Saturday, 23 July 2011

रसोई गैस का विकल्प

रसोई गैस की कीमतें आसमान छू रही हैं। फिलहाल ये 400 रूपये प्रति सिलेंडर से ज्यादा हो गई हैं। वहीं सरकार और सब्सिडी घटाने की योजना रखती है। माना जा रहा है कि एक गैस सिलेंडर की कीमत 800 रूपये पहुंच सकती है। वहीं सरकार आम लोगों को साल में कुछ निश्चित सिलेंडर ही रियायती मूल्य पर देने की योजना लाने वाली है। अगर ये योजना लागू हो जाती है तो एक घरेलू उपभोक्ता को सिर्फ चार सिलेंडर ही रियायती दरों पर मिला करेंगे। उसके बाद बाद के सिलेंडर के लिए बाजार दर यानी 800 रूपये तक देना पड़ सकता है। ऐसे में ये जरूरी हो गया है कि रसोई गैस के दूसरे विकल्पों के बारे में गंभीरता से सोचा जाए। अब कई गांवों तक गैस कनेक्शन पहुंचा दिया गया है। लेकिन गैस पर खत्म होने वाली सब्सिडी का असर सभी जगहों पर पड़ेगा। रसोई गैस की किल्लत से निपटने के लिए गुजरात के कच्छ जिले के गंगापर गांव के लोगों ने अनूठा इंतजाम किया है। इस गांव में गोबर गैस प्लांट की स्थापना की गई है। ये प्लांट गांव के 60 घरों के लोगों को महज 20 रूपये मासिक मासिक पर चार घंटे गैस की सप्लाई दे रही है। गैस की सप्लाई का समय सुबह 10 से 12 बजे और शाम 7 से नौ बजे तक रखा गया है। गोबर गैस प्लांट की स्थापना में 25 लाख रूपये खर्च आया है जिसमें मिनिस्ट्री और नेचुरल रिसोर्सेज ने 90 फीसदी सब्सिडी दी है। ये गैस प्लांट शहर के पीएनजी से मिलता जुलता है। गांव के हर घर को पाइप से गैस की सप्लाई की जा रही है। गांव में बने इस गैस प्लांट से गांव के कई लोगों को रोजगार भी मिल सका है। अमूमन हर गांव में इतने पशु होते हैं जिससे कि गोबर गैस प्लांट की स्थापना की जा सकती है। गुजरात के भुज जिले के इस गांव के माडल को अब दूसरे गांव भी अपना सकत हैं।
वैसे तो गोबर गैस प्लांट लगाने का प्रोजेट बहुत पुराना है। लेकिन गांव में वही लोग अपना स्वतंत्र गोबर गैस प्लांट लगा पाते हैं जिनके पास जानवरों की संख्या 4-6 से ज्यादा हो। लेकिन गांव में कम्यूनिटी गोबर गैस प्लांट लगाने के इस प्रोजेक्ट से पूरे गांव लोगों को फायदा होगा। गुजरात के इस प्रोजेक्ट को देश के उन तमाम गांवों में लागू किया जा सकता है जहां भी लोगों के पास पशु संपदा है। वैसे गांव जहां 50 से अधिक घर हैं ऐसे प्लांट बड़े आराम से लगाए जा सकते हैं। ऐसे प्लांट लगाए जाने से गांव के लोगों लकड़ी और गोबर के उपलों से चलने वाले चूल्हे से छुटकारा मिल सकता है। साथ ही धुआं रहित रसोई घर में गृहणियां अपनी मनमाफिक खाना बना सकती हैं। गांव में बड़ी संख्या में महिलाएं लकड़ी और उपले पर खाना बनाने के कारण सांस की बीमारियों का शिकार होती हैं उन्हें भी गोबर गैस के चुल्हे के कारण ऐसी बीमारियों से निजात मिल सकती है। साथ ही गांव के लोगों को शहर के गैस सप्लाई की तरह खाना बनाने का एक सस्ता विकल्प मिल सकेगा। जरूरत है तो बस इस प्रोजेक्ट का प्रचार प्रसार करने की।
-    -  विद्युत प्रकाश मौर्य

