Tuesday, 30 July 2019

ओडिशा के रसगुल्ला को भी मिला जीआई का तमगा


ओडिशा के रसगुल्ला को सोमवार को जीआई (जियोग्राफिकल इंडीकेशन अर्थात भौगोलिक सांकेतिकटैग की मान्यता मिल गई है। भारत सरकार के जीआई रेजिस्ट्रेशन की तरफ से यह मान्यता दी गई है। जीआई मान्यता को लेकर चेन्नई जीआई  रजिस्ट्रार की तरफ से विज्ञप्ति जारी कर यह जानकारी दी गई है।
स्वाद और रंगरूप के आधार पर जीआई प्रमाणन नेओडिशा रसगुल्ला’ को वैश्विक पहचान प्रदान की है। एजेंसी ने अपनी वेबसाइट पर इसकी जानकारी पोस्ट की है। अपने रसगल्ले को वैश्विक पहचान मिलने से ओडिशा के लोगों में खुशी की लहर है। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने प्रमाण पत्र की प्रति ट्विटर पर जारी किया है।

पश्चिम बंगाल के साथ थी लड़ाई
जीआई मान्यता के लिए 2018 में ओडिशा सरकार की तरफ से आवेदन किया गया था। तथ्य एवं प्रमाण के आधार पर  अब ‘ओडिशा रसगुल्ला’ को भी जीआई टैग मिल गया है।
ओडिशा दर्ज कराई थी आपत्ति
दो साल पहले 2017 में बंगाल के रसगुल्ला को जीआई टैग मिल भी गया था। इसके बाद 2018 फरवरी महीने में ओडिशा सूक्ष्म उद्योग निगम की तरफ से चेन्नई के जीआई कार्यालय में विभिन्न प्रमाण के साथ अपने रसगुल्ले का प्रमाणनन के लिए दावा किया था।


पंद्रहवीं सदी के उड़िया ग्रंथ में रसगुल्ला
बंगाल के लोगों का तर्क है कि रसगुल्ले का आविष्कार1845 में नबीन चंद्रदास ने किया था। वे कोलकाता के बागबाजार में हलवाई की दुकान चलाते थे। उनकी दुकान आज भी केसी दास के नाम से संचालित है।
पर ओडिशा का तर्क है उनके राज्य में 12वीं सदी से रसगुल्ला बनता आ रहा है। उड़िया संस्कृति के विद्वान असित मोहंती ने शोध में साबित किया कि 15वीं सदी में बलरामदास रचित उड़िया ग्रंथ दांडी रामायण में रसगुल्ला की चर्चा है। वे तुलसी कृत मानस से पहले उड़िया में रामायण लिख चुके थे।


ओडिशा और बंगाली रसगुल्ला में अंतर
बंगाली रसगुल्ला बिल्कुल सफेद रंग और स्पंजी होता है,जबकि ओडिशा रसगुल्ला हल्के भूरे रंग का और बंगाली रसगुल्ला की तुलना में मुलायम होता है। यह मुंह में जाकर आसानी से घुल जाता है। ओडिशा रसगुल्ला के बारे में दावा है कि यह 12वीं सदी से भी भगवान जगन्नाथ को भोग चढ़ाया जा रहा है। इसे खीर मोहन और ‘पहाला रसगुल्लाभी करते हैं।

पटनायक ने जताई खुशी 
मुझे यह साझा करते हुए खुशी हो रही है कि ओडिशा रसगुल्ला ने जीआई प्रमाणन प्राप्त कर लिया है। छेने से बना हुआ इस सुस्वादु मिष्टान को दुनिया भर के उड़िया लोगों द्वारा पसंद किया जाता है। यह भगवान जगन्नाथ को भोग के तौर पर अर्पित किया जाता है।
नवीन पटनायकमुख्यमंत्रीओडिशा ( ट्विटर पर ) 


Saturday, 27 July 2019

देश के सबसे बुजुर्ग अरबपति थे संप्रदा सिंह


 साल 2017 में संप्रदा सिंह के नाम ने देश भर के लोगों को अचानक चौंकाया जब उनका नाम देश के सबसे बुजुर्ग अरबपति के तौर पर खबरों में आया।
नब्बे साल से ज्यादा की उम्र में संप्रदा सिंह 2018 में सौ अमीर भारतीयों की फोर्ब्स-2018 की सूची में 46वें स्थान पर थे। उनकी कुल संपत्ति 179 अरब रुपये आंकी गई थी। संप्रदा 2017 की फोर्ब्स की सूची में 43वें स्थान पर थे। वे 2018 में फोर्ब्स की द वर्ल्ड बिलियनेयर्स लिस्ट में 1,867वें पायदान पर थे।

सादगी भरा जीवन
चार दशक में अपनी दवा कंपनी को शीर्ष पर ले जाकर अंतरराष्ट्रीय जगत में ख्याति प्राप्त करने वाले संप्रदा सिंह मुंबई में सादगी भरा जीवन जीते थे। उन्होंने कभी अपने वैभव का प्रदर्शन नहीं किया। वे कभी राजनीति के गलियारे में भी सक्रिय नहीं देख गए।  

बिहार के जहानाबाद में जन्म
1925 में बिहार के जहानाबाद में मोदनगंज प्रखंड के ओकरी गांव के एक किसान परिवार में संप्रदा सिंह का जन्म हुआ। उन्‍होंने पटना यूनिवर्सिटी से बीकॉम की पढ़ाई की थी।

दवा कंपनी की स्थापना
1973 में 8 अगस्‍त को उन्होंने अल्‍केम लेबोरेटरीज लिमिटेड की स्थापना की, जो देश की पांचवीं सबसे बड़ी दवा कंपनी है। संप्रदा बिहार से महज एक लाख रुपये पूंजी लेकर मुंबई गए थे और दवा कंपनी शुरू की। उनकी कंपनी इस वक्त भारत समेत यूरोप, एशिया और अमेरिका में संचालित होती है। ल्केम फार्मास्युटिकल्स को फार्मा लीडर अवार्ड मिल चुका है। 2009 में फार्मा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम के लिए संप्रदा सिंह को सत्या ब्रह्मा की फार्मास्युटिकल लीडरशिप समिट द्वारा लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड दिया गया था।

पटना से शुरुआत

26 हजार करोड़ रुपये से ज्‍यादा की टर्नओवर वाली कंपनी खड़ी करने वाले संप्रदा सिंह कभी पटना के अशोक राजपथ पर केमिस्‍ट की दुकान में नौकरी किया करते थे।
केमिस्ट की दुकान की थी 
1953 में संप्रदा सिंह ने पटना में रिटेल केमिस्‍ट के तौर पर एक छोटी शुरुआत की। उसके बाद उन्होंने लक्ष्मी शर्मा के साथ पटना में दवा की दुकान शुरू की। इसी दौरान वे अस्पतालों में दवा की सप्लाई भी करने लगे। 1960 में पटना में मगध फार्मा के बैनर तले उन्होंने फार्मा डिस्‍ट्रीब्‍यूशन का कारोबार शुरू किया। सत्तर के दशक में उन्होंने मुंबई का रुख किया उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा।

 ( जन्म - 1925 ,  निधन - 27 जुलाई 2019 )