सोशल मीडिया - एक नया हथियार
कुछ साल पहले छोटे समूहों के पास अपनी बातें कहने का एक मात्र तरीका था लघु पत्रिकाएं निकालना, अनियतकालीन पत्रिकाएं निकालना या छोटे अखबार निकालना। लेकिन इसके साथ एक समस्या थी इसे देश-विदेश में बड़े समूह तक पहुंचाना आसान नहीं था। इसके साथ ही ये एक खर्चीली प्रक्रिया भी थी। पत्रिका निकालने या अखबार निकालने के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। छपाई और लोगों तक पहुंचाने के खर्चे अलग पड़ते हैं। लेकिन अब सोशल मीडिया ने हर किसी को अपनी बात एक बड़े समूह तक साझा करने के लिए एक बड़ा मंच प्रदान कर दिया है।
कुछ साल पहले छोटे समूहों के पास अपनी बातें कहने का एक मात्र तरीका था लघु पत्रिकाएं निकालना, अनियतकालीन पत्रिकाएं निकालना या छोटे अखबार निकालना। लेकिन इसके साथ एक समस्या थी इसे देश-विदेश में बड़े समूह तक पहुंचाना आसान नहीं था। इसके साथ ही ये एक खर्चीली प्रक्रिया भी थी। पत्रिका निकालने या अखबार निकालने के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। छपाई और लोगों तक पहुंचाने के खर्चे अलग पड़ते हैं। लेकिन अब सोशल मीडिया ने हर किसी को अपनी बात एक बड़े समूह तक साझा करने के लिए एक बड़ा मंच प्रदान कर दिया है।
याहू ग्रुप, आरकुट, फेसबुक, लिंकड इन, गूगल प्लस, ट्विटर, यू ट्यूब जैसे कई मंच इंटरनेट की खिड़की खुलने के साथ लोगों को मिले हैं। ब्लॉगिंग और माइक्रो ब्लॉगिंग के जरिए न सिर्फ खास बल्कि आम लोग भी खुल कर अपनी बात कह सकते हैं। दुनिया के किसी भी कोने में हजारों लाखों लोगों तक अपनी आवाज पहुंचा सकते हैं।
अपनी बात कहने की आजादी
अमिताभ बच्चन यानी सदी के महानायक। एक बड़े फिल्म स्टार। मीडिया से अपनी बात कहना चाहते हैं। जाहिर एक प्रेस कान्फ्रेंस बुलानी पड़ेगी। पत्रकारों को न्योता भेजना किसी फाइव स्टार होटल में खाने पीने का इंतजाम। इसमें खर्चा दो लाख रुपये के आसपास। इसके बाद भी गांरटी नहीं कि वे जो कुछ बोलेंगे कल के अखबारों में सब कुछ वैसा ही छपेगा या उन्हें स्पेश मिलेगा भी या नहीं। लेकिन अब सोशल मीडिया ने उन्हे एक शानदार विकल्प दे दिया है। वे कहीं नहीं जाएंगे। घर बैठे या कार में घूमते हुए अपनी बात अपने टिवटर एकाउंट या बिग अड्डा के ब्लाग पर लिख देंगे। उनकी बातों को सभी जाने माने अखबार और टीवी चैनल लपक कर उठा लेंगे। न हर्रे लगा न फिटकरी रंग चोखा हो जाए। न सिर्फ अमिताभ बच्चन बल्कि आमिर खान और दूसरे कई फिल्म स्टार भी फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। उभरती हुई माडल पूनम पांडे का उदाहरण हमारे समाने है जो यू ट्यूब पर अपना एक एक कर ताजा वीडियो अपलोड पर चर्चा में हैं। अगर सोशल मीडिया का अविर्भाव नहीं हुआ होता तो बिग बी, आमिर खान या पूनम पांडे को अपनी बात लोगों तक पहुंचाने में बड़ी मुश्किल आतीं। टीवी और फिल्मों के कम लोकप्रिय सितारे भी अपने प्रशंसकों से सीधा संबंध बना रहे हैं सोशल नेटवर्किंग साइट्स के सहारे। कई साल पहले अखबार या पत्रिकाओं में सितारों के पते छपते थे फिर फैन्स उन्हें चिट्ठियां लिखते थे। लेकिन अब दूरियां घट गई हैं। समय सिमट गया है। अब सीधा संवाद का जमाना है। आज फिल्म प्रोड्यूसर अपनी नई फिल्म का प्रचार सोशल मीडिया के सहारे कर रहे हैं। हर नई रीलीज होने वाले फिल्म का फेसबुक पर पेज खोला जाता है। फिल्मों की पब्लिसिटी में बड़ा बड़ा बजट खर्च होता है लेकिन सोशल मीडिया ने कम बजट वाले निर्माताओं के लिए राह आसान कर दी है।
