Wednesday, 30 December 2009

बच्चों के बदलते खिलौने

मैं तो चांद खिलौना लूंगा। अब यह कहावत पुरानी पड़ चुकी है। बच्चे बदलते जमाने के साथ नए ढंग के खिलौने के संग खेलना चाहते हैं। अब उन्हें मिट्टी की गाड़ी देकर बहलाया नहीं जा सकता। आजकल छोटे बच्चों में मोबाइल फोन खिलौने के रूप में काफी लोकप्रिय हो रहा है। गांवों में और खासतौर पर पुराने समय में बच्चों के बीच मिट्टी का खिलौना काफी लोकप्रिय होता था। बच्चों को मिट्टी की बनी हाथी मिट्टी के बने घोड़े आदि खेलने के लिए दिए जाते थे। खिलौने बनाने वाला कुम्हार इन्हें आकर्षक रंगों से रंग भी देता था। ये मिट्टी के खिलौन पटकने पर टूट जाते थे। खिलौने के टूटने पर बच्चा रुठ जाता है। किसी शायर ने लिखा है-
और ले आएंगे बाजार से जो टूट गया, चांदी के खिलौने से मेरा मिट्टी का खिलौना अच्छा।

मिट्टी और लकड़ी का गया दौर - पर अब मिट्टी की जगह प्लास्टिक के बने खिलौनों ने ले ली है। ये खिलौने जल्दी टूटते भी नहीं हैं। बीच में लकड़ी के बने खिलौनों का भी दौर रहा। अभी भी भारत के कुछ शहरों में बच्चों के लिए लकड़ी के बने खिलौने मिलते हैं। खिलौने के इस बदलते स्वरुप के साथ बच्चों की मांग भी बदलती जा रही है। पहले बच्चे मिट्टी के हाथी मांगने की जिद करते थे। हाथी मिल जाए तो मिट्टी का गुल्लक मांगते थे। आसमान में चंदा मामा को देखर बच्चे चांद को खिलौने के रुप में मांगने की जिद पर भी आ जाते थे। मैं चांद खिलौने लेहों यह कहावत बहुत मशहूर हुआ। पर अब यह कहावत नए रुप में कही जानी चाहिए- मैं मोबाइल खिलौना लेहों....अब बड़ों के पास हर जगह हाथों में मोबाइल देखकर बच्चे मोबाइल फोन को ही खिलौने के रुप में मांगते हैं। बाजार चीन के बने हुए मोबाइल खिलौने से पटा पड़ा है। बीस रुपए में मिलने वाले मोबाइल खिलौने में बैटरी भी लगी होती है। इसमें कई तरह के रिंग टोन भी होते हैं। बिल्कुल असली मोबाइल के तरह ही। इसे देखकर बच्चे को अपने पास असली मोबाइल होने का भ्रम होता है। जो बजते बजते बैटरी खत्म हो गई तो बैटरी बजल डालिए। पर छोटा सा बच्चा अपने गले मोबाइल फोन देखकर गर्वान्वित महसूस करता है।

उम्र के अनुरूप दें खिलौने - वैसे बाजार में बच्चों की उम्र के हिसाब से कई तरह के खिलौने मौजूद हैं। कई खिलौना कंपनियां बच्चों की उम्र और उसके द्वारा उपयोग किए जाने वाले दिमाग को ध्यान में रखकर खिलौने बनाती हैं। जैसे नन्हें बच्चों को रंग पहचानने वाले खिलौने दिए जाते हैं। बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाए तो उसे गिनती गिनने वाले खिलौने दिए जाते हैं। बच्चों को जानवरों और फलों की पहचान कराने के लिए उनकी प्रतिकृति खिलौने के रुप में दी जाती है। जब आप बाजार में अपने बच्चे के लिए खिलौने खरीदने जाएं तो उनकी उम्र का ख्याल रखें और उसके अनुरूप ही खिलौने लाकर उन्हें दें। इसके साथ ही बच्चों के साथ बैठकर उन्हें खिलौने के संग खेलना भी सीखाएं।

