डा. उमाकांत वर्मा हमारे हाजीपुर शहर में रहते थे। या यूं कहें कि मैं उनके मुहल्ले में रहता था। वे हाजीपुर के राजनारायण कालेज में हिंदी के प्राध्यापक थे। मूल रुप से सारण ( छपरा) जिले के रहने वाले थे। भोजपुरी उनके रग रग में रची बसी थी।
हालांकि वे हिंदी के गंभीर साहित्यकार थे पर उन्होंने कई लोकप्रिय भोजपुरी फिल्मों के गाने लिखे। उन्हीं में से एक फिल्म थी बाजे शहनाई हमार अंगना। इस फिल्म के कई गीत डा.उमाकांत वर्मा जी ने लिखे थे। उनमें से एक लोकप्रिय गीत था- चना गेहूं के खेतवा तनी कुसुमी बोअइह हो बारी सजन ( आरती मुखर्जी और सुरेश वाडेकर के स्वर में) इसी फिल्म में अंगिया उठेला थोड़े थोड़...भिजेंला अंगिया हमार हाय गरमी से जैसे गीत भी उन्होंने लिखे। इस फिल्म का म्यूजिक एचएमवी ( अब सारेगामा) ने जारी किया था। एक और भोजपुरी फिल्म घर मंदिर के गाने भी उन्होंने लिखे। बाद में उन्होंने कुछ लोकप्रिय गीत भी निर्माताओं की मांग पर लिखे। जिनमें पिया की प्यारी फिल्म का गीत - आईल तूफान मेल गड़िया हो साढ़े तीन बजे रतिया भी शामिल था।
डा. उमाकांत वर्मा के लिखे गीतों को महेंद्र कपूर, आशा भोंसले और दिलराज कौर जैसे लोगों ने स्वर दिया। भोजपुरी फिल्मों में गीत लिखने के क्रम में वे बिहार के छोटे से शहर हाजीपुर से मुंबई जाया करते थे। इस दौरान आशा भोंसले समेत मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के कई महान हस्तियों ने उन्हें मुंबई में ही बस जाने को कहा। मुंबई में बसकर स्थायी तौर पर फिल्मों में गीत लिखने के लिए। पर उन्होंने अपना शहर हाजीपुर कभी नहीं छोड़ा। कालेज से अवकाश लेने के बाद भी हाजीपुर के ही होकर रह गए।
एक निजी मुलाकात में उमाकांत वर्मा ने जी बताया था कि पांच बेटियों की जिम्मेवारी थी इसलिए मुंबई को स्थायी तौर पर निवास नहीं बना सका। उन्होंने कई और भोजपुरी फिल्मों के लिए गीत लिखे जो फिल्में बन नहीं सकीं।
कई भोजपुरी फिल्मों के निर्माण के गवाह रहे डा. उमाकांत वर्मा जी। वे भोजपुरी फिल्मों ऐसे गीतकारों में से थे जो साहित्य की दुनिया से आए थे। इसलिए उनके लिखे भोजपुरी फिल्मों के गीतों में भी साहित्यिक गहराई साफ नजर आती थी। एक बार राजनेता यशवंत सिन्हा जो भोजपुरी गीतों के शौकीन हैं को कोई अपनी पसं का भोजपुरी गीत गुनगुनाने का आग्रह किया गया तो उन्होंने वही गीत सुनाया- चना गेहूं के खेतवा...तनी कुसुमी बोइह ए बारी सजन.....
डा. उमाकांत वर्मा जब वे साहित्य की चर्चा करते थे तो जैनेंद्र कुमार की कहानियों के पात्रों की मनःस्थियों की चर्चा करते थे, अज्ञेय की बातें करते थे। उनके निजी संग्रह में देश के कई बड़े साहित्यकारों की खतो किताबत देखी जा सकती थी। डा. उमाकांत वर्मा ने जीवन में बहुत उतार चढ़ाव देखे, निराशाएं देखीं, पर वे हर मिलने वाले व्यक्ति को बहुत उत्साहित करते थे। यह परंपरा वे जब तक जीवित रहे चलती रही।
नए पत्रकार हों या नए साहित्यकार या फिर सामाजिक कार्यकर्ता सभी उनके पास पहुंचकर प्रेरणा लेते थे। विचार चर्चा के लिए वे सदैव उपलब्ध रहते थे। एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने एक लाइन सुनाई थी- सुख संग दुख चले काहे हारे मनवा.......
