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इतिहास में उनकी गहरी रूचि थी। वैशाली जिले के बलवा कोआरी गांव के रहने वाले थे। हर साल अप्रैल महीने में वीर कुअंर सिंह जयंती पर बड़ा आयोजन करते थे। जब मैं वाराणसी में बीएचयू में पढ रहा था तब उन्होंने मुझसे चंद्रशेखर मिश्र रचित वीर कुअंर सिंह महाकाव्य जो भोजपुरी में है उसकी एक प्रति मंगाई थी।
चौहान जी के बारे में कहा जाता है कि महापंडित राहुल सांकृत्यान के साथ भी उन्होंने थोड़े वक्त काम किया था। 80 साल से ज्यादा के उम्र में हाजीपुर शहर में अकेले रहते थे। तमाम नए पत्रकारों लेखकों और रंगकर्मियों का उत्साहवर्धन करते रहते। उनकी एकेडमिक शिक्षा भले ही ज्यादा न रही हो लेकिन इतिहास के प्रकांड विद्वान थे। वे गंडक घाटी सभ्यता शोध उन्नयन परियोजना नामक संस्था चलाते थे। सभी नए लोगों को इतिहास को सहेजने और याद रखने की प्रेरणा देते थे। वैशाली जिले ने एक माटी बड़ा सपूत खो दिया है। मुझे दुख है कि नई पीढ़ी के मेरे जैसे पत्रकार उनसे उतना नहीं सीख गुन सके जीतना उनसे पाना चाहिए था।
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