भारतीय राजनीति में जॉर्ज फर्नाडिस की छवि एक अनथक विद्रोही की रही। अपने
राजनीतिक जीवन में उन्होंने आरपार की कई लंबी लड़ाइयां लड़ीं। कर्नाटक के तटीय
इलाके के खूबसूरत शहर मंगलुरू में जन्मे जॉर्ज की शुरुआती पहचान एक मजदूर नेता के
तौर पर बनी। राजनीति के आसमान में उनका उदय धूमकेतू की तरह हुआ। कुल नौ बार लोकसभा
का चुनाव जीता। केंद्र सरकार में कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली।
उन्होंने रेल,
उद्योग, संचार और रक्षा मंत्री के
रूप में काम किया। जॉर्ज अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में अकेले ईसाई मंत्री थे। उनके
रक्षा मंत्री रहते हुए भारत ने पोखरण में परमाणु बम का परीक्षण किया।
जन्म - 3 जून 1930, मेंगलुरु (कर्नाटक ) -
नहीं बन सके पादरी
जॉर्ज की मां किंग जॉर्ज पंचम की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं, जिनका जन्म भी 3 जून को हुआ था। इस कारण उन्होंने इनका नाम
जॉर्ज रखा। वे अपने 6 भाइयों में सबसे बड़े थे। जॉर्ज ने मेंगलुरु के सेंट
अल्योंसिस कॉलेज से बारहवीं कक्षा पूरी की। उन्हें 16 साल की उम्र में कैथलिक
पादरी बनने के लिए बंगलुरु की सेमिनरी में भेजा गया। यहां वो दो साल तक रहे, पर यहां उन्होंने भेदभाव देखा और मुल्क आजाद होने वाले साल
में ही वे भी इस धार्मिक संस्थान से भागकर माया नगरी मुंबई पहुंचे।
काम की तलाश में मुंबई और समाजवादी आंदोलन
जॉर्ज 1949 की ठंड में काम की तलाश में मुंबई पहुंचे। रात को चौपाटी के किनारे किसी बेंच पर सो जाते। कई बार पुलिस वाले भगा देते थे। इसी दौरान 19 साल के उनको एक अखबार में प्रूफ रीडर का काम मिला। बॉम्बे में रहने के दौरान ही वे समाजवादी मजदूर आंदोलन और राम मनोहर लोहिया के संपर्क में आए। साठ के दशक के अंत तक उन्हें बॉम्बे की टैक्सी यूनियन के सबसे बड़े नेता के रूप में पहचान मिल गई थी। वे 1961 चुनाव जीतकर बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के सदस्य बन गए।
पहली बार संसद में - 'जॉर्ज
द जायंट किलर'
साल 1967 के लोकसभा चुनाव
में जॉर्ज को संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की ओर से मुंबई दक्षिण की सीट से टिकट मिला।
उनका मुकाबला कद्दावर नेता कांग्रेस के सडशिव कानोजी पाटिल से था। जॉर्ज ने उस
चुनाव में पाटिल को बड़े अंतर से हरा दिया जिसके कारण उनका नाम 'जॉर्ज
द जायंट किलर' रख दिया गया। पर पाटिल को यह हार
बर्दाश्त नहीं हुई और उन्होंने राजनीति ही छोड़ दी।
ट्रेड यूनियन लीडर जॉर्ज और 1974 की रेल हड़ताल
आजादी के बाद तीन वेतन
आयोग आ चुके थे, लेकिन रेल कर्मचारियों के वेतन में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं हुई थी। जॉर्ज
नवंबर 1973 को ऑल इंडिया रेलवे मैन्स फेडरेशन के अध्यक्ष बने। यह तय किया गया कि
वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल की जाए। इसके लिए नेशनल कोऑर्डिनेशन कमिटी बनी।
8 मई 1974 को बॉम्बे में हड़ताल शुरू हुई। ये जॉर्ज का कमाल था कि टैक्सी ड्राइवर, इलेक्ट्रिसिटी यूनियन और ट्रांसपोर्ट यूनियन भी इसमें शामिल हो गईं।
मद्रास की कोच फैक्ट्री के दस हजार मजदूर सड़क पर आ गए। गया में रेल कर्मचारियों ने
अपने परिवारों के साथ पटरियों पर कब्जा कर लिया। एक बार के लिए पूरा देश रुक गया।
इमरजेंसी में फरारी के दिन
25 जून 1975 को 45 साल के
जॉर्ज ओडिशा के गोपालपुर में पत्नी लैला के संग छुट्टियां मना रहे थे तभी देश में
