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जब पुलिस पार्क
में बैठे प्रेमी युगलों पर डंडे बरसाने लगे तो पुलिस की भूमिका पर और भी सवाल खड़े
होते हैं। क्या दो प्यार करने वालों का पार्क में बैठना गुनाह है। पार्क वह
सार्वजनिक स्थल है जिसे सरकार लोगों को बैठने या घूमने के लिए ही बनवाती है। यहां जाने
के लिए किसी तरह की पूर्व अनुमति की भी कोई जरूरत नहीं समझी जाती। हां पार्क में
अगर अनैतिक कर्म हो रहे हों तो पुलिस को उस पर नजर रखनी चाहिए। पर पुलिस बिना कोई
पूछताछ किए बिना असलियत जाने अगर लोगों पर डंडे बरसाने लगे तो लोग आखिर दो घड़ी
चैन के बीताने के लिए कहां जाएं। आखिर व महफूज जगह कौन सी हो। कुछ लोगों का कहना
है कि मेरठ के पार्क में प्रेमी जोड़ों के विचरण करने से आसपास के लोगों को
परेशानी थी। ऐसे में भी जांच पड़ताल के कई और तरीके निकाले जा सकते हैं। दो प्रेम
करने वाले उन लोगों के लाख गुने बेहतर हैं जो किसी जेब काटते हैं या किसी का गला
रेत देते हैं। पुलिस का मूल का अपराध मुक्त समाज का निर्माण करना है न कि प्यार करने
वालों पर पहरे लगाना। किसी भी पेश में समाज को सुधारने का काम तब संभव है जब पहले
वह अपने मूल कार्य को ठीक से संपादित कर ले रहा हो उसके बाद वह अपने कर्तव्यों की
बात करे। यह सही है कि देश में पुलिस का कई बार गलत इस्तेमाल होता है। पुलिस बल को
अक्सर नेताओं की सुरक्षा में लगाया जाता है। ट्रैफिक कंट्रोल, शादी समारोह तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के मौके पर सुरक्षा में भी पुलिस
लगा दी जाती है। इन सब कारणों से कई बार पुलिस अपने मूल कार्यों पर समय नहीं दे पाती
है। कई साल पहले पुलिस दिल्ली में प्यार करने वालों पर पहरे लगा रही थी। पार्कों और
सार्वजनिक स्थानों पर खास तौर पर पुलिस इस बात की निगरानी के लिए लगाई गई थी कि
कहीं लोग इन स्थलों से देह व्यापार जैसे रैकेट न संचालित कर रहे हों। दिल्ली मुंबई
जैसे महानगरों में देखा गया है कि सार्वजनिक स्थलों पर जेह व्यापार का संचालन भी
हो जाता है। ऐसे मामलों पर पुलिस को निश्चय ही नजर रखनी चाहिए। पर भले घर के लोगों
और ऐसे लोगों में भेद किया जा सकता है।
-विद्युत प्रकाश मौर्य, vidyutp@gmail.com
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