Sunday, 5 July 2009

बोरवेल में गिरे प्रिंस के बहाने

मीडिया हर बिकाउ आइटम को पकड़ता है। खासकर समाचार चैनल प्रतियोगिता में अपनी व्यूअरिशप बढ़ाने के लिए हर उस खबर को पकड़ने की कोशिश में लगे रहते हैं जिसमें बिकाउ एंगल हो। इसी क्रम में रोचक और फिल्मी खबरों को समाचार चैनलों पर ज्यादा तरजीह मिल पाती है। पर हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में एक हैंडपंप में बोरवेल में फंसे पांच साल के नन्हें प्रिंस को बचाने का आपरेशन दिखाने के लिए कई चैनलों ने लगभग 40 घंटे का लाइव शो दिखाया। इसका टीवी चैनलों को लाभ भी हुआ। माना जाता है कि इस दौरान उनकी टीआरपी में जबरदस्त इजाफा हुआ। देश भर के लोगों की नजरें टीवी स्क्रीन की तरफ थीं। इस दौरान टीवी देखने वालों की संख्या इतनी बढ़ी जितनी की भारत पाकिस्तान मैच के दौरान भी नहीं होती। अभी तक देश में सबसे ज्यादा टीआरपी भारत पाकिस्तान के मैच के दौरान ही देखने को मिलता है। जहां प्रिंस को बचाने के आपरेशन के दौरान टीवी चैनलों के व्यूअरशिप में जबरदस्त इजाफा हुआ वहीं कुछ चैनलों ने इस दौरान विज्ञापनों से जबरदस्त कमाई भी की।
सब कुछ टीआरपी के लिए - हालांकि इस दौरान जी न्यूज जैसे चैनल ने कहा कि वह बीच में कोई विज्ञापन नहीं दिखाएगा और मानवतावादी धर्म का निर्वहन करते हुए प्रिंस को बचाने को लेकर पल पल की खबरें प्रसारित करेगा। प्रिंस प्रकरण में टीवी चैनलों को अपने बारे में एक सकारात्मक संदेश यह ज्ञापित करने का मौका मिला कि वे सकारात्मक खबरों को भी प्राथमिकता देते हैं। नहीं तो अभी तक समचार चैनलों के बारे में माना जाता था कि वे अपराध और मनोरंजन की खबरों को चासनी लगाकर परोसते हैं। इसमें काफी हद तक सच्चाई भी है। चाहे व राखी सावंत पर कोल्हापुर में मुकदमा का प्रकरण हो या फिर मीका और राखी सावंत चुंबन प्रकरण सभी समाचार चैनलों ने घंटों इसपर कवरेज की। इन घटनाओं का देश के सरोकार से कोई जुड़ाव नहीं था। हां इसका फायदा राखी सावंत और मीका जैसे लोगों को जरूर मिला। हासिए पर रहने वाले लोग अचानक लाइमलाइट में आ गए थे। पर क्या प्रिंस प्रकरण को दिखाकर टीवी चैनलों ने सचमुच में अपना मानवतावादी चेहरा प्रस्तुत किया। नहीं इसके पीछे असली मकसद तो था ज्यादा से ज्यादा दर्शक बटोरने की कोशिश। कई समाचार चैनलों के बीच आजकल असली लड़ाई इसी बात को लेकर है। हालांकि टीवी चैनलों पर शानदार कवरेज का प्रिंस को और प्रिंस के गांव हल्दाहेड़ी के लोगों को जबरदस्त लाभ हुआ है। गांव में विकास की लहर चल पड़ी है। सरकार वहां सारी सुविधाएं जुटाने में लगी है, वहीं सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं प्रिंस के परिवार वालों को मदद करने मे जुटी है।

सबसे बड़ा लाइव शो - एक मायने में प्रिंस प्रकरण पर कवरेज ने भारतीय टेलीविजन जगत में इतिहासा रच दिया है। यह है टीवी स्क्रीन पर सबसे लंबे लाइव शो का। लगभद 40 घंटे तक कई चैनल इस प्रोग्राम का जीवंत प्रसारण करते रहे। यह रियलिटी टीवी पर दिखाए जाने वाले किसी लाइव शो की तरह ही था। इस प्रोग्राम का अंत भी सुखांत रहा क्योंकि प्रिंस को बचा लिया गया। पर इसमें टीवी चैनलों की भूमिका क्या रही। प्रिंस को तो गांव वालों के अथक परिश्रम और थल के सेना के रेजिमेंट के जवानों के विशेष प्रयास से बचाया जा सका। टीवी चैनलों ने तो इसे अपने लिए भी एक मसाले की तरह भुनाया। स्टार न्यूज ने प्रिंस और उसके परिवार वालों को मुंबई लेजाकर घुमाया। फिल्मी सितारों से मुलाकात कराई और इस घटना में इंटरटेनमेंट एंगिल निकालकर इसे कैश कराया।

