Wednesday, 31 August 2011

दुकानदार को हो अपनी साख की चिंता..

मैं अपने मुहल्ले की एक खास राशन दुकान से हमेशा राशन खरीदता हूं. कभी राशन में दाल में कीड़े निकल आते हैं तो कभी बेस में गंदगी. एक दो बार जब दुकानदार को शिकायत की गई तो दुकानदार साफ मुकर गया कि ये मेरे दुकान का माल नहीं हो सकता। जाहिर है दुकान के इस व्यवहार से कोफ्त होती है। क्योंकि समान खराब निकलने पर बदलने की जिम्मेवारी हर कंपनी को लेनी चाहिए साथ दुकानदार को भी अपने नियमित ग्राहक पर हमेशा भरोसा रखना चाहिए। लेकिन ऐसे दुकानदारों को अपनी साख की चिंता नहीं है।

जबकि रिलायंस और इजी डे जैसे शापिंग चेन अपने सामान गुणवत्ता और खराब निकलने पर उसके बदलने को लेकर साफ सुथरी पालिसी के तहत चल रहे हैं।
अब एक उदाहरण जो अमर उजाला के वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय जी ने सुनाई। ज्योतिर्मय जी के परिवार के लोग मथुरा वृंदावन के मंदिरों का दर्शन करने गए थे। लौटते वक्त उन लोगों ने मथुरा के प्रसिद्ध बृजवासी मिष्टान भंडार से मिठाइयां खरीदीं। लेकिन दिल्ली में घर पहुंचने पर पता चला कि आठ किलो मिठाइयां खराब हो चुकी थीं. इन लोगों ने तुरंत बृजवासी मिष्टान भंडार मथुरा को फोन किया। अब क्या हुआ होगा इसका अंदाजा तनिक आप लगाइए।

 बृजवासी को अपनी साख की पूरी चिंता है। उन्होने शिकायत पर तुरंत कार्रवाई की। बृजवासी की मिठाइयों की एक दुकान दिल्ली में भी है। उन्होंने तुरंत ग्राहक के घर का पता नोट किया। अपनी दिल्ली वाली दुकान से आठ किलो ताजी मिठाइयां भिजवा दीं और खराब मिठाई वापस ले गए. जाहिर है ऐसे अच्छे व्यवहार की चर्चा आप अपने 50 दोस्तों से करेंगे। ऐसा करने से दुकानदार का प्रचार भी होता है। ये माउथ टू माउथ पब्लिस्टी है जो संतुष्ट ग्राहक करता है। लेकिन घटिया व्यवहार करने पर नाराज ग्राहक 50 जगह अपने बुरे अनुभव भी सुनाता है।   
- vidyutp@gmail.com


Thursday, 25 August 2011

एक रूपये में भी किताब मिलती है...

आज के जमाने में भला एक रूपये में क्या मिल सकता है। ऐसा आप सोच सकते हैं लेकिन एक रूपये की अभी भी अहमियत है। दिल्ली में चल रहे दिल्ली पुस्तक मेले में गीता प्रेस के स्टाल पर एक रूपये में कई किताबें हैं। एक रूपये में चालीसा पाठ मिल रही है। तो महज चार रुपये में गीता की हार्ड कवर में गुटका पाठ उपलब्ध है। 10 से 20 रूपये के बीच तो कई सुंदर सुंदर किताबें। 

एक से बढ़कर एक रंगीन और खास तौर पर बच्चों के पढ़ने लायक धार्मिक पुस्तकें। आज जब हर प्रकाशक किताबें महंगी बेच रहा है और इसके पीछे कागज और छपाई के महंगा होने का रोना रो रहा है गीता प्रेस की किताबें आज भी सस्ती हैं। आम आदमी के जेब के अनुकुल हैं। अगर पहले से ही सस्ती किताबें हैं और गीता प्रेस अपने पाठकों को कोई डिस्काउंट नहीं देता तो क्या बुराई है। 