कैसे करें अपने एटीएम की सुरक्षा


बैंक एटीएम ने कई तरह की सुविधाएं जरूर दी हैं लेकिन एटीम का सावधानी के साथ रखरखाव भी जरूरी है। आजकल भोले भाले लोगों से एटीएम बदल लेने की घटनाएं खूब सुनने में आ रही हैं। ऐसे में जरूरी है कि जब आप एटीएम का इस्तेमाल कर रहे हों तो कुछ खास तरह की सावधानी बरतें.

-    जब भी आप किसी एटीएम में पैसे निकालने के लिए प्रवेश करें तो इस बात का ख्याल रखें कि एटीएम के अंदर आपके अलावा कोई दूसरा नहीं प्रवेश कर रहा हो। अगर कोई आदमी आपके पीछे आ भी गया हो तो उसे बाहर जाने के लिए कहें।
-    जब आप एटीएम का इस्तेमाल कर रहे हों तो इस बात का ख्याल रखें कि पीछे से कोई आपके एटीएम का पासवर्ड तो नहीं देख रहा है।
-    जब आप एटीएम लेकर चल रहे हों तो उसका पासवर्ड किसी डायरी या स्लिप में लिखा हुआ रखकर अपने साथ लेकर नहीं चलें। हमेशा अपने पासवर्ड को याद रखने के बाद उसे नष्ट कर दें।
-    अपने एटीएम के पीछे लिखे सीवीवी नंबर को खुरचकर मिटा दें। और सुविधा के लिए इस सीवीवी नंबर को कहीं घर में लिख कर रखें। इस सीवीवी नंबर से आपका एटीएम चोरी हो जाने पर आन लाइन ट्रांजेक्शन का खतरा रहता है। हालांकि आजकल बैंक आनलाइन ट्रांजेक्शन पर अतिरिक्त सुरक्षा भी दे रहे हैं।
-    अगर आप अपने एटीएम से आन लाइन शापिंग या दुकानों में खरीददारी नहीं करते हों तो अपने एटीएम में वीजा या मास्टर पावर यानी डेबिट कार्ड को एक्टिवेट नहीं कराएं। बैंक अक्सर डेबिट कार्ड के लिए सालाना शुल्क लेते हैं अगर आपको इसकी जरूर नहीं हो तो डेबिट कार्ड सक्रिय ना ही रखें तो अच्छा
-    अगर आपका एटीएम खो जाता हो तुरंत बैंक के 24 घंटे काल सेंटर पर फोन करके एटीएम को ब्लॉक कराएं। जिससे की किसी भी तरह के दुरूपयोग से बचा जा सके।

-    अगर जरूरी नहीं हो तो रोज अपनी जेब में एटीएम लेकर नहीं चलें। एटीएम लेकर तभी चलें जब आपको इसकी जरूरत हो। यानी जिस दिन रूपये निकालने हों उसी दिन अपना एटीएम साथ लेकर चलें बाकि दिनों एटीएम को घर में ही रखें तो अच्छा।

-    खास तौर पर रात में एटीएम लेकर नहीं चलें तो अच्छा। अगर आपके पास कई बैंकों का एटीएम हो तो सिर्फ उसी बैंक का एटीएम लेकर साथ चलें जिसमें कम पैसे रहते हों।

-    अपने एटीएम का पासवर्ड अपने परिवार के सारे लोगों या फिर घर के नौकरों को नहीं बताएं। अगर कभी किसी और से रूपये निकलवाने की जरूरत पड़ जाए तो अगली बार इस्तेमाल से पहले अपने पासवर्ड बदल लें। 

