Sunday, 20 October 2019

गोल्फ की विरासत और मोती लाल

मोती लाल गोल्फ गुरु - जन्म - 1946 निधन -19 अक्तूबर 2019
गोल्फ गुरु के नाम से विख्यात मोतीलाल 19 अक्तूबर 2019 को इस दुनिया को छोड़कर चले गए। उन्होंने अपने जीवन में तकरीबन 850 लोगों को गोल्फ खेलने का प्रशिक्षण दिया। इसमें बड़ी संख्या में नौकरशाह और राजनेता शामिल थे। 

गोल्फ के कोच के तौर पर उनकी अंतरराष्ट्रीय ख्याति थी। वे गोल्फ की कोचिंग के साथ ही गोल्फ से जुड़े तमाम उत्पादों का निर्माण भी करते थे। उनकी ज्योतिष में भी गहरी रूचि थी। 19 अक्तूबर को यशोदा अस्पताल में उनका निधन हो गया। 



मैं पिछले दो दशक से लगातार उनके संपर्क में रहा। साल 1997 के मार्च महीने में उनका एक लंबा साक्षात्कार मैंने अपने अखबार कुबेर टाइम्स के लिए किया था। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे आखिरी दिनों में जब उनसे मुलाकात हुई तो वे पारंगत ज्योतिषी बन गए थे। उन्होंने मेरे बेटे की जन्म कुंडली तुरंत बना डाली।
वैसे तो गोल्फ को हमेशा से संभ्रांत लोगों को खेल माना जाता है। पर कई पीढ़ियों से गोल्फ से जुड़ा मोती लाल का परिवार बिहार के समान्य पृष्ठभूमि से आता था।

उनका परिवार बिहार के बक्सर जिले से आता था।  पिता हीरा लाल भी जाने माने गोल्फ के कोच थे। दादा किशन कोईरी भी गोल्फ को कोच थे। वे शिलांग के गोल्फ कोर्स में गोल्फ सिखाया करते थे। पिता हीरा लाल को लार्ड माउंट बेटन अपने साथ दिल्ली लेकर आए। पिता के साथ तकरीबन तीन साल की उम्र से ही मोतीलाल गोल्फ कोर्स में जाने लगे थे।

मोती लाल ने जिन लोगों को गोल्फ का प्रशिक्षण दिया उनमें राजनेताओं और आईएएस की लंबी फेहरिस्त शामिल है। अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच वे कई मोर्चो पर सक्रिय रहते थे। गोल्फ कोचिंग, अपनी कंपनियों को देखना, समाजिक समारोहों में भागीदारी के बीच परिवार और दोस्तों के लिए समय निकाल लेना उनकी विशेषता थी। वे 24 घंटे में बमुश्किल पांच घंटे ही सोते थे। रात को 11 बजे सोने के बाद सुबह के चार बजे वे नोएडा गोल्फ क्लब में मौजूद मिलते थे। 
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( MOTILAL, GOLF, HIRALAL, SANDEEP KASHYAP ) 



Tuesday, 15 October 2019

गरीबी से निजात दिलाने का रास्ता बताने वाले को नोबेल

दुनिया में 70 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी नहीं मिल पाती। साल 2019 का अर्थ शास्त्र का नोबेल पुरस्कार पाने वाले भारतवंशी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी पिछले 30 सालों से ऐसे लोगों के लिए ही काम कर रहे हैं।

दुनिया के विकासशील देशों के 568 कलस्टर में दस साल तक शोध करके उन्होंने गरीबी के असली कारण जानने की कोशिश की.  फिर कई उपाय सुझाएजिन्हें कई सरकारों लागू किया जिसके बेहतर परिणाम आए। उन्हें भारत के 50 लाख दिव्यांग बच्चों के जीवन में उजाला लाने का श्रेय जाता है।

अभिजीत बनर्जी मानते हैं कि बचपन को सेहतमंद बनाना सबसे जरूरी है। इसलिए उनका सारा जोर टीकाकरण अभियान और पौष्टिक भोजन दिए जाने पर है।

मुंबई में जन्मे कोलकाता में पले बढ़े अभिजीत ने खुद कभी गरीबी का दंश नहीं झेला पर उनका दिल हमेशा गरीबों के लिए धड़कता है। वे खुद शानदार रसोइया भी हैंपर वे चाहते हैं कि दुनिया का कोई बच्चा भूखा न सोए. उनकी अब तक प्रकशित छह में से तीन किताबे गरीबी पर ही केंद्रित हैं।
गरीबी पर केंद्रित तीन पुस्तकें
अभिजीत बनर्जी की 2006 में अंडरस्टैंडिंग पावर्टी नामक पुस्तक आई। 2011 में आई पुस्तक पूअर इकोनोमिक्स ए रेडिकल रिथिंकिंग ऑफ द वे टू फाइट ग्लोबल पावर्टी। साल 2019 में एक और पुस्तक ए शार्ट हिस्ट्री ऑफ पावर्टी मेजरमेंटस।

नवीनतम पुस्तक  2019 में उनकी पुस्तक ह्वाट द इकोनोमी निड्स नाउ आई है जिसमें अभिजीत के साथ गीता गोपीनाथ, रघुराम राजन और मिहिर एस शर्मा सह लेखक हैं।


568 स्थलों पर प्रयोग
अभिजीत बनर्जी की अध्यक्षता में अब्दुल जमील लतीफ पावर्टी एक्शन लैब ने 10 सालों में भारत समेत विकासशील देशों में 568 स्थलों पर प्रयोग किए, जिससे गरीबी के कारणों को समझने में मदद मिली।

गरीबी दूर करने के सूत्र दिए

अभिजीत बनर्जी के इन सुझावों पर अमल से लाभ हुआ
स्कूल में बच्चों को मुफ्त भोजन
कमजोर बच्चों को खास तौर पर मदद
गरीब बच्चों के लिए मोबाइल क्लिनिक
समय पर सारे टीकाकरण
बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन का इंतजाम


vidyutp@gmail.com

(ABHIJIT BANARJEE,  NOBEL PRIZE 2019, ECONOMICS)