Friday, 17 May 2013

कैसे खत्म होगी झुग्गियां ....

दिल्ली- पुराना किला के सानिध्य में बोटिंग का लुत्फ। 
दिल्ली सरकार झुग्गियों को लेकर अब चेत गई है। वह झुग्गी वाली जमीनों पर मल्टी स्टोरी वन रूम फ्लैबनाने की योजना पर काम कर रही है। एक आंकड़े मुताबिक दिल्ली की 20 फीसदी आबादी झुग्गी झोपड़ी में बसती है।
भले ही दिल्ली को दुनिया की सबसे खूबसूरत राजधानियों में शुमार किया जाता हो पर दिल्ली की झुग्गियां शहर की बड़ी हकीकत है। दिल्ली का असली चेहरा है। वास्तव में दिल्ली में झुग्गी झोपड़ियां दिल्ली के खूबसूरत चेहरे पर एक बदनुमा धब्बा है जिसे हटाने के लिए कभी इमानदारी से कोशिश नहीं की गई। भला कोशिश भी कैसे की जाए। दिल्ली की झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोग दिल्ली शहर की बड़ी जरूरत हैं। ग्रेटर कैलाश जैस पॉश कालोनियों में चौकीदार, माली, रसोइया, सफाईवाले सभी लोग इन्ही झुग्गी झोपड़ियों में तो रहते हैं। रेहड़ी पटरी पर सामान बेचने वाले और वे सारे लोग जिन्होंने दिल्ली में आलीशान अट्टालिकाएं खड़ी करने में अपना जीवन होम कर दिया सभी इन्ही झुग्गियों में रहते हैं। हमने कभी ऐसे लोगों के लिए इमानदारी से सोचा ही नहीं। दिल्ली में झुग्गियां बढ़ती गईं। हां कभी कभी उन्हें एक जगह से डंडे के बल पर भगाने की कोशिश की गई। तो झुग्गी वाले एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट कर गए। भला झुग्गी में रहने वाले सभी लोगों को दिल्ली से भगा दोगे तो दिल्ली कैसे चलेगी। झुग्गी वालों के बिना दिल्ली का जीवन ठहर जाएगा। अब दिल्ली सरकार ने झुग्गी वालों के बारे में सोचा है। जिन स्थलों पर कब्जा करके झुग्गियां बनी हैं वहां अब एक कमरे के मल्टी स्टोरी अपार्टमेंट बनाने की बात की जा रही है। इन अपार्टमेंट में इन्ही झुग्गी वालों को घर दिए जाएंगे। ये योजना अगर मूर्त रूप लेती है तो सचमुच झुग्गी वालों का कुछ कल्याण हो पाएगा। इससे पहले भी झुग्गी वालों के लिए कुछ कालोनियां बनी हैं, पर वहां का जीवन स्तर सुधर नहीं पाया है। त्रिलोकपुरी कल्याणपुरी जैसे पुनर्वास कालोनियों की हालत झुग्गी झोपड़ी जैसी ही है। अब बहुमंजिले आवास की परिकल्पना साकार होने वाली है। पर सरकार ऐसी चिन्हित जमीन प्राइवेट बिल्डरों को देकर उसका व्यवसायिक इस्तेमाल भी करना चाहती है।
फिलहाल अगर आप किसी झुग्गी झोपडी कालोनी का दौरा करें तो पाएंगे कि वहां लोग ऐसे रहते हैं जो गांव में जानवरों के रहने की जगह से भी बदतर है। हवा धूप की बात तो दूर लोगों के लिए शौचालय भी नहीं है। तभी अगर आप दिल्ली आते हैं तो सब जगह रेल की पटरियों के किनारे सुबह सुबह लोग रेल की पटरी के किनारे नित्य क्रिया से निवृत होते देखे जाते हैं। यह भी दिल्ली का एक बदरंग चेहरा है। रेल मंत्री ऐसे लोगों को चेतावनी देते हैं पर ऐसे लोग जाएं कहां। जब भी दिल्ली के विस्तार की योजना बनाई गई तो दिल्ली को सुचारू रूप से चलाते रहने वाले इन झुग्गी में रहने वाले लोगों के आवास के लिए योजना नहीं बनाई गई। अगर हर चरण में ऐसे लोगों के लिए आवास विकल्प के बारे में सोचा गया होता तो दिल्ली में इतनी बड़ी संख्या में झुग्गियां नहीं बनी होतीं। अब अगर झुग्गी झोपड़ी वालों के बारे में सोचा जा रहा है तो हमें साथ साथ यह भी देखना होगा कि हम इस तरह से योजना बनाएं कि 40 साल बाद की दिल्ली में ऐसी झुग्गी झोपड़ियों का नामोनिशान नहीं रहे।


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