चलना जीवन
की निशानी रुकना मौत की निशानी...। जीवन चलने का नाम,
चलते रहो सुबह ओ शाम...। जैसे गीत हमेशा चलते
रहने का संदेश देते हैं। वास्तवमें इतिहास वही लिखता है जो अनवरत चलता रहता है। कई
लोग राज्य की सीमाएं लांघते हैं तो कई देश की। कई लोग एक सुंदर सा घर बनाते हैं और
जीवन भर उसकी देखभाल में लगा देते हैं। वे घर के मोह को छोड़कर कहीं आगे नहीं
बढ़ते। ऐसे लोगों की कहीं चर्चा नहीं होती। उन्हें कोई याद नहीं करता। इतिहास भी उन्हीं
लोगों को याद करता है जिन्होंने दुनिया को नाप डाला। जब स्वामी विवेकानंद को सर्व धर्म
सम्मेलन में भाग लेने का मौका मिला तो वे संकोच कर रहे थे। उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस
उनके प्रारब्ध में आए और उन्हें जाने का आदेश दिया। गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका जाने
का अवसर मिला तो कई मुश्किलें भी आईं। पर गांधी जी के व्यक्तित्व का विकास दक्षिण
अफ्रीका जाकर ही हुआ। इसलिए प्रगति के आकांक्षी लोगों को स्थान परिवर्तन के लिए या
कहीं भी सफर पर जाने के लिए तैयार रहना चाहिए।
शायर इस्माईल मेरठी ने लिखा है-
सैर कर दुनिया की गाफिल जिन्दगानी फिर कहां, जिंदगी
गर कुछ रही भी तो नौजवानी फिर कहां।
लालबाग, बेंगलुरु। |
एक और दार्शनिक ने लिखा है- वांडरिंग वन गेदर्स हनी ( जो घूमते हैं उन्ही को शहद
प्राप्त होता है)
भ्रमणशील
व्यक्ति को कूपमंडूपता से निजात मिलती है जिससे उसका व्यक्तित्व निखरता है। वह लोगों
के बीच बेहतर ढंग से व्यक्त होता है। अलग अलग क्षेत्र के लोगों से विचारों के आदान
प्रदान से व्यक्तित्व का विकास होता है। इतिहास में हम देखते हैं कि जब यातायात के
साधन इतने विकसित नहीं थे तब भी लोग अंतहीन यात्राएं किया करते थे। कई यात्री तो
लौटकर अपने घर नहीं आ पाते थे। आजकल तो संचार के साधन अत्यंत विकसित हो गए हैं। आप
अपना मोबाइल साथ रखकर दुनिया भर में घूम सकते हैं। अपने ईमेल बाक्स से कहीं भी
रहें लोगों के संपर्क में रह सकते हैं। जीवन का नाम ही तो चलना और हमेशा कुछ नया
ढूंढना हैं। कई लोग अंतहीन गगन में हमेशा रास्ता नापते रहते हैं।
जहां चलते-चलते कदम रुक जाएं समझ लो सितारों की मंजिल वहीं हैं।
दुनिया
में जितने भी बड़े महापुरूष हुए हैं उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा भ्रमण को
समर्पित किया। पुराने जमाने में गौतम बुद्ध। हाल के इतिहास में देखें तो गुरू नानक
देव सरीखा दूसरा भ्रमणशील महापुरूष नहीं दिखता। वैसे भी विद्वानों का कोई देश नहीं
होता। वे जहां चले जाते हैं वहीं उनकी पूजा होने लगती है। स्वदेशे पूज्यते राजा
विद्वान सर्वत्र पूज्यते। अरे आप रुक क्यों गए हैं आप भी अपना सफर जारी रखिए।
वास्तव में कोई मंजिल नहीं होती। रास्ते भी हमेशा चलते रहते हैं। रास्ता ही मंजिल
है। जिसे आप मंजिल समझ कर रुक गए हैं, वास्तव में वह एक पड़ाव।
अगर चलते चलते थक गए हैं तो थोड़ा सुस्ता लिजिए फिर एक नए मंजिल के लिए निकल
पड़िए।
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