खाद्य
सुरक्षा के लिए 10 हजार करोड़ का इंतजाम है 2013-14 के बजट में
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आखिर हम
उम्मीद क्यों रखते हैं। क्या बजट सरकार लोगों को राहत देने के लिए पेश करती है। या
फिर अपना एक साल का हिसाब किताब आगे बढ़ाने के लिए। 28 फरवरी की रात आजतक चैनल पर
एक बजट लांज बना था। वहां अलग-अलग वर्गों के खास तौर अमीर लोग जमा थे जो काफी पीकर
चिदंबरम के खिलाफ अपनी उबकाइयां निकाल रहे थे। किसी को बजट पसंद नहीं आया था।
प्रसिद्ध पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी भी अमीरों के सरमाएदार की तरह बातें कर रहे
थे।
इस बार के बजट में चिदंबरम ने अमीरों से लिया और गरीबों को ज्यादा देने की
कोशिश की है। ये बात अमीरों को हजम नहीं हो रही थी। भला एसयूवी महंगा हो गया,
सुपरबाइक, एसी रेस्टोरेंट में खाना पीना महंगा
हुआ, 50 लाख से ज्यादा वाले घर महंगे हुए तो अमीरों को थोड़ा
दर्द तो होना ही था। लेकिन दरिद्रनारायण के लिए फूड सिक्योरिटी का इंतजाम किया,
बेरोजगारों की सुध ली, युवाओं महिलाओं की सुध
ली तो भला क्या गलत किया। भले ही इसे चुनावी बजट कहा जा रहा हो लेकिन इसमें
पसमांदा लोगों खबर लेने की कोशिश की गई तो खाते पीते लोगों के पेट में दर्द तो
होना ही था। लेकिन हम क्या करें हमारी फितरत है हम थोड़े में खुश होना नहीं जानते,
हमें हमेशा थोड़े और की उम्मीद रहती है।
विद्युत
प्रकाश मौर्य ( 01 मार्च 2013 )
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