बच्चा
सुबह उठते ही कार्टून देखने की जिद करता है और रात को सोते समय कार्टून देखते
देखते सो जाता है। यानी उसके सपने में भी कार्टून चरित्र ही आते होंगे। कभी कभी
नींद में कार्टून चरित्र के नाम लेकर चिल्लाता है। जब वह दिन में खेलता है तब भी
कार्टून चरित्रों जैसे संवाद ही बोलता है। आखिर यह सब क्या है। कहीं आपका बच्चा
असली जिंदगी से अलग होकर कार्टून चरित्रों की जिंदगी में तो नहीं जी रहा है। यह एक
वर्चुअल लाइफ है जो शायद बच्चे के विकास के लिए खतरनाक हो सकता है।
कार्टून
की भीड़
अभी
टीवी पर हंगामा,
कार्टून नेटवर्क, पोगो, डिज्नी
जैसे कई कार्टून चैनल उपलब्ध हैं। इनमें से खास तौर पर हंगामा बच्चों में काफी
लोकप्रिय हो रहा है। बच्चे स्कूल से आते हैं और कार्टून की दुनिया में खो जाते
हैं। वे सीनचैन जैसे तमाम कार्टून चरित्रों को अपने से जोड़ कर देखते हैं। तीन साल
का नन्हा वंश घर में सुबह उठते ही बोलता है मम्मा कार्टून लगा दो। उसके बाद वह
कार्टून की दुनिया में ऐसे खो जाता है कि उसे नहाने खाने की कोई सुध नहीं रहती है।
जब कभी चैनल बदलो तो वह चिल्लाने लगता है। खाली समय में और दोस्तों के बीच हमेशा
वह कार्टून कैरेक्टर की ही बातें करता है। अगर कभी घर से बाहर चलने की बात करो तो
वह बोलता है कि तुम लोग बाहर जाओ मैं कार्टून देखता रहूंगा। यह सब कुछ बच्चे के
स्वस्थ विकास में घातक हो सकता है।
समय
नियत करें-
बच्चों
को कार्टून देखने के लिए कुछ समय नित करना चाहिए। भले उसके बाद बच्चा कितना भी जिद
करे कोई न कोई बहाना बनाकर उसका कार्टून देखना बंद करवाएं। आप अपनी सुविधा के
अनुसार कुछ समय तक करें की बच्चा रोज दो घंटे से ज्यादा कार्टून नहीं देखे। अगर
बच्चा ज्यादा देर तक कार्टून ही देखेगा तो उसकी दैनिक जीवन की अन्य गतिविधियों पर
फर्क पड़ेगा। कार्टून की दुनिया में ज्यादा जीने वाले बच्चे खाली समय में हमेशा
कार्टून की ही बातें करते हैं। उनके अंदर अलग अलग समय में अलग अलग कार्टून
कैरेक्टर की आत्मा समाहित हो जाती है। कई कार्टून धारावाहिकों में मारपीट और
जासूसी की कहानियां दिखाई जाती हैं। ऐसे कार्टून देखने वाले बच्चे इन्ही चरित्रों
से संवाद भी सीखते हैं। आप थोडी देर के लिए अपने बच्चे को इस तरह का संवाद बोलते
देखकर खुश हो सकते हैं,
पर यह लंबे समय के लिए खतरनाक हो सकता है।
अलग
गतिविधियों में व्यस्त करें-
बच्चे
को कार्टून देखने के अलग करने के लिए उसे अपने साथ बिठाकर अलग तरह की गतिविधियों
में व्स्त करें। उसके साथ कोई बच्चों वाला ही गेम खेलें। उसकी किताबों के संग होम
वर्क कराएं। जो खिलौने आप उसके लिए लाते हैं उनके संग खेलने के लिए अभिप्रेरित
करें। पार्क में ले जाकर उसकी उम्र के दोस्तों के संग खेलने का मौका दें। इससे
बच्चे का समग्र विकास हो सकेगा। साथ ही वह अपने आसपास की दुनिया के संग इंटरैक्स्न
कर सकेगा,
नहीं तो लगातार कार्टून देखने वाले बच्चे वर्चुअल दुनिया के जीव हो
जाएंगे।
vidyutp@gmail.com
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