इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अगस्त में आया। और अगस्त में ही गोरखपुर
में सैकड़ो नौनिहाल इनसेफेलाइटिस यानी जापानी बुखार से मर गए। रोजाना बच्चों की
मौत का सिलसिला जारी है। सारा देश नटवर नागर कान्हा के जन्म की तैयारियां में जुटा
था और उधर अस्पताल में एक एक कर नौनिहाल मर रहे थे। भला वह मां कैसे जन्माष्टमी
मनाएगी जिसका लाल ठीक से दुनिया भी नहीं देख पाया। हम कान्हा के लिए दूध, मलाई मिश्री और माखन का इंतजाम करते हैं पर ये मां
के लाडले तो महज ऑक्सीजन की कमी से मरे जा रहे हैं।
सरकार के पास तो हवा देने के लिए पैसे नहीं हैं तो माखन मिश्री मलाई
कहां से आएगी... हम कान्हा के इंतजार में बड़े दिल से स्वागत गान गाते हैं... बड़ी देर भई नंदलाला तेरी राह तके बृजबाला...पर इस बार हम कान्हा कैसे बुलाएं... जो पहले से आ चुके हैं उनके लिए सांस लेने का भी इंतजाम नहीं है हमारे पास। ऊपर से मंत्री जी कहते हैं कि अगस्त में तो हर साल बच्चे मरते ही हैं। तो इस जन्माष्टमी में यह कहने की इच्छा हुई – ओ कान्हा इस देस में मत आना। फिर सुनने में आया कि जन्माष्टमी के बाद भी दो दिन में 34 नौनिहालों ने गोरखपुर के इस अस्पताल में दम तोड़ दिया।
कान्हा तुम पांच हजार साल पहले आए थे, अब दुबारा भले मत आयो और इन नौनिहालों की सांसे तो बचाने का कुछ जुगत लगाओ। इस योगी से कोई उम्मीद नहीं बची अब पर तुम्हे लोग महायोगी कहते हैं। तो अब तुमसे ही उम्मीद बंधी हैं। तुम्ही सच्चे भारत के रखवाले हो तो सारी माताएं तुम्हारी राह ताक रही हैं। कान्हा कुछ करो. चमत्कार करो कुछ, सुदर्शन चक्र चलाओ, उन दुश्मनों का नाश करो जो इन माताओं की लगातार गोद सूनी किए जा रहे हैं। अब कोई भारत का रखवाला नहीं है। कहां हो मुरली वाले...हमारी सुन भी रहे हो या नहीं...
- विद्युत प्रकाश मौर्य
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