पानीपत को इतिहास में तीन बड़ी लड़ाइयों के लिए जाना जाता है। तब मैं दैनिक जागरण के लुधियाना संस्करण में कार्यरत था जब मुझे पानीपत में काम करने का मौका मिला। दिल्ली के पास और एक ऐतिहासिक स्थल इसलिए मैंने हां कर दी। यहां मेरे एक पुराने वकील दोस्त हैं जसबीर राठी। हमने एक साथ एमएमसी का पत्रचार पाठ्यक्रम किया था गुरू जांभेश्वर यूनिवर्सिटी, हिसार से। सो पानीपत आने पर मैं दस दिन अपने पुराने दोस्त जसबीर राठी के घर में ही रहा। पानीपत के ऐतिहासिक सलारजंग गेट पास है उनका घर।
हालांकि पानीपत शहर कहीं से खूबसूरत नहीं हैं। पर कई यादें पानीपत के साथ जुड़ी हैं। तीन ऐतिहासिक लड़ाईयों के अलावा भी पानीपत में कई ऐसी चीजें हैं जो शहर की पहचान है। यहां बू अली शाह कलंदर की दरगाह है जो हिंदुओं और मुसलमानों के लिए समान रूप से श्रद्धा का केंद्र है। मैं यहां हर हप्ते जाता था। दरगाह पर पर बैठ कर कव्वाली सुनते हुए मन को बड़ी शांति मिलती है। कलंदर शाह की दरगाह 700 साल पुरानी है। पर इसी दरगाह में पानीपत के एक और अजीम शायर भी सो रहे हैं। उनकी दरगाह के उपर उनका सबसे लोकप्रिय शेर लिखा है....
है यही इबादत और यही दीनों-इमां
कि काम आए दुनिया में इंसा के इंसा
हाली की एक और गजल का शेर
हक वफा का हम जो जताने लगे
आप कुछ कह के मुस्कुराने लगे।
क्या आपको याद है इस शायर का नाम.....इस शायर का नाम है- ख्वाजा अल्ताफ हसन हाली....( 1837-1914) हाली की शायरी से तो वे सभी लोग वाकिफ होंगे जो उर्दू शायरी में रूचि रखते हैं। पर क्या आपको पता है कि हाली ख्वाजा अहमद अब्बास के दादा थे.... शायर हाली मिर्जा गालिब के शिष्य थे और गालिब की परंपरा के आखिरी शायर। हाली ने गालिब की आत्मकथा भी लिखी है। हाली का ज्यादर वक्त कलंदर शाह की दरगाह के आसपास बीतता था और उनके इंतकाल के बाद वहीं उनकी मजार भी बनी। जाहिर है कि हाली के वंशज होने के कारण पानीपत मशहूर शायर और फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास का शहर भी है। वही ख्वाजा अहमद अब्बास जिन्होंने सात हिंदुस्तानी में अमिताभ बच्चन को पहली बार ब्रेक दिया था। हालांकि अब पानीपत शहर को हाली और ख्वाजा अहमद अब्बास की कम ही याद आती है। एक जून 1987 को अंतिम सांस लेने से पहले ख्वाजा अहमद अब्बास पानीपत आया करते थे। ख्वाजा अहमद अब्बास एक पत्रकार, कहानी लेखक, निर्माता निर्देशक सबकुछ थे। राजकपूर की फिल्म बाबी की स्टोरी स्क्रीन प्ले उन्होंने लिखी। उनकी लिखी कहानी हीना भी थी। भारत पाक सीमा की कहानी पर बनी यह फिल्म आरके की यह फिल्म उनकी मृत्यु के बाद ( हीना, 1991) रीलिज हुई।
आजादी से पहले पानीपत मूल रूप से मुसलमानों का शहर था। यहां घर घर में करघे चलते थे। बेडशीट, चादर आदि बुनाई का काम तेजी से होता था। हमारे एक दोस्त एडवोकेट राम मोहन सैनी बताते हैं कि पानीपत शहर तीन म के लिए जाना जाता था। मलाई, मच्छर और मुसलमान। अब न मुसलमान हैं न मलाई पर मच्छर जरूर हैं। अब पानीपत हैंडलूम के शहर के रूप में जाना जाता है। बेडशीट, चादर, तौलिया, सस्ती दरियां और कंबल के निर्माण का बहुत बड़ा केंद्र है। पूरे देश और विदेशों में भी बड़ी संख्या में इन उत्पादों की पानीपत से सप्लाई है। वैसे अगर सडक से पानीपत जाएं तो आपको यहां के पंचरंगा अचार के बारे में भी काफी कुछ देखने के मिल जाएगा। मेन जीटी रोड पर सबसे ज्यादा पंचरंगा अचार की ही दुकाने हैं।
तुमको करना पड़ेगा उज्र-ए-वफा
हालांकि पानीपत शहर कहीं से खूबसूरत नहीं हैं। पर कई यादें पानीपत के साथ जुड़ी हैं। तीन ऐतिहासिक लड़ाईयों के अलावा भी पानीपत में कई ऐसी चीजें हैं जो शहर की पहचान है। यहां बू अली शाह कलंदर की दरगाह है जो हिंदुओं और मुसलमानों के लिए समान रूप से श्रद्धा का केंद्र है। मैं यहां हर हप्ते जाता था। दरगाह पर पर बैठ कर कव्वाली सुनते हुए मन को बड़ी शांति मिलती है। कलंदर शाह की दरगाह 700 साल पुरानी है। पर इसी दरगाह में पानीपत के एक और अजीम शायर भी सो रहे हैं। उनकी दरगाह के उपर उनका सबसे लोकप्रिय शेर लिखा है....
