Wednesday, 25 January 2012

जिधर देखो उधर खली नजर आता है...

अगर आप टीवी के किसी भी समाचार चैनल की ओर रिमोट बदलें तो आपको खली की खबर देखने को मिलेगी। कहीं पर खली बीमार है यह खबर प्रमुखता से दिखाई जा रही है तो कहीं पर खली के घर जाकर उससे खास तौर पर बातचीत करके दिखाई जा रही है। इधर कुछ महीने से समाचार चैनलों पर खली सबसे बड़ी खबर है। कई बार खली की खबरें लगातार देखते हुए लगता है कि हम कोई समाचार चैनल न देख रहे हों बल्कि बच्चों का कोई कार्टून देखर रहे हों। जी हां, बच्चों को कार्टून में यही सब कुछ तो होता है। खली के रूप में हिंदी समाचार चैनलों को बड़ा खेवनहार मिल गया है। यह सब कुछ तब से शुरू हुआ जब खली ने अंडरटेकर को चुनौती दी। क्या खली अंडरटेकर को हरा पाएगा।


यह कयास लगाया जाना टीवी चैनलों के लिए सबसे बड़ी खबर थी। हालांकि खली अंडरटेकर को नहीं हरा पाया पर टीवी चैनलों को खली के रूप में एक बड़ा मशाला मिल गया। खली के साथ एक बड़ी बात है कि वह हिंदुस्तान का रहने वाला है। उसका असली नाम दिलीप सिंह राणा है और वह हिमाचल प्रदेश का रहने वाला है। वह डब्लू डब्लू ई में कुश्ती लड़ता है। बच्चे ऐसे कैरेक्टर को देखना खूब पसंद करते हैं। हालांकि खली कई सालों से डब्लू डब्लू ई में लड़ रहा है। पर कई सालों से समाचार चैनलों की नजर उसके उपर नहीं थी। सभी चैनलों की आंखे हाल में खुली हैं कि यह तो हमारे लिए बड़ा ही बिकाउ मशाल हो सकता है। इसलिए सभी बड़े चैनल खली को हर तरीके से भुनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। खली लंबा है उसकी कद काठी कार्टून कैरेक्टर फैंटम जैसी है। ऐसे में बच्चों के लिए वह बड़ा ही प्यारा कैरेक्टर है। जाहिर बच्चे खली को देखना पसंद करते हैं। जब वह रिंग में सामने वालों की पिटाई करता है तो बच्चे वाह वाह करते हैं। यह अलग बात है कि डब्लू डब्लू ई के मुकाबले कितने हकीकत होते हैं। मशहूर पहलवान दारा सिंह कहते हैं। अगर देखा जाए तो वह भी कुश्ती ही है। पर वह कुश्ती किसी ओलंपिक या एशियाई खेल में मान्य नहीं होती। क्योंकि इस कुश्ती के नियम कानून अलग हैं। यह फ्री स्टाइल कुश्ती से भी अलग चीज है। अगर हम दूसरे शब्दों में कहें तो यह बच्चों को बेवकूफ बनाने वाली कुश्ती है। इसके रिजल्ट हकीकत से कुछ अलग होते हैं। डब्लू डब्लू ई के मुकाबले में कई बार हारने के लिए भी बड़ी इनाम राशि दी जाती है। अगर आप कभी टीवी पर इन मुकाबलों को देखें तो इसमें मुकाबला से ज्यादा नाटक होता है। इस कुश्ती में एक दूसरे को मारपीट कर घायल कर देने जैसा कुछ होता है। इसका ड्रामा बच्चों को खूब पसंद आता है।
कामेडी के बाद प्राइम टाइम पर चैनलों के लिए खली खबर बड़ा तमाशा है। टीवी चैनलों को इस बात से कुछ खास लेना देना नहीं है कि देश की संसद में किन महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस हो रही है। पर खली अगर हिंदी फिल्मों में काम करेगा इस तरह की कोई खबर आती है तो यह बड़ी बात बन जाती। टीवी चैनल इस बात को बड़ी प्रमुखता से दिखाते हैं कि खली आखिर तनुश्री दत्ता के साथ नाचता गाता कैसा लगेगा। इससे पहले खली हालीवुड के फिल्मों में भी एक्टिंग कर चुका है। पर उसका बालीवुड की फिल्मों में काम करना बड़ी खबर है। हम कह सकते हैं कि समाचार चैनल कुछ कुछ कार्टून और कामिक्स बुक्स की तरह होते जा रहे हैं। जहां कहीं अच्चा ड्रामा मिलता हो उसे लपक लो।
--- vidyutp@gmail.com