छोटे बच्चों को बहुत बड़े आकार के खिलौने न दें। कई बार बच्चे इस तरह के खिलौने से डर जाते हैं। बच्चों को ऐसे खिलौने ही दें जिन्हें वे अपना दोस्त समझें न कि उनके मन में किसी तरह का डर बैठ जाए। बच्चे म्यूजिकल खिलौने भी पसंद करते हैं। आप उनकी रुचि को समझकर ऐसा कोई चयन कर सकते हैं। आप अपने बच्चे की पसंद नापसंद का सूक्ष्मता से अध्ययन करें। उसके अनुरूप ही उसके लिए खिलौनों का चयन करें तो बेहतर होगा।
-माधवी रंजना madhavi.ranjana@gmail.com




Friday, 25 December 2009

ई मेल पर बढ़ती जगह

जब आप अपना ई मेल आईडी बनाते हैं इस बात की परेशानी आती है कि आपके मेल बाक्स पर ज्यादा स्पेश नहीं है। इससे आप जरूरी फाइलें आनलाइन नहीं रख पाते हैं। पर अब कई वेबसाइटों पर आपको प्रचूर मात्रा में स्पेश मिलता है। इससे आप अपनी जरूरी फाइलें साथ ही फोटोग्राफ आनलाइन रख सकते हैं। वह भी बिना कोई शुल्क दिए। आरंभ के दिनों में आमतौर पर कोई भी ईमेल सर्विस प्रोवाइडर अपने उपभोक्ताओं को 5 एमबी तक स्पेश मुफ्त में उपलब्ध कराता था। पर अब हालात बदल गए हैं। अब कई ईमेल सेवा प्रदाता कम से कम एक जीबी स्पेश मुफ्त में उपलब्ध करा रहे हैं वहीं कहीं कहीं तो तीन जीबी तक स्पेश भी उपलब्ध है वह भी मुफ्त में।
कुछ साल पहले जब ईमेल सेवा की शुरूआत हुई तब इसके सेवा प्रदाताओं को उम्मीद थी कि वे इसे जल्द ही पेड सेवा में बदल देंगे। यानी की सेवा के बदले में ग्राहकों से शुल्क वसूल करेंगे। इस क्रम में यूएसए डाट नेट ने प्रयास भी किए। वहीं रेडिफ मेल ने अपने ज्यादा स्पेश वाली सेवाओं के लिए शुल्क तय किए। पर शुल्क वाली सेवाएं लोगों में लोकप्रिय नहीं हुईं। जब लोगों को कहीं न कहीं मुफ्त में स्पेश उपलब्ध हो ही रहा था भला इसके लिए वे शुल्क क्यों दें। लिहाजा पेड सेवा प्रदान करने वालों के मंसूबों पर पानी फिर गया। फिलहाल इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों के लिए ईमेल पर बहुतायत स्पेश फ्री में ही उपलब्ध है। इसी क्रम में कुछ ईमेल सेवा प्रदाताओं ने अपनी सेवा को लोकप्रिय बनाने के लिए मेल बाक्स में स्पेश में अभिवृद्धि करनी आरंभ की। इस क्रम में गूगल ने अपने उपयोक्ताओं को अनलिमिटेड स्पेश देना आरंभ कर दिया। आमतौर पर हर जीमेल एकाउंट में उपयोक्ताओं को 3 जीबी तक जगह मिलती है। यह जगह आपके उपयोग के अनुसार बढ़ती जाती है। जीमेल की खास बात है कि फिलहाल यहां कोई विज्ञापन नहीं आता है। साथ ही विज्ञापन वाले ईमेल भी नहीं आते। इसलिए जीमेल लोगों में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।
जीमेल की लोकप्रियता को देखते हुए याहू, रेडिफ और हाटमेल ने भी अपने उपयोक्ताओं के लिए 1 जीबी तक स्पेश देना आरंभ कर दिया है। आने वाले दिनों मे वही ईमेल सेवाएं लोकप्रिय हो सकेंगी जो अपने उपयोक्ताओं को ज्यादा से ज्यादा स्पेश उपलब्ध कराएंगी। क्योंकि अब ईमेल उपयोग करने वालों की जरूरतें बढ़ी हैं। वे अपनी बहुत सी फाइलें आनलाइन रखना चाहते हैं जिससे वे कभी भी कहीं उसे एक्सेस कर सकें। साथ ही अब लोग इमेल पर अपनी फोटोग्राफ भी रखना चाहते हैं। 