-विद्युत प्रकाश मौर्य
  

चलो चलें गांव की ओर

साल 2011 के जनगणना के कई आंकड़े सुखद भी हैं। जैसे की देश की कुल आबादी का 70 फीसदी हिस्सा अभी भी गांव में ही रहता है। यानी गांव से शहर की ओर भागने की प्रवृति में कमी आई है। भारत के बारे में हमेशा से कहा जाता है कि ये गांवों का देश है। देश आजाद होने के बाद 80 फीसदी आबादी गांव में बसती थी। लेकिन अभी भी आजादी के 60 साल बाद भी 70 फीसदी लोग गांव में बसते हैं। अब भला गांव में लोगों को जीवन की मूलभुत सुविधाएं मिल जाएं तो शहर की ओर क्यों पलायन करें।

 हवा, पानी मौसम के लिहाज से गांव शहर से बेहतर हैं। अब गांव में टीवी देखने के लिए डाइरेक्ट टू होम और मोबाइल फोन और इंटरनेट जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। अगर गांव में बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्टर यानी बिजली और सड़क जैसी दो मूल सुविधाएं हों तो गांव के लोग शहर की ओर नहीं भागेंगे। गांव में स्कूल की सुविधा पहले से ही है। बिजली और सड़क होने से कई तरह की सुविधाएं अपने आप आ जाती हैं। अब गांव में तमाम बैंकों की शाखाएं और एटीएम तो खुलने ही लगे हैं। अगर हर गांव सड़क से अच्छी तरह जुड़े हों तो शहर के स्कूलों और कालेंजों की बसें गांव गांव पहुंच कर बच्चों को स्कूल ले आती हैं। अगर हम पंजाब जैसे राज्य को देखे जहां हर गांव अच्छी सड़कों से जुडे हुए हैं तो वहां जालंधर और लुधियाना जैसे शहरों के स्कूल और कालेज की बसें गांव से जाकर बच्चों को ले आती हैं। कई बड़े गांवों में तो अच्छे अस्पताल भी हैं। साथ ही कुछ नामचीन स्कूलों ने गांव में भी अपने स्कूल की शाखाएं खोल रखी हैं।

दिल्ली जैसे महानगर में तमाम अवैध कालोनियों में तंग और बदबूदार गलियां हैं,जहां जीवन बहुत मुश्किल है। कई घरों में हवा और धूप भी नहीं पहुंचती। 2011 की जनगणना में ही उत्तर पूर्वी दिल्ली इलाके को सबसे अधिक सघन आबादी वाला इलाका बताया गया है। यानी यहां प्रति वर्ग किलोमीटर में जनसंख्या का घनत्व सर्वाधिक है। अगर जीवन की बात करें तो सेहत के लिहाज से यहां का जीवन लोगों को बीमार करने वाला है। तो इससे तो कई गुना अच्छी गांव की ही जिंदगी है। अब की शहर भला रूख लोग करते ही क्यों हैं. जाहिर सी बात है रोजी रोटी की तलाश में शहर की पलायन करना पड़ता है. लेकिन अगर गांव में रोजगार के कुछ मौके बढ़ जाएं तो शहर की ओर पलायन घट सकता है।

 गांव तक अच्छी सड़कें और बिजली हो तो तमाम तरह के लघु उद्योग जो शहरों में चल रहे हैं उन्हें गांव में भी चलाया जा सकता है। लेकिन विडंबना है कि आजादी के 60 साल बाद भी कई राज्यों के गांव में सड़कों के विकास पर ध्यान नहीं दिया गया। हम 100 फीसदी ग्रामीण विद्युतीकरण से भी अभी कोसों पीछे हैं। सरकारें जितना रूपया शहरों के विकास में फूंक रही उसका आधा हिस्सा भी गांवों के लिए नहीं जा रहा। अगर भारत के सभी गांवों में सिर्फ सड़कें और बिजली पहुंच जाए तो गांव का जीवन निश्चय ही और बेहतर हो सकेगा और शहरों की ओर पलायन में गिरावट आएगी।
-    विद्युत प्रकाश मौर्य