न सिर्फ फिल्मी सितारों का बल्कि राजनेताओं का भी अपने समर्थकों से सीधा संवाद करने का जरिया बन गए हैं सोशल नेटवर्किंग साइट्स। यूपी के चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी जैसी परंपरागत पार्टी ने देश के बडे अखबार में अंग्रेजी में अपना विज्ञापन दिया और उसमें लिखा फालो अस ऑन फेसबुक एंड ट्विटर। जाहिर ये सब कुछ युवा वर्ग को अपने साथ जोड़ने के लिए था। चाहे छोटे राजनैतिक विचार समूह हों या बड़े राजनीतिक दल सबके लिए फेसबुक, ट्विटर जैसे साइट जनता तक पहुंचने का आसान और सस्ता जरिया बन चुके हैं। पीएम के मीडिया सलाहकार पंकज पचौरी के बनने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय भी ट्विटर पर आ चुका है। इसके पहले फारूक अब्दुल्ला, शशि थरूर जैसे राजनेता माइक्रो ब्लागिंग साइट ट्विटर और फेसबुक का इस्तेमाल लगातार लोगों तक अपनी बातें रखने के लिए कर रहे थे। लेकिन अब बीजेपी की सुषमा स्वराज भी सोशल नेटवर्किंग साइट का इस्तेमाल कर रही हैं तो तमाम छोटे दलों के लिए सोशल मीडिया सस्ता और माकूल हथियार बन चुका है। कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह किसी भी मुद्दे पर अपने विचार ट्विटर पर लिखते हैं और टीवी चैनलों और अखबारों के लिए बड़ी खबर बन जाती है। पहले ऐसे विचारों को अखबारों में जगह दिलाने के लिए पत्रकारों और संपादकों की मनुहार करनी पड़ती थी, राजनेता लाखों खर्च करके प्रेस वार्ताएं बुलाई जाती थीं, महंगे गिफ्ट बांटे जाते थे, शराब परोसी जाती थी लेकिन कई बार फिर भी अखबारों में उनकी खबर नहीं छपती थी। लेकिन सोशल मीडिया ने हालात बदल दिए हैं अगर आप कुछ नई या विवादास्पद बात करेंगे तो मीडिया के लिए सुर्खी बनाना अब मजबूरी बन जाती है। अब किस राजनेता ने ट्विटर पर क्या विचार दिया फेसबुक पर क्या कमेंट किया ये सब कुछ अखबारों में आसानी से छप जाता है। अगर अखबार नहीं छापता है तो भी राजनेताओं के फालोअर तक उनके विचार फर्स्ट परसन में पहुंच जाते हैं। इसमें कोई मिलावट नहीं होती।
राजनेता तो फेसबुक का इस्तेमाल अपने फैन मेल बढ़ाने या फिर अपने समर्थकों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए खूब कर रहे हैं। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री जगदंबिका पाल, कांग्रेस सांसद और एससी एसटी कमीशन के चेयरमैन पीएल पुनिया, केंद्रीय कोयला मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल, केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला सभी फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया की ताकत को अच्छी तरह पहचान चुके हैं। बिहार के कांग्रेस नेता प्रेमचंद मिश्रा, एलजेपी नेता राघवेंद्र सिंह कुशवाहा अपने राजनैतिक विचार और प्रतिक्रियाएं लगभग रोज अपने समर्थकों से साझा करते हैं। ये इस नए मीडिया की ही तो ताकत है।
