Friday, 29 April 2016

स्वदेशी जीपीएस बनाने का मुकाम हासिल

भारत ने स्वदेशी जीपीएस बनाने की दिशा में मुकाम हासिल कर लिया है। अमेरिका आधारित ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस जैसी क्षमता हासिल करने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए इसरो ने गुरुवार को अपना सैटेलाइट आईआरएनएसएस-1जी (भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली-1जी) लॉन्च कर दिया। यह सात उपग्रहों के समूह का आखिरी सेटेलाइट है।

इंडियन जीपीएस के फायदे
- इस सैटेलाइट की मदद से देश दूर-दराज के इलाकों की स्थैतिज सही लोकेशन पता चल सकेगी।
- वाहन ट्रैकिंग के कारण यातायात व्यवस्था को भी काफी मदद मिलेगी।
- मरीन लोकेशन के कारण लंबी दूरी तय करने वाले समुद्री जहाजों और मछुआरों को लोकेशन की सही जानकारी मिल सकेगी।
- आपदा के समय मोबाइल फोन के संचालन में मदद मिलेगी।
- मानचित्र बनाने और भौगोलिक डाटा जुटाने में भी होगा मददगार
- युद्ध के समय पड़ोसी देशों में गतिविधियों की सही लोकेशन का पता चल सकेगा।
- पहाड़ों पर ट्रैकिंग करने वालों की भी करेगा मदद।

अमेरिका और रूस को टक्कर
भारत का यह इंडियन रीजनल नेविगेशनल सैटेलाइट सिस्टम अमेरिका के जीपीएस और रूस के ग्लोनास का लघु रूप है।
इन देशों के पास है नेविगेशन सिस्टम
1. अमेरिका - जीपीएस - 32 सेटेलाइट हैं, 1978 में शुरुआत, 1994 से पूरी दुनिया रेंज में
2. रूस - ग्लोनास -  24 सेटेलाइट सेवा में, 1995 से कार्यरत, 2011 में रिस्टोर किया गया।
3. यूरोपीय यूनियन - गेलिलियो -12 सेटेलाइट सेवा में2014 से उपलब्ध,
4. चीन - बायडू - 22 सेटेलाइट हैं सेवा में, 2012 से कार्यरत, एशियाई देश रेंज में, 2020 तक पूरी दुनिया है लक्ष्य
5. जापान - क्यूजेडएसएस - 3 सेटेलाइट सेवा में, 2010 से कार्यरत, सिर्फ जापान रेंज में

अमेरिकी जीपीएस से बेहतर चीनी बायडू
20 मीटर तक सटीक जानकारी देता है जीपीएस लेकिन बायडू 10 मीटर तक सटीक जानकारी देने में सक्षम है। इसकी मिलिट्री रेंज और भी सटीक है जिसका चीन ने खुलासा नहीं किया है। चीन के अलावा पाकिस्तान भी आधिकारिक तौर पर लेता है बायडू की सेवाएं।

करगिल युद्ध के समय अमेरिका ने नहीं दी थी जानकारी
1999 में करगिल युद्ध के दौरान भारत ने पाकिस्तानी सेना की लोकेशन जानने के लिए अमेरिका से जीपीएस सेवा की मांग की थी, लेकिन अमेरिका ने तब भारत को आंकड़े देने से मना कर दिया था। उसी समय से भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्वदेशी जीपीएस बनाने की कोशिश करने लगे थे। इस प्रणाली को पूरी तरह से भारतीय तकनीक से विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों ने सात सैटेलाइट को एक नक्षत्र की तरह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने का फैसला किया।

आईआरएनएसएस-1जी
1,500 किलोमीटर तक के विस्तार में क्षेत्र की स्थिति की सटीक जानकारी देगा।
20 मीटर से कम दूरी की सटीक जानकारी देने में है सक्षम
1.58 मीटर है लंबाई चौड़ाई और ऊंचाई
1,425 किलोग्राम वजन है आईआरएनएसएस-1जी का
320 टन वजन है ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) का जिससे आईआरएनएसएस-1जी) ने अंतरिक्ष में उड़ा भरी
02 सोलर पैनल लगे हैं जो 1660 वाट ऊर्जा पैदा करेंगे

10 साल की मेहनत रंग लाई
2006 के मई में यूपीए 1 सरकार के दौरान हुआ शुरू हुआ इस प्रणाली पर काम
2013 में लांच किया गया इस इस प्रणाली का सात उपग्रहों में से पहला उपग्रह
150 करोड़ रुपये के करीब है प्रत्येक उपग्रह की लागत
130 करोड़ रुपये है पीएसएलवी-एक्सएल प्रक्षेपण यान की लागत
1420 करोड़ से ज्यादा आई है इस परियोजना की कुल लागात

