इसरो का
सैटेलाइट कार्टोसैट 2सी आसमान से उच्च गुणवत्ता वाले तस्वीर और वीडियो भेजेगा।
इससे देश की निगरानी क्षमता में व्यापाक इजाफा होगा। इस सैटेलाइट के साथ भारत चीन,
इजरायल जैसे देशों की सूची में शामिल हो गया है जिसके पास उच्च निगरानी क्षमता है।
इस सैटलाइट
का इस्तेमाल मानचित्रण (कार्टोग्राफी),
तटीय भूमि उपयोग एवं नियमन, सड़क नेटवर्क की
निगरानी और जल वितरण जैसे सुविधा प्रबंधन के लिए हो सकेगा। इससे सटीक अध्ययन के
साथ भौगोलिक सूचना प्रणाली अप्लीकेशनों के लिए भी हो सकेगा। कार्टोसैट श्रेणी का
पहला मिलट्री सैटेलाइट 2007 में लांच किया गया था। कार्टोसैट 2सी में पैनक्रोमैटिक
और मल्टीस्पेक्ट्रल कैमरे लगे हुए हैं जो उच्च गुणवत्ता की तस्वीरें ले सकेंगे। खास
तौर पर इस सैटेलाइट से देश की सीमा और विवादित स्थलों की बेहतर तस्वीरें ले पाना
संभव हो सकेगा। कार्टोसैट इन तस्वीरों को तुरंत अर्थ स्टेशन को भेज सकेगा। पैनक्रोमेटिक
तस्वीरें आपदा प्रबंधन के समय काम आती हैं साथ ही इससे संबंधित स्थल के तापमान का
भी पता लगाया जा सकता है।
कार्टोसैट-2सी -
04 सैटेलाइट छोड़े जा चुके हैं कार्टोसैट
सीरीज में। इससे पहले इस श्रंखला में कार्टोसैट-2, 2ए और 2बी सैटेलाइट का प्रक्षेपण किया गया था। नया
सैटेलाइट अपने पहले संस्करणों से काफी उन्नत है।
727.5 किलोग्राम का है कार्टोसैट
2सी उपग्रह। यह नियमित तौर पर रिमोट सेंसिंग सेवा प्रदान करेगा।
550 किलोमीटर धरती से ऊपर यह
स्थापित होगा। इसके द्वारा ली गई तस्वीरों का बहुद्देशीय उपयोग होगा।
05 साल होगी कार्टोसैट-2 सी की संभावित उम्र। दो सोलर पैनल और लिथियम बैटरी लगी है इसमें इस
प्रदूषण की
निगारानी करेगा सत्यभामासैट
चेन्नई के
सत्यभामा विश्वविद्यालय के छात्रों के प्रयास से उपग्रह सत्यभामासैट तैयार किया
गया है जो प्रदूषण की निगरानी करने में सक्षम होगा। यह किसी भारतीय विश्वविद्यालय
के छात्रों द्वारा तैयार पहला नैनो सैटेलाइट है।
1.5
किलोग्राम वजन है सत्यभामासैट का।
2 करोड़
रुपये खर्च आया है इस सैटेलाइट के निर्माण में
06 साल से छात्रों
ने शोध करके तैयार किया है इस सैटेलाइट को
2009 में
इसरो के सहयोग से विश्वविद्यालय ने शुरू किया था परियोजना पर काम
15 छात्र और
6 फैकल्टी सदस्य सत्यभामा यूनिवर्सिटी के इस प्रोजेक्ट से जुड़े हैं
10 मिनट हर
रोज अर्थ स्टेशन के संपर्क में आएगा सत्यभामासैट, इसरो करेगा प्राप्त डाटा का
विश्लेषण।
06 माह से 1
साल तक होगा इस सैटेलाइट का जीवन
ग्रीन हाउस
गैस पर नजर
सत्यभामासैट
एक नैनो सैटेलाइट है जो धरती पर होने वाले प्रदूषण पर नजर रखने में कारगर होगा। इस
सैटेलाइट से प्राप्त डाटा से प्रदूषण के स्तर की निगारनी की जा सकेगी। यह सैटेलाइट
ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन की निगरानी करेगा। यह जल के वाष्पीकरण, कार्बन
डाईआक्साइड कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा, वातावरण में मिथेन और हाईड्रोजन
फ्लोराइड के स्तर का आकलन करेगा।
आपदा के समय
राहत में मददगार होगा स्वयम
पुणे के कॉलेज
ऑफ इंजीनियरिंग द्वारा तैयार उपग्रह है स्वयम आपदा के समय दूरस्थ स्थानों में
संचार स्थापित करने में कारगर साबित होगा। इस सैटेलाइट के साथ पुणे के इस
प्रतिष्ठित कॉलेज के छात्रों ने अंतरिक्ष में ऊंची छलांग लगाई है। कॉलेज के 800
छात्रों ने इस सैटेलाइट के लांचिंग के मौके पर तालियां बजाकर खुशी का इजहार किया।
1000 ग्राम
से भी कम वजन है स्वयम का। इसरो द्वारा प्रक्षेपित 20 उपग्रहों में सबसे छोटा है
स्वयम
2008 से कॉलेज
के 170 छात्र इस सैटेलाइट पर कर रहे थे काम। क्यूब जैसा आकार है स्वयम का।
515 .3
किलोमीटर की दूरी पर स्थापित होकर काम करेगा।
कार्य –
स्वयम सैटेलाइट एम्च्योर रेडियो नेटवर्क हैम के नेटवर्क के लिए मददगार होगा। यह
दूरस्थ इलाकों का सूक्ष्म आकलन कर सकेगा। यह पैसिव स्टैबलाइजेशन सिस्टम से काम
करता है। इसको भारी भरकम बैटरी की कोई जरूरत नहीं होगी।
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