Friday, 15 September 2017

क्या वाकई हमें बुलेट ट्रेन चाहिए...

जैसा की भाजपा के चुनावी वादे में था बुलेट ट्रेन लाएंगे तो सरकार के तीन साल पूरे होने के बाद 14 सितंबर 2017 को अहमदाबाद से मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन परियोजना का शिलान्यास हो चुका है। इसे मोदी सरकार की बहुत बड़ी परियोजना के तौर पर देखा जा रहा है। बड़ा सवाल की क्या हमें बुलेट ट्रेन की जरूरत है। क्या इसका सफर मध्यम वर्गीय भारत के लोगों के जेब के अनुकूल होगा।  

जेब के अनुकूल नहीं सफर -  मुंबई से अहमदाबाद के बीच की दूरी 500 किलोमीटर है। फिलहाल अगर ये सफर एसी 2 से किया जाए तो किराया बनता है 1205 रुपये।  शताब्दी एक्सप्रेस का किराया 960 रुपये है। एसी डबलडेकर ट्रेन का किराया 650 रुपये है। सुपरफास्ट रेलगाड़ियां आमतौर 5 से 6 घंटे में सफर कराती हैं।

अब बुलेट ट्रेन का किराया आज के महंगाई दर के हिसाब से देखा जाए तो कम से कम 3000 रुपये होगा। ट्रेन के पटरी पर आने के बाद यह बढ़ भी सकता है। मुंबई से अहमदाबाद का सफर पूरा होगा सवा दो से ढाई घंटे में। अब इसकी तुलना हवाई सफर से करें। अहमदाबाद से मुबंई का हवाई सफर 40 मिनट का है। किराया रहता है आमतौर पर 1600 से 1800 रुपये के बीच। रोज 10 से ज्यादा उड़ानों के विकल्प भी मौजूद हैं। अब भला आप बताइए कि जो ज्यादा किराया खर्च कर चलने में सक्षम लोग हैं वे हवाई जहाज से दुगुने से ज्यादा किराया और दुगुना समय खर्च कर बुलेट ट्रेन से क्यों आना जाना पसंद करेंगे। यह भी कहा जा रहा है कि रोज प्रयाप्त फेरे नहीं हुए तो बुलेट ट्रेन का खर्च निकालना भी मुश्किल होगा।

बात रेलवे की करें तो रेलवे हर नई ट्रेन चलाने या फिर नए मार्ग बिछाने से पहले फिजिबलिटी सर्वे करता है। इसमें यह देखा जाता है कि यह मार्ग लाभकारी होगा कि नहीं। बुलेट ट्रेन को लेकर 2005 में बड़े जोर शोर से प्रस्ताव बना था। पर मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

जिन मार्गों पर रेलवे की सड़क मार्ग से प्रतिस्पर्धा है वहां भी रेलवे नई परियोजनाओं पर हाथ नहीं डालता। अहमदाबाद मुंबई के बीच बेहतरीन सड़क नेटवर्क है। आप सड़क मार्ग से भी 5 घंटे में मुंबई पहुंच सकते हैं। तो वहां बुलेट ट्रेन की सफलता संदिग्ध है।

कई परियोजनाएं असफल हुईं - याद किजिए ममता बनर्जी रेल मंत्री थीं तो उन्होंने दुरंतो एक्सप्रेस नामक ट्रेन की श्रंखला चलाई। यह राजधानी एक्सप्रेस का ही बदला हुआ रुप था। पर इसके ठहराव बीच में नहीं थे। लिहाजा ज्यादातर दूरंतो फेल हो गईं। खाली जा रही थीं तो उनके ठहराव बनाए गए।  कुछ  को तो गरीब रथ और जनशताब्दी में बदला गया। तो देश के कई मार्गों पर रेल में भी महंगा किराया देकर सफर करने वाले लोग अभी देश में नहीं हैं। हमें इस सच को स्वीकारना पड़ेगा कि हम ऐसी अर्थव्यस्था वाले देश में रहते हैं, जहां 90 फीसदी आबादी गरीब या मध्यमवर्गीय है। वह पैसे भी बचाना चाहती है। जापान की आर्थिक स्थिति से हमारी तुलना नहीं हो सकती। चीन में भी बुलेट ट्रेन के कुछ मार्ग असफल हो चुके हैं।

भारतीय रेल बनाम बुलेट ट्रेन बुलेट ट्रेन की स्पीड 350 किलोमीटर प्रति घंटा के आसपास रहती है। भारतीय रेल में राजधानी 130 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से चलती है। पर अगर हम भारतीय रेलवे के इन्ही पटरियों को यात्री ट्रेन के लिए डेडिकेटेड बनाएं और बिना ठहराव वाली द्रूत गति की ट्रेन चलाएं तो अपनी स्वदेशी तकनीक से ही 160 किलोमीटर की गति प्राप्त कर सकते हैं। हमारे एलएचबी कोच और आधुनिक लोकोमोटिव इसमें सक्षम हैं। यानी इस पैमाने पर हम स्वदेशी तकनीक से अहमदाबाद से मुंबई साढे तीन घंटे में कोलकाता से दिल्ली या दिल्ली से मुंबई 9 से 10 घंटे में पहुंच सकते हैं।

भले ही ब्याज दर कम हो पर यह भी याद रखिए कि बुलेट ट्रेन हमारे ऊपर एक लाख करोड़ का कर्ज लेकर आ रही है जिसे हमें अगले  54 सालों में चुकाना होगा। तो आइए फिलहाल तो स्वागत करें गोली रेल का...

-    विद्युत प्रकाश मौर्य 

 ( BULLET TRAIN, INDIA, JAPAN ) 

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