आजकल प्रकाशक 100 पेज की किताब की कीमत 100 रूपये रखते हैं। इसके साथ हमेशा यही रोना रोते हैं कि पाठक घट रहे हैं। लेकिन पाठकों की संख्या बढ़ाने के लिए वे मार्केटिंग के फंडे क्यों नहीं अपनाते। क्यों सिर्फ सरकारी खरीद के भरोसे ही काम करते हैं। हालांकि कुछ प्रकाशक इस दौर में भी बेहतर मार्केटिंग की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अभी भी बेहतर रणनीति अपनाई जाए तो सिर्फ धार्मिक पुस्तकें ही नहीं बल्कि तमाम दूसरी तरह की किताबें भी सस्ते में बेची जा सकती हैं। डायमंड बुक्स और मनोज पाकेट बुक्स जैसे प्रकाशक बुक स्टाल पर बेचने योग्य किताबें प्रकाशित करने और लोगों की जेब के अनुकूल रहने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। 
- विद्युत प्रकाश मौर्य


Sunday, 21 August 2011

रामलीला मैदान से लाइव


दिल्ली के रामलीला मैदान में पिकनिक जैसा माहौल है। ये देशभक्ति का पिकनिक है। नव यौवनाएं गोरे गालों पर तिरंगा टैटू गुदवा रही हैं। लोग अन्ना की टोपी पहने घूम रहे हैं। लोग हाथों में तिरंगा लिए आ रहे है। 

बाइक पर तीन लोग सवार होकर बिना हेलमेट पहने अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं के नारे लगा रहे हैं। लोग आ रहे हैं जा रहे हैं। कुछ जत्थे दिल्ली के आसपास के शहरों से भी आ रहे हैं। 21 अगस्त रविवार का दिन अन्ना के अनशन का छठा दिन। रामलीला मैदान में बेतरतीब सी भीड़ है। अन्ना के मंच के पास लोगों की भीड़ जरूर दिखाई देती है लेकिन पीछे पूरा मैदान खाली है।

टीवी का कैमरा वहीं फोकस करता है जहां भीड़ दिखाई देती है। यहां बाबा रामदेव के आंदोलन के बराबर लोग भी नहीं है। साइड में काउंटर लगे हैं। सभी लोगों के मिनरल वाटर बांटा जा रहा है। बिस्कुट के पैकेट बांटे जा रहे हैं। भूखे हैं तो लंगर का भी इंतजाम है। बीमार होनेवालों के लिए डाक्टर भी हैं। कई संस्थाएं अन्ना के समर्थन में अपनी संस्था का प्रचार करने पहुंची हैं। अन्ना संत हैं। कई आंदोलन किए हैं। कई बार सरकार हिला दी है। लेकिन दिल्ली के रामलीला मैदान के इस आंदोलन में पांच हजार लोगों की भीड़ बमुश्किल जुट रही है। वह भीड़ भी आते जाते लोग की है। जाहिर है मीडिया के प्रचार से ज्यादा लोग पहुंच रहे हैं। अन्ना के सपोर्ट में पूरा मीडिया है। रामलीला मैदान के बाहर 30 से ज्यादा ओबी वैन लगे हैं। लगातार लाइव फीड जा रही है।  लेकिन जिस तरह ये हल्ला मचाया जा रहा है कि पूरा देश अन्ना के साथ आ चुका है। वैसा बिल्कुल नहीं लगता। 

तमाम राजनीतिक और गैर राजनीतिक संगठनों के लोग एनजीओ के लोग अन्ना के साथ आ रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद कोई व्यापक जन आंदोलन देश में खड़ा हो चुका है, ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। क्या इस आंदोलन की तुलना जेपी के आंदोलन से या राजीव गांधी के खिलाफ कांग्रेस से बाहर हुए वीपी सिंह के आंदोलन से की जा सकती है? भ्रष्टाचार के खिलाफ इस आंदोलन में क्या सचमुच भ्रष्टाचार से आजीज लोग पहुंच रहे हैं?  नहीं बल्कि बड़ी फेहरिस्त उन लोगों की भी है जो भ्रष्ट तरीके से अपना काम तो कराते हैं लेकिन वे चाहते हैं कि दूसरे लोग इमानदार हो जाएं।
-    -  विद्युत प्रकाश मौर्य

Thursday, 4 August 2011

कार्टून की दुनिया में जीते बच्चे....

