Thursday, 21 January 2021

नहीं रहे भाषा विज्ञानी डॉक्टर बद्रीनाथ कपूर

विनम्र कपूर ने सूचित किया है कि उनके दादा डॉक्टर बद्रीनाथ कपूर का 21 जनवरी 2021 को 89 साल की अवस्था में निधन हो गया है। वाराणसी में सन 1994-95 के दौर में हिंदी प्रचारक संस्थान में काम करते हुए मेरी डॉक्टर बद्रीनाथ कपूर से कई मुलाकातें थीं। उनके घर जाकर उनका साक्षात्कार करने का भी मौका मिला था।

डॉक्टर बद्रीनाथ कपूर जन्म 16 सितंबर 1932 को अकालगढ़, जिला - गुजरांवाला में (अब पाकिस्तान) में हुआ था। वे देश आजाद होने के बाद मुश्किल परिस्थियों में 14 साल का उम्र में अकेले गुजरांवाला से अमृतसर, दिल्ली होते हुए वाराणसी पहुंचे। माता पिता की हत्या हो चुकी थी। वाराणसी में मामा रामचंद्र वर्मा के सानिध्य में पढ़ाई शुरू की। वे हरिश्चंद्र कॉलेज के छात्र रहे।  उन्होंने एमए और पीएचडी तक शिक्षा प्राप्त की ।

डॉ. कपूर ने अपना सारा जीवन हिंदी भाषा, व्याकरण और कोश प्रणयन के क्षेत्र में लगा दिया। डॉक्टर कपूर 1956 से 1965 तक हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा प्रकाशित मानक हिंदी कोशपर सहायक सम्पादक के रूप में काम करते रहे। डॉ. कपूर ने आचार्य रामचंद्र वर्मा के तीन महत्त्वपूर्ण कोशों का संशोधन-परिवर्द्धन कर उनकी स्मृति और अवदान को अक्षुण्ण बनाए रखने का स्थायी महत्त्व का कार्य किया है। 

कोश कला के आचार्य रामचंद्र वर्मा के सुयोग्य शिष्य डॉक्टर बदरीनाथ कपूर हिंदी की शब्द सामर्थ्य को प्रकट और प्रतिष्‍ठापित करने के अनुष्‍ठान में बड़ा योगदान रहा। उनकी 32 से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हुईं। इनसे अधिकांश शब्दकोश,  तीन जीवनियां और पांच अनुवाद ग्रंथ हैं। 

बाद में जापान सरकार के आमंत्रण पर टोक्यो विश्वविद्यालय में 1983 से 1986 तक  अतिथि प्रोफेसर के रूप में सेवा प्रदान की। 

प्रकाशन : प्रभात बृहत् अंग्रेजी-हिंदी कोश, प्रभात व्यावहारिक अंग्रेजी-हिंदी कोश, प्रभात व्यावहारिक हिंदी-अंग्रेजी कोश, प्रभात विद्यार्थी हिंदी-अंग्रेजी कोश, प्रभात विद्यार्थी अंग्रेजी-हिंदी कोश, बेसिक हिंदी, हिंदी पर्यायों का भाषागत अध्ययन, वैज्ञानिक परिभाषा कोश, आजकल की हिंदी, अंग्रेजी-हिंदी पर्यायवाची कोश, शब्द-परिवार कोश, हिंदी अक्षरी, लोकभारती मुहावरा कोश, परिष्कृत हिंदी व्याकरण, सहज हिंदी व्याकरण, नूतन पर्यायवाची कोश, लिपि वर्तनी और भाषा, हिंदी व्याकरण की सरल पद्धति, आधुनिक हिंदी प्रयोग कोश, बृहत् अंग्रेजी-हिंदी कोश, व्यावहारिक अंग्रेजी-हिंदी कोश, मुहावरा तथा लोकोक्ति कोश, व्याकरण- मंजूषा, हिंदी प्रयोग कोश आदि।

