1965 में शादी के वक्त ( फोटो - द विंटाज न्यूज) |
स्टीफन तार्किक दिमाग वाले
व्यक्तियों थे और उन्हों ने सृष्टि की रचना में कभी भगवान की मौजूदगी को नहीं माना।
वह अपने दिमाग को भी एक कंप्यूटर ही मानते थे। उनका कहना था कि जिस दिन इसके
पुर्जे खराब हो जाएंगे, उस दिन मैं
भी नहीं रहूंगा। वह पुर्नजन्म में भी कोई सच्चाई नहीं मानते थे।
मजेदार बात है कि स्टीफन
कॉलेज में गणित पढ़ना चाहते थे। उनके पिता ने उन्हें मेडिकल की पढ़ाई करने की सलाह
दी थी। कॉलेज में गणित विषय उपलब्ध नहीं था, ऐसे में उन्होंने भौतिकी को चुना। तीन साल बाद उन्हें
नेचुरल साइंस में फर्स्ट क्लास ऑनर्स डिग्री मिली। वह 1973 का साल था जब 21 साल के
स्टीकफन हॉकिंग ऑक्सफोर्ड से भौतिकी में प्रथम श्रेणी से डिग्री लेने के बाद
कॉस्मोलॉजी में पोस्टग्रेजुएट रिसर्च करने के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए।
उसके बाद कैंब्रिज उनका स्थायी ठिकाना बन गया।
ब्लैक होल के बारे में
हॉकिंग ने बताया था कि ब्लैक
होल का आकार सिर्फ बढ़ सकता है, ये
कभी भी घटता नहीं है। ब्लैक होल के पास जाने वाली कोई भी चीज उससे बच नहीं सकती और
उसमें समा जाती है और इससे ब्लैक होल का भार बढ़ता ही जाएगा। ब्लैक होल का भार ही
उसका आकार निर्धारित करता है जिसे उसके केंद्र की त्रिज्या से नापा जाता है। ये
केंद्र (घटना क्षितिज) ही वह बिंदू होता है जिससे कुछ भी नहीं बच सकता। इसकी सीमा
किसी फूलते हुए गुब्बारे की तरह बढ़ती रहती है। हॉकिंग ने आगे बढ़कर बताया था कि
ब्लैक होल को छोटे ब्लैक होल में विभाजित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा था कि
दो ब्लैक होल के टकराने पर भी ऐसा नहीं होगा। हॉकिंग ने ही मिनी ब्लैक होल का
सिद्धांत भी दिया था।
खुद को नास्तिक बताया
स्टीफन हॉकिंग ने कहा था कि
भगवान का अस्तित्व नहीं है और मैं 'नास्तिक' हूं।
साल 2014 में स्टीफन ने एक साक्षात्कार में कहा था कि सेंट अल्बंस स्कूल में एक
स्कूल के लड़के के रूप में उन्होंने ईसाई धर्म के बारे में अपने सहपाठियों के साथ
तर्क किया और कॉलेज के दिनों में भी वह एक प्रसिद्ध नास्तिक थे। उनकी पहली पत्नी
जेन ईसाई धर्म पर पक्का विश्वास करने वाली महिला थी।मगर, उन दोनों के बीच भी कभी धार्मिक मामलों को लेकर एक मत नहीं
रहे थे। दुनिया के महान वैज्ञानिकों में शुमार स्टीफन हॉकिंग ने संसार के सृजन में
ईश्वंर की भूमिका को लेकर भी एक अलग तरह का सिद्धांत दिया।
दुनिया को बनाने वाला कोई
भगवान नहीं ( हॉकिंग की जुबानी )
मेरा मानना है कि कोई भगवान
नहीं है। किसी ने भी हमारे ब्रह्मांड नहीं बनाया है और कोई भी हमारे भाग्य को
निर्देशन नहीं करता है। यह दुनिया भौतिकी के नियमों के मुताबिक अस्तित्व में आई
है। ब्रह्मांड की रचना को एक स्वतः स्फूर्त घटना है। जिस बड़े धमाके यानी बिग बैंग
के बाद धरती और अन्य ग्रहों का जन्म हुआ वह वैज्ञानिक दृष्टि से अवश्यंभावी था।
ब्रह्मांड एक भव्य डिजाइन है, लेकिन
