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इंडियन जीपीएस के फायदे
- इस सैटेलाइट की मदद से देश
दूर-दराज के इलाकों की स्थैतिज सही लोकेशन पता चल सकेगी।
- वाहन ट्रैकिंग के कारण
यातायात व्यवस्था को भी काफी मदद मिलेगी।
- मरीन लोकेशन के कारण लंबी
दूरी तय करने वाले समुद्री जहाजों और मछुआरों को लोकेशन की सही जानकारी मिल सकेगी।
- आपदा के समय मोबाइल फोन के
संचालन में मदद मिलेगी।
- मानचित्र बनाने और भौगोलिक
डाटा जुटाने में भी होगा मददगार
- युद्ध के समय पड़ोसी देशों में
गतिविधियों की सही लोकेशन का पता चल सकेगा।
- पहाड़ों पर ट्रैकिंग करने
वालों की भी करेगा मदद।
अमेरिका और रूस को टक्कर
भारत का यह इंडियन रीजनल
नेविगेशनल सैटेलाइट सिस्टम अमेरिका के जीपीएस और रूस के ग्लोनास का लघु रूप है।
इन देशों के पास है नेविगेशन
सिस्टम
1. अमेरिका - जीपीएस - 32
सेटेलाइट हैं, 1978 में शुरुआत, 1994 से पूरी दुनिया रेंज में
2. रूस - ग्लोनास - 24 सेटेलाइट सेवा में,
1995 से कार्यरत, 2011 में रिस्टोर किया गया।
3. यूरोपीय यूनियन - गेलिलियो
-12 सेटेलाइट सेवा में, 2014 से उपलब्ध,
4. चीन - बायडू - 22 सेटेलाइट
हैं सेवा में, 2012 से कार्यरत, एशियाई देश रेंज में, 2020 तक पूरी दुनिया है लक्ष्य
5. जापान - क्यूजेडएसएस - 3
सेटेलाइट सेवा में, 2010 से
कार्यरत, सिर्फ जापान रेंज में
अमेरिकी जीपीएस से बेहतर चीनी
बायडू
20 मीटर तक सटीक जानकारी देता
है जीपीएस लेकिन बायडू 10 मीटर तक सटीक जानकारी देने में सक्षम है। इसकी मिलिट्री
रेंज और भी सटीक है जिसका चीन ने खुलासा नहीं किया है। चीन के अलावा पाकिस्तान भी
आधिकारिक तौर पर लेता है बायडू की सेवाएं।
करगिल युद्ध के समय अमेरिका ने
नहीं दी थी जानकारी
1999 में करगिल युद्ध के दौरान
भारत ने पाकिस्तानी सेना की लोकेशन जानने के लिए अमेरिका से जीपीएस सेवा की मांग
की थी,
लेकिन अमेरिका ने तब भारत को आंकड़े देने से मना कर दिया था। उसी समय
से भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्वदेशी जीपीएस बनाने की कोशिश करने लगे थे। इस
प्रणाली को पूरी तरह से भारतीय तकनीक से विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों ने सात
सैटेलाइट को एक नक्षत्र की तरह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने का फैसला किया।
आईआरएनएसएस-1जी
1,500 किलोमीटर तक के विस्तार
में क्षेत्र की स्थिति की सटीक जानकारी देगा।
20 मीटर से कम दूरी की सटीक
जानकारी देने में है सक्षम
1.58 मीटर है लंबाई चौड़ाई और
ऊंचाई
1,425 किलोग्राम वजन है
आईआरएनएसएस-1जी का
320 टन वजन है ध्रुवीय उपग्रह
प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) का जिससे आईआरएनएसएस-1जी) ने अंतरिक्ष में उड़ा भरी
02 सोलर पैनल लगे हैं जो 1660
वाट ऊर्जा पैदा करेंगे
10 साल की मेहनत रंग लाई
2006 के मई में यूपीए 1 सरकार
के दौरान हुआ शुरू हुआ इस प्रणाली पर काम
2013 में लांच किया गया इस इस
प्रणाली का सात उपग्रहों में से पहला उपग्रह
150 करोड़ रुपये के करीब है
प्रत्येक उपग्रह की लागत
130 करोड़ रुपये है
पीएसएलवी-एक्सएल प्रक्षेपण यान की लागत
1420 करोड़ से ज्यादा आई है इस
परियोजना की कुल लागात
12 साल होगी आईआरएनएसएस-1जी
सेटेलाइट की उम्र
1 comment:
बहुत अच्छी जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
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