ओडिशा के रसगुल्ला को सोमवार को जीआई (जियोग्राफिकल
इंडीकेशन अर्थात भौगोलिक सांकेतिक) टैग की मान्यता मिल
गई है। भारत सरकार के जीआई रेजिस्ट्रेशन की तरफ से यह मान्यता दी गई है। जीआई
मान्यता को लेकर चेन्नई जीआई रजिस्ट्रार की तरफ
से विज्ञप्ति जारी कर यह जानकारी दी गई है।
स्वाद और रंगरूप के आधार पर जीआई प्रमाणन ने‘ओडिशा
रसगुल्ला’ को वैश्विक पहचान प्रदान की है। एजेंसी ने
अपनी वेबसाइट पर इसकी जानकारी पोस्ट की है। अपने रसगल्ले को वैश्विक पहचान मिलने
से ओडिशा के लोगों में खुशी की लहर है। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने प्रमाण पत्र की
प्रति ट्विटर पर जारी किया है।
पश्चिम बंगाल के साथ थी लड़ाई
जीआई मान्यता के लिए 2018 में ओडिशा सरकार की तरफ से आवेदन
किया गया था। तथ्य एवं प्रमाण के आधार पर अब ‘ओडिशा रसगुल्ला’ को भी जीआई टैग मिल गया है।
ओडिशा दर्ज कराई थी आपत्ति
दो साल पहले 2017 में बंगाल के रसगुल्ला को जीआई टैग
मिल भी गया था। इसके बाद 2018 फरवरी महीने में
ओडिशा सूक्ष्म उद्योग निगम की तरफ से चेन्नई के जीआई कार्यालय में विभिन्न प्रमाण
के साथ अपने रसगुल्ले का प्रमाणनन के लिए दावा किया था।
पंद्रहवीं सदी के उड़िया ग्रंथ में रसगुल्ला
बंगाल के लोगों का तर्क है कि रसगुल्ले का आविष्कार1845 में नबीन चंद्रदास ने किया था। वे कोलकाता के बागबाजार में हलवाई की दुकान
चलाते थे। उनकी दुकान आज भी केसी दास के नाम से संचालित है।
पर ओडिशा का तर्क है उनके राज्य में 12वीं सदी से रसगुल्ला बनता
आ रहा है। उड़िया संस्कृति के विद्वान असित मोहंती ने शोध में साबित किया कि 15वीं सदी में बलरामदास रचित उड़िया ग्रंथ दांडी रामायण में रसगुल्ला की
चर्चा है। वे तुलसी कृत मानस से पहले उड़िया में रामायण लिख चुके थे।
ओडिशा और बंगाली रसगुल्ला में अंतर
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पटनायक ने जताई खुशी
मुझे यह साझा करते हुए खुशी हो रही है कि ओडिशा रसगुल्ला ने जीआई
प्रमाणन प्राप्त कर लिया है। छेने से बना हुआ इस सुस्वादु मिष्टान को दुनिया भर के
उड़िया लोगों द्वारा पसंद किया जाता है। यह भगवान जगन्नाथ को भोग के तौर पर अर्पित
किया जाता है।
- नवीन
पटनायक, मुख्यमंत्री, ओडिशा ( ट्विटर पर )