इमरजेंसी लगने का एलान हुआ। जॉर्ज ने मछुआरे की तरह एक लुंगी लपेटी और फरार हो गए।
वे लगातार फरार रहे और तमाम जांच एजंसियां उन्हें लंबे समय तक नहीं ढूंढ पाईं।
जॉर्ज ने दाढ़ी और बाल बढ़ा लिए थे। वे यात्रा के दौरान सिख का वेश बना लेते थे।
लोगों को अपना नाम खुशवंत सिंह बताते थे। कभी जोगी के वेश में नजर आते। इस दौरान
बंगलुरु में एक होटल में वे चाय पी रहे थे, छापा पड़ा वे आराम से
आगे निकल गए कोई पहचान नहीं सका।
बड़ौदा डायनामाइट केस और जार्ज
जॉर्ज मानते थे कि
अहिंसात्मक तरीके से किया जाना वाला सत्याग्रह ही न्याय के लिए लड़ने काफी नहीं
है। आपातकाल के दौरान उन्होंने डायनामाइट लगाकर विध्वंस करने का फैसला किया। इसके
लिए ज्यादातर डायनामाइट गुजरात के बड़ौदा से आया। जॉर्ज के निशाने पर खाली सरकारी
भवन, पुल, रेलवे लाइन और इंदिरा गांधी की सभाओं के
नजदीक की जगहें थीं। पर जॉर्ज और उनके कुछ साथियों को जून 1976 में गिरफ्तार कर
लिया गया। इसके बाद उन सहित 25 लोगों के खिलाफ सीबीआई ने मामला दर्ज किया जिसे
बड़ौदा डायनामाइट केस के नाम से जाना जाता है। हालांकि उनके कुछ सहयोगी मानते थे
यह सब कुछ सिर्फ पब्लिसिटी के लिए था।
हथकड़ी में वो मशहूर
तस्वीर
जॉर्ज फर्नांडिस की सबसे
मशहूर तस्वीर आपातकाल के दौरान की है। इस तस्वीर में जॉर्ज हथकड़ी में बंद अपने
हाथों को उठाए हुए दिखाई देते हैं। यह तस्वीर आज भी आपत्काल के खिलाफ खड़े हुए प्रतिरोध
का प्रतीक चिन्ह के तौर पर याद की जाती है। तस्वीर तब की है जब जॉर्ज को बड़ौदा
डायनामाइट केस की पेशी के दौरान दिल्ली में तीस हजारी कोर्ट में पेश किया गया।
बिहार ने सिर आंखों पर
बिठाया
कन्नड़ मूल के जॉर्ज को
बिहार ने सिर आंखों पर बिठाया। 1977 में जब आपतकाल हटा तो जॉर्ज बिहार के उत्तर
बिहार के मुजफ्फरपुर सीट से लोकसभा का चुनाव लड़े। बड़ौदा डायनामाइट केस में बतौर
आरोपी वे उस समय जेल में थे। उन्हें चुनाव प्रचार के लिए जमानत नहीं मिली। पर जेल
में रहते हुए बंपर मतों से जीत दर्ज की। तब जॉर्ज तीन लाख से ज्यादा वोटों से
चुनाव जीते थे। जनता पार्टी सत्ता में आई तो बड़ौदा डायनामाइट केस को खत्म कर दिया
गया। इस सरकार में जॉर्ज उद्योग मंत्री बनाए गए।
कोंकण रेल प्रोजेक्ट और
जॉर्ज
साल 1989 मे विश्वनाथ
प्रताप सिंह की सरकार में जॉर्ज रेल मंत्री बने। इसी दौरान उन्होंने मंगलुरु और
मुंबई को जोड़ने के लिए कोंकण रेलवे प्रोजेक्ट का काम शुरू कराया। यह प्रोजेक्ट
आजाद भारत में रेलवे के विकास में सबसे बड़ी और अनूठी परियोजना थी। जॉर्ज की
लोकप्रियता का आलम ये है कि कोंकण रेल के उडुपी रेलवे स्टेशन के बाहर उनके नाम पर
एक सड़क का नामकरण उनके जीवन काल में ही हो गया।
रक्षा मंत्री- सियाचिन का
18 बार दौरा
रक्षामंत्री के रूप में
जॉर्ज का कार्यकाल खासा विवादित रहा। उनके कार्यकाल में ताबूत घोटाला हुआ और तहलका
खुलासा में नाम आने पर उन्हें इस्तीफा भी देना पड़ा। उनके कार्यकाल के दौरान
परिस्थितियां इतनी खराब हो चली थीं कि मिग-29 विमानों को ‘फ्लाइंग
कॉफिन’ कहा जाने लगा था। वहीं दूसरा तथ्य यह भी है
जॉर्ज भारत के एकमात्र रक्षामंत्री रहे, जिन्होंने 6,600 मीटर ऊंचे सियाचिन ग्लेशियर का अपने कार्यकाल में 18 बार दौरा किया
था।
सबके लिए खुले दरवाजे
जॉर्ज मुलाकात के लिहाज से
सबके लिए सुलभ राजतनेताओं में से थे। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में जॉर्ज