Friday, 20 January 2012

रिटेल में बड़ी कंपनियों से खतरा....

देश भर में रिलायंस जैसी बड़ी कंपनियों के आने का विरोध शुरू हो चुका है। पर इसमें यह समझने की जरूरत है कि इसका विरोध कौन लोग कर रहे हैं। इन बड़ी कंपनियों के रिटेल सेक्टर में आने से घाटा किसे उठाना पड़ रहा है। छोटे कारोबारियों को यह खतरा नजर आ रहा है कि इन बड़ी कंपनियों के आने से उनका धंधा पूरी तरह बंद हो जाएगा। पर ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। रिलायंस ने अपने रिटेल सेक्टर की शुरूआत हैदराबाद से की। पर यहां रेहड़ी पटरी के सब्जी विक्रेताओं ने इनका कोई विरोध नहीं किया। अक्सर रिलायंस ने अपना फ्रेश आउटलेट वहीं खोला है जहां सब्जी बाजार पहले से ही है। वहीं हैदराबाद जैसे शहर में कई और बड़ी कंपनियां ब्रांडेड माल में सब्जी बेचने का कारोबार कर रही हैं। पर इनसे छोटे मोटे सब्जी विक्रेताओं के व्यापार पर कोई बुरा असर नहीं पड़ा है। हाट में सब्जी बेचने वाले प़ड़ोस के गांव से लाकर ताजी सब्जी बड़े स्टोरों से भी सस्ते दरों पर बेच रहे हैं। उपभोक्ताओं को जहां बेहतर लगता है वहां से खरीददारी कर रहे हैं। पर रिलायंस, बिड़ला, आईटीसी, गोदरेज जैसी कंपनियों के सब्जी बाजार में प्रवेश करने से आढ़तियों और कमीशन एजेंटों को जरूर परेशानी हो रही है। ये लोग कई सदी से इस परंपरागत व्यापार को असंगठित तरीके से करते चले आ रहे हैं। आमतौर पर वे अपने खाताबही में हेरफेर करके बिक्री कर और मार्केट फीस में सरकार को बड़ा चूना लगाते हैं।