न सिर्फ नेता अभिनेता और सामाजिक संगठन बल्कि सरकारी महकमा भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल लोगों से जुड़ने के लिए कर रहा है। दिल्ली पुलिस का भी फेसबुक पर पेज है। जिस पर शिकायतें दर्ज की जा सकती हैं। ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन के फोटो अपलोड किए जा सकते हैं। ऐसी कई तस्वीरों के भेजे जाने पर कार्रवाई भी हुई है। आम लोगों की ओर से आई फेस बुक पर शिकायतके बाद दिल्ली पुलिस ने ट्रैफिक नियम के उल्लंघन के मामले में बड़े नेताओं का भी चालान काट दिया है। सिर्फ दिल्ली पुलिस ही नहीं बल्कि कई और सरकारी विभाग फेसबुक के सहारे लोगों तक पहुंचने की कोशिश में हैं। भारतीय रेल ने नई दिल्ली स्टेशन पर ट्रेनों की आवाजाही का ताजा अपडेट फेसबुक पर अपने पेज पर देने की शुरूआत कर दी है।
न सिर्फ सरकारी महकमे बल्कि बड़े अखबारों और टीवी चैनलों ने सोशल मीडिया की ताकत को पहचाना है। आज देश में नंबर होने का दावा करने वाले अंग्रेजी और हिंदी के अखबार भी अपनी खबरों को लोगों तक पहुंचाने के लिए फेसबुक और ट्विटर पर अपने फालोअर का सहारा ले रहे हैं। अंग्रेजी में हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स आफ इंडिया तो हिंदी में दैनिक भास्कर और अमर उजाला जैसे अखबारों की मौजूदगी फेसबुक पर देखी जा सकती है। कई क्षेत्रीय भाषाओं के मीडिया समूह भी तेजी से सोशल मीडिया पर अपना एकाउंट बना रहे हैं। हालांकि सोशल मीडिया की शुरूआत बड़े मीडिया के समूहों के विकल्प के रूप में हुई थी लेकिन आज सोशल मीडिया की ताकत में इतना इजाफा हो चुका है कि बड़े मीडिया समूह भी इसका लाभ उठाने में बिल्कुल हिचक नहीं रहे हैं।
विज्ञापन के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल –
जब आप अखबारों में किसी प्राडक्ट का विज्ञापन देखते हैं तो उसमें नीचे कई बार लिखा मिलता है फालो अस आन ट्विटर और फेसबुक । तमाम बड़ी कारपोरेट कंपनियां अपने प्रोडक्ट की ब्रांडिंग के लिए फेसबुक और ट्विटर पर एकाउंट खोल रही हैं। चाहे रिब़ॉक के जूते हों या कार और बाइक कंपनियां सभी ने सोशल मीडिया पर अपने एकाउंट खोले हैं और अपने टारगेट आडिएंस को अपने फालोअर के रूप में जोड़ा है। यह विज्ञापन करने का एक सस्ता और सटीक तरीका है। जब कोई ब्रांड अपना विज्ञापन किसी अखबार या टीवी चैलन में देता है तो उसके लिए लाखों करोड़ों खर्च करने पड़ते हैं। जबकि फेसबुक या ट्विटर पर मुफ्त में एकाउंट बनाया जा सकता है। दूसरा सबसे बड़ा फायदा है कि यहां वही लोग सीधा जुड़ते हैं जिनका किसी खास ब्रांड से कोई लगाव हो या फिर वे उस ब्रांड को खरीदने इस्तेमाल करने में रूचि रखते हों। हां ये जरूर है कि सोशल मीडिया का विज्ञापन एकाउंट सिर्फ वही लोग देख सकते हैं जो नियमित इंटरनेट के उपयोक्ता हैं।
वंचित समाज को अपनी बात रखने का मौका -
