भारतीय संस्कृति में गुरू की तुलना ऐसे कुम्हार से की गई है जो घड़े के
अंदर हाथ डालता और बाहर धीरे धीरे चोट मारता है जिससे घड़ा सुंदर आकार ले पाता है।
ठीक उसी तरह गुरु भी शिष्य के अंदर की तमाम अच्छाईयों को बाहर लाता है और उसे
सुंदर बनाता है, ठीक उसी कुम्हार की
तरह जो घड़े को सुंदर बनाता है। पर समय के अनुसार गुरूओं की नई पीढ़ी आ रही है।
आजकल टीवी पर संगीत प्रतियोगिताओं में गुरूओं का नया रुप देखने को मिल
रहा है। ये गुरु अपने शिष्यों की अच्छाई और बुराई का मंच पर ही छिद्रान्वेषण करते
हैं। इस दौरान अगर तारीफ की जा रही है तो शिष्य बड़े खुश होता हैं उनका सीना गर्व
से चौड़ा हो जाता है, पर अगर गुरू उनकी
निंदा करने लगे तो वे आंखों में आंसू ले आते हैं। मजे की बात एक गुरू तारीफ करता
है तो दूसरा टांग खींचता है..यह सब कुछ चलता रहता है और देश दुनिया के करोडो लोग
इस शो को देख रहे होते हैं। लोगों को यह सब कुछ बड़ा नेचुरल सा लगता है। यह ठीक
उसी तरह होता है जैसे किसी बडे मामले पर फैसला करने के लिए अदालत में जूरी बैठती
है। ये गुरू भी कुछ कुछ जूरी के मेंबरों की तरह ही तो होते हैं। पर अदालत में जो
जूरी बैठती वह बंद कमरे में होती है। पर यहां पर गुरू करोड़ों लोगों को अपने अपने
अंतर्विरोध दिखाते हैं। अगर आप संगीत प्रतियोगिताओं में होने वाली वास्तविक मानते
हैं तो आप किसी गलतफहमी में जी रहे हैं। दरअसल यह सब कुछ एक हाई प्रोफाइल नाटक की
तरह होता है। ऐसा लगता है मंच पर दो संगीत के जानकार किसी बात को लेकर लड़ रहे
हैं। पर यह लड़ाई एक दम नाटकीय होती है। लोगों को तो लगता है कि एक शिष्य को लेकर
दो गुरू लड़ रहे हैं पर यह लड़ाई महज धारावाहिक को सेलेबल बनाने के लिए होता है।
दर्शकों का ध्यान खींचने के लिए होता है। कोई संगीतकार किसी टैलेंट को लेकर कहता
है कि तुमने इतना खराब गाया कि उम्मीद ही नहीं थी। तुम बिल्कुल चल नहीं पाओगे....जैसे
बिल्कुल हतोत्साहित करने वाले शब्दों का इस्तेमाल ये गुरु करते हैं। यह सब कुछ मंच
पर किसी को अपमानित करने के जैसा ही होता है। अगर किसी की गायकी में कमी है तो
उसके बारे में सरेआम मंच पर बताने की क्या जरूरत है।
मजे की बात है इन संगीत प्रतियोगिताओं में जज हैं सभी भारतीय शास्त्रीय
संगीत की महान परंपराओं से अवगत है। जहां पर गुरू शिष्य़ का इतना सम्मान करता है कि
उनका जितनी बार नाम लेता है उतनी बार कान को उंगली लगता है। वहीं पर शिष्य भी अपने
गुरू का काफी सम्मान करता है। दोनों कभी किसी की सार्वजनिक रूप से निंदा नहीं करते
हैं। रिश्तों को नाटकीय नहीं बनाते हैं। पर यहां चीजों को नेचुरल टच देने के नाम
पर एक अजीब सा नाटक किया जा रहा है। मजे की बात है कि ऐसे संगीत प्रतियोगिताओं में
जावेद अख्तर, इला अरूण, उदित नारायण, अनु मलिक जैसे लोग
जज हैं। पर सभी इन धारावाहिकों को कामर्सियल रुप से सफल बनाने की कोशिश में लगे
हुए हैं।
यह जान पाना मुश्किल है कि वे संगीत प्रतियोगिताओं में जज की कुरसी पर
बैठ कर जो कुछ एक्सपर्ट कमेंट देते हैं उनमें कितनी असलियत होती है। पर कई बड़े
मनोरंजन चैनलों पर नाटक का यह सिलसिला जारी है। चूंकि इन संगीत सितारों की खोज के
साथ चल रहा एसएमएस और अन्य तरीके से लोगों को जोड़कर रखने का सिल। इसलिए इन गुरुओं
को भी नाटक करने को कहा जाता है...और ये गुरू व्यावसायिकता की होड़ में गुरू जैसी
पवित्र संस्था को कलंकित कर रहे हैं।
No comments:
Post a Comment