फोटो के लिए ज्यादा जगह चाहिए तो ईमेल पर ज्यादा स्पेश भी चाहिए। ऐसे में ज्यादा स्पेश देने वाली ईमेल सेवाएं ही लोकप्रिय हो सकेंगी। इंटरनेट पर ईमेल सेवा प्रदान करने वाली सैकड़ों साइटें हैं पर उनमें से कुछ साइटें ही लोकप्रिय हैं। जाहिर है वहीं साइटें लोकप्रिय हो सकती हैं जिनमें स्पेश भी ज्यादा हो साथ ही उनपर विज्ञापन भी कम आते हों।
फिलहाल मुफ्त में- यह उम्मीद की जानी चाहिए कि लोगों को ईमेल सेवा आने वाले कुछ सालों तक मुफ्त में ही प्राप्त होती रहेगी। कई सेवा प्रदाताओं को कंप्टिशन के दौर में यह आशंका कम नजर आती है कि सेवा प्रदाता इन सेवाओं को पेड करने की कोशिश करेंगे। इसलिए फिलहाल ईमेल यूजरों को निश्चिंत रहना चाहिए।

-विद्युत प्रकाश vidyutp@gmail.com



Sunday, 20 December 2009

गांव की ओर पहुंचे कालोनाइजर

अब तक आप मकान बनाने वाले प्राइवेट बिल्डर या कालोनाइजरों के बड़े महानगरों में होने की बात सुनते आए होंगे पर अब कालोनाइजरों ने गांव की ओर भी रुख करना शुरू कर दिया है। यानी निजी बिल्डर गांव में भी घर बनाकर लोगों को देंगे। जब आप शहरों में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण और भीड़-भाड़ से दूर रहने की योजना बनाते हैं तो आपकी इच्छा गांव में रहने की होती है। शहरी माहौल में होने वाली कई तरह की बीमरियों से बचने के लिए लोग प्राकृतिक निवास की ओर रुख कर रहे हैं इसमें ख्याल आता है गांव में रहने का। अब आपको गांव में भी शहरों की तरह ही बनी बनाई कालोनी रहने के लि मिले तो फिर क्या बात है।