रिलायंस जैसी कंपनियां जहां रिटेल सेक्टर में आई हैं वहीं देश की कई प्रमुख मंडियों में वे कमीशन एजेंट के रूप में भी प्रवेश कर रही हैं। इससे पुराने आढ़तियों की परेशानी बढ़ गई है। क्योंकि ये ब्रांडेड कंपनियां किसानों से महंगी दरों में सब्जियों की खरीद फरोख्त करती हैं वहीं उपभोक्ताओं को सस्ती दरों पर बेच देती हैं यानी वे मुनाफा कम रखती हैं। इसलिए आढ़ती और कमीशन एजेंट चाहते हैं कि रिलायंस उनके कारोबार में प्रवेश नहीं करे। जबकि सरकार से वैध तरीके से लाइसेंस प्राप्त करके रिलायंस जैसी कंपनियां मंडी में कारोबार के लिए उतरी हैं। ठीक इसी तरह आईटीसी ने देश के कई राज्यों के गांवों में चौपाल सागर की शुरूआत की है। इसमें जहां किसानों को अपने अनाज को बेचने की सुविधा है वहीं यहां खाद बीज व उनके जरूरत की अन्य सभी वस्तुओं के खरीदने के लिए स्टोर भी है। यह एक ग्रामीण डिपार्टमेंटल स्टोर का नमूना है जहां किसानों के लिए जाना एक अच्छा अनुभव तो है ही साथ ही ऐसी मंडियां किसानों को परंपरागत व्यापारियों की तुलना में उपज का बेहतर मूल्य भी प्रदान करती हैं। परंपरागत मंडियों की तुलना में यहां तौल की प्रक्रिया में होने वाले खर्चों को भी कम किया गया है। पर पुराने परंपरागत व्यापारी अपने व्यापार करने के तरीके को बदलने के बजाय विरोध पर उतरना चाहते हैं।
विरोध की वास्तविक तस्वीर भी दूसरी है जिन शहरों में इस तरह के बड़े व्यापारियों का संगठित होकर विरोध हो रहा है उससे इन बड़ी कंपनियों को थोड़ी बहुत हानि अवश्य उठानी पड़ रही है। पर इस विरोध के बीच ही उन्हें व्यापक तौर पर प्रचार भी मिल रहा है। इस निगेटिव पब्लिसटी की सकारात्मक फायदा इन कंपनियों को मिल रहा है। कुछ लोगों को भविष्य में इनको मोनोपोली का डर जरूर सता रहा है पर चूंकि हर क्षेत्र में कई बड़ी कंपनियों का प्रवेश हो रहा है इसलिए मोनोपोली का संकट नहीं होगा, हर जगह प्रतियोगिता होगी जिसका लाभ उपभोक्ताओं को ही मिलेगा।


Sunday, 15 January 2012

तीसरी पीढ़ी के मोबाइल...

बाजार में तीसरी पीढ़ी के मोबाइल फोन दस्तक दे चुके हैं। लंबे इंतजार के बाद सरकार ने भी थर्ड जेनरेशन मोबाइल फोन को अपनी सेवाएं शुरू करने की इजाजत दे दी है। सरकारी दूरसंचार कंपनियां एमटीएनएल और बीएसएनएल ने तो साफ कर दिया है कि वे अगले छह महीनों में थ्रीजी सेवाएं शुरू कर देंगी। यह मोबाइल के कम्युनिकेशन के क्षेत्र में एक नए युग की शुरूआत होगी। भारत में 12 सालों में मोबाइल फोन ने बहुत तेजी से विस्तार का सफर तय किया है।

