जनवरी 2011 में कई महान विभूतियां हमारे बीच नहीं रहीं। 26 जनवरी को कोच्चि में 68 साल की आयु में घनश्याम पंकज ने अंतिम सांस ली। वरिष्ठ पत्रकार घनश्याम पंकज को भी काल ने हमसे छीन लिया। पंकज जी के सानिध्य में मैंने पहली नौकरी में कुबेर टाइम्स में काम किया। मैं दिल्ली में फीचर पन्ने पर काम करता था। काम के दौरान ही उनसे परिचय हुआ। दो बार लखनउ में 20 राजभवन कालोनी में बड़ी आत्मीय मुलाकाते हुईं थीं। एक महीने पहले फोन पर बात हुई तो फिर से एक बार मिलने की चर्चा हुई। लेकिन इस बीच वे कूच कर गए हमेशा के लिए।
पंकज जी वैसे हिंदी के पत्रकारों में थे जिनके संपादकीय अग्रलेख बड़े ही परिपक्व और भविष्य की दृष्टि रखने वाले माने जाते थे। बिहार के एक शहर से निकले थे.। पत्रकारिता में ऊंचा मुकाम हासिल किया। लेकिन जब तक जीए शाही जीवन रहा। दिल्ली में सफदरजंग एन्क्लेव में उनकी कोठी थी। पत्नी विनिता पंकज पहले ही उन्हें छोड़ कर इस दुनिया से जा चुकी थीं। घनश्याम पंकज समाचार एजेंसियों के बाद लंबे समय तक नवभारत टाइम्स के साथ रहे। दिनमान के भी संपादक रहे। स्वतंत्र भारत, कुबेर टाइम्स जनसत्ता एक्सप्रेस जैसे अखबारों को अपने संपादकीय कौशल से लंबे समय तक चलाने की कोशिश की। वे वैसे संपादकों में से थे जो अपने तमाम मातहतों को लंबे समय तक याद रखते थे। टीम बनाकर चलते थे और टीम को बार बार जोड़ने की कोशिश करते थे। व्यक्तित्व किसी फिल्म स्टार की तरह था। खैर उनके बेटे कबीर कौशिक एक सफल फिल्मकार बन चुके हैं। उन्होने अब तक तीन फिल्में बनाई हैं सहर, चमकू और हम तुम और घोस्ट।-विद्युत प्रकाश मौर्य
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