विचारों को लोगों तक पहुंचाने के लिए समाजिक संगठन और जन आंदोलन खड़ा करने वाले संगठन भी सोशल मीडिया की ताकत का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ देश व्यापी आंदोलन खड़ा करने वाले संगठन इंडिया एगेन्स्ट करप्शन ने सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल कर लोगों को जोड़ने और आंदोलन को धार देने का काम किया। दुनिया के कई देशों में फेसबुक और ट्विटर से क्रांति भी हो चुकी है। भारत आबादी में बड़ा देश है। हर राज्य में अलग अलग भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन महानगरों, छोटे और मझोले शहरों में इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल ने आम जनता को सोशल मीडिया के रूप में एक बड़ा हथियार दिया है। भले ही फेसबुक जैसे साइट्स की शुरूआत नए पूराने दोस्तों को एक कड़ी के रूप में जोड़ने के लिए हुई थी लेकिन अब ये महज दोस्तों का साझा मंच भर नहीं रह गया है। बड़ी संख्या में पत्रकार, साहित्यकार, टेक्नोक्रैट, राजनेता, छात्र, अलग अलग क्म्यूनिटी के लोग फेसबुक का इस्तेमाल एक दूसरे से जुड़े रहने के लिए कर रहे हैं। लेकिन फेसबुक जैसे सोशल मीडिया ने एक मंच दिया है अपनी बातें कहने का। आप वो सब कुछ यहां कह सकते हैं जिसे लोग सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। आपके कहने के बाद जिन जिन लोगों को जरूरत होगी आपकी बात को वे लोग सुन लेंगे।
फेसबुक ने लोगों को मौका दिया है वंचित समाज के लोगों को अपनी बात रखने का। अपना समूह बनाने का। आजकल सोशल मीडिया पर पर कई तरह के विचार समूह चलाए जा रहे हैं तो कई तरह दबाव समूह चलाए भी जा रहे हैं। कई तरह के साहित्यिक विचारधारा के लोग अपनी बातें साझा कर रहे हैं। कोई नया पुराना लेखक अपनी नई किताब के बारे में लोगों को बता रहा है। किताब का प्रथम पृष्ठ फेसबुक पर जारी कर देता है। किताब के विमोचन समारोह की जानकारी देता है। विमोचन होने के बाद उसकी खबर और फोटोग्राफ भी फेसबुक पर जारी कर देता है। कई बार वे खबरें जो काफी कोशिश करके भी अखबारों ने हीं छप पाती थीं उन्हें सोशल मीडिया पर आप चाहें तो प्रकाशित कर सकते हैं और उन लोगों तक आसानी से पहुंचा सकते हैं जो आपके लक्षित श्रोता समूह में आते हैं। भले ही आप दिल्ली या फिर छत्तीसगढ़ के बस्तर में रहते हों आपकी बात आपकी खबरें आपके विचार न सिर्फ कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक बल्कि जर्मनी और आस्ट्रेलिया में बैठे आपके दोस्तों तक भी पहुंच जाती है। वह भी बिना किसी खर्च के। सिर्फ खबर तस्वीर या विचार की ही बात क्यों करें आप अपने कार्यक्रम की वीडियो भी सोशल मीडिया पर अपलोड कर सकते हैं जिसे दुनिया के किसी कोने में बैठा व्यक्ति देख सकता है।
फेसबुक ने लोगों को मौका दिया है वंचित समाज के लोगों को अपनी बात रखने का। अपना समूह बनाने का। आजकल सोशल मीडिया पर पर कई तरह के विचार समूह चलाए जा रहे हैं तो कई तरह दबाव समूह चलाए भी जा रहे हैं। कई तरह के साहित्यिक विचारधारा के लोग अपनी बातें साझा कर रहे हैं। कोई नया पुराना लेखक अपनी नई किताब के बारे में लोगों को बता रहा है। किताब का प्रथम पृष्ठ फेसबुक पर जारी कर देता है। किताब के विमोचन समारोह की जानकारी देता है। विमोचन होने के बाद उसकी खबर और फोटोग्राफ भी फेसबुक पर जारी कर देता है। कई बार वे खबरें जो काफी कोशिश करके भी अखबारों ने हीं छप पाती थीं उन्हें सोशल मीडिया पर आप चाहें तो प्रकाशित