हम चलते हैं दिल्ली के लगभग 125 किलोमीटर दूर करनाल शहर को।
दिल्ली से यहां आने में डेढ़ घंटे का समय लगता है अगर आपके पास अपनी कार हो। करनाल सेक्टरों में विकसित शहर है। पर यहां लोगों की मांग को देखते हुए एक निजी बिल्डर द्वारा ऐसी कालोनी विकसित की जा रही है जो पूरी तरह गांव की तरह होगी। यहां अच्छी सड़कें और हरियाली तो होगी ही साथ ही गांव की चौपाल भी होगी। पर यह गांव होगा हाईटेक। यानी यहां बिजली, कंप्यूटर इंटरनेट, स्कूल, क्लब, स्विमिंग पूल, अस्पताल आदि सब कुछ होगा।
अब अगर गांव में शहर जैसी सारी सुविधाएं हो तो भला गांव से शहर जाने की क्या जरूरत होगी। यह गांव शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसाया जा रहा है। यानी जब आपको जरूरत हो दस मिनट में शहर आ जाएं। कई बड़े महानगरों के आसपास के गांव इतने समृद्ध और सुविधा संपन्न हैं कि वहां के लोगों को शहर जाकर रहने की जरूरत नहीं पड़ती। अब गांवों में ऐसी कालोनियां विकसित की जा रही हैं जहां आप घर खरीदकर रह सकें। खासकर बड़ी नौकरियों से अवकाश प्राप्त करने वाले लोगों की नजर ऐसी कालोनियों पर है। वे अपना बाकी समय चैन से ऐसे गांवों में गुजारना चाहते हैं जहां उन्हें सारी मूलभूत सुविधाएं प्राप्त हो सकें। साथ ही ऐसे गांव देश में विलेज टूरिज्म को भी बढ़ावा दे सकेंगे। विदेशों से आने वाले पर्यटकों को ऐसे गांव में ठहराया जा सकेगा। यह विदेशी मुद्रा अर्जित करने का बेहतर स्रोत सिद्ध होने वाला है। इतना ही नहीं वैसे अनिवासी भारतीय जो भारत में आकर रहना चाहते हैं उनके लिए भी ऐसे गांव पसंद बनते जा रहे हैं। हरिद्वार और देहरादून की बीच भी कुछ बिल्डर लोगों को प्राकृतिक आवास उपलब्ध कराने का दावा कर रहे हैं। हालांकि ये आवास गांव के घरों की तरह नहीं हैं बल्कि फ्लैट की शक्ल में हैं।
हरियाणा सरकार की आवासीय सेक्टर विकसित करने वाली एजेंसी हुडा भी गांवों सेक्टर विकसित करने लगी है। वह गांवों के लोगों की जरूरतों के हिसाब से उनके लिए घर बना रही है। इसके लिए उसने कई गांवों की पहचान की है। यानी कि गांव के लोगों को भी प्लानिंग के हिसाब से बने हुए घर मिलेंगे। इसके कई फायदे हैं। आमतौर पर गांवों कोई घर अच्छा बनावा ले तो वहां की गलियां व सड़कें योजना के हिसाब से नहीं बनती हैं। अब अगर गांव भी योजना के अनुसार बनवाए जाएं तो वे देखने में ज्यादा सुंदर लग सकते हैं। यह योजना पंजाब, हरियाणा, गुजरात जैसे कुछ समृद्ध राज्यों में लागू हो सकती है। पर इससे अन्य राज्यों के रहने वाले लोग प्रेरणा ले सकते हैं। इस योजना के तहत जहां नए गांव विकसित किए जा सकते हैं वही पुराने गांवों की योजना में सुधार भी लाया जा सकता है। इससे किसी भी गांव की सुंदरता में चार चांद लग सकते हैं।
------  विद्युत प्रकाश मौर्य


