19 मार्च 2018 को कर्नाटक
में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला। सिद्धारमैया सरकार ने
लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने की सिफारिश मंजूर कर ली है। लिंगायत
समुदाय वर्षों से हिंदू धर्म से अलग होने की मांग करता रहा है।
- प्रस्तुति - विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
(LINGAYAT, KARNATKA)
नागमोहन दास
समिति
समुदाय की
मांगों पर विचार के लिए नागमोहन दास समिति गठित की गई थी। राज्य कैबिनेट ने समिति
की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। कर्नाटक ने इस प्रस्ताव को अंतिम स्वीकृति के
लिए केंद्र के पास भेजा है। राज्य की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत समुदाय को अलग
धर्म का दर्जा देने का फैसला ऐसे समय किया है, जब अप्रैल-मई में विधानसभा के चुनाव होने हैं।
वीरशैव
लिंगायत फैसले के खिलाफ
कर्नाटक
सरकार के इस फैसले का वीरशैव लिंगायत समुदाय ने विरोध किया है। उनका कहना है कि
वीरशैव लिंगायत को लिंगायत से अलग धर्म घोषित किया जाए।
पुराना मुद्दा
लिंगायत
समुदाय दशकों से भाजपा का समर्थन करता रहा है। हिंदू से अलग धर्म का दर्जा देने पर
पर राज्य में भाजपा का मजबूत वोट बैंक खिसक सकता है। लिंगायत को कर्नाटक में
फिलहाल ओबीसी का दर्जा मिला हुआ है।
18 फीसदी
लिंगायत
कर्नाटक में
इस समुदाय की आबादी 18 फीसदी है। लिंगायत का विधानसभा की तकरीबन 100 सीटों पर प्रभाव माना जाता है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के
वरिष्ठ नेता बीएस येदियुरप्पा इसी समुदाय से आते हैं।
भाजपा करती
रही है विरोध
भाजपा
लिंगायत को हिंदू धर्म से अलग करने की मांग का विरोध करती रही है। येदियुरप्पा
कांग्रेस पर लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देकर समुदाय में फूट डालने की कोशिश
करने का आरोप लगाते रहे हैं।
केंद्र के पास
अंतिम अधिकार
अलग धर्म का
दर्जा देने का अंतिम अधिकार केंद्र सरकार के पास है। राज्य सरकारें इसको लेकर सिर्फ
अनुशंसा कर सकती हैं। लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा मिलने पर समुदाय को मौलिक
अधिकारों (अनुच्छेद 25-28) के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा भी मिल
सकता है। इसके बाद लिंगायत समुदाय अपना शिक्षण संस्थान भी खोल सकता है। फिलहाल
मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन को अल्पसंख्यक का दर्जा
हासिल है।
मोइली का
समर्थन
कांग्रेस
नेता और कन्नड़ साहित्य के लेखक वीरपप्पा मोइली ने कहा कि बीजेपी के पास लिंगायत
मुद्दे पर कोई नरेटिव नहीं है। यह कोई नई बात नहीं है कि लिंगायत को हिंदू धर्म से
अलग देखा जाए। जैसे बुद्ध और महावीर को अलग से मान्यता है और
किसी धर्म के साथ नहीं बांधा गया है। उसी तरह लिंगायत
को अल्पसंख्यक दर्जा देना उचित है।
लिंगायत और
वीर शैव
लिंगायत और
वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं। इन दोनों समुदायों का जन्म 12वीं शताब्दी के
समाज सुधार आंदोलन के स्वरूप हुआ। इस आंदोलन का नेतृत्व
समाज सुधारक बसवन्ना ने किया था। बसवन्ना खुद ब्राह्मण
परिवार में जन्मे थे। उन्होंने ब्राह्मणों के
वर्चस्ववादी व्यवस्था का विरोध किया। वे जन्म आधारित
व्यवस्था की जगह कर्म आधारित व्यवस्था में विश्वास करते थे। लिंगायत समाज पहले हिन्दू
वैदिक धर्म का ही पालन करता था लेकिन इसकी कुरीतियों को दूर करने के लिए इस नए सम्प्रदाय की स्थापना की
गई।
बासवन्ना ने जाति व्यवस्था में
भेदभाव के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। वेदों और मूर्ति पूजा को नहीं माना। लिंगायत अपने शरीर पर गेंद की तरह एक इष्टलिंग बांधते हैं। उनका मानना है
कि इससे मन की चेतना जागती है। लिंगायत खुद को वीरशैव
से अलग बताते हैं। उनका कहना है कि वीरशेव बासवन्ना से भी पहले से हैं। वे शिव को
मानते हैं, जबकि लिंगायत शिव को नहीं मानते।
राजनीति में
लिंगायत
224 सदस्यों वाली राज्य की विधानसभा में 52 विधायक
लिंगायत हैं।
18 फीसदी है कर्नाटक में इस समुदाय की आबादी।
1980 के बाद लिंगायत वोट कर्नाटक में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं।
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