है यही इबादत और यही दीनों-इमां
कि काम आए दुनिया में इंसा के इंसा
हाली की एक और गजल का शेर
हक वफा का हम जो जताने लगे
आप कुछ कह के मुस्कुराने लगे।
क्या आपको याद है इस शायर का नाम.....इस शायर का नाम है- ख्वाजा अल्ताफ हसन हाली....( 1837-1914) हाली की शायरी से तो वे सभी लोग वाकिफ होंगे जो उर्दू शायरी में रूचि रखते हैं। पर क्या आपको पता है कि हाली ख्वाजा अहमद अब्बास के दादा थे.... शायर हाली मिर्जा गालिब के शिष्य थे और गालिब की परंपरा के आखिरी शायर। हाली ने गालिब की आत्मकथा भी लिखी है। हाली का ज्यादर वक्त कलंदर शाह की दरगाह के आसपास बीतता था और उनके इंतकाल के बाद वहीं उनकी मजार भी बनी। जाहिर है कि हाली के वंशज होने के कारण पानीपत मशहूर शायर और फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास का शहर भी है। वही ख्वाजा अहमद अब्बास जिन्होंने सात हिंदुस्तानी में अमिताभ बच्चन को पहली बार ब्रेक दिया था। हालांकि अब पानीपत शहर को हाली और ख्वाजा अहमद अब्बास की कम ही याद आती है। एक जून 1987 को अंतिम सांस लेने से पहले ख्वाजा अहमद अब्बास पानीपत आया करते थे। ख्वाजा अहमद अब्बास एक पत्रकार, कहानी लेखक, निर्माता निर्देशक सबकुछ थे। राजकपूर की फिल्म बाबी की स्टोरी स्क्रीन प्ले उन्होंने लिखी। उनकी लिखी कहानी हीना भी थी। भारत पाक सीमा की कहानी पर बनी यह फिल्म आरके की यह फिल्म उनकी मृत्यु के बाद ( हीना, 1991) रीलिज हुई।
आजादी से पहले पानीपत मूल रूप से मुसलमानों का शहर था। यहां घर घर में करघे चलते थे। बेडशीट, चादर आदि बुनाई का काम तेजी से होता था। हमारे एक दोस्त एडवोकेट राम मोहन सैनी बताते हैं कि पानीपत शहर तीन म के लिए जाना जाता था। मलाई, मच्छर और मुसलमान। अब न मुसलमान हैं न मलाई पर मच्छर जरूर हैं। अब पानीपत हैंडलूम के शहर के रूप में जाना जाता है। बेडशीट, चादर, तौलिया, सस्ती दरियां और कंबल के निर्माण का बहुत बड़ा केंद्र है। पूरे देश और विदेशों में भी बड़ी संख्या में इन उत्पादों की पानीपत से सप्लाई है। वैसे अगर सडक से पानीपत जाएं तो आपको यहां के पंचरंगा अचार के बारे में भी काफी कुछ देखने के मिल जाएगा। मेन जीटी रोड पर सबसे ज्यादा पंचरंगा अचार की ही दुकाने हैं।
पेश है अलताफ हसन हाली की एक और प्रसिद्ध गजल...
हक वफा का
हक वफा का जब हम जताने लगे
आप कुछ कह के मुस्कुराने लगे
हमको जीना पड़ेगा फुरकत में
वो अगर हिम्मत आजमाने लगे
डर है मेरी जुबां न खुल जाए
अब वो बातें बहुत बनाने लगे
जान बचाती नजर नहीं आती
गैर उल्फत बहुत जताने लगे
तुमको करना पड़ेगा उज्र-ए-वफा
हम अगर दर्दे दिल सुनाने लगे
बहुत मुश्किल है शेवा –ए - तसलीम
हम भी आखिर जी चुराने लगे
वक्त ए रुखसत था शख्त हाली पर
हम भी बैठे थे जब वो जाने लगे
- अल्ताफ हसन हाली
-vidyutp@gmail.com