Tuesday, 15 December 2009

अब दिल्ली से मुंबई लोकल

एक जून करोड़ों लोगो के लिए सौगात लेकर आया। अब आप दिल्ली से मुंबई लोकल दरों पर बातें कर सकते हैं। ठीक उसी तरह जैसे पड़ोस में बातें करते हैं। यानी 1.20 रुपए में तीन मिनट की काल। ऐसा एमटीएनएल की नई काल दर के कारण संभव हो पाया है। हालांकि दिल्ली से मुंबई की दूरी दो हजार किलोमीटर है। फिर भी दोनों शहरों के बीच अब लोकल काल करने की सुविधा बहाल हो गई है। यह दूर संचार के इतिहास में एक क्रांतिकारी कदम है। एसटीडी में सस्ती काल दरें एनएलडी ( नेशनल लांग डिस्टेंस) में भी कई खिलाड़ियों के आने के बाद संभव हो सका है। पहले इस क्षेत्र में सिर्फ भारत संचार निगम लि. का एकाधिकार था। इस बार एमटीएनएल ने दिल्ली से मुंबई काल भेजने के लिए विदेश संचार निगम लि. (वीएसएनएल) को कैरियर के रुप में चुना है जो टाटा के स्वामित्व वाली कंपनी है। अब हर टेलकाम आपरेटर को अधिकार है कि वह एसटीडी या आईएसडी कालों के लिए किसी भी कंपनी को कैरियर के रुप में चुने। इसका लाभ ग्राहकों को मिलने वाला है। सिर्फ मुंबई ही नहीं दिल्ली व मुंबई में काम कर रही महानगर टेलीफोन निगम लि. बाकी बचे देश के लिए भी एसटीडी काल की दरें कम करने वाली है। इसके लिए भी उसने कई कंपनियों से आफर मांगे हैं। उम्मीद की जाती है इसके बाद लोगों को 40 पैसे से 70 पैसे प्रति मिनट तक मात्र एसटीडी दर के रुप में चुकाना होगा। वास्तव में दरों में रेशनेलाइजेशन भी होना चाहिए। अभी दिल्ली से मुंबई 40 पैसे मिनट की दर लागू हो चुकी है। जबकि दिल्ली से मुंबई की दूरी 2000 किलोमीटर है। ऐसी स्थिति में बिहार और बंगाल के लोगों ने कौन सा अपराध किया है कि उन्हें कम दूरी के बावजूद 2.40 रुपए प्रति मिनट की दर चुकाना पड़े। अब अगर एमटीएनएल अपनी एसटीडी काल दरें गिराता है तो दूसरी कंपनियों के लिए चुनौती होगी। क्योंकि दिल्ली मुंबई से जाने वाली काल तो सस्ती हो जाएगी जबकि उधर से आने वाली काल महंगी ही रहेगी। ऐसी स्थिति में एक अराजकता का महौल बन जाएगा। जाहिर है बीएसएनएल सहित बाकी कंपनियों को भी अपनी एसटीडी काल दरें कम करनी ही पड़ेंगी।
बीएसएनएल ने जो इंडिया वन का पैकेज पेश किया है उसमें एक राष्ट्रीय काल एक रुपये में एक मिनट की अवश्य पड़ती है पर उसके लिए भारी भरकम मासिक किराया भी चुकाना पड़ता है। हालांकि इसी तरह का पैकेज हर कंपनी ने पेश किया है। पर अब दौर वास्तव में एसटीडी में काल दरें गिरने का आ रहा है। अभी मोबाइल पर देश व्यापी काल की दरें 2 रुपए मिनट के पास है। पर अब हम ऐसे दौर की कल्पना कर सकते हैं जो जब एसटीडी और लोकल काल की दरों मे कोई खास अंतर नहीं रह जाएगा यानी जैसा दिल्ली व मुंबई के बीच हुआ है वैसा कुछ सारे देश में हो सकेगा। ऐसी हालात में वास्तव में कश्मीर से कन्याकुमारी तक के लोग एक दर पर बातें कर सकेंगे।
फिलहाल सभी कंपनियां अपने नेटवर्क पर ग्राहकों को कम दर पर काल करने की सुविधा दे रही हैं। अभी तुलनात्मक रुप से टेलकाम सेक्टर में सबसे देर से प्रवेश करने वाली कंपनी टाटा सबसे कम दर पर काल करने की सुविधा दे रही है। आने वाले कुछ महीनों में टाटा एसटीडी काल दरों में कुछ और धमाका करने वाली है। बस देखते रहिए आगे आगे होता है क्या क्या।

-माधवी रंजना madhavi.ranjana@gmail.com



Thursday, 10 December 2009

चुनरी संभाल गोरी....

चुनरी संभाल गोरी उड़ी चली जाए रे...। कवि ने जब ये पंक्तियां लिखी होंगी तो इसके कुछ अच्छे मतलब रहे होंगे। पर आजकल जब फैशन शो के रैंप पर देखें तो चुनरी तो गायब हो ही गई है बाकी कपड़े संभालने को लेकर भी डिजाइनरों में कोई सावधानी नहीं दिखाई देती। इस बार तो इंडिया फैशन वीक के दौरान अजीब घटनाएं देखने को मिलीं। एक माडल जो रैंप पर आई उसका आगे का वस्त्र सरक कर गिर गया। उस माडल ने रैंप पर चलते हुए ही अपने कपड़े को संभाला और वापस चली गई। उसके दो दिन दाबद एक दूसरी माडल जो स्कर्ट पहन कर रैंप पर आई वह पीछे से फटी हुई थी।
मीडिया में इस घटना के बाद अलग अलग तरह की प्रतिक्रियाएं हुई। कई लोगों ने उस माडल के आत्मविश्वास की तारीफ की। साथ ही वे माडल और डिजाइनर रातों रात चर्चा में आ गए। 

