
वास्तव में छूट की व्यवस्था खादी को लाचार बना रही थी। और इस छूट के पीछे खादी संस्थानों में हो रहा था बड़ा घोटाला और कमीशनबाजी का खेल। सरकार से जो छूट के लिए सब्सिडी की रकम जारी होती थी उसको पाने के लिए कई खादी संस्थाएं भ्रष्ट तरीके का भी इस्तेमाल कर रही थीं। इस छूट का सीधा लाभ उन लोगों तक तो बिल्कुल नहीं पहुंच पा रहा था जो लोग खादी के धागे बनाकर दैनिक आमदनी कर रहे थे लेकिन कुछ खादी संस्थाओं से जुडे लोग मालामाल जरूर हो रहे थे। लेकिन खादी पर छूट खत्म कर दिए जाने के बाद अब तमाम खादी संस्थाएं अपने उत्पादों लेकर बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार होंगी। जब बाजार में प्रतिस्पर्धा की बात आएगी तो उत्पाद की गुणवत्ता को लेकर भी निर्माता सजग होंगे। इससे उपभोक्ताओं को बेहतर उत्पाद मिल सकेगा। सरकारी अनुदान प्राप्त संस्थाएं खादी में टेक्सचर और रंगों को लेकर लापरवाही बरती थीं। इसका नतीजा होता था कि कई बार खादी के उत्पादों के रंग बहुत जल्दी गिरने लगते थे तो वहीं कपड़ों को लेकर भी ग्राहकों में संतोष नहीं होता था।
इसके उलट हम खादी में के व्यवसाय से जुडे निजी ब्रांडों की बात करें तो फेब इंडिया जैसे ब्रांड चार दशकों से खादी के कारोबार में हैं। लेकिन वे अपने शो रूम में खादी के उत्पाद अपेक्षाकृत ऊंचे दामों में बेचते हैं और उच्च वर्ग और मध्यम उच्च वर्ग के परिवारों के लोग संतुष्ट होकर यहां के उत्पादों को खरीदते हैं। लेकिन इसके उलट खादी की सरकारी सहायता पाने वाली संस्थाएं अपने उत्पादों का बाजार में वह ब्रांड वेल्यू नहीं बना सकी हैं जो निजी उत्पादों ने बनाए। खादी के और ग्रामोद्योग से कई सालों से जुड़े लोग भी ये मानते हैं सरकारी छूट के इस कारोबार ने खादी संस्थाओं को भ्रष्ट बनाया। लेकिन अब हालात बदल भी रहे हैं कि कई खादी संस्थाओं के उत्पाद अच्छी गुणवत्ता वाले आ रहे हैं। ये उत्पाद बिना किसी छूट के भी बाजार मूल्य में के हिसाब से मध्यमवर्ग के उपभोक्ताओं के जेब के करीब हैं वहीं इनकी टेक्सचर और रंग भी अच्छी गुणवत्ता का है।
इधर खादी में रेडीमेड के कारोबार ने भी अच्छा बाजार पकड़ा है। अगर आप खादी के किसी शो रूम से एक हाफ शर्ट खरीदते हैं तो ये 200 से 300 रूपये के बीच में बिना किसी सरकारी छूट के मिल जाता है। जबकि किसी भी ब्रांडेड कपड़ों के शो रूम में भी इससे सस्ते में एक शर्ट नहीं खरीदा जा सकता है। वहीं अगर खादी के कपड़े की गुणवत्ता की बात करें तो ये पूरी तरह से सूती धागे का होने के कारण किसी भी दूसरे तरह के कपड़े की तुलना में ज्यादा इको फ्रेंडली भी है। साथ ही जब आप एक खादी का उत्पाद खऱीदते हैं तो इससे सीधे कुटीर उद्योग से जुड़े मजदूर का पेट भरता है। जबकि आप एक ब्रांडेड उत्पाद खऱीदते हैं तो आपके रूपये एक बड़ा हिस्सा एक बड़े औद्योगिक घऱाने के मुनाफे में जाता है। हालांकि बिना इस मुद्दे पर विचार किए खादी इसलिए भी पहना जा सकता है कि ये शरीर के लिए पॉलीएस्टर, टेरीकॉट या रेयान जैसे वस्त्रों की तुलना में ज्यादा हितकारी है। आज जरूरत इस बात की है कि सरकार और खादी संस्थाएं लोगों की बीच खादी के फायदे को सही ढंग से पहुंचाएं, न कि सरकारी छूट का का रोना रोएं।
सरकारी अनुदान के खत्म होने के बाद हो सकता है कि कई खादी संस्थाओं को इससे शिकायत हो लेकिन आने वाले कुछ सालों में हो सकता है कि इससे खादी का बड़ा भला हो। सरकार की सहयता से खादी उत्पादों की मार्केटिंग के लिए जगह जगह शो रूम खोले गए हैं। जन जन तक खादी के उत्पादों को पहुंचाने के लिए जरूरी है कि इसके नेटवर्क को और मजबूत किया जाए। लोगों तक पहुंच और सही जानकारी होने के बाद खादी अपने आप लोगों अपना सही स्थान बनाने में कामयाब हो जाएगी।
इधर खादी में रेडीमेड के कारोबार ने भी अच्छा बाजार पकड़ा है। अगर आप खादी के किसी शो रूम से एक हाफ शर्ट खरीदते हैं तो ये 200 से 300 रूपये के बीच में बिना किसी सरकारी छूट के मिल जाता है। जबकि किसी भी ब्रांडेड कपड़ों के शो रूम में भी इससे सस्ते में एक शर्ट नहीं खरीदा जा सकता है। वहीं अगर खादी के कपड़े की गुणवत्ता की बात करें तो ये पूरी तरह से सूती धागे का होने के कारण किसी भी दूसरे तरह के कपड़े की तुलना में ज्यादा इको फ्रेंडली भी है। साथ ही जब आप एक खादी का उत्पाद खऱीदते हैं तो इससे सीधे कुटीर उद्योग से जुड़े मजदूर का पेट भरता है। जबकि आप एक ब्रांडेड उत्पाद खऱीदते हैं तो आपके रूपये एक बड़ा हिस्सा एक बड़े औद्योगिक घऱाने के मुनाफे में जाता है। हालांकि बिना इस मुद्दे पर विचार किए खादी इसलिए भी पहना जा सकता है कि ये शरीर के लिए पॉलीएस्टर, टेरीकॉट या रेयान जैसे वस्त्रों की तुलना में ज्यादा हितकारी है। आज जरूरत इस बात की है कि सरकार और खादी संस्थाएं लोगों की बीच खादी के फायदे को सही ढंग से पहुंचाएं, न कि सरकारी छूट का का रोना रोएं।
सरकारी अनुदान के खत्म होने के बाद हो सकता है कि कई खादी संस्थाओं को इससे शिकायत हो लेकिन आने वाले कुछ सालों में हो सकता है कि इससे खादी का बड़ा भला हो। सरकार की सहयता से खादी उत्पादों की मार्केटिंग के लिए जगह जगह शो रूम खोले गए हैं। जन जन तक खादी के उत्पादों को पहुंचाने के लिए जरूरी है कि इसके नेटवर्क को और मजबूत किया जाए। लोगों तक पहुंच और सही जानकारी होने के बाद खादी अपने आप लोगों अपना सही स्थान बनाने में कामयाब हो जाएगी।
- विद्युत प्रकाश
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