उत्तराखंड में बद्रीनाथ, गंगोत्री तक रेल मार्ग बनाने की योजना निहायत
बेवकूफी भरी है। 327 किलोमीटर के इस रेल परियोजना पर 40
हजार करोड़ खर्च होंगे। सर्वे में 21 नए
स्टेशन, 61 सुरंगे और 59 पुल
बनाने की सिफारिश की गई है।
हकीकत यह है कि अभी उत्तराखंड के चार धाम के लिए ऑल वेदर रोड भी
नहीं है। लैंड स्लाइडिंग के कारण कभी भी सड़क मार्ग तक बंद हो जाता है। ऐसे
क्षेत्र में रेल लाइन बनाना अक्लमंदी नहीं होगी। 40 हजार
करोड के खर्च के बाद इस मार्ग पर कितने लोग सफर करेंगे। वहां रेल पहुंचना पहाड़ों की प्राकृतिक संपदा के साथ भारी छेड़छाड़ को बढ़ावा देगा। साथ
ही हिमालय के पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंचाएगा।
अगर हम पहाड़ों पर रेल की बात करें तो ब्रिटिश काल में कालका शिमला नैरो गेज और पठानकोट-जोगिंदरनगर नैरोगेज और सिलिगुड़ी दार्जिलिंग जैसी रेलवे लाइनें बिछाई गईं। ये सभी लाइनें नैरोगेज थीं। इनके लिए ज्यादा जमीन की जरूरत नहीं है। नैरोगेज रेल से पहाड़ों के पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता। नैरोगेज रेल तीखे मोड़ पर मुड़ भी जाती है। सौ साल से ज्यादा समय से सफलतापूर्वक दौड़ रहीं कालका शिमला और दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे विश्व विरासत का हिस्सा भी हैं। पर खेद की बात है कि आजादी के बाद किसी भी पहाड़ को नैरोगेज रेल से नहीं जोड़ा गया।
हिमालय की उत्तराखंड की पर्वतमाला की चट्टाने कोमल हैं। यहां अक्सर लैंडस्लाइडिंग का खतरा रहता है। वहीं भूकंप के लिहाज से भी संवेदनशील है। ऐसे क्षेत्र में ब्राडगेज रेलवे का निर्माण एक खतरनाक कदम होगा। हिमालय के पारिस्थिक तंत्र से भारी छेड़छाड़ होगा। सरकार को ये मूर्खतापूर्ण परियोजना जितनी जल्दी हो बंद कर देनी चाहिए। इसकी जगह चाहे तो नैरो गेज रेलवे के संचालन के बारे में विचार किया जा सकता है। हालांकि साल के छह महीने की कनेक्टिविटी के लिए उसकी भी जरूरत नहीं है। इसकी जगह रेलवे को मैदानी इलाके में विस्तार पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है। खासकर उन जिला मुख्यालय और लाखों की आबादी वाले शहरों को तक रेल पहुंचाने की जरूरत हैं जहां अभी तक रेल की सिटी नहीं बजी है।
शंकराचार्य भी पक्ष में नहीं -
शंकराचार्य वासुदेवानन्द सरस्वती ने कहा कि चार धामों को रेल लाइन से जोड़ा जाना
ठीक नहीं है। कहा कि प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद जब श्रीनगर गढ़वाल आए थे
तो लोगों ने उनसे बदरीनाथ तक रेल लाइन की मांग की थी, लेकिन राजेन्द्र प्रसाद ने इसे धार्मिक मान्यता
एवं परंपरा के विपरीत बताते हुए अस्वीकार किया था। कहा कि सरकार को प्रदेश की
आर्थिकी बढ़ाने के लिए पर्यटन स्थलों का विकास करना होगा। लेकिन धार्मिक एवं तीर्थ
स्थलों को पर्यटन स्थल की तरह विकसित करना धर्म संगत नहीं है।
रेल लाइन बिछने से जहां पहाड़ कमजोर होंगे वहीं भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदा का भी भय रहेगा। रेल लाइन बिछाने के लिए कई सुरंगें बनानी होंगी जिससे पहाड़ खोखले होंगे। कहा कि रेल लाइन से बेहतर है कि सरकार चारों धामों तक फोर लेन सड़क विकसित करें।
- vidyutp@gmail.com
1 comment:
आपकी बातों से पूर्णतः सहमत हूँ। वैसे भी देहरादून से देवप्रयाग जाने की रोड का हाल ही इतना बुरा होता है बारिश के समय। कई बार पत्थर गिर जाते हैं। ऐसे में रेलवे लाइन बिछाने का ख्याल ही गलत है।
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