने पृथ्वी थियेटर के कई हजार शो किए। भारत के 112 शहरों में हमलोग
गए। पृथ्वी थियेटर में मैं 14 साल तक रही। पठान, गद्दार,
आहूति आदि नाटक काफी मशहूर हुए।
- आपने पृथ्वीराज कपूर की
फिल्मों में काम करने का अनुभव कैसा रहा...
- वास्तव में तब मैं फिल्मों
चल नहीं सकी। मुझे मां के रोल तो आफर होते थे। लेकिन मां के रोल में भी उन्हें
सुंदर और सेक्सी महिला चाहिए थी। मैं कभी सुंदर और सेक्सी लगी नहीं। दूसरी बात की
पृथ्वी थियेटर की रेगुलर आर्टिस्ट होने के कारण मैं फिल्मों को पूरा समय नहीं दे
सकती थी। कुछ फिल्मों मं डांस डाइरेक्शन किया जिसमें गुरुदत्त की बाजी, सीआईडी आदि प्रमुख थीं। पापा जी की फिल्म पैसा में मैंने रोल किया लेकिन
फिल्म की कहानी फिल्म के लायक नहीं थी। फिल्म फ्लाप हो गई। अगर पापा जी ने पठान या
कलाकार नाटकों पर फिल्म बनाई होती तो जरूर सफल होती।
- थियेटर में तब और अब क्या
बदलाव आए हैं...
- तब थियेटर में जाने से पहले
किसी तरह की ट्रेनिंग का इंतजाम नहीं था। एक अंग्रेजीमें कहावत है..थ्रो द चाइल्ड
इंटू वाटर आइदर स्विम और सिंक...बच्चे को पानी में फेंक दो तैरेगा या डूब जाएगा।
कुछ ऐसा ही होता था। मैंने डांस का प्रशिक्षण जरूर लिया था। परंतु अभिनय की कोई
ट्रेनिंग नहीं ली थी। वायस की कोई ट्रेनिंग नहीं ली थी। आजकल ट्रेनिंग बहुत अच्छी
दी जा रही है। नए कलाकारों में भी कई बेहतर लोग आ रहे हैं। नसीरुद्दीन शाह,
शबाना आजमी, ओमपुरी, उत्तरा
बावकर, सीमा विश्वास आजके दौर के उम्दा कलाकार हैं।
- क्या टीवी और फिल्मों के बढ़ते
प्रभाव से थियेटर खत्म हो रहा है...
- टीवी के आने से कलाकारों को
मौका मिला है। अब थियेटर के लोग फिल्मों और टीवी की ओर जा रहे हैं। परंतु थियेटर
का जादू खत्म नहीं होने जा रहा। कन्नड़, मराठी, गुजराती में थियेटर अच्छी स्थिति में है। नार्थ इंडिया में जरूर थियेटर
अच्छी स्थिति में नहीं है। परंतु हमारे यहां भी लेखक और निर्देशक काफी मेहनत कर
रहे हैं। धीरे धीरे टिकट खरीदकर थियेटर देखने वाले बढ़ रहे हैं।
- विलायत में भी एक बार आवाज
उठी थी कि फिल्म और टीवी के आने से थियेटर खत्म हो जाएगा। परंतु ऐसा हुआ नहीं।
आमने सामने देखने का जो एक प्रभाव होता है वह सिर्फ थियेटर में ही संभव है। नाटक
देखते समय दर्शक और कलाकारों के बीच जो खिचड़ी पकती वह एक यूनिक चीज है। यह एक अजीबोगरीब
स्थिति है। लाइव परफारमेंस में जो बात पैदा होती है वह सिनेमा और टीवी में कैसे
पैदा हो सकती है। आवाज का जो उतार चढ़ाव है वह थियेटर में ही देखने को मिलता है।
- इधर आपने कई टीवी सीरियलों में
काम किया कैसे अनुभव रहे...
- पच्चीस साल बाद जब
दुनिया के कई मुल्कों के टीवी शो और फिल्मों में एक्टिंग करके मैं वतन लौटी तो
देखा कि लोग मुझे यहां भूलने लगे थे। फिर टीवी पर का शुरू किया। मुल्ला नसीरुद्दीन, सई परांजपे की पार्टियाना, बलवंत गार्गी की खोजी के
कारनामे, बुआ फातिमा, गिरिश कर्नाड के साथ आखिरी पड़ाव जैसे
धारावाहिकों में काम किया। आजकल होम टीवी के धारावाहिक अम्मा एंड फेमिली में
एक्टिंग कर रही हूं। इसमें मैं अम्मा बनी हूं। धारावाहिक पांच पीढ़ियों की कहानी
है। एक सीधीसादी मुस्लिम फेमिली है। अम्मा बूढ़ी है, पांचो
वक्त नामज पढ़ती है। बाकी लोग माडर्न हैं तो कुछ पुराने ख्यालों के भी हैं। कहानी
सादिया देहलवी ने लिखी है। प्रोड्यूसर हैं वसीम अहमद देहलवी। हमारे साथ अनुपम
श्याम, डाली आहलूवालिया, सुषमा सेठ,
हिमानी देहलवी काम कर रही हैं। खूब मजा आ रहा है।
- आपने दुनिया के बेहतरीन
निर्देशकों के साथ काम किया है फिर नए लोगों के साथ काम करना कैसा लगता है..
