Saturday, 15 August 2015

नागालैंड में असली सिरदर्द है खापलांग गुट

भले ही केंद्र सरकार ने 3 अगस्त को एनएससीएन आईएम के साथ शांति वार्ता का ऐलान कर वाहवाही लूट ली हो पर, नगालैंड में एनएससीएन (खापलांग) गुट असली सिरदर्द बना हुआ है। यह बेहद खतरनाक संगठन है। इसके पास 2000 उग्रवादी हैं और यह म्यांमार से संचालित हो रहा है। इसके नेता खापलांग फिलहाल यांगून में हैं।

एनएससीएन (आईएम) के साथ भले ही शांति समझौता हो गया है पर खापलांग गुट से कोई वार्ता नहीं हो सकी है। खापलांग गुट की स्थापना 30 अप्रैल, 1988 को हुई थी। यह संगठन मूल नागा अलगाववादी संगठन एनएससीएन में दो नागा जातीय समूहों- कोंयाक और तांग्खुल- में विवाद का परिणाम था। कोंयाक तबके ने खोले कोंयाक और एसएस खापलांग के नेतृत्व में एनएससीएन (के) बनाया।

27 मार्च 2015 को एनएससीएन (खापलांग गुट) ने संघर्ष विराम से अलग होने के ऐलान किया।

04 जून को एनएससीएन (के) ने असम राइफल्स पर हमला किया जिसमें 18 जवान शहीद हो गए।

07 जून 2015 को फिर एनएससीएन (के) के उग्रवादियों से असम राइफल्स के शिविर पर गोलीबारी की।

छह दशक पुरानी है नगा समस्या
नगालैंड के उग्रवादी संगठनों के साथ शांति वार्ता करके सरकार ने छह दशकों पुरानी समस्या को खत्म करने की कोशिश की है। पर ये वक्त बताएगा कि शांति की पहल को राज्य में सक्रिय सभी उग्रवादी संगठन कितनी शिद्दत से स्वीकार करते हैं।

1946 में नगा नेशनल काउंसिल को पंडित नेहरु ने भरोसा दिया था कि वे भारत में शामिल हों उनकी स्वायतत्ता का सम्मान किया जाएगा।
1956 में नगा जनजाति ने पहली बार विद्रोह किया। लेकिन ये जनजातियां जल्द ही नरमपंथी और उग्रपंथी में दलों में विभाजित हो गईं।
1957 में यह केंद्र शासित क्षेत्र बना इसे नगा हिल्स तुएनसांग कहा गया। असम के राज्यपाल इसका शासन देखते थे।
1963 नगालैंड राज्य का गठन हुआ। यह भारत का 16वां राज्य था।
16 प्रमुख जनजातियां रहतीं हैं नागालैंड में जो अपनी पहचान बनाए रखना चाहती हैं।
1950 के दशक से ही नगालैंड का क्षेत्र उग्रवाद का शिकार रहा है।
1997 अगस्त से युद्धविराम का पालन कर रहा था एनएससीएन (आई-एम), केंद्र सरकार से वार्ता के होने के बाद

सक्रिय उग्रवादी संगठन - एनएससीएन (आईएम)

नगालैंड का सबसे बड़ा उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड  (आईएम) है। इसका गठन 1980 में हुआ। यह तांग्खुल तबके का प्रतिनिधित्व करता है इसके नेता आइजक चिसी स्वू और टी मुइवा हैं। ये दोनों नेता लंबे समय तक नीदरलैंड में रहकर राज्य में उग्रवादी गतिविधियों का संचालन करते रहे।

प्रमुख मांगें
2010 की वार्ता में टी मुइवा ने अपनी 30 सूत्री मांगों की सूची सौंपी थी।
ग्रेटर नगालैंड - एनएससीएन (आई-एम) और नागालैंड के कुछ अन्य संगठन उत्तरपूर्वी राज्यों के नागा इलाके के एकीकरण की मांग करते रहे हैं।  वे मणिपुर, असम और अरुणाचल के नागा-बहुल इलाकों को वर्तमान नागालैंड राज्य में मिलाकर ग्रेटर नागालिम के निर्माण की मांग करते रहे हैं। मणिपुर को इस मांग से खासतौर पर विरोध है क्योंकि उसका 60 फीसदी हिस्सा इसमें चला जाएगा।
टी मुईवा की प्रमुख मांगों में से एक है नगालैंड को संप्रभुत्ता और स्वायत्ता देने की। भारत सरकार संप्रभुत्ता पर विचार नहीं कर सकती।

असम से भी है सीमा विवाद – 1972 में नगालैंड और असम के बीच सीमा समझौता हुआ पर इसे नगा संगठन नहीं मानते।

वार्ता के प्रयास
2003 में नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम में एनएससीएन आईएम के नेताओं से भारत सरकार के प्रतिनिधिमंडल ने वार्ता की थी। इनके बाद ही नगा नेता इसाक चिसी स्वू और थ्येंगलांग मुईवा 36 साल बाद जनवरी 2003 में बातचीत के लिए सरकारी तौर पर दिल्ली आए। तीन दिनों तक आधिकारिक वार्ता में कुछ खास प्रगति नहीं हुई।

60 दौर से ज्यादा बातचीत हो चुकी है एनएससीएन-आईएम और भारत सरकार के प्रतिनिधिमंडल के बीच।
2005 में के बार टी मुईवा ने नगालैंड को स्वतंत्र संप्रभु देश बनाए जे की मांग एक इंटरव्यू में दुहराई।
2010 में मणिपुर सरकार द्वारा एनएससीएन (आइएम) के नेता मुइवा को अपने गांव जाने की इजाजत नहीं देने के कारण दो महीने तक नागा संगठनों ने राज्य की नाकेबंदी कर दी थी।

