Thursday 26 November 2015

डिग्री मत पूछो नेता की...

ये साल 1999-2000 की बात है जब मैं पंजाब में रिपोर्टिंग करता था। तब राज्य के तकनीकी शिक्षा मंत्री हुआ करते थे जगदीश सिंह गरचा। उनके कई कार्यक्रमों में जाने का मौका मिला. एनआईटी जालंधर जो आईआईटी के बाद देश के बड़े इंजीनियरिंग संस्थानों में शुमार है, के कार्यक्रम में गरचा साहब बोलने के लिए मंच पर रूबरू हुए- सानु तो तकनीक बारे कुछ पता नहीं हैगा. असी तो पांचवी पास हैंगे। बादल साहब नू मंत्री बना दित्ता तो असी बन गए... यानी वे साफगोई से कहते थे कि मैं पांचवी पास तकनीक के बारे में कुछ नहीं पता। प्रकाश सिंह बादल की मेहरबानी है कि मैं राज्य का तकनीकी शिक्षा मंत्री हूं। इसी तरह के दूसरे मंत्री थे पीडब्लूडी विभाग उनके जिम्मे था सुच्चासिंह लंगाह वे भी कम पढ़े लिखे थे। पर उनके मंत्रालय का कामकाज अच्छा था।


 आज बिहार में लालू के लाल तेजस्वी और तेज प्रताप के शिक्षा को लेकर चर्चा हो रही है। हम यहां पर पंजाब जैसे विकसित राज्य को याद कर रहे हैं जहां के मंत्रियों का ये हाल रहा है। देश की हालत कौन सी अच्छी है। देश की मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी 12वीं पास हैं, पर वे आईआईटी आईआईएम और देश के नामचीन शोध संस्थाओं के कामकाज को देख रही हैं। वे कितनी सफल होंगी इसका मूल्यांकन पांच साल बाद करना ठीक रहेगा। उमा भारती पांचवी के आगे नहीं पढ़ी पर मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं, अटल जी की सरकार में युवा कार्यक्रम और खेल मंत्री बनीं। अब गंगा नदी को पवित्र करने की कोशिश में लगी हैं। तो लालू के लालों से इतनी ना उम्मीदी क्यों लगा रखी है आपने। आशावादी बने रहिए। संयोग है कि बिहार के शिक्षा मंत्री केंद्र की तरह नहीं हैं। वे ( अशोक चौधरी) पीएचडी तक उच्च शिक्षित हैं। तो मुतमईन रहिए सब कुछ अच्छा होगा। लालू के लाल जिन मंत्रालयों को संभाल रहे हैं वहां बड़े ही काबिल ब्यूरोक्रेट दिए गए हैं इसलिए वहां भी हालात बुरे नहीं होंगे।
K KAMRAJ
अब थोड़ा पीछे चलते हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के मंत्रीमंडल में के कामराज नामक मंत्री थे।  तमिलनाडु के कामराज स्कूली कक्षा में कुछ दर्जे तक ही पढ़े थे। हिंदी और अंगरेजी नहीं आती थी। पर नेहरू के मंत्रीमंडल में नेहरू के बाद सबसे कद्दावर मंत्री थे। उनके कामराज प्लान ने बड़े बड़े नेताओं की छुट्टी कर दी थी। कहा यह भी जाता है कि अगर वे हिंदी जानते होते तो लाल बहादुर शास्त्री की जगह देश के अगले प्रधानमंत्री वही होते। मंच पर कामराज सिर्फ तमिल बोल पाते थे। प्रख्यात गांधीवादी एसएन सुब्बराव तब कामराज के साथ होते थे। वे उनके भाषणों का त्वरित तौर पर कन्नड या हिंदी में अनुवाद पेश करते थे।
डीएमके परिवार की बात करें तो करुणानिधि के बेटे अलागिरी को भी तमिल के बाद हिंदी या अंगरेजी नहीं आती। यूपीए की सरकार में मंत्री बने तो अपने किसी साथी मंत्री से भी बैठकों बात नहीं कर पाते थे। बड़ी मुश्किल से अंगरेजी का एक वाक्य सीखा टाक टू माई सेक्रेटरी। उससे उनके मंत्रालय का कामकाज बुरी तरह प्रभावित हो रहा था।  पर ये लोकतंत्र का करिश्मा है कि कोई कम पढ़ा लिखा आदमी केंद्रीय मंत्री तक बन जाता है। 
राष्ट्रपति की कुरसी तक पहुंच गए ज्ञानी जैल सिंह भी स्कूली शिक्षा तक ही पढ़े लिखे थे। लेकिन सिर्फ पढ़ाई से क्या होता है।
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता भी नौंवी क्लास से आगे नहीं पढ़ सकीं। पर वे हिंदी, अंगरेजी, तमिल और कन्नड फर्राटे से बोलती हैं। और कामकाज की बात करें तो वे देश की बेहतरीन मुख्यमंत्रियों में से हैं। उनकी तरह गरीब नवाज और जनता का दुख दर्द का ख्याल रखने वाला मुख्यमंत्री तो शायद ही देश में कोई दूसरा हो। क्या आपको शर्म नहीं आती जब देश का पढ़ा लिखा वित्त मंत्री ये कहता है  कि मध्यम वर्ग अपना ख्याल खुद रखे। ( यानी हमें बतौर सरकार मध्यम वर्ग से कोई सहानुभूति नहीं) सहानुभूति होगी भी भला क्यों.. जनता ने तो अमृतसर में जेटली को रिजेक्ट कर दिया था। हार कर भी मंत्री बन गए। बिहार में जो भी लोग फिलहाल मंत्री बने हैं उन्हें जनता ने चुनाव में विजयी बनाकर भेजा है। सबने अपने हलफनामे में अपनी डिग्री बताई थी। तो अब सवाल उठाने से क्या होता है। अभी तक एमएलए एमपी बनने के लिए देश में कोई न्यूनतम योग्यता तो तय नहीं की गई है। तो क्यों न हम इस करिश्माई लोकतंत्र को नमन करें।
दीये जले या बुझे...आफताब आएगा
तुम यकीं रखो....इन्क्लाब आएगा।
-         विद्युत प्रकाश मौर्य



2 comments:

Raravi said...

liked your post. " naman karen loktantntra ko"!!
did not know Kamraj and alagiri had these limitations. Many of people who were born in preindependence era did not go for formal higher education as a protest or due to cultural reason. Kavi Jayshankar prasad had very little formal education but his knowledge and abilities can not be questioned. Uma bharti i do not know much about her childhood and circumstances- and may be same for Gyani jail singh.
So formal education can not be sole marker of ones abilities, but in todays era Laoo's son who had al sort of facilities available chose not to go for formal educationraises questions but i agree they may do very well as an orgaizer, leader or manager. all the best

Vidyut Prakash Maurya said...

सुंदर विचार