कुछ बुद्धिजीवियों ने भारत में भी समलैंगिकता को कानूनी जामा पहनाने की वकालत की है। इसके लिए हस्ताक्षरित पत्र राष्ट्रपति को भी लिखा गया है। इतना ही नहीं एड्स जैसी बीमारी के लिए काम करने वाली संस्था नाको ने भी इसके समर्थन में अभियान छेड़ दिया है।
नाको के एक आंकड़े के अनुसार देश में 24 लाख से ज्यादा ऐसे लोग हैं जो समलैंगिक हैं। नाको के अनुसार वह सिर्फ छह लाख लोगों को ही कवर कर पाया है बाकि लोगों तक पहुंचने के लिए उसे काफी समय चाहिए। नाको भी चाहता है कि भारत में समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दे दी जाए। पर अहम सवाल यह उठता है कि क्या भारत जैसे देश में समलैंगिकता को मान्यता देना कितना उचित होगा। देश में बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग इसके पक्ष में है। दुनिया के कई देशों में समलैंगिकता के पक्ष में बयार बह रही है। कई देशों में तो गे परेड और उनके अलग से फैशन शो भी आयोजित किए जाते हैं। अमेरिका में ऐसे लोग भी कानूनी मान्यता की लड़ाई लड़ रहे हैं।
पर भारत जैसे देश में यह बड़े बहस का विषय है। हालांकि यह भारत की परंपरा नहीं रही है। कुछ राज्यों में कुछ लोगों के बीच इस तरह के किस्से जरूर सुने जाते हैं।
कुछ साल पहले वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह ने बिहार के बक्सर जिले के आसपास के ऐसे कुछ मामलों पर अध्ययन किया था। उन्होंने यह स्थापित करने की कोशिश की थी समाज में इस तरह के रिश्ते चल रहे हैं। इतिहास में यह देखने में आया है कि मुगल आक्रमण कारियों की फौज में ऐसे लोग रहते थे जिनसे सरदार समलैंगिक रिश्ते बनाता है। पर किसी भी समाज में जब ऐसे रिश्तों को मान्यता देने का कानून बनाएं तो उससे पहले हमें इस विषय पर सूक्ष्मता से विचार करना होगा। इसका समाज पर कितना बुरा प्रभाव पड़ेगा। भारत में अगर इस तरह के रिश्ते कहीं बनते हैं तो भी लोग उसको सार्वजनिक तौर पर प्रकट नहीं करना चाहते। मनोवैज्ञानिक समलैंगिक संबंधों को एक मानसिक विकृति ही मानते हैं। जबकि समलैंगिक संबंधों के पैरोकार इसे एक समान्य तौर पर लेना चाहते हैं।
इधर मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री में इस
विषय पर कई फिल्में भी बनने लगी हैं। पिछले साल की हिट फिल्म पेज 3 में इस तरह के
संबंधों को दिखाया गया है। इसमें फिल्मी हीरो तथा समाज के रईस लोगों को इस तरह के
संबंध में लिप्त दिखाया गया है। वहीं अमोल पालेकर ने इस पर एक फिल्म बनाई है
क्वेस्ट। इस फिल्म में भी हीरो के अपनी पत्नी के अलावा अपने एक दोस्त से समलैंगिक संबंध
दिखाए गए हैं। एक ऐसा विषय जिस पर लोग बात नहीं करना चाहते उस पर अब कहानियां भी लिखी
जाने लगी है और फिल्में भी बनने लगी हैं। हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार दूधनाथ सिंह
की लंबी कहानी नमो अंधकारम में समलैंगकता के तत्व थे तो उससे काफी पहले पांडेय
बेचन शर्मा उग्र के उपन्यास चाकलेट में भी इस विषय को उठाया गया था।
समलैंगिकता के पैरोकार इंडियन पीनल
कोड की धारा 377
को हटाने की बात कर रहे हैं जिसके तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध माना
गया है। पर इसी धारा के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे के साथ कुकर्म करता है तो
उसे सजा देने का प्रावधान है। अब अगर दो व्यक्ति अपनी मर्जी से इस तरह का संबंध
बनाते हैं तो उन्हें सजा मिलनी चाहिए या नहीं यह चर्चा का विषय हो सकता है। पर इस
तरह के रिश्तों को अगर कोई सार्वजनिक करता है तो उसका समाज पर कतई अच्छा प्रभाव
नहीं पड़ता है। इसलिए ऐसे संबंधों पर परदा रखना ही उचित है।
-विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com
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