अवैध वसूली का नेटवर्क
नागलैंड में राज्य के संस्थानों की असफलता से उग्रवादी संगठनों ने अवैध वसूली का नेटवर्क तैयार कर लिया है। राज्य में बिना अंडरग्राउंड टैक्स के कारोबार नहीं किया जा सकता। स्थानीय लोगों के बीच हिंसा का सहारा लेकर उग्रवादी संगठनों ने अपनी पैठ मजबूत कर ली है।

- vidyutp@gmail.com
( NAGALAND, NSCN IM ) 


Friday, 14 August 2015

प्रिंट मीडिया में महिलाओं की भागीदारी पर सार्थक चर्चा

खालसा कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय सेमिनार

भारतीय जन संचार संघ और दौलतराम कालेज दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कालेज सभागार में 12 अगस्त को कराया गया। इस सेमिनार में देश के अलग अलग राज्यों से 40 से ज्यादा विद्वानों, जन संचार के शिक्षकों और पत्रकारों ने अपने विचार रखे।
कार्यक्रम के उदघाटन सत्र में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो.बीके कुठियाला, लोकसभा के महासचिव पीडी अचारी, आकाशवाणी के पूर्व समाचार वाचक कृष्ण कुमार भार्गव, महामंडलेश्वर संत स्वामी मार्तंड पुरी, प्रो. कुमद शर्मा, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. हरिमोहन शर्मा, हंसराज महाविद्यालय की प्रिंसिपल डा. रमा शर्मा, दौलतराम कालेज की प्रिंसिपल सविता राय वरिष्ठ महिला पत्रकार अपर्णा द्विवेदी ने अपने विचार रखे। 

भारतीय जन संचार संघ के निदेशक प्रो. रामजीलाल जांगिड ने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि ईश्वर ने महिलाएं अपनी भूमिका को लेकर रामायण काल से ही सवाल उठाती रही हैं। लक्ष्मण जब सीता को वन में छोड़ने जा रहे थे तब सीता ने भी राम से कई सवाल किए थे। आज मुद्रित माध्यम में महिलाओं की भागीदारी पर सवाल उठना भी लाजिमी है।

प्रो. बीके कुठियाला ने कहा कि विज्ञान कहता है कि महिलाओं में संकटकाल में संघर्ष करने की क्षमता महिलाओं में पुरुषों से ज्यादा है। यानी महिलाओं को प्रकृति ने ही पुरुषों से बेहतर बनाया है। आज मीडिया में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। इलेक्ट्रानिक मीडिया में जहां 40 फीसदी महिलाएं काम कर रही हैं वहीं प्रिंट मीडिया में 22 फीसदी महिलाएं काम कर रही हैं।

 वहीं स्वामी मार्तंड पुरी ने कहा कि महिलाएं पुरुषों से हर मामले में श्रेष्ठ हैं। उन्होंने प्रसंगवश जिक्र किया कि मैंने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका लगा रखी है जिसमें हर दस्वावेज में माता का नाम अनिवार्य रूप से लिखे जाने की मांग की गई है। स्वामी मार्तंड पुरी ने कहा कि मां होने जहां सत्य है वहीं पिता का होना एक विश्वास है।
सेमिनार में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, मुंबई, उत्तर प्रदेश समेत देश के अलग अलग हिस्सों से 40 से अधिक लोगों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।

भारतीय जन संचार संघ और दौलत राम कालेज का आयोजन

सेमिनार में प्रो. शिल्पी झा ने महिलाओं के नाम टीवी और अखबारों में होने वाली पत्रकारिता के संदर्भ में कहा कि महिलाओं के मुद्दे पर सनसनी फैलाने वाले या फिर उनके प्रति सहानुभूति जताने वाली पत्रकारिता नहीं होनी चाहिए। बल्कि पत्रकारिता को हमेशा सच के साथ रहना चाहिए।अगर महिला भी अपराधी है तो हमें वहीं चेहरा दिखाना चाहिए। इसी क्रम में निभा सिन्हा ने महिला पत्रिकाओं के संदर्भ सामग्री का पाठकों की नजरों से तुलनात्मक विश्लेषण पेश किया। 


विद्युत प्रकाश मौर्य ने अपने शोध पत्र में मुद्रित माध्यम में महिला पत्रकारों की समाचार पत्रों में उच्च पदों पर कम भागीदारी होने पर चिंता जताई। उनके मुताबिक मुद्रित माध्यम में बड़े पदों पर महिलाओं को मौके कम मिलते हैं। जहां मौका मिला है महिलाओं ने बेहतर काम करके अपनी उच्च दक्षता का परिचय दिया है। 

कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए प्रो. प्रदीप माथुर ने मीडिया में भाषा के गिरते स्तर पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि हमें महिला उत्पीडन और बलात्कार जैसे मामलों की खबरों में संवदेनशील होना चाहिए।सेमिनार के दौरान पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के गुरमीत सिंह, गुरनानक देव यूनीवर्सिटी अमृतसर की नवजोत ढिल्लन ने अपने शोध पत्रों में ज्वलंत मुद्दों को उठाया।

सेमिनार की संयोजक डा. साक्षी चावला थीं, जबकि डा. सीमा रानी, डा. वंदना त्रिपाठी, श्रीमती गीतांजलि कुमार ने आयोजन में सक्रिय भागीदारी निभाई। भारतीय जन संचार संघ के अध्यक्ष डा.रामजीलाल जांगिड ने बताया कि सेमिनार में प्रस्तुत सभी शोध पत्रों को पुस्तक रुप में प्रकाशित किया जाएगा।

- रिपोर्ट – माधवी रंजना