सम्मान और अलंकरण : डॉक्टर कपूर की अनेक पुस्तकें उत्तर प्रदेश शासन द्वारा पुरस्कार मिला। 2019 में उन्हें उत्तर प्रदेश शासन ने हिंदी गौरव सम्मान मिला। इससे पूर्व उन्हें श्री अन्नपूर्णानन्द वर्मा अलंकरण’ 1997, ‘सौहार्द सम्मान’ 1997, ‘काशी रत्न’ 1998, ‘महामना मदनमोहन मालवीय सम्मान’ 1999 एवं विद्या भूषण सम्मान’ 2000  मिल चुके हैं।

Monday, 18 January 2021

मूरतें - माटी और सोने की...

 हिंदी साहित्य में संस्मरण एक विलुप्त होती विधा है। हरसाल बहुत कम किताबें इस विधा पर प्रकाशित होती हैं। पर संस्मरण ऐतिहासिक दस्तावेज होते हैं। ये न सिर्फ आपके ज्ञान में अभिवृद्धि करते हैं बल्कि तमाम महान हस्तियों से जुड़े प्रसंगों और ऐतिहासिक तथ्यों को कई बार रोचक अंदाज में पेश करते हैं।

अभी हाल में मुझे एक पुस्तक पढ़ने को मिली - मूरतें माटी और सोने की... पुस्तक के लेखक हिंदी के जाने माने आलोचक नंद किशोर नवल हैं। अपने जीवन का लंबा समय पटना में गुजारने वाले नवल जी का मूल ग्राम वैशाली जिले का चांदपुरा था। संयोग से मेरा भी बचपन वैशाली जिले में गुजरा है। पुस्तक का शुरुआती हिस्सा उनके गांव और बचपन के पात्रों से होकर गुजरता है जो किसी उपन्यास सदृश प्रतीत होता है। वे अपने बचपन के मित्र सिद्धिनाथ मिश्र को पुस्तक में बार बार याद करते हैं। उन्ही सिद्धिनाथ मिश्र से जिनसे मैं हाजीपुर की सड़कों पर बार बार मिलता था, पर तब मैं उनकी महानता और साहित्य में गहरी अभिरूचि के बारे में नहीं जानता था।

पुस्तक के आगे अध्याय में बाबा नागार्जुन, डॉक्टर रामविलास शर्मा, त्रिलोचन शास्त्री , प्रोफेसर नलिन विलोचन शर्मा और डॉक्टर नामवर सिंह के बारे में लेखक के संस्मरण हैं। ये सभी संस्मरण अनमोल हैं। इनमें ऐसी जानकारियां और लेखकों के व्यक्तित्व के ऐसे पहलुओं के बारे में लिखा गया है जो कोई बहुत करीबी ही जानता होगा। इन तमाम प्रसंगों को लेखक ने सुंदर शब्दों में पिरोया है। हर हिंदी के अध्येता के लिए ये ज्ञान बढ़ाने वाली पुस्तक है। बीच बीच में पुस्तक में कई और साहित्यिक पात्रों से भी आपका मिलना होता है।  लेखक और आलोचक नंद किशोर नवल का 13 मई 2020 को पटना में 83 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया। यह संभवतः उनकी अंतिम पुस्तक होगी। 

- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com 

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पुस्तक - मूरतें - माटी और सोने की 

लेखक - नंद किशोर नवल 

प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन , 2017, मूल्य - 495 रु. हार्ड बाउंड