इसका भगवान से कोई लेना देना नहीं है।
अगर हमारे सौर मंडल जैसे
दूसरे सौर मंडल मौजूद हैं तो यह तर्क गले नहीं उतरता कि ईश्वर ने मनुष्य के रहने
के लिए पृथ्वी और उसके सौर मंडल की रचना की होगी। ब्रह्मांड में गुरुत्वाकर्षण
जैसी शक्ति है इसलिए वह नई रचनाएं कर सकता है उसके लिए उसे ईश्वर जैसी किसी शक्ति
की सहायता की आवश्यकता नहीं है। हम एक बहुत ही औसत तारे के एक छोटे ग्रह पर बसे
बंदरों की उन्नत नस्ल हैं। मगर, हम
ब्रह्मांड को समझ सकते हैं। यह बात हमें बहुत खास बना देती है। धर्म और विज्ञान के
बीच एक बुनियादी अंतर है। धर्म जहां आस्था और विश्वास पर टिका है, वहीं विज्ञान ऑब्जर्वेशन (अवलोकन) और रीजन (कारण) कारण पर
चलता है। विज्ञान जीत जाएगा क्योंकि यह काम करता है। हम सभी जो चाहें, उस पर विश्वास करने के लिए स्वतंत्र हैं।
अगर ईश्वर के बारे में कोई
पक्का सिद्धांत बन सके तो वह विज्ञान की सबसे बड़ी कामयाबी होगी,तब हमारे पास ईश्वर के दिमाग को समझने का बच जाएगा। मैं
हमेशा से ही सृष्टि की रचना पर हैरान रहा हूं। समय और अंतरिक्ष हमेशा के लिए रहस्य
बने रह सकते हैं, लेकिन इससे
मेरी कोशिशें नहीं रुकी हैं।
मानव को दूसरा घर खोजने की दी
थी सलाह
स्टीफेन हॉकिंग ने कहा था कि
इस धरती की उम्र ज्यादा नहीं बची है। अगर मानव प्रजाति को बचाना है तो अगले कुछ सौ
सालों में हमें पृथ्वी से अलग किसी दूसरे ग्रह पर अपना घर तलाशने की शुरुआत कर
देनी होगी। उन्होंने एक थ्योरी की माध्यम से इस बात की संभावना जाहिर की थी कि आने
वाले कुछ सौ या हजार सालों में पृथ्वी पर क्लाइमेट चेंज, महामारी, जनसंख्या
वृद्धि या एस्टेरॉयड के टकराने जैसा कोई बड़ा हादसा हो सकता है। अगर हम ब्रह्मांड
में दूसरा घर तलाश लेंगे तो ही मानव प्रजाति को बचाया जा सकता है।
द थ्योरी ऑफ एवरीथिंग समेत कई बेस्ट सेलर किताबें लिखीं
1974 में ब्लैक होल्स पर
असाधारण तौर पर शोध करके उसकी थ्योरी में नया मोड़ देने वाले स्टीफन हॉकिंग द
ग्रैंड डिजाइन, यूनिवर्स इन नट शेल, माई ब्रीफ
हिस्ट्री, द थ्योरी ऑफ
एवरीथिंग जैसी पुस्तकें लिखीं। इन पुस्तकों ने उनकी वैज्ञानिक समझ और चिंतन को
दुनिया के सामने रखा। 1988में उन्हें सबसे ज्यादा चर्चा मिली थी, जब उनकी पहली पुस्तक 'ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम: फ्रॉम द बिग बैंग टू ब्लैक होल्स' प्रकाशित होकर बाजार में आई। इसके बाद कॉस्मोलॉजी पर आई
उनकी पुस्तक की 1 करोड़ से ज्यादा प्रतियां बिक गईं। इसे दुनिया भर में विज्ञान से
जुड़ी सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तक माना जाता है।
2014 में स्टीफन के जीवन पर फिल्म आई
दुनिया के सबसे प्रसिद्ध
भौतिकीविद और ब्रह्मांड विज्ञानी पर 2014 में थ्योरी ऑफ एवरीथिंग नामक फिल्म भी बन
चुकी है। इस फिल्मा में स्टी1फन का किरदार एडी रेडमेने ने निभाया था। इसके लिए
उन्होंसने उस साल बेस्ट एक्ट र का ऑस्कएर