वहीं लोगों ने फैशन के नाम पर परोसे जा रहे इस नंगापन की भी आलोचना की। कुछ माडलों ने बताया कि फैशन शो के दौरान जो आउटफिट ( कपड़े) उन्हें दिए जाते हैं उन्हें पहन कर चेक करने का वक्त नहीं होता कि वे ठीक से सिले हुए हैं या नहीं। इसलिए कई बार इस तरह की घटनाएं हो जाती हैं। कुछ साल पहले दिल्ली के एक फैशन शो में भी रैंप पर एक माडल का स्कर्ट खुल गया था। इस आधुनिक तकनीक के दौर में ऐसी घटना होने पर फोटोग्राफरों के कैमरे के फ्लैश धड़ाधड़ चमकने लगते हैं। लोग अपने मोबाइल फोन से वीडियो फिल्म बनाने लगते हैं। इस बार भी इन घटनाओं को वीडियो क्लिपों को ट्रांसफर किया गया। यहां तक कि इंटरनेट की कुछ वेबसाइटों पर भी जारी कर दिया गया। भले ही ये घटनाएं लोगों के मजे लेने की चीज हो पर क्या हमारे नामी गिरामी डिजाइनर अपने कपड़ों को लेकर इतनी सावधानी भी नहीं बरत सकते हैं कि वे ठीक से सिले हुए हैं या नहीं। जब हम दर्जी से भी समान्य कपड़े सिलवाते हैं तो इतनी लापरवाही की उम्मीद नहीं करते। फिर नामी गिरामी डिजाइनर क्या अपने बनाए कपड़ों को क्रास चेक नहीं करते। लिहाजा यह उनकी लापरवाही तो है ही पर इसका दूसरा पहलू भी है कि उन्हें इन घटनाओं से काफी पब्लिसिटी मिल जाती है। भले ही यह निगेटिव प्रचार है पर कहते हैं कि बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा वाली कहावत यहां लागू होती है। इन घटनाओं में माडल व डिजाइनर दोनों ही मीडिया की सुर्खियों में छाए रहे। तो क्या कुछ माडल व डिजाइनर जानबूझ कर इस तरह के काम कर रहे हैं।
सोचने वाली बात है कि ये घटनाएं स्पांटेनियस थीं या प्री प्लान्ड। और जैसे भी ये घटनाएं हों इससे देश के जाने माने फैशन शो की बदनामी तो होती ही है। ऐसे डिजाइनरों को इस तरह की घटनाओं को के लिए सार्वजनिक तौर पर माफी मांगनी चाहिए। साथ ही फैशन शो के आयोजकों को इस तरह के डिजाइनरों का अगले शो के लिए बहिष्कार करना चाहिए। ऐसी घटनाओं की जांच भी कराई जानी चाहिए जिससे ऐसी घटनाओं पर रोक लग सके। वैसे भी भारतीय डिजाइनरों को फैशन शो फैशन टीवी के उस दौर की ओर ही बढ़ रहे हैं जिसमें फैशन कम बदन दिखाने का शो ज्यादा होता है। अगर डिजाइनरों को खुल कर बदन दिखाने का मौका नहीं मिलता है तो वे दूसरे तरीके अपनाते हैं। आखिर किस ओर जा रहे हैं ये फैशन शो। यह सवाल अनुत्तरित है। इसका हमें जवाब ढूंढना होगा।
-    विद्युत प्रकाश मौर्य