कर सकते हैं और उन लोगों तक आसानी से पहुंचा सकते हैं जो आपके लक्षित श्रोता समूह में आते हैं। भले ही आप दिल्ली या फिर छत्तीसगढ़ के बस्तर में रहते हों आपकी बात आपकी खबरें आपके विचार न सिर्फ कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक बल्कि जर्मनी और आस्ट्रेलिया में बैठे आपके दोस्तों तक भी पहुंच जाती है। वह भी बिना किसी खर्च के। सिर्फ खबर तस्वीर या विचार की ही बात क्यों करें आप अपने कार्यक्रम की वीडियो भी सोशल मीडिया पर अपलोड कर सकते हैं जिसे दुनिया के किसी कोने में बैठा व्यक्ति देख सकता है।
न सिर्फ साहित्यिक या फिर समाजिक समूह बल्कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल आजकल जन आंदोलन से जुड़े संगठन वंचित समाज के संगठन, अपने अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठन भी कर रहे हैं। अगर किसी संगठन के पांच से या हजार दो हजार कार्यकर्ता देश के अलग अलग इलाकों में फैले हुए हैं तो उन सबके बीच संदेश, साहित्य, विचारों के आदान प्रदान के लिए सोशल मीडिया ने एक सस्ता, शानदार और तेजी से पहुंचने वाला मंच प्रदान किया है। पहले इसके लिए अखबारों में खबर छपवाना या फिर कई सौ, हजार चिट्ठियां लिखने के लिए अलावा कोई विकल्प नहीं था। आज फेसबुक पर दलित मत, आदिवासियों से जुड़े संगठन, अलग अलग जातियों के संगठन, अलग अलग धार्मिक विचारों के संगठनों की समूह देखे जा सकते हैं जो अपने विचारों का आदान प्रदान करते नजर आते हैं। ऐसे संगठन आन लाइन नए लोगों को अपने विचारों से जोड़ने और प्रभावित करने की कोशिश में भी लगे नजर आते हैं। कई लोग अपने से मिलते जुलते विचारों के लोगों से सोशल मीडिया के जरिए जुड़ भी रहे हैं।
जो लोग अपनी पत्रिका नहीं निकाल सकते हैं या अपनी वेबसाइट बनाने का खर्च नहीं उठा सकते हैं वे कम्यूनिटी ब्लॉग बनाकर, याहू ग्रूप पर अपना समहू बनाकर या फेसबुक पर अपने संगठन का पेज बनाकर अपनी बातों को लोगों तक पहुंचाने लगे हैं।
सोशल मीडिया के खतरे –
सोशल मीडिया भले ही एक हथियार के रूप में लोगों के लिए वरदान बन कर आया हो लेकिन इसके अपने खतरे भी हैं। पहले तरह का खतरा शारीरिक और मनोवैज्ञानिक है। लगातार कई घंटे मोबाइल या कंप्यूटर से फेसबुक पर जुड़े रहने से जहां वक्त की बर्बादी होती है वहीं कई तरह की बीमारियों का भी खतरा है जो कंप्यूटर जन्य बीमारियां हो सकती हैं। दूसरा बड़ा खतरा मनोवैज्ञानिक है लगातार इंटरनेट की आभासी दुनिया में खोया रहने वाला व्यक्ति अपने आसपास के लोगों से अड़ोस-पड़ोस से कई बार कट जाता है। भले ही आप दुनिया से जुड़े होते हैं लेकिन आपके पड़ोसी का घर आपसे दूर होता जाता है।
सोशल मीडिया भले ही एक हथियार के रूप में लोगों के लिए वरदान बन कर आया हो लेकिन इसके अपने खतरे भी हैं। पहले तरह का खतरा शारीरिक और मनोवैज्ञानिक है। लगातार कई घंटे मोबाइल या कंप्यूटर से फेसबुक पर जुड़े रहने से जहां वक्त की बर्बादी होती है वहीं कई तरह की बीमारियों का भी खतरा है जो कंप्यूटर जन्य बीमारियां हो सकती हैं। दूसरा बड़ा खतरा मनोवैज्ञानिक है लगातार इंटरनेट की आभासी दुनिया में खोया रहने वाला व्यक्ति अपने आसपास के लोगों से अड़ोस-पड़ोस से कई बार कट जाता है। भले ही आप दुनिया से जुड़े होते हैं लेकिन आपके पड़ोसी का घर आपसे दूर होता जाता है।
