Tuesday, 18 July 2017

क्या मायावती दीए की बुझती हुई लौ हैं....

राज्यसभा में मंगलवार 18 जुलाई को बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने इस्तीफा देने की धमकी दी। उनका आरोप है कि उन्हें यूपी के सहारनपुर में हुए दलितों पर अत्याचार के मुददे पर बोलने नहीं दिया जा रहा है। वहीं राज्यसभा के सभापति का कहना था कि उनका जितना समय तय था उतना समय मिला है। वास्तव में बहनजी को पता है कि अगली बार जीत कर उच्च सदन में तो आ नहीं सकती, इसलिए जाते जाते शहादत का ड्रामा कर लो. अब तो मायावती जी का दलित जनाधार भी दरक चुका है इसलिए बहन जी. चंद्रशेखर आजाद रावण जैसों को रास्ता दें।
यहां यह बात भी गौर फरमाने की है कि मायावती जी का राज्यसभा में कार्यकाल अगले आठ महीने बाद ही खत्म होने वाला है। यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार के बाद उनके पास इतना भी संख्याबल नहीं है कि वे अगली बार उच्च सदन में प्रवेश कर सकें। इसलिए सदस्यता का कार्यकाल पूरा होने से थोड़ा पहले कोई मुद्दा गर्म करके इस्तीफा दे देने से वे अपने दलित समाज के भाई बहनों में कोई मजबूत संदेश देने में वे सफल हो जाएंगी। पर अब ऐसा मुश्किल लगता है। देश के कई दलित नेतृत्व एक एक कर हासिए पर जा रहे हैं। बिहार के दलित नेता रामविलास पासवान भाजपा के गोद में जाकर बैठ चुके हैं। अब वे दलित मुद्दों पर कोई बयान भी देते। वहीं एक और दलित नेता उदित राज तो अपनी पार्टी का विलय भाजपा में करके दिल्ली के रास्ते से संसद में भी पहुंच चुके हैं। वहीं आरपीआई का रामदास अठावले भी भाजपा के साथ आकर मंत्रीपद की मलाई खा रहे हैं। ऐसे में इस खालीपन को भरने के लिए नए चेहरे आ रहे हैं। सहारनपुर आंदोलन के साथ चंद्रशेखर आजाद रावण जैसे तेजतर्रार युवा चेहरा उभर कर सामने आ चुका है। गुजरात में जिग्नेश मेवानी जैसे नेता आए हैं जिनके अंदर काफी आग है।
हालांकि हमारे कुछ साथियों को लगता है कि अभी मायावती का दौर खत्म नहीं हुआ है। पत्रकार अभय मेहता लिखते हैं - मेरे ख्याल से राजनीति में किसी को इतनी जल्दी ख़ारिज नहीं किया जा सकता। हो सकता है उनका जनाधार दरक रहा हो। पर कोई गठबंधन जैसी सूरत में वो दमदार वापसी कर सकती हैं। आप इस इस्तीफे की तात्कालिकता को देख रहे हैं। मायावती का वोट बैंक (कोई 15 फीसदी ) बद से बदतर हालात में उनके साथ रहेगा। हालांकि वोटबैंक किसी गणितीय सिद्धांत पर हमेशा साथ नहीं रहता। उत्तरप्रदेश के कई दलित पिछड़े और मुस्लिम नेता उनका साथ छोड़ चुके हैं। वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप भटनागर लिखते हैं – माया का खेल खत्म। क्या सचमुच मायावती दीये की बुझती हुई लौ हैं... आगे खेल कौन खेलेगा ये अभी कहना भले मुश्किल हो लेकिन देश को बेहतर दलित नेतृत्व की जरूरत है।
-    विद्युत प्रकाश मौर्य



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