12 साल होगी आईआरएनएसएस-1जी सेटेलाइट की उम्र

Thursday, 28 April 2016

कई मंदिरों में भी है महिलाओं के प्रवेश पर रोक

देश में सिर्फ मसजिद और पीरों की मजार ही नहीं कई बड़े प्रसिद्ध मंदिर भी हैं जहां महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाई गई है। कई मंदिरों में तो ये पाबंदी सैकड़ो साल से चली आ रही है। इस पाबंदी के पीछे अलग अलग किस्म के तर्क हैं।

2011 में लगी हाजी अली में महिलाओं पर पाबंदी
पीर हाजी अली शाह बुखारी की याद में मुंबई के वरली समुद्र तट पर एक छोटे से टापू पर हाजी अली दरगाह स्थित है। देश दुनिया से मुस्लिम और बड़ी संख्या में हिन्दू श्रद्धालु यहां जियारत करने आते हैं।

1431 में सूफी संत की याद में इस दरगाह की स्थापना की गई थी। हाजी अली उजबेकिस्तान के बुखारा से भारत पहुंचे थे।
4500 वर्ग मीटर में विस्तार है दरगाह का, 85 फीट ऊंची है मीनार।
2011 में ट्रस्ट ने हाजी अली के दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाई।
2012 में भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने इसके खिलाफ अदालत में अर्जी लगाई
5.30 बजे सुबह से रात्रि 10 बजे तक है जियारत का समय
- यहां रोक नहीं है
- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ( अजमेर) और कलियर शरीफ ( रुड़की)  में महिलाओं के प्रवेश पर कोई रोक नहीं है। यह दोनों बड़ी दरगाह हैं।
- दरगाह आला हजरत (बरेली) और खानकाह-ए-नियाजिया में महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं है।
- यहां रोक है
- हजरत निजामुद्दीन (दिल्ली)  और सरहिंद शरीफ (पंजाब) में मुस्लिम महिलाओं के दरगाह में जाने पर रोक है।
- महिलाओं के कब्रिस्तान में जाने पर भी रोक है।
- फिलहाल सभी दरगाहों में महिलाओं के चादरपोशी करने से रोका जाता है।
- दिल्ली जामा मस्जिद में मगरिब की नमाज के बाद महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित है।
इन मंदिरों में भी प्रवेश नहीं मिलता
1. अय्यपा स्वामी मंदिर ( सबरीमाला, केरल) में 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर रोक है। माना जाता है कि इस उम्र की महिलाएं रजस्वला होती हैं।
2. बारपेटा सत्र ( असम) में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी कई सदियों से है। राज्य के बाकी वैष्णव मंदिरों में रोक नहीं। बारपेटा में कई बार आंदोलन भी हुए पर मंदिर प्रबंधन महिलाओं को प्रवेश देना परंपरा के खिलाफ मानता है। बारपेटा में इतिहास के प्रोफेसर हेम बहादुर क्षेत्री बताते हैं कि असम में महिला संगठनों का आंदोलन कमजोर है। यहां भी बारपेटा सत्र मठ-मंदिर में प्रवेश के लिए बड़ा आंदोलन खड़ा करने की जरूरत है।
3. मवाली माता मंदिर (धमतरी, छत्तीसगढ़) में तर्क दिया जाता है कि माता कुंआरी हैं इसलिए महिलाओं के दर्शन पर रोक है।
4. कार्तिकेय मंदिर (पिहोवा, कुरुक्षेत्र)- सदियों से प्रवेश वर्जित है। इस मंदिर में प्रवेश करने पर विधवा होने का शाप मिलता है। मंदिर के बाहर लगे बोर्ड पर साफ लिखा है कि महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।
5. जगन्नाथ मंदिर (पुरी, ओडिशा) परिसर में बिमला खांडा शक्तिपीठ में महिलाओं को प्रवेश नहीं मिलता। इसके पीछे तर्क है कि महिलाएं खुद शक्ति का रूप हैं इसलिए वे मंदिर में नहीं आ सकतीं।
6. बिहार के नालंदा जिले के पावापुरी के पास आशापुरी मंदिर में महिलाओं केप्रवेश पर नवरात्र के समय पाबंदी रहती है। यह परंपरा भी इस मंदिर में सदियों से चली आ रही है।
इन मंदिरों में नहीं जा सकते पुरुष
राजस्थान के पुष्कर तीर्थ में रत्नाग‌िरी पर्वत पर ब्रह्मा जी की पत्नी देवी साव‌ित्री का मंद‌िर हैं। इस मंदिर में केवल महिलाएं जा सकती हैं और माता की गोद भराई करती हैं। आंध्रप्रदेश के व‌िशाखापटनम में कामख्या देवी मंद‌िर है यहां स‌िर्फ मह‌िलाएं जाती हैं और यहां की पुजारी भी महिला ही हैं। उत्तर प्रदेश चंदौली जिले के शहर सकलडीहा में लगभग 120 साल प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण संत श्रीपथ की स्मृति में करवाया गया था। कहते हैं की इस मंदिर में पुरूष प्रवेश पर रोक है।