फर्नांडिस जब रक्षा मंत्री थे, तो उनका आवास तीन कृष्णा मेनन मार्ग
हुआ करता था। उस समय उन्होंने अपने आवास का एक फाटक हमेशा के लिए हटवा दिया था।
कोई उनसे मिलने आए और दरवाजे पर ही रोक दिया जाए, ये
उन्हें पसंद नहीं था।
लैला कबीर से प्रेम और
शादी
1971 में कोलकाता से
दिल्ली जाने वाली फ्लाइट का इंतजार करते हुए जॉर्ज फर्नाडिस की मुलाकात लैला कबीर
से हुई। वे रेडक्रॉस में अधिकारी थीं। विमान यात्रा के दौरान दोनों की दोस्ती हुई।
22 जुलाई, 1971 को जार्ज ने
लैला शादी कर ली। लैला जाने-माने शिक्षाविद हुमायूं कबीर की बेटी थीं।
जया जेटली से नजदिकियां
जनता पार्टी सरकार में
जॉर्ज जिस महकमे के मंत्री थे, उसमें नौकरशाह अशोक जेटली उनके सचिव
थे। इसी दौरान अशोक की पत्नी जया से जॉर्ज की नजदीकियां बढ़ने लगीं। जया और अशोक
कॉलेज में साथ पढ़े थे। जया के पिता जापान में भारत के पहले राजदूत थे। लैला अस्सी
के दशक में जॉर्ज की जिंदगी से निकल गईं। हालांकि कोई औपचारिक तलाक नहीं हुआ। इस
खाली जगह को जया ने भरा। वे 2009 तक जॉर्ज के साथ रहीं।
बुढ़ापा और बीमारी – लैला की वापसी
साल 2009 के आसपास 80 साल
के जॉर्ज की सेहत काफी खराब रहने लगी। उनका सार्वजनिक जीवन खत्म सा हो गया। उन्हें
पार्किसंस जैसी बीमारी होने की खबरें आने लगी थीं। इसका उनकी याददाश्त पर असर पड़ा
था। वर्ष 2010 में लैला एक बार फिर अपने बेटे सुशांतो के साथ कृष्णा मेनन मार्ग
स्थित जॉर्ज के सरकारी निवास पर पहुंची। आनन फानन में सबकुछ बदल गया। अब जया जेटली
इस घर में प्रवेश बंद हो गया। 2009 के बाद से लैला लगातार जॉर्ज की तीमारदारी में
जुटी रहीं। हालांकि जॉर्ज की सेहत में सुधार होने की खबरें नहीं आईं।
दस भाषाओं के जानकार -
भाषण कला के माहिर
जॉर्ज 10 भाषाओं के जानकार
थे। वे कन्नड़, मराठी, हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, उर्दू, मलयाली, तुलु, कोंकणी और लैटिन बोल लेते थे। चुनावी
सभाओं में वे हिंदी, मराठी, कन्नड़
या अंग्रेजी में तो धाराप्रवाह बोलते हुए सुने जाते थे। बिना किसी ठहराव के घंटों
भाषण देने की क्षमता रखते थे। अपने भाषणों में सही तथ्य पेश करने के लिए भी वे
जाने जाते थे।
- कथन -
‘अगर कोई
बागी नहीं होता तो देश को आजादी नहीं मिली होती। जॉर्ज जैसे बागी नेताओं को आते
रहना चाहिए ताकि देश प्रगति और विकास कर सके।’
जीवन यात्रा ( 1930- 2019 )
1949 में नौकरी की तलाश
में बॉम्बे आए और सामाजिक व्यापार संघ में शामिल हो गए।
1950 और 1960 के दशक में
बॉम्बे में कई हड़तालों का नेतृत्व किया।
1967 में जॉर्ज ने मुंबई
लोकसभा सीट के चुनाव में कांग्रेसी दिग्गज एसके पाटिल को हराया।
1971 में लैला कबीर से
विवाह किया।
1974 में सबसे बड़ी रेलवे
हड़ताल के मुख्य नेता।
1980 में मुजफ्फरपुर से
फिर लोकसभा का चुनाव जीता
1984 में जॉर्ज और लीला
कबीर एक दूसरे से अलग हो गए और जया जेटली उनकी साथी बन गईं।
1989 में जनता दल में
शामिल हुए और मुजफ्फरपुर से फिर लोकसभा चुनाव जीता।
1994 में
समता पार्टी की स्थापना की।
1998 में भाजपा की अगुवाई
में बने कई दलों के गठबंधन एनडीए के संयोजक बने जॉर्ज।
2001 में रक्षा घोटाला
सामने आने पर जॉर्ज ने रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।
2009 में आखिरी बार
राज्यसभा के सदस्य चुने गए।
2010 में वे बाबा रामदेव
के पतंजलि आश्रम हरिद्वार में उपचार के लिए गए, पर खास लाभ नहीं हुआ।
2019 – 29 जनवरी की सुबह
दिल्ली में निधन।