सोशल मीडिया पर अश्लीलता परोसने के भी आरोप लगते रहे हैं क्योंकि यहां कोई सेंसरशिप नहीं है। कोई अपनी बात कैसे भी शब्दों में रख सकता है कोई किसी भी तरह की तस्वीर या वीडियो अपलोड कर सकता है। इसमें कई बार शब्द अपना जनक और तस्वीर या वीडियो शालीनता की सीमा से परे हो सकते हैं। इसलिए कई बार ऐसे मीडिया पर सेंसरशिप की बात उठी है। सरकार सोशल मीडिया की सेवाएं प्रदान करने वाली साइटों को कंटेट की जानकारी देने की बात करती है। सोशल मीडिया पर सेल्फ सेंसरशिप की बात करना भी बहुत मुश्किल है। माडल पूनम पांडे अपना बाथरूम वीडियो अपने फैन्स को परोसती हैं। अगली बार वे अपना कम अंधेरे में लिया गया न्यूड वीडियो भी पेश करने की बात करती हैं। उनको अपने इन कदमों से काफी पब्लिसिटी मिलती है लेकिन ऐसी हरकतों पर नियंत्रण रखने के लिए हमारे पास माकूल हथियार नहीं है। कुछ लोगों की बेजा हरकतों के कारण कई बार ऐसी साइटों को पूरी तरह प्रतिबंधित करने की बात भी उठती है। यू ट्यूब ने एक नीति अपनाई जब किसी वीडियो के बारे में अश्लील होने की शिकायत की जाती है तब यू ट्यूब ऐसे वीडियो को अपनी साइट से हटा देती है। कुछ लोग फेसबुक पर कुछ भी अनाप सनाप लिखने के बाद ये तर्क देते नजर आते हैं कि हमने ये बात तो सिर्फ अपने दोस्तों में कही है कोई सार्वजनिक तौर पर थोड़े ही कही। लेकिन ऐसा तर्क देना फिजुल है। मान लिजिए फेसबुक पर आपके पांच सौ दोस्त हैं। उन पांच सौ दोस्तों के पांच पांच सौ दोस्त हैं। जब आप कोई विचार, तस्वीर या वीडियो शेयर करते हैं तो वह तुरंत हजारों लाखों लोगों तक पहुंच जाता है। न सिर्फ आपके दोस्त बल्कि आपके दोस्तों के दोस्त तक भी पोस्ट की हुई सामग्री पहुंच जाती है। इसलिए सोशल मीडिया एक सार्वजनिक मंच है न कि कोई निजी तौर पर साझा किया जाने वाले मंच। हाल के दिनों में राजनेताओं के मार्फिंग कि हुई आपत्तिजनक तस्वीरें सोशल मीडिया पर देखने को मिली। ये तस्वीरें जिन लोगों से जुड़ी हुई हैं उन्हें गुस्सा आना या आपत्ति जताना लाजिमी है। हमारी आजादी वहीं तक है जहां तक दूसरे की आजादी या निजता का हनन नहीं होता हो।
कैसे- कैसे सोशल मीडिया –
1. समन्यवय प्रोजेक्ट – कई लोगों को समूह मिल कर ऐसे प्रोजेक्ट बनाकर ज्ञान का आदान प्रदान करता है जैसे वीकिपिडिया। वेजेटेरियन रेस्टोरेंट्स डाट नेट
2. वेब लॉग या ब्लॉग- लोकप्रिय तरीके ब्लागर डाट काम या वर्ड प्रेस, बिग अड्डा आदि पर
3. माइक्रो ब्लॉगिंग साइट्स – जैसे ट्विटर
4. कंटेट कम्यूनिटी साइटस – यू ट्यूब, जूम इन, पिकासा
5. सोशल साइट्स – फेसबुक, लिंकड इन
6. समूह – याहू ग्रूप, गूगल प्लस
शामिल होने के तरीके –
संदेश भेजना, ट्विट करना, ई मेल करना, फोटो शेयर करना, वीडियो शेयर करना,
जरूरत –
इंटरनेट रेडी कंप्यूटर या लैपटाप, टैबलेट आदि या फिर इंटरनेट रेडी मोबाइल फोन।
- विद्युत प्रकाश मौर्य
- विद्युत प्रकाश मौर्य
( This paper presented in National seminar held at Govt college, Kaithal, Haryana ( Kurukshetra Univ) on 20 march 2012)