सामाजिक सरोकार और मीडिया
अगर हम टीवी चैनलों की बात करें तो क्या दिन भर दिखाई जाने वाली खबरों में भला कितनी खबरें ऐसी होती हैं जिनका सामाजिक सरकोकार से कोई जुड़ाव होता है। वास्तव में आजकल ऐसी खबरें बहुत कम देखने को मिलती हैं। हर जगह बिकाउ माल पेश करने की होड़ सी लगी है। अगर कोई चीज बिकाउ नहीं है तो उसे बिकाउ कैसे बनाया जाए इसकी होड़ लगी है। सभी चैनलों ने बोरवेल में फंसे प्रिंस को सकुशल बाहर निकालने की घटना को लाइव दिखाया। हालांकि उसे बाहर निकालने में इन चैनलों की कोई खास भूमिका नहीं रही। वे इस दौरान चाहते तो अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए देश के किसी भी कोने से विशेषज्ञ बुलाते और इस बचाव आपरेशन में मददगार भी बन सकते थे। पर गरीब प्रिंस को तो कुदरत ने ही बचा लिया। यह उसकी उत्कट जीजिविषा ही थी कि वह 50 घंटे तक बोरवेल के छेद में 53 फीट नीचे जीवित बचा रहा और बाहर से आ रही रोशनी के साथ जीवन के लिए संघर्ष करता रहा। इसके इस संघर्ष को हर किसी ने सलाम किया।

मनोरंजन का मसाला - पर प्रिंस के बचने के बाद एक टीवी चैनलों को इसमें जबरदस्त मनोरंजन का मशाला मिल गया। वह प्रिंस और उसके परिवार वालों को चुपके से मुंबई ले गया। वहां प्रिंस दो दिनों तक फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से मिलता जुलता रहा। हालांकि किसी भी फिल्म स्टार से मिलकर प्रिंस के चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं आ रहा था। आता भी कैसे प्रिंस कोई शहरी लड़ता तो है नहीं जो किसी फिल्म स्टार को पहचानता हो और टीवी पर उनका चेहरा देखकर खुश हो जाता हो। वह तो इन सब चीजों से निस्पृह है। उसके लिए सन्नी दयोल, अनुपम खेर, शिल्पा शेट्टी, मलयिका अरोरा, सलमान खान आदि का कोई मतलब नहीं है। सारे चेहरे अजनबी जैसे हैं। हां समाचार चैनल दो दिन तक इन सब सितारों को अनौपचारिक रुप में टीवी पर दिखाता रहा। दर्शकों को उसने आदत डलवा दिया। मनोरंजन दिखाने की समचार की शक्ल में। इसलिए उसे अपनी पसंद का साफ्टवेयर मिल गया था। पर अभागे प्रिंस को मुंबई का वातावरण पसंद नहीं आया। 50 घंटे बोरवेल में रहकर वह भले ही सकुशल रहा हो पर मुंबई से आने के बाद वह जबरदस्त बीमार पड़ गया। कई दिनों तक वह अस्पताल में पड़ा रहा। पर इस दौरान किसी ने भी प्रिंस की सुध नहीं ली।
ऐसी कितना घटनाएं होती हैं जो खबर बनती हैं। प्रिंस जैसे और भी लोग होते हैं जो आपदा में फंसे होते हैं। उनके निकालने के लिए आपरेशन होता है। पर वे मीडिया में खबर नहीं बनते। अभी गुजरात में सैकड़ों स्कूली बच्चे बाढ़ के कारण अपने बोर्डिंग स्कूल की बिल्डिंग में ही फंस गए। उन्हें भी सेना ने आपरेशन करके सकुशल निकाला। हालांकि गड्ढे में किसी बच्चे के गिर जाने की प्रिंस के रुप में कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले हरियाणा और मध्य प्रदेश में कई और बच्चों को ऐसी घटनाओं में सफलतापूर्वक निकाला जा चुका है। पर तब टीवी चैनलों को या तो पता नहीं चला था, या फिर तब उनको इसमें कोई बिकाउ एंगिल नहीं नजर आया था। जब भी टीवी चैनल वाले कोई खबर बनाते हैं तो उन्हें एक बार इस एंगिल से भी सोचना चाहिए कि इस खबर के साथ सामाजिक सरोकार कितना जुड़ा हुआ है। जल्दबाजी के चक्कर में अभी हाल में सोनीपत के पास नहर में गिरी स्कूली बस के प्रकरण में पहले टीवी चैनलों ने कहना शुरु कर दिया कि 50 बच्चों में से छह को बचा लिया गया है बाकि के बचे होने की कोई उम्मीद नहीं है। जबकि कुछ घंटे बाद ही यह साफ हो गया कि 29 बच्चों में से 23 को सफलतापूर्वक बचा लिया गया था।
- विद्युत प्रकाश मौर्य 
( 23 जुलाई 2006 को हरियाणा के कुरुक्षेत्र ज़िले के एक गाँव में 60 फुट गहरे गड्ढे में गिरे एक बच्चे को 48 घंटे के प्रयास के बाद भारतीय सेना के अधिकारी बचाने में कामयाब हो सके थे।) 

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