पुरस्कार भी जीता। निर्देशक जेम्स मार्श ने निर्देशन में बनी इस फिल्म को 87वें
एकेडमी अवॉर्ड्स में कुल पांच नोमिनेशन मिले थे। अभिनेत्री फेलिसिटी जोन्स नेफिल्म
में उनकी पार्टनर की भूमिका निभाई थी।
फिल्म में निजी जिंदगी समाने
आई
स्टीफन हॉकिंग ने 1965 मे जेन
से शादी की थी। फिल्म थ्योरी ऑफ एवरीथिंग से स्टी5फन की निजी जिंदगी और इसकी हलचल
लोगों के सामने आई थी। और साथ ही इस बात का खुलासा भी हुआ था कि उनकी पत्नी जेन के
साथ बेहद प्याकर भरा रिश्ताउ कैसे वक्तस के साथ कड़वाहट में बदल गया। पहली पत्नी
जेन ने फिल्म की रिलीज के बाद एक साक्षात्कार में कहा था कि बीमारी के बावजूद मैं
उनसे पहले जैसा प्यार करती थी। लेकिन एक दिन आया जब स्टीफन और मुझे अलग होना पड़ा।
कई बार वो अपना पूरा हफ्ता अपनी कुर्सी पर बिता देते थे। वो कई बार मुझे और हमारे
बच्चों को देखते भी नहीं थे। अपनी हालत के बारे में बताते नहीं थे। रिसर्च के बाद
वो एक हस्ती बन चुके थे। मुझे इस बात से जलन नहीं थी, लेकिन इस वजह से हमारे रिश्तों में परेशानी आने लगी थी।
1995 में दूसरी शादी की
1995 में पहली पत्नी जेन से
अलग होने के बाद स्टीफन ने अपनी नर्स एलेन मेसन से शादी कर ली।2006 में इन दोनों
का भी तलाक हो गया। हॉकिंग की बेटी लूसी ने एलेन पर केस किया था वो हॉकिंग के साथ
अमानवीय व्यवहार कर रही थीं। लेकिन 2004 में इस केस की जांच पूरी हुई और एलेन इस
मुकदमे से बरी हो गईं।
आइंस्टीन के जन्मदिन के दिन
दुनिया छोड़ी
आइंस्टीन और हॉकिंग में कई
समानताएं देखी जाती हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन के बाद दुनिया केस्टीफन हॉकिंग को
दुनिया का सबसे महान सैद्धांतिक भौतिकीविद माना जाता है। पर यह संयोग ही कहा जाएगा
कि स्टीफन हॉकिंग की निधन का दिन और आइंस्टीन की जन्म का दिन एक ही यानी 14 मार्च
है।
साल 2001 में स्टीफन हॉकिंग
ने भारत का यादगार दौरा किया था। यह उनका पहला भारत दौरा था, जो उनके लिए बेहद यादगार रहा था। कुल 16 दिन की भारत यात्रा
पर आए स्टीफन हॉकिंग ने दिल्ली और मुंबई
का दौरा करने के साथ ही तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन से भी मुलाकात की थी।
उन्होंने कुतुब मीनार और जंतर-मंतर भी देखा था। इस दौरान वे दिल्ली के संसद मार्ग
स्थित जंतर-मंतर को देखने भी पहुंचे थे। तब जंतर मंतर के गाइड प्रेम दास ने उन्हें
जंतर मंतर जो कि वेधशाला है उसके बारे में जानकारी दी थी।
हॉकिंग जब भारत आए थे तो
उन्होंने कहा था कि भारतीय गणित और फिजिक्स में काफी अच्छे होते हैं। उन्होंने
मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में अंतरराष्ट्रीय फिजिक्स
सेमिनार को भी संबोधित किया था। स्ट्रिंग 2001 कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्हें प्रथम
सरोजिनी दामोदरन फैलोशिप से भी सम्मानित किया गया था। उन्होंने भारत में ओबरॉय
टावर्स होटल में अपना 59वां जन्मदिन भी मनाया था।
दुर्लभ बीमारी के साथ 55 साल
जीवित रहे...