कभी किसी नवसिखुआ पत्रकार या साहित्यकार को उन्होंने निराश नहीं किया। उनके सभी बच्चों ने ( जो अब बहुत बड़े हो चुके हैं) जिस क्षेत्र में जैसा कैरियर बनाना चाहा उन्हें पूरी छूट दी। डा. उमाकांत वर्मा के एक ही बेटे हैं जो मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के जाने पहचाने पत्रकार और भोजपुरी फिल्मों और टीवी धारावाहिकों के पटकथा लेखक हैं। उनका नाम है आलोक रंजन। आजकल वे मुंबई में रहते हैं।
-विद्युत प्रकाश मौर्य
(UMAKANT VERMA, BHOJPURI FILMS, )
हालांकि वे हिंदी के गंभीर साहित्यकार थे पर उन्होंने कई लोकप्रिय भोजपुरी फिल्मों के गाने लिखे। उन्हीं में से एक फिल्म थी बाजे शहनाई हमार अंगना। इस फिल्म के कई गीत डा.उमाकांत वर्मा जी ने लिखे थे। उनमें से एक लोकप्रिय गीत था- चना गेहूं के खेतवा तनी कुसुमी बोअइह हो बारी सजन ( आरती मुखर्जी और सुरेश वाडेकर के स्वर में) इसी फिल्म में अंगिया उठेला थोड़े थोड़...भिजेंला अंगिया हमार हाय गरमी से जैसे गीत भी उन्होंने लिखे। इस फिल्म का म्यूजिक एचएमवी ( अब सारेगामा) ने जारी किया था। एक और भोजपुरी फिल्म घर मंदिर के गाने भी उन्होंने लिखे। बाद में उन्होंने कुछ लोकप्रिय गीत भी निर्माताओं की मांग पर लिखे। जिनमें पिया की प्यारी फिल्म का गीत - आईल तूफान मेल गड़िया हो साढ़े तीन बजे रतिया भी शामिल था।
डा. उमाकांत वर्मा के लिखे गीतों को महेंद्र कपूर, आशा भोंसले और दिलराज कौर जैसे लोगों ने स्वर दिया। भोजपुरी फिल्मों में गीत लिखने के क्रम में वे बिहार के छोटे से शहर हाजीपुर से मुंबई जाया करते थे। इस दौरान आशा भोंसले समेत मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के कई महान हस्तियों ने उन्हें मुंबई में ही बस जाने को कहा। मुंबई में बसकर स्थायी तौर पर फिल्मों में गीत लिखने के लिए। पर उन्होंने अपना शहर हाजीपुर कभी नहीं छोड़ा। कालेज से अवकाश लेने के बाद भी हाजीपुर के ही होकर रह गए।
एक निजी मुलाकात में उमाकांत वर्मा ने जी बताया था कि पांच बेटियों की जिम्मेवारी थी इसलिए मुंबई को स्थायी तौर पर निवास नहीं बना सका। उन्होंने कई और भोजपुरी फिल्मों के लिए गीत लिखे जो फिल्में बन नहीं सकीं।
कई भोजपुरी फिल्मों के निर्माण के गवाह रहे डा. उमाकांत वर्मा जी। वे भोजपुरी फिल्मों ऐसे गीतकारों में से थे जो साहित्य की दुनिया से आए थे। इसलिए उनके लिखे भोजपुरी फिल्मों के गीतों में भी साहित्यिक गहराई साफ नजर आती थी। एक बार राजनेता यशवंत सिन्हा जो भोजपुरी गीतों के शौकीन हैं को कोई अपनी पसं का भोजपुरी गीत गुनगुनाने का आग्रह किया गया तो उन्होंने वही गीत सुनाया- चना गेहूं के खेतवा...तनी कुसुमी बोइह ए बारी सजन.....
डा. उमाकांत वर्मा जब वे साहित्य की चर्चा करते थे तो जैनेंद्र कुमार की कहानियों के पात्रों की मनःस्थियों की चर्चा करते थे, अज्ञेय की बातें करते थे। उनके निजी संग्रह में देश के कई बड़े साहित्यकारों की खतो किताबत देखी जा सकती थी। डा. उमाकांत वर्मा ने जीवन में बहुत उतार चढ़ाव देखे, निराशाएं देखीं, पर वे हर मिलने वाले व्यक्ति को बहुत उत्साहित करते थे। यह परंपरा वे जब तक जीवित रहे चलती रही।
नए पत्रकार हों या नए साहित्यकार या फिर सामाजिक कार्यकर्ता सभी उनके पास पहुंचकर प्रेरणा लेते थे। विचार चर्चा के लिए वे सदैव उपलब्ध रहते थे। एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने एक लाइन सुनाई थी- सुख संग दुख चले काहे हारे मनवा.......
कभी किसी नवसिखुआ पत्रकार या साहित्यकार को उन्होंने निराश नहीं किया। उनके सभी बच्चों ने ( जो अब बहुत बड़े हो चुके हैं) जिस क्षेत्र में जैसा कैरियर बनाना चाहा उन्हें पूरी छूट दी। डा. उमाकांत वर्मा के एक ही बेटे हैं जो मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के जाने पहचाने पत्रकार और भोजपुरी फिल्मों और टीवी धारावाहिकों के पटकथा लेखक हैं। उनका नाम है आलोक रंजन। आजकल वे मुंबई में रहते हैं।
-विद्युत प्रकाश मौर्य
(UMAKANT VERMA, BHOJPURI FILMS, )
2 comments:
उमाकान्त जी के विषय में जानकर अच्छा लगा. आभार इस आलेख का.
Bahut hi jaankar aur saksham lekhak the Dr Umakant Verma. Unka contribution bhojpuri cinema ke liye amulya hai
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