साल 2011 के जनगणना के
कई आंकड़े सुखद भी हैं। जैसे की देश की कुल आबादी का 70 फीसदी हिस्सा
अभी भी गांव में ही रहता है। यानी गांव से शहर की ओर भागने की प्रवृति में कमी आई
है। भारत के बारे में हमेशा से कहा जाता है कि ये गांवों का देश है। देश आजाद होने
के बाद 80 फीसदी आबादी
गांव में बसती थी। लेकिन अभी भी आजादी के 60 साल बाद भी 70 फीसदी लोग गांव में बसते हैं। अब भला गांव में
लोगों को जीवन की मूलभुत सुविधाएं मिल जाएं तो शहर की ओर क्यों पलायन करें।
हवा, पानी मौसम के
लिहाज से गांव शहर से बेहतर हैं। अब गांव में टीवी देखने के लिए डाइरेक्ट टू होम
और मोबाइल फोन और इंटरनेट जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। अगर गांव में बेसिक
इन्फ्रास्ट्रक्टर यानी बिजली और सड़क जैसी दो मूल सुविधाएं हों तो गांव के लोग शहर
की ओर नहीं भागेंगे। गांव में स्कूल की सुविधा पहले से ही है। बिजली और सड़क होने
से कई तरह की सुविधाएं अपने आप आ जाती हैं। अब गांव में तमाम बैंकों की शाखाएं और
एटीएम तो खुलने ही लगे हैं। अगर हर गांव सड़क से अच्छी तरह जुड़े हों तो शहर के
स्कूलों और कालेंजों की बसें गांव गांव पहुंच कर बच्चों को स्कूल ले आती हैं। अगर
हम पंजाब जैसे राज्य को देखे जहां हर गांव अच्छी सड़कों से जुडे हुए हैं तो वहां
जालंधर और लुधियाना जैसे शहरों के स्कूल और कालेज की बसें गांव से जाकर बच्चों को
ले आती हैं। कई बड़े गांवों में तो अच्छे अस्पताल भी हैं। साथ ही कुछ नामचीन
स्कूलों ने गांव में भी अपने स्कूल की शाखाएं खोल रखी हैं।
दिल्ली जैसे
महानगर में तमाम अवैध कालोनियों में तंग और बदबूदार गलियां हैं,जहां जीवन बहुत
मुश्किल है। कई घरों में हवा और धूप भी नहीं पहुंचती। 2011 की जनगणना में
ही उत्तर पूर्वी दिल्ली इलाके को सबसे अधिक सघन आबादी वाला इलाका बताया गया है।
यानी यहां प्रति वर्ग किलोमीटर में जनसंख्या का घनत्व सर्वाधिक है। अगर जीवन की
बात करें तो सेहत के लिहाज से यहां का जीवन लोगों को बीमार करने वाला है। तो इससे
तो कई गुना अच्छी गांव की ही जिंदगी है। अब की शहर भला रूख लोग करते ही क्यों हैं.
जाहिर सी बात है रोजी रोटी की तलाश में शहर की पलायन करना पड़ता है. लेकिन अगर
गांव में रोजगार के कुछ मौके बढ़ जाएं तो शहर की ओर पलायन घट सकता है।
गांव तक
अच्छी सड़कें और बिजली हो तो तमाम तरह के लघु उद्योग जो शहरों में चल रहे हैं
उन्हें गांव में भी चलाया जा सकता है। लेकिन विडंबना है कि आजादी के 60 साल बाद भी कई
राज्यों के गांव में सड़कों के विकास पर ध्यान नहीं दिया गया। हम 100 फीसदी ग्रामीण
विद्युतीकरण से भी अभी कोसों पीछे हैं। सरकारें जितना रूपया शहरों के विकास में
फूंक रही उसका आधा हिस्सा भी गांवों के लिए नहीं जा रहा। अगर भारत के सभी गांवों
में सिर्फ सड़कें और बिजली पहुंच जाए तो गांव का जीवन निश्चय ही और बेहतर हो सकेगा
और शहरों की ओर पलायन में गिरावट आएगी।
- विद्युत प्रकाश मौर्य
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