Sunday, 10 January 2021

क्रूर कोरोना ने जिन्हें हमसे छीन लिया

साल 2020 मे क्रूर कोरोना ने कई आत्मीय जनों को हमसे छीन लिया है। हमलोग जब 2007 में दूसरी बार दिल्ली आए तो हमारे फेमिली चिकित्सक बने डॉक्टर एन के मल्लिक। डाक्टर साहब का क्लिनिक वैशाली सेक्टर तीन में महागुन मेट्रो मॉल के पीछे था। उनका होमियोपैथी में 40 से ज्यादा का अनुभव था। बहुत कम धनराशि में मिलने वाली उनकी दवाएं हमें मुफीद बैठती थीं। इसलिए वे आसपास के गरीबों में भी काफी लोकप्रिय थे। कोरोना काल में भी सावधानी बरतते हुए मरीज देखते रहे। पर सितंबर के अंत में अचानक उन्होंने लोगों से मिलना जुलना बंद कर दिया। उनके परिवार के लोग हमें उनके बारे में भ्रमित करते रहे। पर एक महीने बाद पता चला कि अक्तूबर महीने में नवरात्र के दौरान कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया। उनकी उम्र 71 वर्ष थी। वे काफी स्वस्थ भी दिखाई देते थे। अभी बीस साल और वे अपने मरीजों को चंगा कर सकते थे। पर उनका इस तरह जाना हमें काफी दुखी कर गया।

वह 30 दिसबंर की मनहूस रात थी जब पंजाब नेशनल बैंक में उच्चाधिकारी अनिल कुमार सिंह को भी पोस्ट कोरोना की परेशानियों ने हमसे हमेशा के लिए दूर कर दिया। अनिल जी मेरी श्रीमती जी माधवी के फूफा जी थे। वे ओरिंटयल बैंक ऑफ कामर्स में जालंधर के रेलवे रोड शाखा में कुछ साल तक मैनेजर भी रहे।

उनके जैसे निहायत सज्जन लोग बहुत कम मिलते हैं। अभी उम्र भी ज्यादा नहीं थी। बैंकिंग के क्षेत्र में खास तौर पर वे आईटी और नेटवर्किगं के विशेषज्ञ थे। लंबे समय तक ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में रहे। बाद में यह बैंक पीएनबी में समाहित हो गया। काम में लगन ऐसी थी कि 16 से 18 घंटे तक बैंको को अपनी सेवाएं देते रहते थे। 

उनका मूल घर बिहार के वैशाली जिले में महनार के पास एक गांव में था। दिल्ली में वे हमारे सबसे निकट के रिश्तेदार थे जिनके घर आना जाना लगा रहता था। ईश्वर संगीता बुआ को मजबूत बनाए और अनिल जी की यादों सहारे जीने की शक्ति दे।

और नवीन भाई भी चले गए - तीसरी मनहूस खबर हमें 16 दिसंबर की रात को सुनने को मिली। हैदराबाद साल 2007 मे मेरे मकान मालिक रहे एन रत्नाराव के बड़े बेटे नवीन को भी कोरोना से ठीक होने के बाद ईश्वर ने हमसे छीन लिया। साल 2012 में नवीन की शादी में हम सारे लोग गए थे। दरअसल रत्नाराव जी के परिवार से हमारा लगाव ऐसा बन गया कि उनके तीनों बेटों की शादी में हम दिल्ली से हैदराबाद गए। 


पहले मुन्ना (नवीन) की शादी में उसके बाद चिन्ना (बाल गंगाधर) की शादी में फिर मुन्ना ( वेंकट ) के विवाह में। बड़े बेटे के निधन से रत्नाराव चाचा जी के मनःस्थिति पर बड़ा गहरा असर पड़ा है। नवीन मेरी पत्नी माधवी के मुंह बोले भाई थे। वह हर साल उन्हे राखी भेजती थीं।

हमें मजबूत बनना होगा। दिल से दिमाग से और शरीर से तभी हम इस कोरोना से लड़ पाएंगे। कोरोना ने महान गांधीवादी एसएन सुब्बाराव को भी जकड़ लिया था, दो अक्तूबर को। पर वे 92 साल की उम्र में कोरोना को मात देकर विजयी हुए और अभी स्वस्थ हैं। आप भी अपने खानेपीने का ख्याल रखें और स्वस्थ रहें।

- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com