दिल्ली में पालीथीन की
थैलियों पर प्रतिबंध लग गया है। देर आए दुरुस्त आए। यह प्रतिबंध तो कई साल पहले ही
लग जाना चाहिए था। कई राज्यों ने महानगरों में पहले ही पर्यावरण में बढ़ते कचरे को
भांपते हुए इनपर प्रतिबंध लगा दिया था। अब राजधानी के दुकानों पर यह बोर्ड लगा हुआ
दिखाई देने लगा है – खरीददारी करने वाले ग्राहक अपना थैला लेकर आएं। हम सरकार के ऩए कानून के
बाद पालीथीन नहीं देते। कई साल पहले हिमाचल प्रदेश सरकार ने पर्यावरण को बचाने के
लिए पालीथीन पर रोक लगा दी थी।
जब बाजार में पालीथीन के
बैग आए तो लोगों की सुविधाएं बढ़ गई थीं। सामान की खरीदददारी केलिए लोगों ने घर से
अपना झोला लेकर जाना बंद ही कर दिया था। चाहे सब्जी खरीदना हो या राशन पालीथीन के
बैग लोगों को सुविधाजनक लगने लगे थे। पालीथीन के बैग आने के साथ ही बाजार से कागज
के ठोंगे और जूट के बने झोले गायब होने लगे थे। अगर पिछले दो दशक को पालीथीन युग कह
दिया जाए तो कुछ गलत नहीं होगा। लेकिन जल्दी हमें पालीथीन के खतरों के बारे में
पता चला। पालीथीन से ऐसा कूड़ा बनता है जिसे आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता है।
यह न सिर्फ महानगरों की सफाई व्यवस्था के लिए घातक सिद्ध हुआ बल्कि जानवरों के लिए
भीविनाशकारी सिद्ध हुआ। हर रोज कूड़े में जो पालीथीन के बैग फेंके जाते हैं। वे
किसी भी सूरत में सड़ते नहीं हैं। लिहाजा ये पालीथीनके बैग नालियों में जाने
परनाली और गटर को जाम कर देतेहैं। हमारे लिए शुरूआती दौरमें सुविधाएं देने वाला
पालीथीन बैग सफाई के लिए बहुत बड़ा संकट बन कर उभरा। सभी नगर पालिकाऔर नगर की सफाई
व्यवस्था को पालीथीन ने चुनौती दे डाली। दुनिया के कुछ बड़े शहरों में पालीथीन के
कचरा को खत्म करनेके लिए तो बड़ी महंगी तक निकलानी पड़ी। यानी पालीथीन थोड़ी सुविधा
और ज्यादा समस्या बना गया। भारत के परिपेक्ष्य में पालीथीन को देखें तो यत्र-तत्रकूड़े
के रूप में फेंके गए पालीथीन बैग को जानवर खा लेतेहैं, उसकेबाद
जानवरों के पेट में गया पालीथीन किसी भी तरीके से पचता नहीं है। यह कई बार जानवरों
के मौत का कारण भी बन जाता है।इसलिए खास तौर पर भारत में जहां गाय को माता के रूप
में पूजा जाता है, गौसेवकों को पालीथीन के खतरेका भान हो
चुका है। इसलिए गौ रक्षा आंदोलन के लोग पालीथीन को भारत में प्रतिबंधित करने की
बात कर रहे हैं। पालीथीन ने जिस तरह से नगर की सफाई व्यवस्था के लिए संकट खड़ा किया
है उसे देखते हुए सभी नगरपालिकाओं और नगर निगमों को पालीथीन पर बैन लगा देना
चाहिए।
जिन शहरों ने पालीथीन पर
बैन लगा दिया है वहां की फिजां बदल रही है। लोग फिर से कपड़े का बना बैग लेकर घर
से निकलने लगे हैं। दुकानदार भी कागज से बने हुए लिफाफे में सामान पकड़ाने लगे
हैं। कागज से बने लिफाफों की खासियत है कि ये आसानी से डिस्पोजेबल हैं। इन्हें
कूड़े में फेंकों तो ये गल जाते हैं। इसलिए आप भी कहें पालीथीन को कहें अलविदा...।
-विद्युत प्रकाश
मौर्य, ईमेल vidyutp@gmail.com
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