बच्चा सुबह उठते ही कार्टून देखने की जिद करता है और रात को सोते समय कार्टून देखते देखते सो जाता है। यानी उसके सपने में भी कार्टून चरित्र ही आते होंगे। कभी कभी नींद में कार्टून चरित्र के नाम लेकर चिल्लाता है। जब वह दिन में खेलता है तब भी कार्टून चरित्रों जैसे संवाद ही बोलता है। आखिर यह सब क्या है। कहीं आपका बच्चा असली जिंदगी से अलग होकर कार्टून चरित्रों की जिंदगी में तो नहीं जी रहा है। यह एक वर्चुअल लाइफ है जो शायद बच्चे के विकास के लिए खतरनाक हो सकता है।
कार्टून की भीड़
अभी टीवी पर हंगामा, कार्टून नेटवर्क, पोगो, डिज्नी जैसे कई कार्टून चैनल उपलब्ध हैं। इनमें से खास तौर पर हंगामा बच्चों में काफी लोकप्रिय हो रहा है। बच्चे स्कूल से आते हैं और कार्टून की दुनिया में खो जाते हैं। वे सीनचैन जैसे तमाम कार्टून चरित्रों को अपने से जोड़ कर देखते हैं। तीन साल का नन्हा वंश घर में सुबह उठते ही बोलता है मम्मा कार्टून लगा दो। उसके बाद वह कार्टून की दुनिया में ऐसे खो जाता है कि उसे नहाने खाने की कोई सुध नहीं रहती है। जब कभी चैनल बदलो तो वह चिल्लाने लगता है। खाली समय में और दोस्तों के बीच हमेशा वह कार्टून कैरेक्टर की ही बातें करता है। अगर कभी घर से बाहर चलने की बात करो तो वह बोलता है कि तुम लोग बाहर जाओ मैं कार्टून देखता रहूंगा। यह सब कुछ बच्चे के स्वस्थ विकास में घातक हो सकता है।
समय नियत करें-
बच्चों को कार्टून देखने के लिए कुछ समय नित करना चाहिए। भले उसके बाद बच्चा कितना भी जिद करे कोई न कोई बहाना बनाकर उसका कार्टून देखना बंद करवाएं। आप अपनी सुविधा के अनुसार कुछ समय तक करें की बच्चा रोज दो घंटे से ज्यादा कार्टून नहीं देखे। अगर बच्चा ज्यादा देर तक कार्टून ही देखेगा तो उसकी दैनिक जीवन की अन्य गतिविधियों पर फर्क पड़ेगा। कार्टून की दुनिया में ज्यादा जीने वाले बच्चे खाली समय में हमेशा कार्टून की ही बातें करते हैं। उनके अंदर अलग अलग समय में अलग अलग कार्टून कैरेक्टर की आत्मा समाहित हो जाती है। कई कार्टून धारावाहिकों में मारपीट और जासूसी की कहानियां दिखाई जाती हैं। ऐसे कार्टून देखने वाले बच्चे इन्ही चरित्रों से संवाद भी सीखते हैं। आप थोडी देर के लिए अपने बच्चे को इस तरह का संवाद बोलते देखकर खुश हो सकते हैं, पर यह लंबे समय के लिए खतरनाक हो सकता है।
अलग गतिविधियों में व्यस्त करें-
बच्चे को कार्टून देखने के अलग करने के लिए उसे अपने साथ बिठाकर अलग तरह की गतिविधियों में व्स्त करें। उसके साथ कोई बच्चों वाला ही गेम खेलें। उसकी किताबों के संग होम वर्क कराएं। जो खिलौने आप उसके लिए लाते हैं उनके संग खेलने के लिए अभिप्रेरित करें। पार्क में ले जाकर उसकी उम्र के दोस्तों के संग खेलने का मौका दें। इससे बच्चे का समग्र विकास हो सकेगा। साथ ही वह अपने आसपास की दुनिया के संग इंटरैक्स्न कर सकेगा, नहीं तो लगातार कार्टून देखने वाले बच्चे वर्चुअल दुनिया के जीव हो जाएंगे।
vidyutp@gmail.com 