अभी तक हम मोबाइल फोन का इस्तेमाल सिर्फ बातें करने के लिए करते थे। पर मोबाइल ने धीरे धीरे कई तरह की जरूररतें खत्म कर डाली हैं। बातें होने के साथ एसएमएस ने सबसे पहले टेलीग्राम जैसी चीजों की जरूरत खत्म की। उसके बाद मोबाइल फोन पर आए एफएम रेडियो ने अलग से रेडियो लेकर चलने की जरूरतें खत्म की। यानी बातें करते रहिएजब बातें नहीं करनी हो तो गाने सुनने का आनंद उठाइए। इसलिए बसों में और सार्वजनिक स्थलों पर लोग मोबाइल फोन का इयरफोन कान में लगाए गाने सुनने का आनंद उठाते जर आते हैं। इसके बाद मोबाइल फोन में कैमरा आया। शुरूआती दौर में मोबाइल फोन के साथ मिलने वाला कैमरा बहुत सस्ती किस्म का था। वीजीए कैमरे में उपलब्ध क्वालिटी का कोई उच्च गुणवत्ता में इस्तेमाल संभव नहीं था। पर अब मोबाइल फोन के साथ दो मेगा पिक्सेल तक के कैमरे आ रहे हैं। इन कैमरों से खींची गई तस्वीरों का इस्तेमाल आप कहीं भी कर सकते हैं। इसका बढि़या इनलार्जमेंट करवाया जा सकता है और कहीं भी छपवाया भी जा सकता है। अब शौकिया मोबाइल कैमरे से खींचे गए फोटो कई बार बहुत अच्छे व्यवासायिक इस्तेमाल में आते हैं। कैमरे के साथ नई पीढ़ी के मोबाइन फोन में आईपोड ( गाना सुनने के लिए सांग बैंकतो गेमिंग पैड भी आने लगे हैं।
अब थ्री जी मोबाइल आने के बाद मोबाइल युग में क्रांति आने वाली है। क्योंकि इस पीढी के मोबाइल फोन में आपको फोन पर ही मिलेगा हाई स्पीड इंटरनेट। यानी ब्राड बैंड जैसी नेट सर्फिंग अब मोबाइल फोन पर की जा सकेगी। इसके साथ ही बहुत ही तेज गति से हाई स्पीड डाटा ट्रांसफर किए जा सकेंगे। यानी कोई तस्वीरों का समूह या वीडियो भी मोबाइल के जरिए दुनिया के किसी भी कोने में भेजा जा सकेगा। यानी मोबाइल फोन आपका चलता फिरता दफ्तर हो सकता है। आप चाहें तो अपने फोन से ही किसी घटना का वीडियो बनाएं और उसे कहीं भी ट्रांसफर कर दें। तीसरी पीढ़ी के मोबाइल टीवी और अखबार में खबरों के संकलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। भारत जैसे देश में जहां मोबाइल फोन के कई श्रेणी के उपयोक्ता हैंतीसरी पीढ़ी के मोबाइल का एक बड़ा ग्राहक वर्ग तैयार है इसके स्वागत के लिए। कारपोरेट यूजर और ए क्लास के लोग इस तरह की सेवाओं का उपयोग करना चाहते हैं। बाजार भी पहले से ही थर्ड जेनरेशन के मोबाइल हैंडसेट से पटा पड़ा है। एयरटेल और वोडाफोन ने थ्री जी सेवाओं से लैस मोबाइल फोन को लांच करने की पहले से ही तैयारी कर रखी थी। एप्पल अपना आईफोन इन कंपनियों के साथ बेचना शुरू कर रही है। यह आईफोन लैपटाप में उपलब्ध सुविधाओं से लैस होगा।
- विद्युत प्रकाश मौर्य 




Tuesday, 10 January 2012

नई सड़कें तो बनानी पड़ेगी....

-विद्युत प्रकाश मौर्य
दिल्ली में आजकल बीआरटी कारीडोर को लेकर हंगामा मचा हुआ है। तेज गति से बसें चलाने के लिए खास कारीडोर सरकार ने बनवा तो दिया है पर लोग हंगामा कर रहे हैं कि यह कारीडोर लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रहा है। यह सही है परेशानी तो हो रही है। पर सरकार भी क्या करे वह मजबूर है। बढ़ती आबादी के बोझ के मुताबिक उसे नए इंतजाम करने पड़ते हैं। दिल्ली में आबादी का बोझ जितना बढ़ गया है, उसके के हिसाब से तेज गति से सफर करने वाली सड़कों का निर्माण जरूरी होता जा रहा है। अब अगर आप दिल्ली में रहते हैं और आपका घर उत्तरी दिल्ली के किसी मुहल्ले में है और आपकी नौकरी या बिजनेस दक्षिणी दिल्ली के किसी बाजार में है तो आपका रोज आने जाने में ही छह सात घंटे खत्म हो जाते हैं।

