हरियाणा में कांग्रेस के सांसद कुलदीप
बिस्नोई अपनी सरकार के रिलायंस के साथ मिलकर एसईजेड यानी स्पेशल इकोनोमिक जोन बनाए
जाने के फैसले के खिलाफ हैं। इसलिए उन्होंने हाल में उन पांच गांवों की तूफानी
पदयात्रा की जिन गांवों की जमीनें इस आर्थिक जोन के लिए ली जाने वाली हैं। उनका
आरोप है कि इस आर्थिक जोन के नाम पर किसानों की जमीन बहुत सस्ते में ली जा रही है।
वे खुलेआम ऐसे किसी आर्थिक जोन का विरोध कर रहे हैं। अब किसानों की हितों की रक्षा
एक मुद्दा हो सकता है। यह जरूरही है कि जिन किसानों की जमीनें इस आर्थिक जोन के लिए
ली जाने वाली है, उनको अपनी जमीन का वास्तविक मुआवजा मिले। निश्चय ही किसानों के हितों की
अनदेखी नहीं होनी चाहिए। पर किसी राज्य में आर्थिक जोन का अगर निर्माण किया जा रहा
है तो यह किसी भी सूरत में गलत नहीं ठहराया जा सकता है।
क्यों चाहिए आर्थिक जोन- देश के समग्र आद्योगिक विकास के
लिए आर्थिक जोनों का निर्माण जरूरी है। तभी हम चीन जैसे देश से मुकाबला कर सकेंगे।
रिलायंस का हरियाणा में बनने वाला प्रस्तावित आर्थिक जोन 25 हजार
एकड़ का है जबकि चीन में इससे कई बड़े बड़े आर्थिक जोनों का निर्माण हो चुका है।
अब पंजाब हरियाणा जैसे राज्य बड़े औद्योगिक घरानों को अपने यहां आकर आर्थिक जोन
बनाने का न्योता दे रहे हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं नजर आनी चाहिए।
आर्थिक जोन में उद्योग स्थापित होने से
उद्योग जगत को लाभ है। इसमें एक खास तरह के सभी उत्पादन केंद्रों की स्थापना एक ही
परिसर में की जाती है। इसके साथ ही वेयरहाउस मजदूरों व अधिकारियों के लिए आवासीय क्षेत्र
का निर्माण भी इसी क्षेत्र में किया जाता है। इससे उत्पादन की प्रणाली एकीकृत हो
जाती है। जाहिर है कि इसका असर उत्पादन पर भी पड़ेगा। जैसे गारमेंट के क्षेत्र सभी
उद्योगों को एक खास जोन में स्थापित किया जाए। पेट्रोलियम आटोमोबाइल आदि जुड़े
उद्योगों को एक ही परिसर में स्थापित किया जाए तो उत्पादन प्रक्रिया को बेहतर
बनाया जा सकेगा।
सरकार की रियायतें- यह आरोप लगाया जा रहा
है कि सरकार ऐसे आर्थिक जोन बनाने के नाम पर उद्योगों को रियायतें दे रही है। यह
सही है कि उद्योगों को आकर्षित करने के लिए रियायतें घोषित करनी पड़ती है।
उद्योगपति भी कोई उद्योग वहीं लगाएगा जहां उसे सबसे बेहतर सुविधाएं प्राप्त हो
सकेंगी। अभी पिछले कुछ सालों से टाटा समूह एक लाख रुपए की कार बनाने की बात कर रहा
है। हालांकि उसने यह तय नहीं किया था कि यह कार कहां पर बनाई जाएगी। कभी उत्तरांचल,
कभी पं बंगाल के नाम की चर्चा चल रही थी। अंत में पंजाब सरकार से
समझौते केबाद यह तय हुआ कि टाटा की सस्ती कार का यह प्रोजेक्ट पंजाब में रोपड़
जिले में लगाया जाएगा। जाहिर है कि टाटा ने वहीं प्लांट लगाना पसंद किया जहां उसे
सबसे बेहतर सुविधाएं प्राप्त हुईं। उद्योगपतियों को अगर रियायत नहीं प्राप्त हो तो
वे अपना उद्योग एक राज्य से उठाकर दूसरे राज्य में ले जाने की बात करने लगते हैं।
पिछले कुछ सालों में कई उद्योग धंधे पंजाब से शिफ्ट होकर हिमाचल प्रदेश में शिफ्ट
होने लगे क्योंकि वहां उन्हें सस्ती बिजली और कई साल तक करों में रियायत मिल रही
थी। इसलिए हर सरकार को अपने यहां उद्यमियों को आकर्षित करने के लिए कई उपक्रम करने
पड़ते हैं। कोई उद्योगपति सबसे पहले कानून व्यवस्था की बेहतर स्थितियां उसके बाद
बिजली पानी सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं की ओर देखता है।
-विद्युत प्रकाश
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