स्टीफन हॉकिंग ने शारीरिक
अक्षमताओं को पीछे छोड़ते हु्ए यह साबित किया था कि अगर इच्छा शक्ति हो तो इंसान
कुछ भी कर सकता है। 8 जनवरी, 1942 को इंग्लैंड को ऑक्सफोर्ड में दूसरे विश्व युद्ध के
दौरान जन्मे स्टीफन अपने जीवन के 55 साल
तक मोटर न्यूरॉन नामक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित रहे। घुड़सवारी और नौका चलाने के शौकीन स्टीलफन 1963 में पहली बार हॉकिंग को मोटर न्यूरॉन
बीमारी का पता चला। तब डॉक्टरों ने कहा था कि उनके जीवन के सिर्फ दो साल बचे हैं।
आमतौर पर इस बीमारी से ग्रस्त मरीज 3 से 10 साल तक ही जी पाते हैं, लेकिन हॉकिंग ने इस लाइलाज बीमारी के साथ भी 55 साल तक
जीवित रहे। स्टीफन हॉकिंग ह्वीलचेयर के जरिए हीचलफिर पाते थे। इस बीमारी के साथ
इतने लंबे अरसे तक जीवित रहने वाले वे पहले शख्स थे। वह बोल और सुन नहीं पाते थे
और मशीनों की मदद से उन्होंयने इतने साल तक विज्ञान में शोध जारी रखा।
इस बीमारी में दिमाग का
मांसपेसियों पर नियंत्रण खत्म हो जाता है। रीढ़ की हड्डी की नसें काम करना बंद कर
देती हैं। इसमें शरीर की नसों पर लगातार हमला होता है और शरीर के अंग धीरे-धीरे
काम करना बंद कर देते हैं और व्यक्ति चल-फिर पाने की स्थिति में भी नहीं रह जाता
है। मोटर न्यूरॉन नर्व सेल होती है जो मांसपेसियों को इलेक्ट्रिकल सिग्नल भेजती है, जिससे हमारे शरीर का संचालन होता है। आमतौर पर यह बीमारी 40
साल के बाद के लोगों को होती है लेकिन कई बार कम उम्र के लोगों को भी हो जाती है।
पुरस्कार और सम्मान
12 मानद डिग्रियां और अमेरिका का सबसे उच्च नागरिक
सम्मान प्राप्त हुआ।
1978 - अल्बर्ट आइंस्टीन
पुरस्कार
1988 - वॉल्फ प्राइज
1989 - प्रिंस ऑफ ऑस्टुरियस
अवाडर्स
2006 - कोप्ले मेडल
2009 - प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ
फ्रीडम
2012 - विशिष्ट मूलभूत भौतिकी
पुरस्कार।
डेटलाइन – स्टीफन हॉकिंग
• 1942 में 8 जनवरी को स्टीफन हॉकिंग का ब्रिटेन में जन्म
हुआ।
• 1959 में हॉकिंग ने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में स्नातक की
पढ़ाई शुरू की
• 1965 में 'प्रॉपर्टीज
ऑफ एक्सपैंडिंग यूनिवर्सेज' विषय पर
अपनी पीएचडी पूरी की थी।
• 1970 में एक शोधपत्र प्रकाशित कराया जिसमें दर्शाया कि
ब्रह्मांड ब्लैक होल के केंद्र से ही शुरूहुआ होगा।
• 1973 में कॉस्मोलॉजी में पोस्टग्रेजुएट रिसर्च करने के लिए
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए।
• 1988 उनकी पुस्तक 'ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम: फ्रॉम द बिग बैंग टू ब्लैक होल्स' प्रकाशित हुई।
• 2014 में जब हॉकिंग फेसबुक पर पहली बार आए । उन्होंने लिखा
- मैं इस यात्रा को आपके साथ बांटने के लिए उत्सुक हूं।
- कथन -
मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात
की है कि मैंने ब्रह्माण्ड को समझने में अपनी भूमिका निभाई। इसके रहस्य लोगों के
खोले और इस पर किए गए शोध में अपना योगदान दे पाया। मुझे गर्व होता है जब लोगों की
भीड़ मेरे काम को जानना चाहती है।
- स्टीफन हॉकिंग
3 comments:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आकाश को छूती पहली भारतीय महिला को नमन : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
बहुत बढ़िया पोस्ट!
सबसे अच्छे जूते
भारत में सबसे अच्छे जूते किस किस कंपनी के आते हैं ।
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