बढ़ती आबादी का बोझ - दिल्ली की आबादी सवा करोड़ को पार कर चुकी है। अगर इसमें आसपास के महानगरों को भी शामिल कर लें तो यह आबादी डेढ़ करोड़ के भी उपर जा चुकी है। अब परिवहन और अन्य जरूरतें आने वाले 20 साल की योजना के अनुरूप जुटानी पड़ती है। ऐसे में दिल्ली को तेज गति वाली सड़कें और रेलगाड़ियां चाहिए। तभी रोज करोड़ों को लोगों को मंजिल तक पहुंचाया जा सकेगा। मेट्रो रेल के चल जाने से लोगों की सुविधाएं बढ़ी हैं। अब मेट्रो से 25 से 30 किलोमीटर की दूरी 30 से 40 मिनट में तय की जा सकती है। पहले बसों से यही सफर करने में तीन घंटे तक लग जाते थे। अब सरकार कुछ प्रमुख सड़कों पर भी तेज गति से चलने वाली बसें चलाना चाहती है। इसमें व्यवहार में कोई बुराई नहीं दिखाई देती। पर बीआरटी कारीडोर के ट्राएल में सरकार को असफलता मिली है। पर उम्मीद है कि उसकी समस्या दूर कर ली जाएंगी और लोगों को मेट्रो के बाद बसों में भी तेज गति से सफर करने का मौका मिल सकेगा।
ब्लूलाइन का दुखद सफर- अगर हम दिल्ली के बसों सफर पर नजर डालें तो दिल्ली की ब्लू लाइन बसों में चलना किसी दुखद सपने जैसा है कि वह भी गरमी के दिनों में। अब सरकार इस प्रयास में लगी है कि दिल्ली में बसों के सफर को भी आरामदेह बनाया जाए। इसी क्रम में लो फ्लोर बसें चलाई गई हैं। जिन रूट पर नई लो फ्लोर बसें चल रही हैं। उनमें चलने वाले लोगों का अनुभव बड़ा अच्छा है। अभी तक दिल्ली में मुंबई या हैदराबाद की तरह लोकल ट्रांसपोर्ट के लिए लक्जरी बसें या फिर एसी बसें नहीं चलाई गई हैं।
आरामदेह बसें चाहिए- अब दिल्ली सरकार एसी बसें लाने की बात कर रही है। सिर्फ एसी बसें ही नहीं बल्कि लंबी दूरी के लिए सुपर फास्ट सेवाएँ भी चलानी चाहिए। जैसे दिल्ली में जो प्वाइंट 20 किलोमीटर या उससे ज्यादा की दूरी पर हैं उनके बीच तेज गति वाली बसें चलनी चाहिए। इस क्रम में ग्रीन लाइन और ह्वाइट लाइन बसें चलाई गई थीं। पर उनमें समान्य बसों से कुछ खास अंतर नहीं था।
लंबी यात्रा करने वालों को वातानुकूलित (एसी) और आरामदेह बसें मिलनी चाहिए। इससे कार में सफर करने के बजाए लोगों बसों में सफर करना पसंद करेंगे। भीड़भाड़ वाले इलाकों में छोटी बसें भी चलाई जा सकती हैं जिसस लोगों को हर थोड़ी देर पर बसें मिल सकें। साथ ही लंबे दूरी की यात्रा में लगने वाले समय में भी कमी आएगी। इससे महानगरों में तेजी से बढ़ रही चार पहिया वाहनों की संख्या पर भी रोक लगाई जा सकेगी।


Thursday, 5 January 2012

एक लाख की कार और बाजार ...

