रसोई गैस की कीमतें आसमान छू रही हैं। फिलहाल ये 400 रूपये प्रति सिलेंडर से ज्यादा हो गई हैं। वहीं सरकार और सब्सिडी घटाने की योजना रखती है। माना जा रहा है कि एक गैस सिलेंडर की कीमत 800 रूपये पहुंच सकती है। वहीं सरकार आम लोगों को साल में कुछ निश्चित सिलेंडर ही रियायती मूल्य पर देने की योजना लाने वाली है। अगर ये योजना लागू हो जाती है तो एक घरेलू उपभोक्ता को सिर्फ चार सिलेंडर ही रियायती दरों पर मिला करेंगे। उसके बाद बाद के सिलेंडर के लिए बाजार दर यानी 800 रूपये तक देना पड़ सकता है। ऐसे में ये जरूरी हो गया है कि रसोई गैस के दूसरे विकल्पों के बारे में गंभीरता से सोचा जाए। अब कई गांवों तक गैस कनेक्शन पहुंचा दिया गया है। लेकिन गैस पर खत्म होने वाली सब्सिडी का असर सभी जगहों पर पड़ेगा। रसोई गैस की किल्लत से निपटने के लिए गुजरात के कच्छ जिले के गंगापर गांव के लोगों ने अनूठा इंतजाम किया है। इस गांव में गोबर गैस प्लांट की स्थापना की गई है। ये प्लांट गांव के 60 घरों के लोगों को महज 20 रूपये मासिक मासिक पर चार घंटे गैस की सप्लाई दे रही है। गैस की सप्लाई का समय सुबह 10 से 12 बजे और शाम 7 से नौ बजे तक रखा गया है। गोबर गैस प्लांट की स्थापना में 25 लाख रूपये खर्च आया है जिसमें मिनिस्ट्री और नेचुरल रिसोर्सेज ने 90 फीसदी सब्सिडी दी है। ये गैस प्लांट शहर के पीएनजी से मिलता जुलता है। गांव के हर घर को पाइप से गैस की सप्लाई की जा रही है। गांव में बने इस गैस प्लांट से गांव के कई लोगों को रोजगार भी मिल सका है। अमूमन हर गांव में इतने पशु होते हैं जिससे कि गोबर गैस प्लांट की स्थापना की जा सकती है। गुजरात के भुज जिले के इस गांव के माडल को अब दूसरे गांव भी अपना सकत हैं।
वैसे तो गोबर गैस प्लांट लगाने का प्रोजेट बहुत पुराना है। लेकिन गांव में वही लोग अपना स्वतंत्र गोबर गैस प्लांट लगा पाते हैं जिनके पास जानवरों की संख्या 4-6 से ज्यादा हो। लेकिन गांव में कम्यूनिटी गोबर गैस प्लांट लगाने के इस प्रोजेक्ट से पूरे गांव लोगों को फायदा होगा। गुजरात के इस प्रोजेक्ट को देश के उन तमाम गांवों में लागू किया जा सकता है जहां भी लोगों के पास पशु संपदा है। वैसे गांव जहां 50 से अधिक घर हैं ऐसे प्लांट बड़े आराम से लगाए जा सकते हैं। ऐसे प्लांट लगाए जाने से गांव के लोगों लकड़ी और गोबर के उपलों से चलने वाले चूल्हे से छुटकारा मिल सकता है। साथ ही धुआं रहित रसोई घर में गृहणियां अपनी मनमाफिक खाना बना सकती हैं। गांव में बड़ी संख्या में महिलाएं लकड़ी और उपले पर खाना बनाने के कारण सांस की बीमारियों का शिकार होती हैं उन्हें भी गोबर गैस के चुल्हे के कारण ऐसी बीमारियों से निजात मिल सकती है। साथ ही गांव के लोगों को शहर के गैस सप्लाई की तरह खाना बनाने का एक सस्ता विकल्प मिल सकेगा। जरूरत है तो बस इस प्रोजेक्ट का प्रचार प्रसार करने की।
वैसे तो गोबर गैस प्लांट लगाने का प्रोजेट बहुत पुराना है। लेकिन गांव में वही लोग अपना स्वतंत्र गोबर गैस प्लांट लगा पाते हैं जिनके पास जानवरों की संख्या 4-6 से ज्यादा हो। लेकिन गांव में कम्यूनिटी गोबर गैस प्लांट लगाने के इस प्रोजेक्ट से पूरे गांव लोगों को फायदा होगा। गुजरात के इस प्रोजेक्ट को देश के उन तमाम गांवों में लागू किया जा सकता है जहां भी लोगों के पास पशु संपदा है। वैसे गांव जहां 50 से अधिक घर हैं ऐसे प्लांट बड़े आराम से लगाए जा सकते हैं। ऐसे प्लांट लगाए जाने से गांव के लोगों लकड़ी और गोबर के उपलों से चलने वाले चूल्हे से छुटकारा मिल सकता है। साथ ही धुआं रहित रसोई घर में गृहणियां अपनी मनमाफिक खाना बना सकती हैं। गांव में बड़ी संख्या में महिलाएं लकड़ी और उपले पर खाना बनाने के कारण सांस की बीमारियों का शिकार होती हैं उन्हें भी गोबर गैस के चुल्हे के कारण ऐसी बीमारियों से निजात मिल सकती है। साथ ही गांव के लोगों को शहर के गैस सप्लाई की तरह खाना बनाने का एक सस्ता विकल्प मिल सकेगा। जरूरत है तो बस इस प्रोजेक्ट का प्रचार प्रसार करने की।
- - विद्युत प्रकाश मौर्य
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