Tuesday, 24 April 2018

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों से हट चुका है विवादित अफ्स्पा कानून

पूर्वोत्तर के सात राज्यों में से तीन राज्यों में विवादित अफ्स्पा कानून को हटाया जा चुका है। मेघालय से पहले यह कानून त्रिपुरा और मिजोरम में भी अप्रभावी हो चुका हैवहीं अरुणाचल प्रदेश में यह आंशिक रूप से ही लागू है। पूर्वोत्तर के बाहर यह जम्मू कश्मीर में भी 90 के दशक से ही लागू है। हालांकि वहां भी बार-बार इसे हटाने मांग उठती रही है।

जम्मू कश्मीर में भी लागू
अफ्स्पा कानून 28 साल से जम्मू कश्मीर में भी लागू है। 1990 में अशांत कश्मीर में इसे लागू किया गया। फरवरी 2018 में जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने हालात का हवाला देते हुए कश्मीर में विवादित अफ्सपा को हटाने से इनकार किया।

60 साल पुराना कानून
1958 में  एक सितंबर को 07 राज्यों में ‘अफ्स्पा’ लागू किया गया।(असममणिपुरत्रिपुरामेघालयअरुणाचल प्रदेशमिजोरम और नगालैंड )
1986 में मिजो समझौता के बाद मिजोरम में अफ्स्पा निष्क्रिय हो गया।
2015 के मई महीने में त्रिपुरा में कानून व्यवस्था की स्थिति की संपूर्ण समीक्षा के बाद अफ्स्पा हटा लिया गया।
2018 में 31 मार्च को मेघालय से भी अफ्स्पा कानून को हटाया गया।

सेना को विशेष अधिकार देता है ‘अफ्स्पा
भारतीय संसद ने 1958 में ‘अफ्स्पा’ यानी ‘आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्टको लागू किया। यह एक फौजी कानून हैजिसे उन राज्यों में लागू किया गया जहां कानून व्यवस्था के हालात ज्यादा खराब थे। यह कानून सुरक्षा बलों और सेना को कई विशेष अधिकार देता है।

बिना वारंट के गिरफ्तारी
1. यदि कोई व्यक्ति कानून तोड़ता है और अशांति फैलाता हैतो सेना बल का प्रयोग कर सकती है।
2. अफसर किसी आश्रय स्थल या ढांचे को तबाह कर सकता हैजहां से हथियार बंद हमले का अंदेशा हो।
3. सशस्त्र बल किसी भी असंदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकते हैं।
4 . सेना किसी परिवार में बिना वारंट के घर के अंदर जा कर तलाशी ले सकता है।
6. वाहन को रोक कर या गैर-कानूनी ढंग से हथियार ले जाने पर उसकी तलाशी ली जा सकती है।
7. सेना के अधिकारियों को उनके वैध कार्यों के लिए कानूनी प्रतिरक्षा दी जाती है।

नगालैंड में अभी भी लागू
2015 में 3 अगस्त को नगा विद्रोही समूह एनएससीएन (आईएम)महासचिव टी मुइवा और सरकार की ओर से वार्ताकार आरएन रवि के बीच प्रधानमंत्री की मौजूदगी में मसौदा समझौते पर हस्ताक्षर होने के बावजूद नगालैंड में यह कानून लागू है।

इन्होंने किया था विरोध -

इरोम शर्मिला ने 16 साल संघर्ष किया
2000 में 4 नवंबर को अफ्स्पा कानून के विरोध में मणिपुर की मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने उपवास शुरू किया। उनका उपवास16 साल तक चला। उनके विरोध की शुरुआत सुरक्षा बलों की कार्यवाही में कुछ निर्दोष लोगों के मारे जाने की घटना से हुई।
औपनिवेशिक कानून बताया था
2009 में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग के कमिश्नर नवीनतम पिल्लई ने इस कानून के खिलाफ जबरदस्त आवाज उठाई थी। उन्होंने इस कानून को देश के सभी हिस्सों से पूरी तरह से हटाने की मांग की थी। पिल्लई ने  इसे औपनिवेशिक कानून की संज्ञा दी थी।-
vidyutp@gmail.com
(AFSPA, NORT EAST, J &K , 1958 LAW ) 

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