- निश्चय ही निर्देशकों में
जॉन एमिल, क्रिस्टोफर मोरहान जैसी बात नहीं होती। यूं तो नए
लोगों को निर्देशन के सूक्ष्म चीजों की जानकारी नहीं होती। थियेटर का भी अनुभव
नहीं होने से कुछ फर्क पड़ जाता है।
- कुछ ऐसे नाम जिनके साथ काम
करना यादगार रहा...
- सबसे पहले सईद जाफरी का नाम
लूंगी। उनकी पत्नी मधुर जाफरी, रोशन सेठ, इंदिरा जोशी, मीरा स्याल जैसे लोग अच्छे एक्टर हैं।
फिल्मों में गुरिंदर चड्ढा, सुरिंदर कौर, पाकिस्तानी आर्टिस्ट बदी उज्जमा बहुत अच्छे कलाकार हैं। निर्देशकों में
एना केन, जेम्स आवरी, इस्माइल मर्चेंट,
बलवंत गार्गी के नाम याद आते हैं। बेन किंग्स्ले बहुत अच्छा
आर्टिस्ट है। मोरक्को में मैं उसके साथ हरम की शूटिंग करने गई थी। नाताशा किंसकी
के साथ काम करना भी यादगार रहा।
- ऐसी कोई तमन्ना जिसे आप पूरा
नहीं कर सकी हों...
- तमन्ना तो सच पूछो तो कुछ भी
नहीं बची। वैसे इन्सान जो सोचता है वह सब कुछ नहीं हो पाता। परंतु आज मैं 85 साल
की हो गई हूं।
मैं उदयशंकर के बैले और
पृथ्वी थियेटर की टॉप स्टार रही। पच्चीस सालों तक दुनिया के कई देशों में रही।
लौटने के बाद भी काफी काम मिल रहा है। रूपया भी मिल रहा है। हाल में महेश भट्ट की
बेटी पूजा भट्ट की फिल्म तमन्ना में काम किया। भला इस उम्र में किसको इतना रूपया मिलता है।
मेरा एक बेटा वर्ल्ड बैंक में है। उससे मिलने कई बार दक्षिण अफ्रीका भी चली जाती हूं। बेटी किरण सहगल ओडिशी की जानी मानी डांसर है। मैं अब परनानी बन चुकी हूं। उम्र के इस मुकाम में मैं खाने से परहेज नहीं करती। मेरा हाजमा बिल्कुल ठीक है। सेहत अच्छी है।इस उम्र में भूख लगती है और खाती हूं भला इससे बड़ी बात क्या हो सकती है।
जोहरा के सौ साल पूरे करने पर उनकी बेटी किरण सहगल ने मां के अलग पहलुओं को याद करते हुए किताब लिखी है- जोहरा सहगल – फैटी। कॉफी टेबल बुक को नियोगी बुक्स ने प्रकाशितकिया है।
मेरा एक बेटा वर्ल्ड बैंक में है। उससे मिलने कई बार दक्षिण अफ्रीका भी चली जाती हूं। बेटी किरण सहगल ओडिशी की जानी मानी डांसर है। मैं अब परनानी बन चुकी हूं। उम्र के इस मुकाम में मैं खाने से परहेज नहीं करती। मेरा हाजमा बिल्कुल ठीक है। सेहत अच्छी है।इस उम्र में भूख लगती है और खाती हूं भला इससे बड़ी बात क्या हो सकती है।
जोहरा के सौ साल पूरे करने पर उनकी बेटी किरण सहगल ने मां के अलग पहलुओं को याद करते हुए किताब लिखी है- जोहरा सहगल – फैटी। कॉफी टेबल बुक को नियोगी बुक्स ने प्रकाशितकिया है।
- ( ये साक्षात्कार सितंबर 1996 में लिया गया था। 27 अप्रैल 2012 को जोहरा
सहगल ने जीवन के सौ वसंत देख लिए हैं। नब्बे साल
के बाद की उम्र में भी उन्होंने कई फिल्मों में
चुलबुली दादी और अम्मा की यादगार भूमिकाएं कीं। )
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