ठुमरी और
पारम्परिक लोक संगीत के अलावा उन्हें होरी, चैती, कजरी, झूला, दादरा और भजन के अनूठे प्रदर्शनों के लिए याद किया
जाएगा। गिरिजा देवी ने ठुमरी के साहित्य का गहन अध्ययन और अनुसंधान भी किया। भारतीय
शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में ऐसी गायिका रहीं जिन्हें पूरब अंग की गायकी के लिए
विश्वव्यापी प्रतिष्ठा दिलाई। 
गिरिजा देवी – 8 मई 1929 (वाराणसी)  - 24 अक्तूबर 2017 (कोलकाता)
संगीत शिक्षा - 
उनके पिता रामदेव राय हारमोनियम
बजाया करते थे। उन्होंने गिरिजा देवी जी को प्रारंभ में संगीत सिखाया। कालांतर में उन्होंने गायक और सारंगी वादक सरजू प्रसाद मिश्रा से ख्याल  और टप्पा गायन की
शिक्षा लेना शुरू की। 
1944 में 15 साल की उम्र में
कारोबारी मधुसूदन जैन से विवाह हुआ। पति ने संगीत साधना में काफी सहयोग दिया। 
1949 में गिरिजा देवी ने गायन की सार्वजनिक शुरुआत,ऑल इंडिया रेडियो
इलाहाबाद से की। 
1951 में बिहार के आरा में
उन्होंने अपना पहला सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम दिया। 
1975 में
पति का निधन होने से जीवन में बड़ा खालीपन आया, क्योंकि पति उनके संगीत साधना में
काफी सहयोग करते थे। 
1980 के दशक में कोलकाता में आईटीसी संगीत रिसर्च एकेडमी में काम किया। 
1990 के दशक के दौरान काशी हिंदू विश्वविद्यालय के
संगीत संकाय के एक सदस्य के रूप में काम किया। 
पुरस्कार
और सम्मान 
1972 में पद्मश्री 
1977 में संगीत नाटक अकादमी
पुरस्कार 
1989 पद्म भूषण
2010 में
संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप 
2016 – पद्मविभूषण
----vidyutp@gmail.com
No comments:
Post a Comment