कुछ लोग कह रहे थे कि असंभव...ऐसा तो हो ही नहीं सकता....भला आज के जमाने में एक लाख रूपये में कार कैसे आ सकती है। फिलहाल आटो रिक्सा की कीमत सवा लाख रूपए आ रही है। टाटा समूह इतने ही रूपए में अपनी नई नैनो कार आफर कर रहा है। रतन टाटा का यह सपना था एक सवा लाख रूपये में मध्यम वर्ग के लोगों के लिए कार सौंपने का। 2008 में उन्होंने यह सपना पूरा कर दिखाया है। भारत के वाहन बाजार में यह मारूति के बाद दूसरी बड़ी क्रांति है। मारूति कार का सपना संजय गांधी ने देखा था। संजय गांधी छोटा परिवार सुखी परिवार के हिमायती थे। हम दो हमारे दो के अनुरूप बनी थी मारूति कार। 1982 में मारुति कार आई तो उसकी कीमत सिर्फ 49 हजार रूपये थी। यानी वह तब एंबेस्डर और फियेट जैसी कारों से सस्ती थी। छोटी कार थी छोटा परिवार सुखी परिवार के लिए बनी थी। जब इंदिरा गांधी इस कार को बाजार में लांच किया तो वे भावुक हो गईं थी। उन्हें अपने बेटे संजय की याद आई जिसने यह सपना देखा था आम आदमी को कार सौंपने का। तब मारूति को जापान की कंपनी सूजुकी के सहयोग से बनाया गया था। लोग आरोप लगाते हैं मारूति बाद में महंगी होती गई और आम आदमी से दूर होती गई। पर ऐसा नहीं है। मारूति तब भी एक बाइक से पांच गुनी महंगी थी आज भी एक बाइक से पांच गुनी महंगी है। मारूति ने मध्यम वर्ग को एक विकल्प दिया। मारूति के बारे में भी तब ये कहा जा रहा था कि ये कार भारतीय बाजारों में सफल नहीं होगी पर ऐसा हुआ नहीं। मारूति सफल भी है और उसका सेकेंड हैंड बाजार भी बहुत अच्छा है। किसी भी कार या बाइक की सफलता का एक बड़ा पैमाना उसकी सेकेंड हैंड मार्केट में वैल्यू भी होती है। इस मामले में भी मारूति बहुत सफल है। अब टाटा की नई कार बाजार में दस्तक देने वाली है तो आलोचकों को यही डर सता रहा है कि यह बाजार में सफल नहीं होगी या ट्रैफिक के लिए बहुत बड़ी समस्या बन जाएगी। पर उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है।
भारतीय सडकों पर सफल होगीटाटा की नैनो भी भारतीय सड़कों पर सफल होगी। उसकी लांचिंग से पहले गहराई से शोध किया गया है। उसे भारतीय सड़कों पर चला कर देखा गया है। वह प्रदूषण मानकों पर भी खरी है और कार के बाजार में यूरो -4 और भारतजैसे मानकों पर भी खरी उतरती है। जब कोई नई कार या बाइक लांच होती है तो बाजार में ग्राहकों की प्रतिक्रिया के बाद उसमें लगातार सुधार भी होते रहते हैं। वैसे भी नैनो कार को टाटा जैसी कंपनी ने पेश किया है जिसका आटोमोबाइल क्षेत्र में लंबा अनुभव है। ट्रक से लेकर कार के विभिन्न माडल बनाने का। इसलिए लोगों को निराश नहीं होना चाहिए।
रतन टाटा का सपना थाखुद रतन टाटा हवाई जहाज उड़ाने के शौकीन हैं देश के बड़े अमीर हैं। पर टाटा समूह पिछले एक दशक से हर सेक्टर में आम आदमी और मध्यम वर्ग के अनुरूप प्रोडक्ट लांच करने में लगी है। भले ही एक लाख की कार से रतन टाटा का भावनात्मक लगाव है। बताया जाता है कि वे ऐसे वर्ग के लिए एक कार सौंपना चाहते थे जो बाइक या आटो रिक्सा से शिप्ट करके कार में सवारी कर सकें। बाइक आपको हवा और धूप से नहीं बचा पाती पर नैनो आपको गरमी और बरसात में सड़कों पर हवा और धूप से बचाएगी। इसलिए नैनो से मध्यम वर्ग का एक बहुत बड़ा सपना साकार होने वाला हैअपनी कार में बैठकर सवारी करने का।