प्रेमी प्रेमिका और मोबाइल

मोबाइल फोन कंपनियों को सबसे ज्यादा फायदा प्रेमी प्रेमिकाओं से ही हुआ। इससे उनका कारोबार दिन दुगुना और रात चौगुना बढ़ता जा रहा है। हालांकि प्रेमी प्रेमिका मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियों को अक्सर धन्यवाद देते हुए देखे जाते हैं कि फोन ने उनका मिलना जुलना सेटिंग गेटिंग और बातें करना आसान कर दिया है। अब रात को रजाई के अंदर घुस कर प्रेमिकाएं अपने प्रेमी से घंटों मोबाइल पर बातें करती रहती हैं और मां बाप को भनक तक नहीं लगती है। अगर बाप मोबाइल खरीदकर बेटी को नहीं दे तो प्रेमी मोबाइल गिफ्ट कर देता है बर्थ डे या वेलेंटाइन डे पर। हालांकि पिताओं को अपनी पुत्री की कुशल क्षेम की चिंता लगी रहती है इसलिए वे बेटी को मोबाइल देकर कालेज या बाजार भेजते हैं। पर यह मोबाइल मां बाप से ज्यादा मुए आशिक के काम आता है। वह पूछता है जानेमन तुम कहा हों। वह बोलती है इडीएम माल में घर के लिए शापिंग कर रही हूं। बस प्रेमी फटाक से बाइक का एक्सलरेटर घुमाता है और पहुंच जाते हैं दोनो माल में। माल में अब रेस्टोरेंट और काफी शाप भी खुलने लगे हैं। बस बैठकर घंटों गप्पे लड़ाते रहो। बाप का फोन आता है तो बेटी बोलती है बस पापा पैकिंग करवा रही हूं। प्रेमी प्रेमिका समझते हैं कि अंबानी या मित्तल ने उन्हें बहुत अच्छा खिलौना दे दिया है। पर वास्तव में मोबाइल सेवा प्रदान करने वाले अंबानी, मित्तल, टाटाओं का इन प्रेमी प्रेमिकाओं का की शुक्रगुजार होना चाहिए जो मोबाइल पर बातें करके उनका लंबा चौड़ा बिल बनाते हैं। फिर दिलेर बाप उनका बिल भरता है। बाप पूछता बेटी मोबाइल का बिल इस महीने कुछ ज्यादा आया तो बेटी कहती है पापा सहेली से होमवर्क की बातें ज्यादा करनी पड़ी। अगर मोबाइल प्रीपेड है तो उसे रिचार्ज करवाने का जिम्मा पालतू प्रेमी पर होता है। प्रेमिका कहीं उसके हाथ से छटकर कर किसी और की न हो जाए इसलिए प्रेमी अपनी प्रेमिकाओं का मोबइल नियमित चार्ज करवाते रहते हैं।

किसी जमाने में फोन को जरूरी बातें करने के लिए समझा जाता था, इसलिए फोन के पास लिखा रहता था बी ब्रीफ आन फोन यानी फोन पर संक्षेप में बातों को करके निपटाएं। अब स्थित उलट हो गई है। अब फोन ज्यादा से ज्यादा और गैर जरूरी बातें करने के लिए है। सभी कंपनियां चाहती हैं कि आप ज्यादा से ज्यादा बातें करें। जितनी ज्यादा बातें करेंगे उतना ही ज्यादा बिल बनेगा और उतनी ही ज्यादा कमाई हो सकेगी।