Saturday, 5 December 2009

कैमरा मोबाइल परख कर ही खरीदें

आजकल कैमरा मोबाइल का चलन बढ़ गया है। हर कोई मोबाइल खरीदते समय उसमें कैमरा लेना चाहता है। पर कैमरा मोबाइल खरीदते समय कुछ सावधानी जरूरी है। सबसे पहले आप यह देखें की आपको कैमरे की जरूरत क्यों हैं। अक्सर सस्ते मोबाइल में जो कैमरे दिए जा रहे हैं उनके मेगा पिक्सेल कम होते हैं। उनसे खिंची गई फोटो का इस्तेमाल किसी व्यवसायिक कार्य में मुश्किल होता है। अगर आप पत्रकार हैं और आप चाहते हैं कि आपके कैमरा मोबाइल से खिंची हुई तस्वीर अखबार में प्रकाशित होने लायक हो पिक्सेल का खास तौर पर ख्याल रखें।

आपको अगर डिजिटल कैमरा व्यवसायिक उपयोग के लिए चाहिए तो बेहतर होगा कि आप डिजिटल कैमरा अलग से ही खरीदें। आमतौर पर आठ नौ हजार रुपए में एक बढ़िया डिजिटल कैमरा मिल जाता है। वैसे डिजिटल कैमरा दो हजार रुपए के रेंज में भी उपलब्ध है। पर इसकी क्षमता भी कम होती है। जैसे जैसे डिजिटल कैमरे में मेमोरी, जूम क्षमता और उसके मेगा पिक्सेल में इजाफा होता है उसकी कीमत बढ़ती जाती है।

क्या है पिक्सेल- चाहे डिजिटल टीवी हो या कैमरा उसमें तस्वीरों का निर्माण छोटे-छोटे डाट्स से मिलकर होता है जिन्हें पिक्सेल कहते हैं। जाहिर है कि प्रति इंच क्षेत्र में पिक्सेल की संख्या जितना ज्यादा होती तस्वीरों की स्पष्टता भी उतनी ही बेहतर होगी। फोटोग्राफी अब पूरी तरह डिजिटल युग में प्रवेश कर चुकी है। डिजिटल फोटोग्राफी से न सिर्फ समय की बचत हुई बल्कि फोटोग्राफी का खर्च भी कम हो रहा है।

रील वाले कैमरे इतिहास बनेंगे - दुनिया की कैमरा बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में एक निकोन और दूसरी कंपनी कोडक ने रील वाले कैमरे बनाने की ईकाई बंद करने का भी फैसला कर लिया है। यानी आने वाले दौर में रील वाले कैमरे इतिहास का हिस्सा बन जाएंगे। हालांकि भारत जैसे देश में रील वाले कैमरे का दौर अभी जारी रहेगा। 1.2 मेगा पिक्सेल से ज्यादा क्षमता का कैमरे की तस्वीर ही आमतौर पर प्रकाशित होने लायक होती है। आजकल 3.2 मेगा पिक्सेल तक के कैमरा मोबाइल भारतीय बाजार में उपलब्ध हैं। पर इनकी कीमत 15 हजार से उपर है।

दो हजार मे मोबाइल कैमरा - भारतीय बाजार में लगभग पांच हजार रुपए वाले मोबाइल फोन में कैमरा मिल जाता है। पर आप खरीदने से पहले यह देख लें कि यह कैमरा आपके कितने काम है। मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनी क्लाकाम ने तो सीडीएमए मोबाइल फोन में मात्र 2000 रुपए में ही कैमरा और एमपी3 प्लेयर देने की घोषणा कर दी है। यानी कैमरा मोबाइल सस्ते तो होते जा रहे हैं, पर खरीदने वाले को अपनी जरूरत देखकर ही कोई फैसला लेना चाहिए। काफी लोग बिना जरूरत ही कैमरे पर पैसा लगा देते हैं बाद में पछताते हैं।


-    विद्युत प्रकाश मौर्य