सस्ती कार बेचने में कोई घाटा नहीं....
ऐसा नहीं है कि वे एक लाख में नैनो कार को घाटे में बेचने जा रहे हैं। हां यह जरूर है इसमें मुनाफा कम होगा। यह बाजार का नियम है जब भी प्रतिस्पर्धा बढ़ती है तो मुनाफे में कमी लानी पड़ती है। अगर आप पिछले आठ साल में बाइक के बाजार पर ही नजर डालें तो फोर स्ट्रोक की बाइक में आठ साल में कीमतोंे में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। उल्टे कीमतों में कमी आई है। हालांकि स्टील और अन्य इन्फ्रास्ट्कर्चर वस्तुओं की कीमतों में इजाफा हुआ है। इसके बाद भी अगर बाइक की कीमतों में कमी आई है तो उसका एक बड़ा कारण बाजार में बढ़ रही प्रतिस्पर्धा है। आज फोर स्ट्रोक बाइक के बाजार में हीरो होंडा को मुकाबला देने के लिए बजाजटीवीएसयामहा और खुद होंडा जैसी कंपनियां इसलिए फोर स्ट्रोक बाइक कीमतें घट रही हैं और लोगों को आसान किस्तों पर बाइक मिल पा रहा है। इसके बावजूद फोर स्ट्रोक बाइक बनाने वाली कंपनियों का मुनाफा बढ़ता जा रहा है। इसका साफ मतलब है कि कार और बाइक कंपनियां बहुत बड़ा मुनाफा और अच्छा खासा डीलर मार्जिन भी रखती हैं। कार के बाजार में भी कई कंप्टिटर आने पर मारूति को अपना मुनाफा कम करना पड़ सकता हैकीमतें कम करनी पड़ सकती हैं। फिलहाल देखें तो मारूति-800 के सिगमेंट में उसका कोई मजबूत कंप्टिटर नहीं है। फिलहाल पहली बार कार खरीदने वाले मारूति की ओर रूख करते हैं। अगर उन्हें उससे कम कीमत में ज्यादा माइलेज देने वाली नैनो कार मिलेगी तो वे जाहिर है नैनो को खरीदना चाहेंगे। कार के बाजार में बाइक की तरह कुछ और कंप्टिटर आ जाएं तो कार की कीमतें भी भारत में बहुत कम हो सकती हैं। कार बाजार से जुड़े लोगों का मानना है कि अगर लागत की बात करें तो नई मारूति कार भी कंपनी को सिर्फ 75 हजार रुपये की पड़ती है। बाकी सब कीमतें में मुनाफा, डीलर मार्जिन और टैक्स आदि शामिल हैं। ऐसी हालात में सवा लाख रूपये में कार बेचना कोई बड़ी बात नहीं है। अगर नैनो ने बाजार पर ठीक से कब्जा जमा लिया को मारूति 800 को भी अपनी कीमतें कम करने पर मजबूर होना पड़ सकता है। अगर वह अपनी कीमतें नहीं भी घटाए तो फ्री में बीमा, रजिस्ट्रेशन, फ्री सर्विसिंग कूपन, फ्री में पेट्रोल जैसे आफर देकर ग्राहकों को लुभा सकती है।
अगर हम सेकेंड बाजार की ओर नजर डालें तो नैनो के आने की आहट भर से ही सेकेंड हैंड कार बाजार में कीमतें गिरने लगी हैं। दिसंबर में चार साल पुरानी मारूति 800 कार दिल्ली के सेकेंड हैंड बाजार में एक लाख में बिक रही थी उसकी कीमत 20 हजार रुपये नैनो की लांचिंग के साथ ही गिर गई है। जो लोग एक लाख में पुरानी कार लेने की सोच रहे थे वे अब एक लाख में नई नैनो लेने की बात सोचने लगे हैं। ऐसे में सितंबर से जब नैनो कार बाजार में आ जाएगी तब सेकेंड हैंड मारूति कार की कीमतें और भी गिर जाने की उम्मीद है।
वैसे मारूति उद्योग के चेयरमैन रहे जगदीश खट्टर भी नैनो की आलोचना नहीं करते। उन्हें लगता है कि कार और बाइक के बीच एक बहुत बड़ी खाई है जिसे नैनो पाट सकती है। इंट्री लेवेल पर एक बाइक 30 से 35 हजार में आती है जबकि मारूति कार दो लाख से ज्यादा की पड़ती है। ऐसे में सवा से डेढ़ लाख में नई कार मिलेगी तो करोड़ों लोगों के आशाओं और उम्मीदों को पंख लग सकते हैं।
-विद्युत प्रकाश मौर्य