इसलिए कंपनी अब लोगों को तरह तरह से उकसाने में लगी रहती हैं कि आप फोन पर ज्यादा और लंबी बातें करों। चिदंबरम साहब धीरे धीरे सर्विस टैक्स भी बढ़ाते जा रहे हैं ताकि सरकार की भी जेब भरती रहे। मोबाइल कंपनियों को सबसे ज्यादा फायदा प्रेमी प्रेमिका टाइप के लोग ही पहुंचा रहे हैं क्योंकि सबसे ज्यादा लंबी लंबी वार्ता वही लोग करते हैं। बाकी लोगों पास तो फोन पर आधा घंटा से लेकर एक घंटातक बातें करने का कोई एजेंडा नहीं होता कोई इश्यू नहीं होता। पर प्रेमी प्रेमिका की वार्ता किसी बेजान से इश्यू में भी जान फूंक देती है और मोबाइल कंपनी का मीटर घंटों तक चलता रहता है। पहले कई पिताओं को अपनी बेटी की वार्ता के कारण अपना लैंडलाइन फोन कटवाना पड़ता था। अब वह टेंशन भी खत्म है। कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को जितना ज्यादा प्यार करता है उतना ही छोटा मोबाइल प्रेजेंट करता है जो आसानी से वेनिटी केस या पर्स में छुप जाता है। मां बाप को तो पता भी नहीं होता कि उनकी बेटी के पास कोई मोबाइल फोन भी है। जो लड़कियां एक साथ तीन लड़को को लिफ्ट देती हैं वे तीन अलग अलग मोबाइल फोन रखती हैं। अलग अलग समय में तीन प्रेमियों को एक साथ भी उल्लू बनाती हैं। पर जवानी में उल्लू बनने के भी अपने मजे हैं।
-- विद्युत प्रकाश मौर्य


छत्तीसगढ़ में है कुकुरदेव का मंदिर

अक्सर कुत्ते का तिरस्कार ही किया जाता है पर छत्तीसगढ़ में कुकुरदेव यानी श्वान का मंदिर बना हुआ है। आपने कभी सुना है कि किसी मंदिर में कुत्ते की पूजा होती है। पर छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के खपरी गांव में कुकुरदेवनाम का बड़ा ही प्राचीन मंदिर है।

इस मंदिर में किसी देवी-देवता की नहीं बल्कि कुत्ते की पूजा होती है। कहा जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से कुकुर खांसी नहीं होती और इसके साथ ही कुत्ते के काटने का भय भी नहीं रहता। 
लोग बताते हैं कि चौदहवीं शताब्दी में नागवंशी शासकों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है। उसके बगल में एक शिवलिंग भी है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दोनों ओर कुत्तों की प्रतिमा लगाई गई है. यह मंदिर 200 मीटर के दायरे में फैला हुआ है। मंदिर को चारों चरफ 14वीं-15वीं शताब्दी के शिलालेख भी रखे हैं, जिन पर  बंजारों की वस्ती  चांद-सूरज और तारों की आकृतियां बनी हुई है। यहां राम, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के अलावा भगवान गणेश की भी एक प्रतिमा स्थापित है। यहां आने वाले लोग यहां महादेव शिव के साथ-साथ कुकुरदेव प्रतिमा की पूजा भी करते हैं। मंदिर की चारों दिशाओं में नागों के चित्र भी बने हुए हैं।

क्यों बना कुकुरदेव का मंदिर

कहते हैं, पहले यहां बंजारों की बस्ती थी। उस बस्ती में मालीघोरी नाम का एक बंजारा रहता था। उसके पास एक पालतू कुत्ता था। गांव में अचानक अकाल पड़ने के कारण बंजारे को अपने कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा। इसी बीच साहूकार के घर चोरी हो गई। कुत्ते  ने यह देख लिया था कि चोर सामान कहां छुपा रहे हैं। सुबह कुत्ता साहूकार को उस जगह पर ले गया जहां चोरी का सामान था। इससे खुश होकर  साहूकार ने इस घटना का उल्लेख एक कागज पर किया और उसे कुत्ते के गले में बांधकर अपने असली मालिक के पास जाने के लिए मुक्त कर दिया। पर जब बंजारे ने कुत्ते को वापस आते देखा तो गुस्से में बिना सोचे समझे ही उसे मार डाला। पर बाद में बंजारे ने कुत्ते के गले में बंधे कागज को पढ़ा तब गलती का एहसास हुआ। उसने प्रायश्चिच करने के लिए अपने प्यारे कुत्ते की याद में मंदिर प्रांगण में  उसकी समाधि बनवा दी। उसके बाद उसने कुत्ते की मूर्ति भी वहां स्थापित करवा दी। तब से यह स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से विख्यात है।

- प्रस्तुति - विद्युत प्रकाश मौर्य