Sunday, 10 October 2010

कर्ज है हम सबके ऊपर

कई साल के संघर्ष के बाद मैंने बैंक से कर्ज लेकर एक छोटा सा फ्लैट खरीद लिया। अब फ्लैट खरीद लिया तो इसकी खुशी भी है कि अब मेरा अपना पता है जिसे मैं अपना कह सकता हूं। साथ ही इस बात का गम भी साथ चलता रहता है, कि फ्लैट अपना होकर भी पूरी तरह अपना नहीं है। भला क्यों अपना नहीं है। अपना इसलिए नहीं है कि मैं इसकी इएमआई चुका रहा हूं। जब तक इएमआई पूरी नहीं हो जाती, मकान पूरी तरह अपना नहीं हो पाएगा।

अब ये इएमआई तो 20 साल बाद पूरी होगी। बीस साल बादतो मैं बुढापे के करीब आ जाउंगा, रिटायरमेंट के करीब आ जाउंगा। इस बीस साल में जीवन में कई उतार चढ़ाव भी आ सकते हैं। पूरी दुनिया मंदी के दौर से गुजर रही है। किसी भी नौकरी पर कभी भी खतरा मंडरा सकता है। ऐसे हाल में इएमआई का क्या होगा। सचमुच ये चिंता की बात है। कर्ज लेकर फ्लैट खऱीदने की खुशी पूरी खुशी नहीं है। ये अधूरी खुशी है। ऐसी खुशी जिसमें कर्ज का बोझ मंडराता रहता है। किराये के मकान में हमेशा इस बात को लेकर तनाव रहता था कि कहीं वेतन मिलने से पहले ही खड़ूस मकान मालकिन किराया मांगने के लिए नहीं टपक पड़े। अब इस बात का बोझ मन पर रहता है कि बैंक वाले ने इएमआई निकाली की नहीं। इसलिए मकान खरीदने के बाद जब भी दोस्तों को यह बताता हूं कि अपने मकान में आ गया हूं तो यह खुशी पूरी खुशी नहीं होती है। एक पुराना शेर है..गौर फरमाएं-
हजार गम है दिल में, खुशी मगर एक है...
हमारे होठों पर किसी की मांगी हुई हंसी तो नहीं।


लेकिन ईएमआई का मकान तो मांगी हुई हंसी की तरह है, ये हंसी हमारे होठों की हंसी नहीं है। ये वैसी प्रेमिका की तरह है जिसके साथ मंगनी तो हो गई है लेकिन अभी ब्याह नहीं हुआ। ब्याह तो तब होगा जब बैंक वाला मकान के पेपर आपको वापस देगा। इसी दुख में मैं दुबला हुआ जा रहा हूं कि कर्ज में ली हुई चीज को कैसे अपना कहूं। इसलिए जब भी दोस्तों से अपने नए पते की चर्चा करता हूं कुछ न कुछ मलाल रह ही जाता है।

खैर मेरी एक बहुत पुरानी दोस्त हैं, कुलप्रीत कौर जो चलाती तो पीआर एजेंसी हैं लेकिन विचारों से आध्यात्मिक हैं। जब उनको कर्ज में लिए फ्लैट की दास्तां सुनाई तो उन्होंने मुझे प्रत्युत्तर में दिव्य ज्ञान दिया है। बकौल कुलप्रीत दुनिया का हर आदमी कर्ज में डूबा है। भारत देश कर्ज में डूबा है। हर साल घाटे का बजट पेश करता है। सबसे धनी देश अमेरिका पर भी बहुत से लोगों का कर्ज है। हर भारतीय कर्ज के बोझ में पैदा होता है और कर्ज चुकाते चुकाते इस दुनिया से कूच कर जाता है। हमारी हर सांस पर किसी न किसी का कर्ज है। ये जिंदगी जिस माता पिता कि दी हुई है उसका कर्ज हम जीवन भर नहीं चुका पाते हैं। हमारी हर सांस पर ईश्वर का कर्ज है, क्योंकि हम सबकी जिंदगी उसकी की दी हुई है। फिर कर्ज से कैसा घबराना...इसी कर्ज के बोझ में हमें मुस्कुराना सीख लेना चाहिए। इस दिव्य ज्ञान से मुझे थोड़ी तसल्ली मिली है। आपका क्या ख्याल है...

-विद्युत प्रकाश मौर्य, ई मेल vidyutp@gmail.com 




3 comments:

निर्मला कपिला said...

कुछ भी हो अपना घर तो अपना ही है। बहुत बहुत बधाई अपने घर की।

अविनाश वाचस्पति said...

पर आप हैं कहां
मतलब आशियाना
गाजियाबाद में है
निकटवर्ती ...

आओ बंधु, गोरी के गांव चलें.

Unknown said...

very informative post. Thanks for sharing

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